Page 379
ਪੀੜ ਗਈ ਫਿਰਿ ਨਹੀ ਦੁਹੇਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पीड़ गई फिरि नही दुहेली ॥१॥ रहाउ ॥
उसका दुःख-दर्द दूर हो जाता है और फिर कभी दु:खी नहीं होती ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਚਰਨ ਸੰਗਿ ਮੇਲੀ ॥
करि किरपा चरन संगि मेली ॥
अपनी कृपा करके प्रभु उसे अपने चरणों से मिला लेते हैं और
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਸੁਹੇਲੀ ॥੧॥
सूख सहज आनंद सुहेली ॥१॥
वह सहज सुख एवं आनंद प्राप्त कर लेती है तथा सदा के लिए सुखी होती है॥ १॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਅਤੋਲੀ ॥
साधसंगि गुण गाइ अतोली ॥
साधसंगति के भीतर वह प्रभु का यशोगान करके अतुलनीय हो जाती है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਨਾਨਕ ਭਈ ਅਮੋਲੀ ॥੨॥੩੫॥
हरि सिमरत नानक भई अमोली ॥२॥३५॥
हे नानक ! हरि का ध्यान करने से वह मूल्यवान हो जाती है। ॥२॥ ३५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮਾਇਆ ਮਦ ਮਤਸਰ ਏ ਖੇਲਤ ਸਭਿ ਜੂਐ ਹਾਰੇ ॥
काम क्रोध माइआ मद मतसर ए खेलत सभि जूऐ हारे ॥
हे बन्धु! काम, क्रोध, मोह-माया का अभिमान एवं ईष्या इत्यादि विकार मैंने जुए के खेल में हार दिए हैं।
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਦਇਆ ਧਰਮੁ ਸਚੁ ਇਹ ਅਪੁਨੈ ਗ੍ਰਿਹ ਭੀਤਰਿ ਵਾਰੇ ॥੧॥
सतु संतोखु दइआ धरमु सचु इह अपुनै ग्रिह भीतरि वारे ॥१॥
सत्य, संतोष, दया, धर्म एवं सच्चाई मेरे अपने हृदय घर में प्रविष्ट हो गए हैं॥१ ॥
ਜਨਮ ਮਰਨ ਚੂਕੇ ਸਭਿ ਭਾਰੇ ॥
जनम मरन चूके सभि भारे ॥
इसलिए मेरे जन्म-मरण के सभी बोझ उतर गए हैं।
ਮਿਲਤ ਸੰਗਿ ਭਇਓ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਲੈ ਖਿਨ ਮਹਿ ਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलत संगि भइओ मनु निरमलु गुरि पूरै लै खिन महि तारे ॥१॥ रहाउ ॥
सत्संगति में सम्मिलित होकर मेरा मन निर्मल हो गया है। पूर्ण गुरु ने एक क्षण में ही मेरा संसार-सागर से उद्धार कर दिया है॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਸਭ ਕੀ ਰੇਨੁ ਹੋਇ ਰਹੈ ਮਨੂਆ ਸਗਲੇ ਦੀਸਹਿ ਮੀਤ ਪਿਆਰੇ ॥
सभ की रेनु होइ रहै मनूआ सगले दीसहि मीत पिआरे ॥
मेरा मन सबकी चरण-धूलि हो गया है। हर कोई अब मुझे अपना प्यारा मित्र दिखाई देता है।
ਸਭ ਮਧੇ ਰਵਿਆ ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਦਾਨੁ ਦੇਤ ਸਭਿ ਜੀਅ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥੨॥
सभ मधे रविआ मेरा ठाकुरु दानु देत सभि जीअ सम्हारे ॥२॥
मेरा ठाकुर प्रभु सब में बसा हुआ है। वह समस्त जीवों को दान देकर उनका भरण-पोषण करता है॥ २॥
ਏਕੋ ਏਕੁ ਆਪਿ ਇਕੁ ਏਕੈ ਏਕੈ ਹੈ ਸਗਲਾ ਪਾਸਾਰੇ ॥
एको एकु आपि इकु एकै एकै है सगला पासारे ॥
प्रभु एक है और वह एक ही सब जीवों में बना रहता है। इस समूचे जगत का विस्तार उस एक ईश्वर का ही है।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਹੋਏ ਸਗਲ ਸਾਧ ਜਨ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਬਹੁਤੁ ਉਧਾਰੇ ॥੩॥
जपि जपि होए सगल साध जन एकु नामु धिआइ बहुतु उधारे ॥३॥
प्रभु का जाप एवं ध्यान करके सभी साध पुरुष बन गए हैं। उस एक ईश्वर के नाम की आराधना करने से अनेकों का उद्धार हो गया है॥ ३॥
ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ਬਿਅੰਤ ਗੁਸਾਈ ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਕਿਛੁ ਪਾਰਾਵਾਰੇ ॥
गहिर ग्मभीर बिअंत गुसाई अंतु नही किछु पारावारे ॥
सृष्टि के स्वामी गहन, गंभीर एवं अनन्त हैं। उनके अन्त का पारावर नहीं पाया जा सकता।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ਨਾਨਕ ਧਿਆਇ ਧਿਆਇ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਨਮਸਕਾਰੇ ॥੪॥੩੬॥
तुम्हरी क्रिपा ते गुन गावै नानक धिआइ धिआइ प्रभ कउ नमसकारे ॥४॥३६॥
हे प्रभु ! आपकी कृपा से नानक आपका गुणगान करता है और बार-बार आपका ध्यान करके वह आपको प्रणाम करता है॥ ४॥ ३६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੂ ਬਿਅੰਤੁ ਅਵਿਗਤੁ ਅਗੋਚਰੁ ਇਹੁ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਆਕਾਰੁ ॥
तू बिअंतु अविगतु अगोचरु इहु सभु तेरा आकारु ॥
हे सबके मालिक ! आप अनन्त, अव्यक्त एवं अगोचर है और यह समूचा जगत आपका ही आकार है।
ਕਿਆ ਹਮ ਜੰਤ ਕਰਹ ਚਤੁਰਾਈ ਜਾਂ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਝੈ ਮਝਾਰਿ ॥੧॥
किआ हम जंत करह चतुराई जां सभु किछु तुझै मझारि ॥१॥
जब सब कुछ आपकी इच्छा के अनुसार होता है तो हम, मनुष्य, कौन सी चतुराई अपना सकते हैं?॥ १॥
ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਅਪਨੇ ਬਾਲਿਕ ਰਾਖਹੁ ਲੀਲਾ ਧਾਰਿ ॥
मेरे सतिगुर अपने बालिक राखहु लीला धारि ॥
हे मेरे सतगुरु! कृपा कर अपनी दिव्य शक्ति का प्रकाश दिखाएं और अपने बच्चों को बुराई के मार्ग से बचा लें।
ਦੇਹੁ ਸੁਮਤਿ ਸਦਾ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देहु सुमति सदा गुण गावा मेरे ठाकुर अगम अपार ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे अगम्य, अपार ठाकुर ! मुझे सुमति प्रदान कीजिए तांकि मैं सदा आपका गुणगान करता रहूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੈਸੇ ਜਨਨਿ ਜਠਰ ਮਹਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਓਹੁ ਰਹਤਾ ਨਾਮ ਅਧਾਰਿ ॥
जैसे जननि जठर महि प्रानी ओहु रहता नाम अधारि ॥
जैसे जननी के गर्भ में प्राणी रहता तो है किन्तु प्रभु-नाम के सहारे जीवित बना रहता है।
ਅਨਦੁ ਕਰੈ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਨਾ ਪੋਹੈ ਅਗਨਾਰਿ ॥੨॥
अनदु करै सासि सासि सम्हारै ना पोहै अगनारि ॥२॥
वह गर्भ में आनन्द करता है और श्वास-श्वास से प्रभु को याद करता है और जठराग्नि उसे स्पर्श नहीं करती ॥ २॥
ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਦਾਰਾ ਪਰ ਨਿੰਦਾ ਇਨ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਿਵਾਰਿ ॥
पर धन पर दारा पर निंदा इन सिउ प्रीति निवारि ॥
हे प्राणी ! तू पराया-धन, पराई नारी एवं पराई निन्दा में लगाए हुए स्नेह को त्याग दे।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸੇਵੀ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੈ ਆਧਾਰਿ ॥੩॥
चरन कमल सेवी रिद अंतरि गुर पूरे कै आधारि ॥३॥
पूर्ण गुरु का सहारा लेकर अपने अन्तर में प्रभु के चरण कमल की उपासना कर ॥ ३॥
ਗ੍ਰਿਹੁ ਮੰਦਰ ਮਹਲਾ ਜੋ ਦੀਸਹਿ ਨਾ ਕੋਈ ਸੰਗਾਰਿ ॥
ग्रिहु मंदर महला जो दीसहि ना कोई संगारि ॥
घर, मन्दिर महल जो कुछ भी दिखाई देता है, इनमें से कोई भी तेरे साथ नहीं जाना।
ਜਬ ਲਗੁ ਜੀਵਹਿ ਕਲੀ ਕਾਲ ਮਹਿ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿ ॥੪॥੩੭॥
जब लगु जीवहि कली काल महि जन नानक नामु सम्हारि ॥४॥३७॥
हे नानक ! जब तक तू इस घनघोर कलियुग में जीवित है, तू प्रभु के नाम का ध्यान करता रह॥ ४॥ ३७ ॥
ਆਸਾ ਘਰੁ ੩ ਮਹਲਾ ੫
आसा घरु ३ महला ५
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਜ ਮਿਲਕ ਜੋਬਨ ਗ੍ਰਿਹ ਸੋਭਾ ਰੂਪਵੰਤੁ ਜੋੁਆਨੀ ॥
राज मिलक जोबन ग्रिह सोभा रूपवंतु जोआनी ॥
राज्य, सम्पति, यौवन, घर, शोभा, रूपवंत जवानी,
ਬਹੁਤੁ ਦਰਬੁ ਹਸਤੀ ਅਰੁ ਘੋੜੇ ਲਾਲ ਲਾਖ ਬੈ ਆਨੀ ॥
बहुतु दरबु हसती अरु घोड़े लाल लाख बै आनी ॥
अत्याधिक धन, हाथी, घोड़े और लाखों रुपयों के मूल्य वाले जवाहरात लाल इत्यादि
ਆਗੈ ਦਰਗਹਿ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਛੋਡਿ ਚਲੈ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥੧॥
आगै दरगहि कामि न आवै छोडि चलै अभिमानी ॥१॥
आगे ईश्वर के दरबार में किसी काम नहीं आते, अभिमानी मनुष्य इसे (इहलोक) यहीं छोड़कर चला जाता है।॥ १॥
ਕਾਹੇ ਏਕ ਬਿਨਾ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥
काहे एक बिना चितु लाईऐ ॥
एक ईश्वर के अतिरिक्त तुम अपना मन क्यों किसी दूसरे के साथ लगाते हो ?
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऊठत बैठत सोवत जागत सदा सदा हरि धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
उठते-बैठते, सोते-जागते सदा सदा ही हरि का ध्यान करते रहना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਬਚਿਤ੍ਰ ਸੁੰਦਰ ਆਖਾੜੇ ਰਣ ਮਹਿ ਜਿਤੇ ਪਵਾੜੇ ॥
महा बचित्र सुंदर आखाड़े रण महि जिते पवाड़े ॥
यदि कोई मनुष्य महा विचित्र सुन्दर अखाड़े जीतता है, यदि वह रणभूमि में जाकर युद्ध जीतता है और