Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 308

Page 308

ਮਃ ੪ ॥ मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु: ४॥
ਜਿਨ ਕਉ ਆਪਿ ਦੇਇ ਵਡਿਆਈ ਜਗਤੁ ਭੀ ਆਪੇ ਆਣਿ ਤਿਨ ਕਉ ਪੈਰੀ ਪਾਏ ॥ जिन कउ आपि देइ वडिआई जगतु भी आपे आणि तिन कउ पैरी पाए ॥ जिन्हें ईश्वर स्वयं शोभा देते हैं, उनके चरणों में सारे जगत् को भी झुका देते हैं।
ਡਰੀਐ ਤਾਂ ਜੇ ਕਿਛੁ ਆਪ ਦੂ ਕੀਚੈ ਸਭੁ ਕਰਤਾ ਆਪਣੀ ਕਲਾ ਵਧਾਏ ॥ डरीऐ तां जे किछु आप दू कीचै सभु करता आपणी कला वधाए ॥ हमें केवल तभी डरना चाहिए, यदि हम स्वयं कुछ करें। वास्तव में, जब सृष्टिकर्ता किसी की महिमा बढ़ाते हैं, तो वह अपनी ही दिव्य शक्ति का प्रकट प्रयोग करते हैं।
ਦੇਖਹੁ ਭਾਈ ਏਹੁ ਅਖਾੜਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਚੇ ਕਾ ਜਿਨਿ ਆਪਣੈ ਜੋਰਿ ਸਭਿ ਆਣਿ ਨਿਵਾਏ ॥ देखहु भाई एहु अखाड़ा हरि प्रीतम सचे का जिनि आपणै जोरि सभि आणि निवाए ॥ हे भाई ! याद रखो, जिस ईश्वर ने अपने बल से जीवों को लाकर गुरु के समक्ष झुकाया है, उस सच्चे प्रियतम का यह जगत् एक अखाड़ा है,
ਆਪਣਿਆ ਭਗਤਾ ਕੀ ਰਖ ਕਰੇ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਨਿੰਦਕਾ ਦੁਸਟਾ ਕੇ ਮੁਹ ਕਾਲੇ ਕਰਾਏ ॥ आपणिआ भगता की रख करे हरि सुआमी निंदका दुसटा के मुह काले कराए ॥ जिसमें जगत् का स्वामी प्रभु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और निंदक दुष्टों के मुँह काले कराते हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਨਿਤ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਭਗਤਿ ਨਿਤ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥ सतिगुर की वडिआई नित चड़ै सवाई हरि कीरति भगति नित आपि कराए ॥ सतगुरु की शोभा दिन-ब-दिन बढ़ती जाती है। ईश्वर अपने भक्तों को हमेशा अपना यश एवं भक्ति स्वयं ही करवाता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਗੁਰਸਿਖਹੁ ਹਰਿ ਕਰਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਘਰੀ ਵਸਾਏ ॥ अनदिनु नामु जपहु गुरसिखहु हरि करता सतिगुरु घरी वसाए ॥ हे गुरसिक्खो ! दिन-रात नाम का जाप करो और सतगुरु के द्वारा हरि कर्तार को अपने हृदय में बसाओ।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਸਤਿ ਸਤਿ ਕਰਿ ਜਾਣਹੁ ਗੁਰਸਿਖਹੁ ਹਰਿ ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਮੁਹਹੁ ਕਢਾਏ ॥ सतिगुर की बाणी सति सति करि जाणहु गुरसिखहु हरि करता आपि मुहहु कढाए ॥ हे गुरसिक्खो ! सतगुरु की वाणी बिल्कुल सत्य समझो चूंकेि विश्व का रचयिता परमात्मा स्वयं यह वाणी सतगुरु के मुख से कहलवाता है।
ਗੁਰਸਿਖਾ ਕੇ ਮੁਹ ਉਜਲੇ ਕਰੇ ਹਰਿ ਪਿਆਰਾ ਗੁਰ ਕਾ ਜੈਕਾਰੁ ਸੰਸਾਰਿ ਸਭਤੁ ਕਰਾਏ ॥ गुरसिखा के मुह उजले करे हरि पिआरा गुर का जैकारु संसारि सभतु कराए ॥ प्रियतम प्रभु गुरसिक्खों के मुख उज्ज्वल करता है और सारी दुनिया में गुरु की जय-जयकार करवाता है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਹਰਿ ਦਾਸਨ ਕੀ ਹਰਿ ਪੈਜ ਰਖਾਏ ॥੨॥ जनु नानकु हरि का दासु है हरि दासन की हरि पैज रखाए ॥२॥ नानक हरि का दास है। हरि के दासों की हरि स्वयं ही लाज रखता है II २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਤੂ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਆਪਿ ਹੈ ਸਚੁ ਸਾਹ ਹਮਾਰੇ ॥ तू सचा साहिबु आपि है सचु साह हमारे ॥ हे मेरे सच्चे शाह ! आप स्वयं ही सच्चे मालिक है।
ਸਚੁ ਪੂਜੀ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇ ਪ੍ਰਭ ਵਣਜਾਰੇ ਥਾਰੇ ॥ सचु पूजी नामु द्रिड़ाइ प्रभ वणजारे थारे ॥ हे प्रभु! हम तो आपके नाम के छोटे व्यापारी मात्र हैं; कृपा करके हमारे भीतर यह अटल विश्वास जाग्रत करें कि आपका नाम ही शाश्वत और अमूल्य धन है।
ਸਚੁ ਸੇਵਹਿ ਸਚੁ ਵਣੰਜਿ ਲੈਹਿ ਗੁਣ ਕਥਹ ਨਿਰਾਰੇ ॥ सचु सेवहि सचु वणंजि लैहि गुण कथह निरारे ॥ जो व्यक्ति सत्य नाम को जपते हैं, सत्य नाम का व्यापार करते हैं, वह गुणों का कथन करते हैं, वे दुनिया से निराले हैं।
ਸੇਵਕ ਭਾਇ ਸੇ ਜਨ ਮਿਲੇ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੇ ॥ सेवक भाइ से जन मिले गुर सबदि सवारे ॥ जिन्होंने गुरु के शब्द द्वारा मन को संवार लिया है, वही व्यक्ति सेवक भावना वाले बनकर परमात्मा से जा मिले हैं।
ਤੂ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਅਲਖੁ ਹੈ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਲਖਾਰੇ ॥੧੪॥ तू सचा साहिबु अलखु है गुर सबदि लखारे ॥१४॥ हे भगवान, आप सच्चे स्वामी हैं। परंतु आपको केवल सच्चे गुरु के वचन द्वारा ही जाना और समझा जा सकता है ॥ १४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥ सलोक मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु: ४॥
ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਤਾਤਿ ਪਰਾਈ ਹੋਵੈ ਤਿਸ ਦਾ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵੀ ਭਲਾ ॥ जिसु अंदरि ताति पराई होवै तिस दा कदे न होवी भला ॥ जिस व्यक्ति के अन्तर्मन में दूसरों को दुःखी करने की क्लेश-भावना होती है, उस व्यक्ति का कभी भला नहीं होता।
ਓਸ ਦੈ ਆਖਿਐ ਕੋਈ ਨ ਲਗੈ ਨਿਤ ਓਜਾੜੀ ਪੂਕਾਰੇ ਖਲਾ ॥ ओस दै आखिऐ कोई न लगै नित ओजाड़ी पूकारे खला ॥ उस व्यक्ति के वचन पर कोई भरोसा नहीं करता, वह हमेशा उजाड़ में खड़ा पुकारता रहता है।
ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਚੁਗਲੀ ਚੁਗਲੋ ਵਜੈ ਕੀਤਾ ਕਰਤਿਆ ਓਸ ਦਾ ਸਭੁ ਗਇਆ ॥ जिसु अंदरि चुगली चुगलो वजै कीता करतिआ ओस दा सभु गइआ ॥ जिस मनुष्य के हृदय में चुगली होती है, वह चुगलखोर के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है, उसकी सारी की हुई कमाई निष्फल हो जाती है।
ਨਿਤ ਚੁਗਲੀ ਕਰੇ ਅਣਹੋਦੀ ਪਰਾਈ ਮੁਹੁ ਕਢਿ ਨ ਸਕੈ ਓਸ ਦਾ ਕਾਲਾ ਭਇਆ ॥ नित चुगली करे अणहोदी पराई मुहु कढि न सकै ओस दा काला भइआ ॥ ऐसा व्यक्ति नित्य पराई झूठी चुगली करता है, इस लांछन के कारण वह किसी के सम्मुख भी नहीं जा सकता, फलस्वरूप उसका मुंह काला हो जाता है।
ਕਰਮ ਧਰਤੀ ਸਰੀਰੁ ਕਲਿਜੁਗ ਵਿਚਿ ਜੇਹਾ ਕੋ ਬੀਜੇ ਤੇਹਾ ਕੋ ਖਾਏ ॥ करम धरती सरीरु कलिजुग विचि जेहा को बीजे तेहा को खाए ॥ इस कलियुग में शरीर कर्म रूपी धरती है, इसमें जैसा बीज जीव बोता है, वैसा ही फल खाता है,
ਗਲਾ ਉਪਰਿ ਤਪਾਵਸੁ ਨ ਹੋਈ ਵਿਸੁ ਖਾਧੀ ਤਤਕਾਲ ਮਰਿ ਜਾਏ ॥ गला उपरि तपावसु न होई विसु खाधी ततकाल मरि जाए ॥ भगवान् का न्याय केवल शब्दों पर पारित नहीं होता है; यदि कोई विष खाए तो तुरन्त मर जाता है।
ਭਾਈ ਵੇਖਹੁ ਨਿਆਉ ਸਚੁ ਕਰਤੇ ਕਾ ਜੇਹਾ ਕੋਈ ਕਰੇ ਤੇਹਾ ਕੋਈ ਪਾਏ ॥ भाई वेखहु निआउ सचु करते का जेहा कोई करे तेहा कोई पाए ॥ हे भाई ! सच्चे परमात्मा का न्याय देखो, जो जैसा कर्म करता है, वैसा ही उसका फल पाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ਹਰਿ ਦਰ ਕੀਆ ਬਾਤਾ ਆਖਿ ਸੁਣਾਏ ॥੧॥ जन नानक कउ सभ सोझी पाई हरि दर कीआ बाता आखि सुणाए ॥१॥ नानक को प्रभु ने यह ज्ञान दिया है, और वह प्रभु के द्वार की ये बातें करके सुना रहा है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥ मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु: ४॥
ਹੋਦੈ ਪਰਤਖਿ ਗੁਰੂ ਜੋ ਵਿਛੁੜੇ ਤਿਨ ਕਉ ਦਰਿ ਢੋਈ ਨਾਹੀ ॥ होदै परतखि गुरू जो विछुड़े तिन कउ दरि ढोई नाही ॥ जो व्यक्ति गुरु के समक्ष होते हुए भी बिछुड़ चुके हैं। उन्हें सत्य के दरबार में कोई सहारा नहीं मिलता।
ਕੋਈ ਜਾਇ ਮਿਲੈ ਤਿਨ ਨਿੰਦਕਾ ਮੁਹ ਫਿਕੇ ਥੁਕ ਥੁਕ ਮੁਹਿ ਪਾਹੀ ॥ कोई जाइ मिलै तिन निंदका मुह फिके थुक थुक मुहि पाही ॥ यदि कोई उन निंदकों को जाकर मिलता भी है, तो उसका भी मुँह फीका एवं काला होता है (अर्थात् लोक उसे तिरस्कृत करते हैं)
ਜੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਫਿਟਕੇ ਸੇ ਸਭ ਜਗਤਿ ਫਿਟਕੇ ਨਿਤ ਭੰਭਲ ਭੂਸੇ ਖਾਹੀ ॥ जो सतिगुरि फिटके से सभ जगति फिटके नित भ्मभल भूसे खाही ॥ चूंकि जो लोग सतगुरु की ओर से तिरस्कृत हुए हैं, वे दुनिया में भी तिरस्कृत हुए हैं और वे हमेशा भटकते रहते हैं।
ਜਿਨ ਗੁਰੁ ਗੋਪਿਆ ਆਪਣਾ ਸੇ ਲੈਦੇ ਢਹਾ ਫਿਰਾਹੀ ॥ जिन गुरु गोपिआ आपणा से लैदे ढहा फिराही ॥ जो व्यक्ति गुरु की निन्दा करते हैं, वे हमेशा रोते फिरते हैं।
ਤਿਨ ਕੀ ਭੁਖ ਕਦੇ ਨ ਉਤਰੈ ਨਿਤ ਭੁਖਾ ਭੁਖ ਕੂਕਾਹੀ ॥ तिन की भुख कदे न उतरै नित भुखा भुख कूकाही ॥ उनकी तृष्णा कभी नहीं बुझती और सदा भूख-भूख चिल्लाते हैं।
ਓਨਾ ਦਾ ਆਖਿਆ ਕੋ ਨਾ ਸੁਣੈ ਨਿਤ ਹਉਲੇ ਹਉਲਿ ਮਰਾਹੀ ॥ ओना दा आखिआ को ना सुणै नित हउले हउलि मराही ॥ कोई उनकी बात पर भरोसा नहीं करता इसलिए वे सदा चिन्ता-फिक्र में ही डूबे रहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵੇਖਿ ਨ ਸਕਨੀ ਓਨਾ ਅਗੈ ਪਿਛੈ ਥਾਉ ਨਾਹੀ ॥ सतिगुर की वडिआई वेखि न सकनी ओना अगै पिछै थाउ नाही ॥ जो मनुष्य गुरु की महिमा सहन नहीं करते, उन्हें लोक-परलोक में स्थान नहीं मिलता।
ਜੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਾਰੇ ਤਿਨ ਜਾਇ ਮਿਲਹਿ ਰਹਦੀ ਖੁਹਦੀ ਸਭ ਪਤਿ ਗਵਾਹੀ ॥ जो सतिगुरि मारे तिन जाइ मिलहि रहदी खुहदी सभ पति गवाही ॥ गुरु से शापित हुए व्यक्तियों को जो मनुष्य जाकर मिलते हैं, वह भी अपनी प्रतिष्ठा गंवा लेते हैं,


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