Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 298

Page 298

ਊਤਮੁ ਊਚੌ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਗੁਣ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਣਹਿ ਸੇਖ ॥ ऊतमु ऊचौ पारब्रहमु गुण अंतु न जाणहि सेख ॥ भगवान् महान एवं सर्वोपरि है, जिसकी महिमा का अन्त कोई नहीं जानता, यहां तक कि अत्यधिक सम्मानित मुस्लिम शेख भी नहीं।
ਨਾਰਦ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੁਕ ਬਿਆਸ ਜਸੁ ਗਾਵਤ ਗੋਬਿੰਦ ॥ नारद मुनि जन सुक बिआस जसु गावत गोबिंद ॥ नारद मुनि, मुनिजन, शुकदेव एवं व्यास भी गोविन्द की महिमा का गायन करते हैं।
ਰਸ ਗੀਧੇ ਹਰਿ ਸਿਉ ਬੀਧੇ ਭਗਤ ਰਚੇ ਭਗਵੰਤ ॥ रस गीधे हरि सिउ बीधे भगत रचे भगवंत ॥ ईश्वर के भक्त उसके नाम-रस में भीगे रहते हैं, उसके स्मरण में आोत-प्रोत रहते हैं और भगवान् के भजन में लीन रहते हैं।
ਮੋਹ ਮਾਨ ਭ੍ਰਮੁ ਬਿਨਸਿਓ ਪਾਈ ਸਰਨਿ ਦਇਆਲ ॥ मोह मान भ्रमु बिनसिओ पाई सरनि दइआल ॥ दयालु भगवान् की शरण लेने से मोह, अभिमान एवं दुविधा नाश हो जाते हैं।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਸੇ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲ ॥ चरन कमल मनि तनि बसे दरसनु देखि निहाल ॥ जिनके मन तथा तन में ईश्वर के सुन्दर चरण बस गए, ईश्वर के दर्शन करके वे कृतार्थ हो जाते हैं।
ਲਾਭੁ ਮਿਲੈ ਤੋਟਾ ਹਿਰੈ ਸਾਧਸੰਗਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ लाभु मिलै तोटा हिरै साधसंगि लिव लाइ ॥ साध संगत द्वारा ईश्वर चरणों में सुरति लगाकर लाभ प्राप्त किया जाता है।
ਖਾਟਿ ਖਜਾਨਾ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਹਰੇ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੬॥ खाटि खजाना गुण निधि हरे नानक नामु धिआइ ॥६॥ हे नानक ! नाम का ध्यान करके गुणों के भण्डार भगवान् का नाम रूपी भण्डार उपलब्ध कर लो ॥६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਸੰਤ ਮੰਡਲ ਹਰਿ ਜਸੁ ਕਥਹਿ ਬੋਲਹਿ ਸਤਿ ਸੁਭਾਇ ॥ संत मंडल हरि जसु कथहि बोलहि सति सुभाइ ॥ संतों की गण्डली हमेशा ही भगवान् का यश कथन करती रहती है और सहज स्वभाव सत्य ही बोलती रहती है।
ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਸੰਤੋਖੀਐ ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੭॥ नानक मनु संतोखीऐ एकसु सिउ लिव लाइ ॥७॥ हे नानक ! एक ईश्वर में सुरति लगाने से मन संतुष्ट हो जाता है।॥ ७॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਸਪਤਮਿ ਸੰਚਹੁ ਨਾਮ ਧਨੁ ਟੂਟਿ ਨ ਜਾਹਿ ਭੰਡਾਰ ॥ सपतमि संचहु नाम धनु टूटि न जाहि भंडार ॥ सप्तमी चंद्र रात्रि-प्रभु का नाम रूपी धन संचित करो, क्योंकि नाम-धन का भण्डार कभी समाप्त नहीं होता।
ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਪਾਈਐ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥ संतसंगति महि पाईऐ अंतु न पारावार ॥ यह नाम धन संतों की संगति करने से ही प्राप्त होता है, जिस प्रभु के गुणों का कोई अन्त नहीं, जिसके स्वरूप का ओर-छोर नहीं मिलता।
ਆਪੁ ਤਜਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਭਜਹੁ ਸਰਨਿ ਪਰਹੁ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥ आपु तजहु गोबिंद भजहु सरनि परहु हरि राइ ॥ हे जिज्ञासुओ ! अपना अहंकार त्याग कर भगवान् का भजन करते रहो और उस प्रभु की शरण में ही आओ।
ਦੂਖ ਹਰੈ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇ ॥ दूख हरै भवजलु तरै मन चिंदिआ फलु पाइ ॥ भगवान् की शरण में आने से दुःख दूर हो जाते हैं, भवसागर भी पार हो जाता है तथा
ਆਠ ਪਹਰ ਮਨਿ ਹਰਿ ਜਪੈ ਸਫਲੁ ਜਨਮੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥ आठ पहर मनि हरि जपै सफलु जनमु परवाणु ॥ जो मनुष्य दिन-रात अपने मन में ईश्वर का नाम-सिमरन करता है, उसका जन्म सफल हो जाता है।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ਪਛਾਣੁ ॥ अंतरि बाहरि सदा संगि करनैहारु पछाणु ॥ जो परमेश्वर प्रत्येक जीव के भीतर-बाहर सदैव साथ है, वह सष्टिकर्ता प्रभु उस मनुष्य का मित्र बन जाता है।
ਸੋ ਸਾਜਨੁ ਸੋ ਸਖਾ ਮੀਤੁ ਜੋ ਹਰਿ ਕੀ ਮਤਿ ਦੇਇ ॥ सो साजनु सो सखा मीतु जो हरि की मति देइ ॥ हे जीव ! जो व्यक्ति हमें भगवान् का नाम जपने का उपदेश देता है, वही हमारा वास्तविक मित्र, सखा एवं साथी है।
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੇਇ ॥੭॥ नानक तिसु बलिहारणै हरि हरि नामु जपेइ ॥७॥ हे नानक ! जो पुरुष हरि-परमेश्वर के नाम का जाप करता है, मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ ॥७॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਨ ਗਾਈਅਹਿ ਤਜੀਅਹਿ ਅਵਰਿ ਜੰਜਾਲ ॥ आठ पहर गुन गाईअहि तजीअहि अवरि जंजाल ॥ यदि हम आठों प्रहर भगवान् की महिमा- स्तुति करते रहें और दूसरे समस्त बन्धन त्याग दें तो
ਜਮਕੰਕਰੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਕਈ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੂ ਦਇਆਲ ॥੮॥ जमकंकरु जोहि न सकई नानक प्रभू दइआल ॥८॥ हे नानक ! तब भगवान् दयालु हो जाते हैं और मृत्यु का भय नहीं सताता।|8॥८॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਅਸਟਮੀ ਅਸਟ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ॥ असटमी असट सिधि नव निधि ॥ आठवां चंद्र दिवस- आठ सिद्धियाँ, नौ निधियाँ,
ਸਗਲ ਪਦਾਰਥ ਪੂਰਨ ਬੁਧਿ ॥ सगल पदारथ पूरन बुधि ॥ समस्त बहुमूल्य पदार्थ, पूर्ण बुद्धि,
ਕਵਲ ਪ੍ਰਗਾਸ ਸਦਾ ਆਨੰਦ ॥ कवल प्रगास सदा आनंद ॥ प्रसन्नचित्त (खिले हुए कमल के समान), शाश्वत आनंद,
ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ਨਿਰੋਧਰ ਮੰਤ ॥ निरमल रीति निरोधर मंत ॥ पवित्र जीवन आचरण, अचूक उपदेश,
ਸਗਲ ਧਰਮ ਪਵਿਤ੍ਰ ਇਸਨਾਨੁ ॥ सगल धरम पवित्र इसनानु ॥ समस्त धर्म (गुण), पवित्र स्नान एवं
ਸਭ ਮਹਿ ਊਚ ਬਿਸੇਖ ਗਿਆਨੁ ॥ सभ महि ऊच बिसेख गिआनु ॥ सर्वोच्च तथा श्रेष्ठ ज्ञान,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਜਨੁ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਸੰਗਿ ॥ हरि हरि भजनु पूरे गुर संगि ॥ पूर्ण गुरु की संगति करने से प्रभु-परमेश्वर के भजन द्वारा प्राप्त हो जाते हैं।
ਜਪਿ ਤਰੀਐ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ॥੮॥ जपि तरीऐ नानक नाम हरि रंगि ॥८॥ हे नानक ! प्रेमपूर्वक ईश्वर का नाम-स्मरण करने से मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।॥८॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਨਾਰਾਇਣੁ ਨਹ ਸਿਮਰਿਓ ਮੋਹਿਓ ਸੁਆਦ ਬਿਕਾਰ ॥ नाराइणु नह सिमरिओ मोहिओ सुआद बिकार ॥ जो व्यक्ति नारायण का नाम-सिमरन नहीं करता, ऐसे व्यक्ति को हमेशा विकारों के रसों ने मुग्ध किया हुआ है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਬਿਸਾਰਿਐ ਨਰਕ ਸੁਰਗ ਅਵਤਾਰ ॥੯॥ नानक नामि बिसारिऐ नरक सुरग अवतार ॥९॥ हे नानक ! जो मनुष्य भगवान् के नाम को त्याग देता है, वह बार-बार जन्म लेता है और नरक तथा स्वर्ग अर्थात् जीवन के दुःख और सुख के चक्र में उलझा रहता है।॥९॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਨਉਮੀ ਨਵੇ ਛਿਦ੍ਰ ਅਪਵੀਤ ॥ नउमी नवे छिद्र अपवीत ॥ नौवां चंद्र दिवस: उन लोगों के शरीर के नौ छिद्र (आंख, कान, नासिका आदि) अपवित्र हो जाते हैं। उन लोगों के शरीर के नौ छिद्र (आंख, कान, नासिका आदि) अपवित्र हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਜਪਹਿ ਕਰਤ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥ हरि नामु न जपहि करत बिपरीति ॥ जीव प्रभु का नाम स्मरण नहीं करते और विपरीत कर्म करते रहते हैं।
ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਰਮਹਿ ਬਕਹਿ ਸਾਧ ਨਿੰਦ ॥ पर त्रिअ रमहि बकहि साध निंद ॥ ईश्वर के नाम-स्मरण से विहीन मनुष्य पराई नारियाँ भोगते हैं और साधुओं की निन्दा करते रहते हैं और
ਕਰਨ ਨ ਸੁਨਹੀ ਹਰਿ ਜਸੁ ਬਿੰਦ ॥ करन न सुनही हरि जसु बिंद ॥ अपने कानों से तनिक मात्र भी भगवान् का यश नहीं सुनते।
ਹਿਰਹਿ ਪਰ ਦਰਬੁ ਉਦਰ ਕੈ ਤਾਈ ॥ हिरहि पर दरबु उदर कै ताई ॥ वे अपना पेट भरने के लिए पराया धन चुराते रहते हैं।
ਅਗਨਿ ਨ ਨਿਵਰੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨ ਬੁਝਾਈ ॥ अगनि न निवरै त्रिसना न बुझाई ॥ फिर भी उनकी लालच की अग्नि तृप्त नहीं होती और न ही उनकी तृष्णा दूर होती है।
ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਬਿਨੁ ਏਹ ਫਲ ਲਾਗੇ ॥ हरि सेवा बिनु एह फल लागे ॥ प्रभु की भक्ति के बिना उनके सभी प्रयासों को ऐसे फल ही लगते हैं।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਮਰਿ ਜਮਹਿ ਅਭਾਗੇ ॥੯॥ नानक प्रभ बिसरत मरि जमहि अभागे ॥९॥ हे नानक ! भगवान् को भुलाकर भाग्यहीन लोग आवागमन के चक्र में फंसे रहते हैं ॥९॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਦਸ ਦਿਸ ਖੋਜਤ ਮੈ ਫਿਰਿਓ ਜਤ ਦੇਖਉ ਤਤ ਸੋਇ ॥ दस दिस खोजत मै फिरिओ जत देखउ तत सोइ ॥ मैं दसों दिशाओं में ही खोज रहा हूँ। लेकिन जिधर कहीं भी देखता हूँ, उधर ही मैं भगवान् को पाता हूँ।
ਮਨੁ ਬਸਿ ਆਵੈ ਨਾਨਕਾ ਜੇ ਪੂਰਨ ਕਿਰਪਾ ਹੋਇ ॥੧੦॥ मनु बसि आवै नानका जे पूरन किरपा होइ ॥१०॥ हे नानक ! मनुष्य का मन वश में तभी आता है, यदि परमेश्वर उस पर पूर्ण कृपा करता है ॥१०॥|"
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਦਸਮੀ ਦਸ ਦੁਆਰ ਬਸਿ ਕੀਨੇ ॥ दसमी दस दुआर बसि कीने ॥ दसवें चंद्र दिवस: जो मनुष्य अपनी दसों इन्दियों (पाँच ज्ञान एवं पाँच कर्म इन्द्रियां ) को वश में कर लेता है,
ਮਨਿ ਸੰਤੋਖੁ ਨਾਮ ਜਪਿ ਲੀਨੇ ॥ मनि संतोखु नाम जपि लीने ॥ परमात्मा का नाम जपने से उसके मन में संतोष उत्पन्न हो जाता है।
ਕਰਨੀ ਸੁਨੀਐ ਜਸੁ ਗੋਪਾਲ ॥ करनी सुनीऐ जसु गोपाल ॥ अपने कानों से गोपाल का यश सुनो।
ਨੈਨੀ ਪੇਖਤ ਸਾਧ ਦਇਆਲ ॥ नैनी पेखत साध दइआल ॥ अपने नेत्रों से दयालु संतों को देखो।
ਰਸਨਾ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ਬੇਅੰਤ ॥ रसना गुन गावै बेअंत ॥ अपनी जिह्वा से अनन्त परमात्मा की गुणस्तुति करो।
ਮਨ ਮਹਿ ਚਿਤਵੈ ਪੂਰਨ ਭਗਵੰਤ ॥ मन महि चितवै पूरन भगवंत ॥ अपने हृदय में पूर्ण भगवान् का चिन्तन करो।


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