Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 380

Page 380

ਹਉ ਮਾਰਉ ਹਉ ਬੰਧਉ ਛੋਡਉ ਮੁਖ ਤੇ ਏਵ ਬਬਾੜੇ ॥ अहंकार में डूबा व्यक्ति यह सोच सकता है कि वह किसी को मार सकता है, कैद कर सकता है या मुक्त कर सकता है।
ਆਇਆ ਹੁਕਮੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਛੋਡਿ ਚਲਿਆ ਏਕ ਦਿਹਾੜੇ ॥੨॥ परन्तु जब परमात्मा का आदेश आता है तो वह सबकुछ छोड़कर एक दिन संसार से चला जाता है॥ २॥
ਕਰਮ ਧਰਮ ਜੁਗਤਿ ਬਹੁ ਕਰਤਾ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਨ ਜਾਨੈ ॥ मनुष्य अनेक युक्तियों द्वारा कर्म-धर्म करता है परन्तु रचयिता प्रभु को नहीं जानता।
ਉਪਦੇਸੁ ਕਰੈ ਆਪਿ ਨ ਕਮਾਵੈ ਤਤੁ ਸਬਦੁ ਨ ਪਛਾਨੈ ॥ वह दूसरों को उपदेश करता है परन्तु स्वयं अनुसरण नहीं करता, वह शब्द के रहस्य को नहीं पहचानता।
ਨਾਂਗਾ ਆਇਆ ਨਾਂਗੋ ਜਾਸੀ ਜਿਉ ਹਸਤੀ ਖਾਕੁ ਛਾਨੈ ॥੩॥ वह नग्न ही इस जगत में आया था और नग्न ही चला जाएगा, उसका धर्म-कर्म हाथी स्नान की तरह व्यर्थ है जैसे हाथी (स्नान करने के पश्चात् अपने ऊपर) मिट्टी डाल लेता है॥ ३॥
ਸੰਤ ਸਜਨ ਸੁਨਹੁ ਸਭਿ ਮੀਤਾ ਝੂਠਾ ਏਹੁ ਪਸਾਰਾ ॥ हे संतजनो, हे सज्जनो ! हे मित्रो ! सभी सुन लो यह समूचा जगत प्रसार झूठा है।
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਕਰਿ ਡੂਬੇ ਖਪਿ ਖਪਿ ਮੁਏ ਗਵਾਰਾ ॥ जो लोग स्वामित्व के मोह में डूबे रहते हैं, वे अज्ञानवश सांसारिक मोह के सागर में खो जाते हैं और आध्यात्मिक रूप से मृतप्राय बने रहते हैं।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਸਾਚਿ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੪॥੧॥੩੮॥ हे नानक ! गुरु से मिलकर मैंने प्रभु नाम का ध्यान किया है और सत्यनाम द्वारा मेरा उद्धार हो गया है॥ ४॥ १॥ ३८ ॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੫ ਮਹਲਾ ੫ राग आसा, पाँचवीं ताल, पांचवें गुरु
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है
ਭ੍ਰਮ ਮਹਿ ਸੋਈ ਸਗਲ ਜਗਤ ਧੰਧ ਅੰਧ ॥ जगत के धन्धों में अन्धी हो चुकी दुनिया माया के भ्रम में सोई हुई है।
ਕੋਊ ਜਾਗੈ ਹਰਿ ਜਨੁ ॥੧॥ लेकिन कोई विरला प्रभु का भक्त ही जागता है॥ १॥
ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਮਗਨ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰਾਨ ॥ दुनिया महा-मोहिनी माया के मोह में मग्न है और इसे माया का प्रेम अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है।
ਕੋਊ ਤਿਆਗੈ ਵਿਰਲਾ ॥੨॥ कोई विरला मनुष्य ही माया के आकर्षण को त्यागता है॥ २॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਨੂਪ ਹਰਿ ਸੰਤ ਮੰਤ ॥ प्रभु के चरण कमल अनूप हैं और हरि के संतों का मंत्र भी सुन्दर है।
ਕੋਊ ਲਾਗੈ ਸਾਧੂ ॥੩॥ कोई विरला साधु ही उनके साथ संलग्न होता है।॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਜਾਗੇ ਗਿਆਨ ਰੰਗਿ ॥ हे नानक ! सत्संगति में आकर ज्ञान के रंग में रंगकर वह जागता रहता है
ਵਡਭਾਗੇ ਕਿਰਪਾ ॥੪॥੧॥੩੯॥ यदि किसी भाग्यशाली पुरुष पर भगवान् की कृपा हो जाए। ४॥ १॥ ३६ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੬ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, छठी ताल, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਪਰਵਾਨਾ ਸੂਖੁ ਸਹਜੁ ਮਨਿ ਸੋਈ ॥ हे स्वामी ! जो कुछ आपको उपयुक्त लगता है, वही हमें स्वीकार है और आपकी इच्छा ही हमारे हृदय में सहज सुख प्रदान करती है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਅਪਾਰਾ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਰੇ ਕੋਈ ॥੧॥ हे प्रभु ! आप सबकुछ करने एवं करवाने में समर्थ है, आपके अतिरिक्त अन्य कोई समर्थवान नहीं ॥ १॥
ਤੇਰੇ ਜਨ ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ॥ हे प्रभु ! आपके सेवक प्रेम से आपका गुणगान करते हैं।
ਮਸਲਤਿ ਮਤਾ ਸਿਆਣਪ ਜਨ ਕੀ ਜੋ ਤੂੰ ਕਰਹਿ ਕਰਾਵਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे नाथ ! जो कुछ आप करते अथवा करवाते हो, वही आपके भक्तों हेतु उनके आध्यात्मिक कल्याण का सर्वोत्तम उपाय होता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ਪਿਆਰੇ ਸਾਧਸੰਗਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥ हे मेरे प्रियतम ! आप नाम अमृत के तुल्य है और साधसंगति में मैंने इस अमृत रस को प्राप्त किया है।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਸੇਈ ਜਨ ਪੂਰੇ ਸੁਖ ਨਿਧਾਨੁ ਹਰਿ ਗਾਇਆ ॥੨॥ जो जीव सुखनिधान हरि का गुणगान करते हैं वे पूर्ण होकर तृप्त एवं संतुष्ट रहते हैं।॥ २॥
ਜਾ ਕਉ ਟੇਕ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਕਉ ਨਾਹੀ ਚਿੰਤਾ ॥ हे स्वामी ! जिसे आपका सहारा मिल गया है, उसे कोई चिन्ता नहीं रहती।
ਜਾ ਕਉ ਦਇਆ ਤੁਮਾਰੀ ਹੋਈ ਸੇ ਸਾਹ ਭਲੇ ਭਗਵੰਤਾ ॥੩॥ हे भगवान् ! जिस पर आप अपनी दया करते हो, वे (नाम-धन से) भले साहूकार एवं भाग्यशाली हैं।॥ ३॥
ਭਰਮ ਮੋਹ ਧ੍ਰੋਹ ਸਭਿ ਨਿਕਸੇ ਜਬ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥ हे दुनिया बनाने वाले ! जब से मैंने आपके दर्शन किए हैं, (मेरी) दुविधा, मोह एवं छल-कपट सब नष्ट हो गए हैं।
ਵਰਤਣਿ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਕੀਨਾ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਰੰਗਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥੧॥੪੦॥ हे नानक ! मैंने सत्य नाम को अपनी दिनचर्या बना लिया है और में हरि नाम के रंग में समा गया हूँ॥ ४॥ १॥ ४०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮਲੁ ਧੋਵੈ ਪਰਾਈ ਆਪਣਾ ਕੀਤਾ ਪਾਵੈ ॥ निन्दक व्यक्ति दूसरों के जन्म-जन्मांतरों के विकारों की मैल धोता है और अपने किए कर्मो का फल भोगता है।
ਈਹਾ ਸੁਖੁ ਨਹੀ ਦਰਗਹ ਢੋਈ ਜਮ ਪੁਰਿ ਜਾਇ ਪਚਾਵੈ ॥੧॥ यहाँ (इहलोक में) उसे सुख नहीं और न ही उसे प्रभु के दरबार में निवास मिलता है। उसे यमपुरी में पीड़ित किया जाता है॥ १॥
ਨਿੰਦਕਿ ਅਹਿਲਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥ निन्दा करने वाला अपना मूल्यवान मानव-जीवन व्यर्थ ही गंवा लेता है।
ਪਹੁਚਿ ਨ ਸਾਕੈ ਕਾਹੂ ਬਾਤੈ ਆਗੈ ਠਉਰ ਨ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह किसी भी बात में सफल नहीं हो सकता और आगे भी उसे कोई स्थान नहीं मिलता॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਨਿੰਦਕ ਬਪੁਰੇ ਕਾ ਕਿਆ ਓਹੁ ਕਰੈ ਬਿਚਾਰਾ ॥ बेचारे निन्दक को अपने किए पूर्व-जन्मों के कर्मों का फल मिलता है लेकिन बेचारे निन्दक के भी वश की बात नहीं।
ਤਹਾ ਬਿਗੂਤਾ ਜਹ ਕੋਇ ਨ ਰਾਖੈ ਓਹੁ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਕਰੇ ਪੁਕਾਰਾ ॥੨॥ वह वहाँ नष्ट हुआ है, जहाँ उसकी कोई रक्षा नहीं कर सकता। वह किसके समक्ष पुकार करे ? ॥२॥


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