Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 378

Page 378

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ ॥ राग आसा, द्वि-पद (दो छंद), पांचवें गुरु: ॥
ਭਈ ਪਰਾਪਤਿ ਮਾਨੁਖ ਦੇਹੁਰੀਆ ॥ हे मानव ! तुझे जो यह मानव जन्म प्राप्त हुआ है।
ਗੋਬਿੰਦ ਮਿਲਣ ਕੀ ਇਹ ਤੇਰੀ ਬਰੀਆ ॥ यही तुम्हारा प्रभु को मिलने का शुभावसर है; अर्थात् प्रभु का नाम सिमरन करने हेतु ही यह मानव जन्म तुझे प्राप्त हुआ है।
ਅਵਰਿ ਕਾਜ ਤੇਰੈ ਕਿਤੈ ਨ ਕਾਮ ॥ इसके अतिरिक्त किए जाने वाले सांसारिक कार्य तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं।
ਮਿਲੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਭਜੁ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ॥੧॥ सिर्फ तुम साधुओं-संतों का संग करके उस अकाल-पुरुष का चिन्तन ही करो।॥ १॥
ਸਰੰਜਾਮਿ ਲਾਗੁ ਭਵਜਲ ਤਰਨ ਕੈ ॥ इसलिए इस संसार-सागर से पार उतरने के उद्यम में लग।
ਜਨਮੁ ਬ੍ਰਿਥਾ ਜਾਤ ਰੰਗਿ ਮਾਇਆ ਕੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अन्यथा माया के प्रेम में रत तुम्हारा यह जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਧਰਮੁ ਨ ਕਮਾਇਆ ॥ हे मानव ! तुमने जप, तप व संयम नहीं किया और न ही कोई पुनीत कार्य करके धर्म कमाया है।
ਸੇਵਾ ਸਾਧ ਨ ਜਾਨਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥ साधु-संतों की सेवा नहीं की है तथा न ही परमेश्वर को स्मरण किया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਮ ਨੀਚ ਕਰੰਮਾ ॥ हे नानक ! हम मंदकर्मी जीव हैं।
ਸਰਣਿ ਪਰੇ ਕੀ ਰਾਖਹੁ ਸਰਮਾ ॥੨॥੨੯॥ मुझ शरणागत की लाज रखो॥ २॥ २६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਮੈ ਦੂਜਾ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥ हे जगत के मालिक ! आपके बिना मेरा दूसरा कोई भी नहीं और आप ही मेरे मन में रहते हैं।
ਤੂੰ ਸਾਜਨੁ ਸੰਗੀ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਕਾਹੇ ਜੀਅ ਡਰਾਹੀ ॥੧॥ हे प्रभु! जब आप मेरे साजन एवं साथी है तो फिर मेरे प्राण क्यों भयभीत हों ?॥ १॥
ਤੁਮਰੀ ਓਟ ਤੁਮਾਰੀ ਆਸਾ ॥ हे नाथ ! आप ही मेरी ओट एवं आप ही मेरी आशा हो।
ਬੈਠਤ ਊਠਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਤੂੰ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बैठते-उठते, सोते-जागते, श्वास लेते अथवा खाते समय आप मुझे कभी भी विस्मृत न हो।॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੀ ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਵਿਕਰਾਲਾ ॥ हे प्रभु ! मुझे अपनी शरण में रखो, चूंकि यह दुनिया अग्नि का भयानक सागर है।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਖਦਾਤੇ ਸਤਿਗੁਰ ਹਮ ਤੁਮਰੇ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲਾ ॥੨॥੩੦॥ हे नानक के सुखदाता सतगुरु ! हम आपकी ही संतान हैं।॥ २॥ ३०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਲੀਨੇ ਪ੍ਰਭੂ ਛਡਾਇ ॥ परमेश्वर ने अपने भक्तों को मोह-माया के जाल से बचा लिया है।
ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮੇਰੋ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਤਾਪੁ ਮੁਆ ਬਿਖੁ ਖਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब मेरे मन में अपने इष्टदेव पर अटल विश्वास जागा, तब माया के विषैले प्रभाव से मेरा सारा दुःख समाप्त हो गया। ॥ १॥ रहाउ॥
ਪਾਲਾ ਤਾਊ ਕਛੂ ਨ ਬਿਆਪੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥ राम नाम का गुणगान करने से मुझे सर्दी एवं गर्मी प्रभावित नहीं करते।
ਡਾਕੀ ਕੋ ਚਿਤਿ ਕਛੂ ਨ ਲਾਗੈ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਨਾਇ ॥੧॥ प्रभु के चरण कमल का आश्रय प्राप्त करने से जादूगरनी माया का मेरे मन पर भी प्रभाव नहीं पड़ता ॥ १॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲਾ ਹੋਏ ਆਪਿ ਸਹਾਇ ॥ संतों की कृपा से ईश्वर मुझ पर कृपालु हो गए हैं और स्वयं मेरे सहायक बन गए हैं।
ਗੁਨ ਨਿਧਾਨ ਨਿਤਿ ਗਾਵੈ ਨਾਨਕੁ ਸਹਸਾ ਦੁਖੁ ਮਿਟਾਇ ॥੨॥੩੧॥ नानक दुविधा एवं दुःख को दूर करके गुणनिधान प्रभु के नित्य ही गुण गाता रहता है॥ २॥ ३१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਉਖਧੁ ਖਾਇਓ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਉ ॥ हे भाई ! मैंने हरि-नाम रूपी औषधि खा ली है,"
ਸੁਖ ਪਾਏ ਦੁਖ ਬਿਨਸਿਆ ਥਾਉ ॥੧॥ जिससे मेरे दु:ख का नाश हो गया है और आत्मिक सुख प्राप्त कर लिया है॥ १ ॥
ਤਾਪੁ ਗਇਆ ਬਚਨਿ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ॥ पूर्ण गुरु के वचन द्वारा मेरे मन का संताप नष्ट हो गया है।
ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਸਭਿ ਮਿਟੇ ਵਿਸੂਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरी समस्त चिन्ताएँ मिट गई हैं और आनंद प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥੨॥੩੨॥ हे नानक ! जिन्होंने अपने मन में परमात्मा को याद किया है,"उन सभी जीव-जंतुओं ने सुख ही पाया है॥ २॥ ३२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬਾਂਛਤ ਨਾਹੀ ਸੁ ਬੇਲਾ ਆਈ ॥ (हे बन्धु !) मृत्यु का वह समय आ गया है जिसे कोई भी प्राणी पसन्द नहीं करता।
ਬਿਨੁ ਹੁਕਮੈ ਕਿਉ ਬੁਝੈ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥ प्रभु के आदेश बिना, मनुष्य कितना भी प्रयास कर ले, वह सत्य को नहीं समझ सकता। १॥
ਠੰਢੀ ਤਾਤੀ ਮਿਟੀ ਖਾਈ ॥ हे भाई ! पार्थिव शरीर को जलप्रवाह किया जाता है, अग्नि में जलाया जाता है अथवा मिट्टी में दफनाया जाता है
ਓਹੁ ਨ ਬਾਲਾ ਬੂਢਾ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ परन्तु यह आत्मा न तो जवान होती है, न ही वृद्ध होती है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਾਧ ਸਰਣਾਈ ॥ दास नानक ने साधु-संतों की शरण ली है,"
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭਉ ਪਾਰਿ ਪਰਾਈ ॥੨॥੩੩॥ गुरु की कृपा से उसने मृत्यु के भय को पार कर लिया है॥ २॥ ३३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु:५ ॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਆਤਮ ਪਰਗਾਸੁ ॥ उस व्यक्ति के मन में हमेशा के लिए प्रभु की ज्योति का प्रकाश हो जाता है
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧॥ जो व्यक्ति साधु की संगति में मिलकर श्रीहरि के चरणों में निवास करता है ॥ १॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਿਤਿ ਜਪਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ॥ हे मेरे मन ! तू प्रतिदिन प्रभु राम के नाम का जाप कर।
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸਦਾ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ਕਿਲਵਿਖ ਜਾਹਿ ਸਭੇ ਮਨ ਤੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इस तरह तुझे हमेशा के लिए शीतल, शांति एवं सुख प्राप्त होगे और तेरे दुःख-क्लेश सब विनष्ट हो जाएँगे॥ १॥ रहाउ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰਨ ਕਰਮ ॥ हे नानक ! जिस जीवात्मा के पूर्ण भाग्य उदय होते हैं,"
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਪੂਰਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥੨॥੩੪॥ उसे सच्चा गुरु मिल जाता है और गुरु कृपा द्वारा पूर्ण पारब्रह्म भी मिल जाते हैं। २॥ ३४॥
ਦੂਜੇ ਘਰ ਕੇ ਚਉਤੀਸ ॥ यह दूसरे ताल में पांचवें गुरु द्वारा कहे गए चौंतीस शब्दों को पूरा करता है। ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਕਾ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਬੇਲੀ ॥ जिस जीवात्मा का बेली जगत के स्वामी हरि-प्रभु है,"


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