Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 354

Page 354

ਐਸਾ ਗੁਰਮਤਿ ਰਮਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥ ਹਰਿ ਭਜੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ऐसा गुरमति रमतु सरीरा ॥ हरि भजु मेरे मन गहिर ग्मभीरा ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे मन ! गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हुए उस गहन एवं अथाह ईश्वर का ध्यान कर जो सर्वत्र विद्यमान है।॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਤ ਤਰੰਗ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਰੰਗਾ ॥ अनत तरंग भगति हरि रंगा ॥ जिनके मन में प्रभु-भक्ति की अनंत लहरें उठती रहती हैं और हरि के प्रेम में मग्न रहते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਸੂਚੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸੰਗਾ ॥ अनदिनु सूचे हरि गुण संगा ॥ दिन-रात ईश्वर के गुणों का स्मरण करने वालों का जीवन पवित्र होता है।
ਮਿਥਿਆ ਜਨਮੁ ਸਾਕਤ ਸੰਸਾਰਾ ॥ मिथिआ जनमु साकत संसारा ॥ इस संसार में शाक्त मनुष्य का जन्म निरर्थक है।
ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਜਨੁ ਰਹੈ ਨਿਰਾਰਾ ॥੨॥ राम भगति जनु रहै निरारा ॥२॥ राम की भक्ति करने वाला मनुष्य मोह-मांया से निर्लिप्त रहता है॥ २॥
ਸੂਚੀ ਕਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥ सूची काइआ हरि गुण गाइआ ॥ वही शरीर शुद्ध है-जो हरि के गुण गाता रहता है।
ਆਤਮੁ ਚੀਨਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥ आतमु चीनि रहै लिव लाइआ ॥ अपने चित्त में ईश्वर को स्मरण करके यह (शरीर) उसकी प्रीति में लीन रहता है।
ਆਦਿ ਅਪਾਰੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਹੀਰਾ ॥ आदि अपारु अपर्मपरु हीरा ॥ प्रभु आदि, अनन्त, अपरम्पार एवं हीरा है।
ਲਾਲਿ ਰਤਾ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੩॥ लालि रता मेरा मनु धीरा ॥३॥ उस प्रियतम प्रभु से मेरा मन अनुरक्त एवं संतुष्ट हुआ है॥ ३॥
ਕਥਨੀ ਕਹਹਿ ਕਹਹਿ ਸੇ ਮੂਏ ॥ कथनी कहहि कहहि से मूए ॥ जो केवल मौखिक बातें ही कहते हैं, वह वास्तव में मृत हैं।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਦੂਰਿ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਤੂੰ ਹੈ ॥ सो प्रभु दूरि नाही प्रभु तूं है ॥ हे प्रभु ! आप दूर नहीं, निकट ही हो।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਦੇਖਿਆ ਮਾਇਆ ਛਾਇਆ ॥ सभु जगु देखिआ माइआ छाइआ ॥ मैंने समूचा जगत देखा है, यह माया तो प्रभु की छाया है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੪॥੧੭॥ नानक गुरमति नामु धिआइआ ॥४॥१७॥ हे नानक ! गुरु के उपदेश से मैंनें प्रभु नाम का ध्यान किया॥ ४॥ १७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਤਿਤੁਕਾ ॥ आसा महला १ तितुका ॥ राग आसा, तितुकस (तीन पंक्तियाँ), प्रथम गुरु: ॥
ਕੋਈ ਭੀਖਕੁ ਭੀਖਿਆ ਖਾਇ ॥ कोई भीखकु भीखिआ खाइ ॥ कोई भिखारी है, जो भिक्षा लेकर खाता है
ਕੋਈ ਰਾਜਾ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥ कोई राजा रहिआ समाइ ॥ और कोई राजा है, जो राज्य के सुखों में लीन रहता है।
ਕਿਸ ਹੀ ਮਾਨੁ ਕਿਸੈ ਅਪਮਾਨੁ ॥ किस ही मानु किसै अपमानु ॥ किसी मनुष्य को मान मिलता है और किसी को अपमान।
ਢਾਹਿ ਉਸਾਰੇ ਧਰੇ ਧਿਆਨੁ ॥ ढाहि उसारे धरे धिआनु ॥ प्रभु ही दुनिया का नाश करते हैं, रचना करते हैं और सबको अपने ध्यान में रखते हैं।
ਤੁਝ ਤੇ ਵਡਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ तुझ ते वडा नाही कोइ ॥ हे प्रभु ! आप से बड़ा कोई नहीं।
ਕਿਸੁ ਵੇਖਾਲੀ ਚੰਗਾ ਹੋਇ ॥੧॥ किसु वेखाली चंगा होइ ॥१॥ मैं किसे आपके समक्ष उपस्थित करूँ, जो आपसे अच्छा है?॥ १॥
ਮੈ ਤਾਂ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥ मै तां नामु तेरा आधारु ॥ हे प्रभु ! केवल आपका नाम मेरे जीवन का आधार है।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਕਰਣਹਾਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तूं दाता करणहारु करतारु ॥१॥ रहाउ ॥ आप ही दाता, कर्ता और निर्माता हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਵਾਟ ਨ ਪਾਵਉ ਵੀਗਾ ਜਾਉ ॥ वाट न पावउ वीगा जाउ ॥ हे स्वामी ! मैं आपके मार्ग नहीं चलता अपितु टेढ़े (पेचदार) मार्ग जाता हूँ।
ਦਰਗਹ ਬੈਸਣ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥ दरगह बैसण नाही थाउ ॥ प्रभु के दरबार में मुझे बैठने के लिए कोई स्थान नहीं मिलता।
ਮਨ ਕਾ ਅੰਧੁਲਾ ਮਾਇਆ ਕਾ ਬੰਧੁ ॥ मन का अंधुला माइआ का बंधु ॥ मैं मन का अन्धा हूँ और माया में फँसा हुआ हूँ
ਖੀਨ ਖਰਾਬੁ ਹੋਵੈ ਨਿਤ ਕੰਧੁ ॥ खीन खराबु होवै नित कंधु ॥ और मेरे शरीर की दीवार नित्य ही क्षीण एवं कमजोर हो रही है।
ਖਾਣ ਜੀਵਣ ਕੀ ਬਹੁਤੀ ਆਸ ॥ खाण जीवण की बहुती आस ॥ तुमने खाने और अधिक जीने की भारी आशा है
ਲੇਖੈ ਤੇਰੈ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸ ॥੨॥ लेखै तेरै सास गिरास ॥२॥ परन्तु तुम जानते नहीं कि तुम्हारी सांस एवं ग्रास आगे गिने हुए हैं।॥ २॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਅੰਧੁਲੇ ਦੀਪਕੁ ਦੇਇ ॥ अहिनिसि अंधुले दीपकु देइ ॥ हे प्रभु ! (ज्ञान से) अन्धे मनुष्य को सदैव ही ज्ञान का दीपक प्रदान कर
ਭਉਜਲ ਡੂਬਤ ਚਿੰਤ ਕਰੇਇ ॥ भउजल डूबत चिंत करेइ ॥ और उसकी चिन्ता कर जो भयानक संसार-सागर में डूब रहा है।
ਕਹਹਿ ਸੁਣਹਿ ਜੋ ਮਾਨਹਿ ਨਾਉ ॥ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੈ ਤਾ ਕੈ ਜਾਉ ॥ कहहि सुणहि जो मानहि नाउ ॥ हउ बलिहारै ता कै जाउ ॥ जो मनुष्य नाम का जाप करता है, सुनता एवं आस्था रखता है,"मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਏਕ ਕਹੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥ नानकु एक कहै अरदासि ॥ हे प्रभु ! नानक प्रार्थना करते हैं कि
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੇਰੈ ਪਾਸਿ ॥੩॥ जीउ पिंडु सभु तेरै पासि ॥३॥ उसकी आत्मा एवं शरीर आप पर अर्पित हैं॥ ३॥
ਜਾਂ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਜਪੀ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥ जां तूं देहि जपी तेरा नाउ ॥ यदि आप प्रदान करे तो मैं आपके नाम का जाप करूँगा।
ਦਰਗਹ ਬੈਸਣ ਹੋਵੈ ਥਾਉ ॥ दरगह बैसण होवै थाउ ॥ इस तरह मैं सत्य के दरबार में बैठने के लिए स्थान प्राप्त कर लूंगा।
ਜਾਂ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਦੁਰਮਤਿ ਜਾਇ ॥ जां तुधु भावै ता दुरमति जाइ ॥ जब आपको अच्छा लगता है तो दुर्बुद्धि दूर हो जाती है और
ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਆਇ ॥ गिआन रतनु मनि वसै आइ ॥ ज्ञान रूपी रत्न आकर चित्त में बस जाता है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ॥ नदरि करे ता सतिगुरु मिलै ॥ यदि प्रभु अपनी कृपादृष्टि धारण करे तो सतगुरु मिल जाता है
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥੪॥੧੮॥ प्रणवति नानकु भवजलु तरै ॥४॥१८॥ नानक प्रार्थना करते हैं और भवसागर से पार हो जाते हैं। ४॥ १८॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਪੰਚਪਦੇ ॥ आसा महला १ पंचपदे ॥ राग आसा, पंच-पद, (पाँच पंक्तियाँ) प्रथम गुरु: ॥
ਦੁਧ ਬਿਨੁ ਧੇਨੁ ਪੰਖ ਬਿਨੁ ਪੰਖੀ ਜਲ ਬਿਨੁ ਉਤਭੁਜ ਕਾਮਿ ਨਾਹੀ ॥ दुध बिनु धेनु पंख बिनु पंखी जल बिनु उतभुज कामि नाही ॥ हे प्रभु ! दूध के बिना गाय, पंखों के बिना पक्षी एवं जल के बिना वनस्पति किसी काम की नहीं।
ਕਿਆ ਸੁਲਤਾਨੁ ਸਲਾਮ ਵਿਹੂਣਾ ਅੰਧੀ ਕੋਠੀ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਨਾਹੀ ॥੧॥ किआ सुलतानु सलाम विहूणा अंधी कोठी तेरा नामु नाही ॥१॥ वह कैसा सुल्तान है, जिसे कोई सलाम ही न करे ? इसी तरह तेरे नाम के बिना आत्मा की कोठी में भयानक अन्धेरा है॥ १॥
ਕੀ ਵਿਸਰਹਿ ਦੁਖੁ ਬਹੁਤਾ ਲਾਗੈ ॥ की विसरहि दुखु बहुता लागै ॥ हे प्रभु ! आप मुझे क्यों विसार देते हो?, आपको भुलाने से मुझे बहुत दुःख लगता है
ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਤੂੰ ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दुखु लागै तूं विसरु नाही ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु, कृपया मेरे हृदय से दूर मत होइए, क्योंकि आपके बिना मेरी आत्मा व्याकुल और पीड़ित हो जाती है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਖੀ ਅੰਧੁ ਜੀਭ ਰਸੁ ਨਾਹੀ ਕੰਨੀ ਪਵਣੁ ਨ ਵਾਜੈ ॥ अखी अंधु जीभ रसु नाही कंनी पवणु न वाजै ॥ बुढ़ापा आने पर मनुष्य के नेत्रों की रोशनी कम हो जाती है, जिह्वा का स्वाद खत्म हो जाता है और उसके कान आवाज़ नहीं सुनते।
ਚਰਣੀ ਚਲੈ ਪਜੂਤਾ ਆਗੈ ਵਿਣੁ ਸੇਵਾ ਫਲ ਲਾਗੇ ॥੨॥ चरणी चलै पजूता आगै विणु सेवा फल लागे ॥२॥ किसी के आगे सहारा दिए जाने पर ही वह पैर से चलता है। फिर भी भगवान को याद नहीं करता; और इसी कारण उसे कष्ट झेलने पड़ते हैं। ॥ २॥
ਅਖਰ ਬਿਰਖ ਬਾਗ ਭੁਇ ਚੋਖੀ ਸਿੰਚਿਤ ਭਾਉ ਕਰੇਹੀ ॥ अखर बिरख बाग भुइ चोखी सिंचित भाउ करेही ॥ अपने हृदय के बाग के खुले खेत में सतगुरु के उपदेश का वृक्ष पैदा कर और इसे प्रभु के प्रेम से सींच।
ਸਭਨਾ ਫਲੁ ਲਾਗੈ ਨਾਮੁ ਏਕੋ ਬਿਨੁ ਕਰਮਾ ਕੈਸੇ ਲੇਹੀ ॥੩॥ सभना फलु लागै नामु एको बिनु करमा कैसे लेही ॥३॥ सभी वृक्षों को एक प्रभु के नाम का फल लगा हुआ है। उसकी दया बिना मनुष्य इसे किस तरह पा सकता है ?॥ ३॥
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਤੇਤੇ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਵਿਣੁ ਸੇਵਾ ਫਲੁ ਕਿਸੈ ਨਾਹੀ ॥ जेते जीअ तेते सभि तेरे विणु सेवा फलु किसै नाही ॥ जितने भी जीव-जन्तु हैं, सब तेरे ही हैं। सेवा के बिना किसी को भी फल प्राप्त नहीं होता।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਭਾਣਾ ਤੇਰਾ ਹੋਵੈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਜੀਉ ਰਹੈ ਨਾਹੀ ॥੪॥ दुखु सुखु भाणा तेरा होवै विणु नावै जीउ रहै नाही ॥४॥ दुःख एवं सुख तेरी इच्छा में है। नाम के बिना जीवन नहीं रहता ॥ ४॥
ਮਤਿ ਵਿਚਿ ਮਰਣੁ ਜੀਵਣੁ ਹੋਰੁ ਕੈਸਾ ਜਾ ਜੀਵਾ ਤਾਂ ਜੁਗਤਿ ਨਾਹੀ ॥ मति विचि मरणु जीवणु होरु कैसा जा जीवा तां जुगति नाही ॥ गुरु की शिक्षा से अहंकार को दूर करना ही वास्तविक जीवन है। इसके बिना जीना, जीवन का व्यर्थ उपयोग है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜੀਵਾਲੇ ਜੀਆ ਜਹ ਭਾਵੈ ਤਹ ਰਾਖੁ ਤੁਹੀ ॥੫॥੧੯॥ कहै नानकु जीवाले जीआ जह भावै तह राखु तुही ॥५॥१९॥ हे नानक ! प्रभु जीवों को अपनी इच्छानुसार जीवन प्रदान करते हैं। हे प्रभु ! मुझे वहाँ रखो, जहाँ आपको अच्छा लगता है। ॥५॥१९॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top