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ਲਾਭੁ ਮਿਲੈ ਤੋਟਾ ਹਿਰੈ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪਤਿਵੰਤ ॥
लाभु मिलै तोटा हिरै हरि दरगह पतिवंत ॥
इस प्रकार आध्यात्मिक जीवन लाभकारी सिद्ध होता है, जिससे पूर्व की बुराइयों से हुई समस्त हानि की पूर्ति हो जाती है और भगवान् के दरबार में सम्मान प्राप्त होता है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਸੰਚਵੈ ਸਾਚ ਸਾਹ ਭਗਵੰਤ ॥
राम नाम धनु संचवै साच साह भगवंत ॥
जो व्यक्ति राम नाम रूपी धन एकत्र करता है वही व्यक्ति सच्चा साहूकार एवं भाग्यवान है।
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਹਰਿ ਭਜਹੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਪਰੀਤਿ ॥
ऊठत बैठत हरि भजहु साधू संगि परीति ॥
उठते-बैठते हरि का भजन करो एवं सत्संगति से प्रेम करो।
ਨਾਨਕ ਦੁਰਮਤਿ ਛੁਟਿ ਗਈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਬਸੇ ਚੀਤਿ ॥੨॥
नानक दुरमति छुटि गई पारब्रहम बसे चीति ॥२॥
हे नानक ! जब पारब्रह्म प्रभु मनुष्य के हृदय में बस जाता है तो उसकी दुर्बुद्धि नाश हो जाती है॥ २॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਤੀਨਿ ਬਿਆਪਹਿ ਜਗਤ ਕਉ ਤੁਰੀਆ ਪਾਵੈ ਕੋਇ ॥
तीनि बिआपहि जगत कउ तुरीआ पावै कोइ ॥
माया के तीण गुण दुनिया को बड़ा दुःखी कर रहे हैं, लेकिन कोई विरला पुरुष ही तुरीय अवस्था(जीवन-मुक्त अवस्था) को पाता है।
ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਨਿਰਮਲ ਭਏ ਜਿਨ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸੋਇ ॥੩॥
नानक संत निरमल भए जिन मनि वसिआ सोइ ॥३॥
हे नानक ! जिनके हृदय में प्रभु-परमेश्वर निवास करते हैं, वह संत पवित्र-पावन हो जाते हैं ॥३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी ॥
ਤ੍ਰਿਤੀਆ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਿਖੈ ਫਲ ਕਬ ਉਤਮ ਕਬ ਨੀਚੁ ॥
त्रितीआ त्रै गुण बिखै फल कब उतम कब नीचु ॥
माया के तीन आवेग—सत्व, रज और तम—तीसरे चंद्र दिवस पर विशेष रूप से सक्रिय रहते हैं, और इनके बंधन में पड़ा जीव उच्च और निम्न आत्मिक अवस्थाओं में डोलता रहता है।
ਨਰਕ ਸੁਰਗ ਭ੍ਰਮਤਉ ਘਣੋ ਸਦਾ ਸੰਘਾਰੈ ਮੀਚੁ ॥
नरक सुरग भ्रमतउ घणो सदा संघारै मीचु ॥
वह नरक-स्वर्ग में अधिकतर भटकते हैं और मृत्यु सदैव ही उनका संहार करती है।
ਹਰਖ ਸੋਗ ਸਹਸਾ ਸੰਸਾਰੁ ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਬਿਹਾਇ ॥
हरख सोग सहसा संसारु हउ हउ करत बिहाइ ॥
दुनिया के हर्ष, शोक एवं दुविधा के चक्र में फँसे हुए वह अपना अमूल्य जीवन अहंकार करते हुए बिता देते हैं।
ਜਿਨਿ ਕੀਏ ਤਿਸਹਿ ਨ ਜਾਣਨੀ ਚਿਤਵਹਿ ਅਨਿਕ ਉਪਾਇ ॥
जिनि कीए तिसहि न जाणनी चितवहि अनिक उपाइ ॥
जिस ईश्वर ने उनको उत्पन्न किया है, उसे वे नहीं जानते और दूसरे अनेक उपाय सोचते रहते हैं।
ਆਧਿ ਬਿਆਧਿ ਉਪਾਧਿ ਰਸ ਕਬਹੁ ਨ ਤੂਟੈ ਤਾਪ ॥
आधि बिआधि उपाधि रस कबहु न तूटै ताप ॥
लौकिक आस्वादनों के कारण प्राणी को मन एवं तन के रोग तथा दूसरे झंझट भी लगे रहते हैं, कभी इसके मन का दुःख क्लेश मिटता नहीं है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਧਨੀ ਨਹ ਬੂਝੈ ਪਰਤਾਪ ॥
पारब्रहम पूरन धनी नह बूझै परताप ॥
वह सर्वव्यापक पारब्रह्म-प्रभु के तेज-प्रताप को अनुभव नहीं करते।
ਮੋਹ ਭਰਮ ਬੂਡਤ ਘਣੋ ਮਹਾ ਨਰਕ ਮਹਿ ਵਾਸ ॥
मोह भरम बूडत घणो महा नरक महि वास ॥
भावनाओं के बंधन और शंकाओं के दलदल में फँसे कई लोग ऐसा जीवन जीते हैं, जैसे वे धरती पर ही किसी घोर नरक का अनुभव कर रहे हों।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਨਾਨਕ ਤੇਰੀ ਆਸ ॥੩॥
करि किरपा प्रभ राखि लेहु नानक तेरी आस ॥३॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! कृपा करके मेरी रक्षा करो, चूंकि मुझे आपकी ही आशा है ॥३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਚਤੁਰ ਸਿਆਣਾ ਸੁਘੜੁ ਸੋਇ ਜਿਨਿ ਤਜਿਆ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
चतुर सिआणा सुघड़ु सोइ जिनि तजिआ अभिमानु ॥
जो मनुष्य अपना अभिमान त्याग देता है, वही चतुर, बुद्धिमान एवं गुणवान है।
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਅਸਟ ਸਿਧਿ ਭਜੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੪॥
चारि पदारथ असट सिधि भजु नानक हरि नामु ॥४॥
हे नानक ! भगवान् के नाम का भजन करने से संसार के चार उत्तम पदार्थ एवं आठ सिद्धियाँ मिल जाती हैं ॥४॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी।
ਚਤੁਰਥਿ ਚਾਰੇ ਬੇਦ ਸੁਣਿ ਸੋਧਿਓ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
चतुरथि चारे बेद सुणि सोधिओ ततु बीचारु ॥
चौथे चंद्र दिवस पर- चारों वेद सुनकर और उनके यथार्थ को विचार कर मैंने निर्णय किया है कि
ਸਰਬ ਖੇਮ ਕਲਿਆਣ ਨਿਧਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਸਾਰੁ ॥
सरब खेम कलिआण निधि राम नामु जपि सारु ॥
राम के नाम का भजन, समस्त हर्ष एवं सुखों का भण्डार है।
ਨਰਕ ਨਿਵਾਰੈ ਦੁਖ ਹਰੈ ਤੂਟਹਿ ਅਨਿਕ ਕਲੇਸ ॥
नरक निवारै दुख हरै तूटहि अनिक कलेस ॥
परमेश्वर के भजन में लीन होने से नरक मिट जाता है। दुःख नाश हो जाता है और अनेक क्लेश नष्ट हो जाते हैं,
ਮੀਚੁ ਹੁਟੈ ਜਮ ਤੇ ਛੁਟੈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਪਰਵੇਸ ॥
मीचु हुटै जम ते छुटै हरि कीरतन परवेस ॥
जिसके हृदय में ईश्वर की स्तुति स्थायी रूप से स्थापित हो जाती है, वह आध्यात्मिक मृत्यु से बच जाता है, और मृत्यु का भय उससे सदा के लिए दूर हो जाता है।
ਭਉ ਬਿਨਸੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਰਸੈ ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥
भउ बिनसै अम्रितु रसै रंगि रते निरंकार ॥
निरंकार परमात्मा के प्रेम में मग्न होने से मनुष्य का भय नाश हो जाता है और वह अमृत रस का पान करता है।
ਦੁਖ ਦਾਰਿਦ ਅਪਵਿਤ੍ਰਤਾ ਨਾਸਹਿ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥
दुख दारिद अपवित्रता नासहि नाम अधार ॥
ईश्वर नाम के सहारे से दु:ख, दर्द एवं अपवित्रता नष्ट हो जाते हैं।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਖੋਜਤੇ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਗੋਪਾਲ ॥
सुरि नर मुनि जन खोजते सुख सागर गोपाल ॥
देवता, मनुष्य एवं मुनिजन भी सुख के सागर गोपाल की खोज करते हैं।
ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਮੁਖੁ ਊਜਲਾ ਹੋਇ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਰਵਾਲ ॥੪॥
मनु निरमलु मुखु ऊजला होइ नानक साध रवाल ॥४॥
हे नानक ! संतों की चरण-धूलि लेने से मन पवित्र एवं (लोक-परलोक में) मुख उज्ज्वल हो जाता है॥ ४॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਪੰਚ ਬਿਕਾਰ ਮਨ ਮਹਿ ਬਸੇ ਰਾਚੇ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ॥
पंच बिकार मन महि बसे राचे माइआ संगि ॥
जीव माया के मोह में ही मग्न रहता है, जिसके कारण पाँच विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) उसके हृदय में बसे रहते हैं।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹੋਇ ਨਿਰਮਲਾ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੫॥
साधसंगि होइ निरमला नानक प्रभ कै रंगि ॥५॥
हे नानक ! किन्तु सत्संगति करने से जीव पवित्र हो जाता है और वह प्रभु के रंग में मग्न रहता है॥ ५॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी ॥
ਪੰਚਮਿ ਪੰਚ ਪ੍ਰਧਾਨ ਤੇ ਜਿਹ ਜਾਨਿਓ ਪਰਪੰਚੁ ॥
पंचमि पंच प्रधान ते जिह जानिओ परपंचु ॥
पाँचवाँ चंद्र दिवस - संसार में वही महापुरुष सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं, जिन्होंने इस संसार के परपंच को समझ लिया है।
ਕੁਸਮ ਬਾਸ ਬਹੁ ਰੰਗੁ ਘਣੋ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਬਲਬੰਚੁ ॥
कुसम बास बहु रंगु घणो सभ मिथिआ बलबंचु ॥
कि यह समस्त सांसारिक विस्तार उन फूलों के समान है, जिनके रंग और सुगंध क्षण भर में विलीन हो जाते हैं — मिथ्या और नश्वर।
ਨਹ ਜਾਪੈ ਨਹ ਬੂਝੀਐ ਨਹ ਕਛੁ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰੁ ॥
नह जापै नह बूझीऐ नह कछु करत बीचारु ॥
नश्वर व्यक्ति न तो सोचता है, न समझता है और न ही धर्मी जीवन पर विचार करता है।
ਸੁਆਦ ਮੋਹ ਰਸ ਬੇਧਿਓ ਅਗਿਆਨਿ ਰਚਿਓ ਸੰਸਾਰੁ ॥
सुआद मोह रस बेधिओ अगिआनि रचिओ संसारु ॥
दुनिया आस्वादनों, मोह, रस में बंधी रहती है और अज्ञान में लीन रहती है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਬਹੁ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਣ ਕੀਨੇ ਕਰਮ ਅਨੇਕ ॥
जनम मरण बहु जोनि भ्रमण कीने करम अनेक ॥
जो मनुष्य अनेक कर्म करते हैं वे जन्म मरण के चक्र में पड़ते हैं और अनेक योनियों में भटकते रहते हैं।
ਰਚਨਹਾਰੁ ਨਹ ਸਿਮਰਿਓ ਮਨਿ ਨ ਬੀਚਾਰਿ ਬਿਬੇਕ ॥
रचनहारु नह सिमरिओ मनि न बीचारि बिबेक ॥
जो न तो सृष्टिकर्ता में मन लगाता है, और न ही पाप और पुण्य की प्रकृति पर विचार करता है,
ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਭਗਵਾਨ ਸੰਗਿ ਮਾਇਆ ਲਿਪਤ ਨ ਰੰਚ ॥
भाउ भगति भगवान संगि माइआ लिपत न रंच ॥
जो व्यक्ति भगवान् की भक्ति तथा भगवान में श्रद्धा धारण करते हैं, उनके साथ माया बिल्कुल लिप्त नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਬਿਰਲੇ ਪਾਈਅਹਿ ਜੋ ਨ ਰਚਹਿ ਪਰਪੰਚ ॥੫॥
नानक बिरले पाईअहि जो न रचहि परपंच ॥५॥
हे नानक ! दुनिया में विरले जीव ही मिलते हैं जो दुनिया के परपंच में नहीं फंसते ॥५॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਖਟ ਸਾਸਤ੍ਰ ਊਚੌ ਕਹਹਿ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥
खट सासत्र ऊचौ कहहि अंतु न पारावार ॥
षड्शास्त्र उच्च स्वर से पुकारते हुए कहते हैं कि भगवान् की महिमा का अन्त नहीं मिल सकता तथा उसके अस्तित्व का ओर-छोर नहीं पाया जा सकता।
ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਗੁਣ ਗਾਵਤੇ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਦੁਆਰ ॥੬॥
भगत सोहहि गुण गावते नानक प्रभ कै दुआर ॥६॥
हे नानक ! भगवान् के भक्त भगवान् के द्वार पर उसका गुणानुवाद करते हुए अति सुन्दर लगते हैं।॥ ६॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਖਸਟਮਿ ਖਟ ਸਾਸਤ੍ਰ ਕਹਹਿ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਕਥਹਿ ਅਨੇਕ ॥
खसटमि खट सासत्र कहहि सिम्रिति कथहि अनेक ॥
छठा चंद्र दिवस : षड्शास्त्र कहते हैं, अनेक स्मृतियाँ भी कथन करती हैं कि