Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 361

Page 361

ਗੁਰ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥੧॥ परन्तु गुरु का दर्शन (अर्थात् शास्त्र) अगम्य एवं अपार है॥ १॥
ਗੁਰ ਕੈ ਦਰਸਨਿ ਮੁਕਤਿ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥ गुरु के दर्शन (शास्त्र) से मुक्ति एवं गति हो जाती है।
ਸਾਚਾ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सत्यस्वरूप प्रभु स्वयं आकर मनुष्य के चित्त में बस जाते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਦਰਸਨਿ ਉਧਰੈ ਸੰਸਾਰਾ ॥ गुरु के दर्शन (शास्त्र) से जगत का उद्धार हो जाता है,"
ਜੇ ਕੋ ਲਾਏ ਭਾਉ ਪਿਆਰਾ ॥ यदि मनुष्य इससे प्रेम एवं प्रीति करे।
ਭਾਉ ਪਿਆਰਾ ਲਾਏ ਵਿਰਲਾ ਕੋਇ ॥ कोई विरला पुरुष ही गुरु के दर्शन से प्रेम करता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਦਰਸਨਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੨॥ गुरु के दर्शन से सदैव सुख प्राप्त होता है॥ २॥
ਗੁਰ ਕੈ ਦਰਸਨਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥ गुरु के दर्शन (शास्त्र) से मोक्ष द्वार मिल जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੈ ਪਰਵਾਰ ਸਾਧਾਰੁ ॥ सतगुरु की सेवा करने से मनुष्य के परिवार का कल्याण हो जाता है।
ਨਿਗੁਰੇ ਕਉ ਗਤਿ ਕਾਈ ਨਾਹੀ ॥ जो व्यक्ति गुरु की शिक्षाओं का पालन नहीं करता वह आध्यात्मिक मार्ग से भटक जाता है और उसका उद्धार संभव नहीं होता।
ਅਵਗਣਿ ਮੁਠੇ ਚੋਟਾ ਖਾਹੀ ॥੩॥ ऐसे मनुष्य अवगुणों के कारण लूटे जाते हैं और चोटें खाते रहते हैं।॥ ३॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੁਖੁ ਸਾਂਤਿ ਸਰੀਰ ॥ गुरु के शब्द से शरीर में सुख एवं शांति प्राप्त होती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਾ ਕਉ ਲਗੈ ਨ ਪੀਰ ॥ जो गुरुमुख बन जाता है, उसे कोई पीड़ा नहीं सताती।
ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਸੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥ यमदूत भी उसके निकट नहीं आता।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥੪॥੧॥੪੦॥ हे नानक ! गुरुमुख सत्य में ही समा जाता है॥४॥१॥४०
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग आसा, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਬਦਿ ਮੁਆ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥ जिस व्यक्ति का मन गुरु के शब्द द्वारा विकारों की ओर से मृत हो जाता है, उसका आत्माभिमान समाप्त हो जाता है और
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਇ ॥ एक तिलमात्र भी लालच के बिना सतगुरु की सेवा करता है।
ਨਿਰਭਉ ਦਾਤਾ ਸਦਾ ਮਨਿ ਹੋਇ ॥ उसके हृदय में सदैव ही दाता निडर प्रभु निवास करते हैं।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਪਾਏ ਭਾਗਿ ਕੋਇ ॥੧॥ सच्ची गुरुवाणी की देन किसी विरले भाग्यशाली को ही प्राप्त होती है॥ १॥
ਗੁਣ ਸੰਗ੍ਰਹੁ ਵਿਚਹੁ ਅਉਗੁਣ ਜਾਹਿ ॥ हे भाई ! गुणों का संग्रह कर ताकि जो तेरे भीतर से अवगुण भाग जाएँ।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਮਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इस तरह तुम पूर्ण गुरु के शब्द में लीन हो जाओगे॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਣਾ ਕਾ ਗਾਹਕੁ ਹੋਵੈ ਸੋ ਗੁਣ ਜਾਣੈ ॥ जो प्राणी गुणों का ग्राहक होता है, वही गुणों की विशेषता समझता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਬਦਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥ वह अमृत शब्द द्वारा नाम का उच्चारण करता है।
ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ਸੂਚਾ ਹੋਇ ॥ सच्ची वाणी द्वारा मनुष्य पवित्र हो जाता है।
ਗੁਣ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੨॥ गुणों द्वारा प्रभु-नाम प्राप्त हो जाता है॥ २॥
ਗੁਣ ਅਮੋਲਕ ਪਾਏ ਨ ਜਾਹਿ ॥ ईश्वर के गुणों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਮਨਿ ਨਿਰਮਲ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਸਮਾਹਿ ॥ निर्मल मन सच्चे शब्द में लीन हो जाता है।
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥ जो मनुष्य नाम की आराधना करते हैं, वे बड़े भाग्यशाली हैं और
ਸਦਾ ਗੁਣਦਾਤਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥੩॥ सदैव ही गुणदाता प्रभु को अपने चित्त में बसाते हैं।॥ ३॥
ਜੋ ਗੁਣ ਸੰਗ੍ਰਹੈ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥ जो मनुष्य गुणों का संग्रह करते हैं, उन पर मैं बलिहारी जाता हूँ।
ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥ मैं सत्य के दरबार पर सच्चे परमात्मा का गुणगान करता हूँ।
ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥ ईश्वर द्वारा गुणयुक्त व्यक्ति हर स्थिति में समभाव बनाए रखता है।
ਨਾਨਕ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥੪॥੨॥੪੧॥ हे नानक ! ईश्वर के गुणों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ ४॥ २॥ ४१ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग आसा, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥ हे बन्धु ! सतगुरु का यह बहुत बड़ा बड़प्पन है कि
ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥ वह चिरकाल से बिछुड़े जीवों को प्रभु से मिला देते हैं।
ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥ ईश्वर आप ही गुरु से मिलाकर प्राणी को अपने साथ मिला लेते हैं।
ਆਪਣੀ ਕੀਮਤਿ ਆਪੇ ਪਾਏ ॥੧॥ वह अपना मूल्य स्वयं ही जानते हैं॥ १॥
ਹਰਿ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਹੋਇ ॥ हे बन्धु ! किस विधि से मनुष्य हरि का मूल्यांकन कर सकता है?
ਹਰਿ ਅਪਰੰਪਰੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि अपरंपार, अगम्य एवं अगोचर है, गुरु के शब्द द्वारा कोई विरला मनुष्य ही परमात्मा को मिलता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੀਮਤਿ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥ कोई गुरुमुख ही ईश्वर के नाम की महत्ता समझता है।
ਵਿਰਲੇ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ कोई विरला मनुष्य ही प्रभु के कर्म से नाम प्राप्त करता है।
ਊਚੀ ਬਾਣੀ ਊਚਾ ਹੋਇ ॥ ऊँची वाणी से मनुष्य का जीवन आचरण ऊँचा हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਵਖਾਣੈ ਕੋਇ ॥੨॥ कोई गुरुमुख ही नाम का सिमरन करता है॥ २॥
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਦੁਖੁ ਦਰਦੁ ਸਰੀਰਿ ॥ नाम-सिमरण के बिना मनुष्य शरीर में दुख-दर्द उत्पन्न हुए रहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਤਾ ਉਤਰੈ ਪੀਰ ॥ यदि सतगुरु से भेंट हो जाए तो पीड़ा निवृत्त हो जाती है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਦੁਖੁ ਕਮਾਇ ॥ गुरु से भेंटवार्ता बिना दुःख ही प्राप्त होता है,"
ਮਨਮੁਖਿ ਬਹੁਤੀ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥੩॥ लेकिन मनमुख को कठोर दण्ड मिलता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੀਠਾ ਅਤਿ ਰਸੁ ਹੋਇ ॥ हरि का नाम बहुत मीठा है और बहुत स्वादिष्ट है।
ਪੀਵਤ ਰਹੈ ਪੀਆਏ ਸੋਇ ॥ जिसे वह प्रभु पिलाता है, केवल वही इसका पान करता है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਏ ॥ गुरु की कृपा से मनुष्य हरि रस प्राप्त करता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਗਤਿ ਪਾਏ ॥੪॥੩॥੪੨॥ हे नानक ! प्रभु-नाम में मग्न होने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ ४॥ ३॥ ४२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग आसा, तीसरे गुरु:३ ॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ॥ हे बन्धु ! मेरे सत्य प्रभु गहन एवं गंभीर है।
ਸੇਵਤ ਹੀ ਸੁਖੁ ਸਾਂਤਿ ਸਰੀਰ ॥ प्रभु की सेवा-भक्ति करने से शरीर को तुरंत ही सुख-शांति प्राप्त हो जाती है।
ਸਬਦਿ ਤਰੇ ਜਨ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥ शब्द द्वारा भक्त जन सहज ही संसार सागर से पार हो जाते हैं।
ਤਿਨ ਕੈ ਹਮ ਸਦ ਲਾਗਹ ਪਾਇ ॥੧॥ इसलिए हम सदैव ही उनके चरण-स्पर्श करते हैं। १॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top