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ਕੋਊ ਨਰਕ ਕੋਊ ਸੁਰਗ ਬੰਛਾਵਤ ॥
कोई नरक में जाने लगा और कोई स्वर्ग की अभिलाषा करने लगा।
ਆਲ ਜਾਲ ਮਾਇਆ ਜੰਜਾਲ ॥
ईश्वर ने सांसारिक विवाद, धन-दौलत के जंजाल,
ਹਉਮੈ ਮੋਹ ਭਰਮ ਭੈ ਭਾਰ ॥
अहंकार, मोह, दुविधा एवं भय के भार बना दिए।
ਦੂਖ ਸੂਖ ਮਾਨ ਅਪਮਾਨ ॥
दुःख-सुख, मान-अपमान
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੀਓ ਬਖ੍ਯ੍ਯਾਨ ॥
अनेक प्रकार से वर्णन होने प्रारम्भ हो गए।
ਆਪਨ ਖੇਲੁ ਆਪਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ॥
अपनी लीला प्रभु स्वयं ही रचता और देखता हैं।
ਖੇਲੁ ਸੰਕੋਚੈ ਤਉ ਨਾਨਕ ਏਕੈ ॥੭॥
हे नानक ! जब परमात्मा अपनी लीला को समेट लेता है तो केवल वही रह जाता है ॥७॥
ਜਹ ਅਬਿਗਤੁ ਭਗਤੁ ਤਹ ਆਪਿ ॥
जहाँ पर अनन्त परमात्मा है, वहीं उसका भक्त है, जहाँ पर भक्त है, वहीं परमात्मा स्वयं है।
ਜਹ ਪਸਰੈ ਪਾਸਾਰੁ ਸੰਤ ਪਰਤਾਪਿ ॥
जहाँ कहीं वह रचना का प्रसार करता है, वह उसके संत के प्रताप के लिए है।
ਦੁਹੂ ਪਾਖ ਕਾ ਆਪਹਿ ਧਨੀ ॥
दोनों पक्षों का वह स्वयं ही मालिक है।
ਉਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ਉਨਹੂ ਬਨੀ ॥
उसकी शोभा केवल उसी को ही शोभा देती है।
ਆਪਹਿ ਕਉਤਕ ਕਰੈ ਅਨਦ ਚੋਜ ॥
भगवान स्वयं ही लीला एवं खेल करता है।
ਆਪਹਿ ਰਸ ਭੋਗਨ ਨਿਰਜੋਗ ॥
वह स्वयं ही आनंद भोगता है और फिर भी निर्लिप्त रहता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਆਪਨ ਨਾਇ ਲਾਵੈ ॥
जिस किसी को वह चाहता है, उसको अपने नाम के साथ लगा लेता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਖੇਲ ਖਿਲਾਵੈ ॥
जिस किसी को वह चाहता है, उसको संसार का खेल खिलाता है।
ਬੇਸੁਮਾਰ ਅਥਾਹ ਅਗਨਤ ਅਤੋਲੈ ॥
नानक का कथन है कि हे अनन्त ! हे अथाह ! हे गणना-रहित, अतुलनीय परमात्मा !
ਜਿਉ ਬੁਲਾਵਹੁ ਤਿਉ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਬੋਲੈ ॥੮॥੨੧॥
जैसे तुम अपने सेवक को निर्देशित करते हो, वैसे ही यह दास बोलता है ॥८॥२१॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਕੇ ਠਾਕੁਰਾ ਆਪੇ ਵਰਤਣਹਾਰ ॥
हे जीव-जन्तुओं के पालनहार परमेश्वर ! तू स्वयं ही सर्वव्यापक है।
ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਪਸਰਿਆ ਦੂਜਾ ਕਹ ਦ੍ਰਿਸਟਾਰ ॥੧॥
हे नानक ! एक ईश्वर ही सर्वत्र व्यापक है। इसके अलावा दूसरा कोई कहाँ दिखाई देता है॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥
अष्टपदी ॥
ਆਪਿ ਕਥੈ ਆਪਿ ਸੁਨਨੈਹਾਰੁ ॥
वह स्वयं ही वक्ता है और स्वयं ही श्रोता है।
ਆਪਹਿ ਏਕੁ ਆਪਿ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥
वह स्वयं ही एक है और स्वयं ही उसका विस्तार है।
ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਏ ॥
जब उसे भला लगता है तो वह सृष्टि की रचना कर देता है।
ਆਪਨੈ ਭਾਣੈ ਲਏ ਸਮਾਏ ॥
अपनी इच्छानुसार वह इसे स्वयं में लीन कर देता है।
ਤੁਮ ਤੇ ਭਿੰਨ ਨਹੀ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥
हे परमात्मा ! तुम्हारे बिना कुछ भी किया नहीं जा सकता।
ਆਪਨ ਸੂਤਿ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਪਰੋਇ ॥
तूने सारे जगत् को एक सूत्र में पिरोया हुआ है।
ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥
जिसे पूज्य परमेश्वर स्वयं ज्ञान देता है,
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥
वह मनुष्य सत्यनाम प्राप्त कर लेता है।
ਸੋ ਸਮਦਰਸੀ ਤਤ ਕਾ ਬੇਤਾ ॥
वह समदर्शी तथा तत्वज्ञाता है।
ਨਾਨਕ ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਾ ਜੇਤਾ ॥੧॥
हे नानक ! वह समस्त जगत् को विजयी करने वाला है ॥१॥
ਜੀਅ ਜੰਤ੍ਰ ਸਭ ਤਾ ਕੈ ਹਾਥ ॥
समस्त जीव-जन्तु उस परमात्मा के वश में हैं।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਅਨਾਥ ਕੋ ਨਾਥੁ ॥
वह दीनदयाल, अनाथों का नाथ है।
ਜਿਸੁ ਰਾਖੈ ਤਿਸੁ ਕੋਇ ਨ ਮਾਰੈ ॥
जिसकी परमात्मा रक्षा करता है, उसे कोई भी मार नहीं सकता।
ਸੋ ਮੂਆ ਜਿਸੁ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰੈ ॥
जिसे वह अपने हृदय से विस्मृत कर देता है, वह पूर्व ही मृत है।
ਤਿਸੁ ਤਜਿ ਅਵਰ ਕਹਾ ਕੋ ਜਾਇ ॥
उसे छोड़कर कोई मनुष्य दूसरे के पास क्यों जाए?
ਸਭ ਸਿਰਿ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨ ਰਾਇ ॥
सबके सिर पर एक निरंजन प्रभु है।
ਜੀਅ ਕੀ ਜੁਗਤਿ ਜਾ ਕੈ ਸਭ ਹਾਥਿ ॥
जिसके वश में प्राणी की समस्त युक्तियां हैं
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਜਾਨਹੁ ਸਾਥਿ ॥
समझ ले कि वह भीतर एवं बाहर तेरे साथ है।
ਗੁਨ ਨਿਧਾਨ ਬੇਅੰਤ ਅਪਾਰ ॥
उस गुणों के भण्डार, अनंत एवं अपार परमात्मा पर
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਬਲਿਹਾਰ ॥੨॥
दास नानक सदैव बलिहारी जाता है॥ २॥
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਦਇਆਲ ॥
दयालु परमात्मा हर जगह पर उपस्थित है और
ਸਭ ਊਪਰਿ ਹੋਵਤ ਕਿਰਪਾਲ ॥
समस्त जीवों पर कृपालु होता है।
ਅਪਨੇ ਕਰਤਬ ਜਾਨੈ ਆਪਿ ॥
अपनी लीला वह स्वयं ही जानता है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਰਹਿਓ ਬਿਆਪਿ ॥
अन्तर्यामी प्रभु सबमें समाया हुआ है।
ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ਜੀਅਨ ਬਹੁ ਭਾਤਿ ॥
वह अनेक विधियों से जीवों का पोषण करता है।
ਜੋ ਜੋ ਰਚਿਓ ਸੁ ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਤਿ ॥
जिस किसी की भी उसने उत्पत्ति की है, वह उसका ध्यान करता रहता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥
जो कोई भी भगवान को भला लगता है, उसे वह अपने साथ मिला लेता है।
ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥
ऐसा भक्त हरि-प्रभु की भक्ति एवं गुणस्तुति करता है।
ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਬਿਸ੍ਵਾਸੁ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ॥
हे नानक ! जिसने मन में श्रद्धा धारण करके भगवान को माना है,
ਕਰਨਹਾਰੁ ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਜਾਨਿਆ ॥੩॥
उसने एक सृष्टिकर्ता प्रभु को ही जाना है॥ ३॥
ਜਨੁ ਲਾਗਾ ਹਰਿ ਏਕੈ ਨਾਇ ॥
जो भक्त भगवान् के एक नाम में लगा है,
ਤਿਸ ਕੀ ਆਸ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਇ ॥
उसकी आशा व्यर्थ नहीं जाती।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਸੇਵਾ ਬਨਿ ਆਈ ॥
सेवक को सेवा करनी ही शोभा देती है।
ਹੁਕਮੁ ਬੂਝਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈ ॥
प्रभु की आज्ञा का पालन करके वह परम पद (मोक्ष) प्राप्त कर लेता है।
ਇਸ ਤੇ ਊਪਰਿ ਨਹੀ ਬੀਚਾਰੁ ॥
उसे इससे ऊपर और कोई भी विचार नहीं आता
ਜਾ ਕੈ ਮਨਿ ਬਸਿਆ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
जिसके हृदय में निरंकार प्रभु बसता है।
ਬੰਧਨ ਤੋਰਿ ਭਏ ਨਿਰਵੈਰ ॥
वह अपने बन्धन तोड़कर निर्वैर हो जाता है
ਅਨਦਿਨੁ ਪੂਜਹਿ ਗੁਰ ਕੇ ਪੈਰ ॥
और दिन-रात गुरु के चरणों की पूजा-अर्चना करता है।
ਇਹ ਲੋਕ ਸੁਖੀਏ ਪਰਲੋਕ ਸੁਹੇਲੇ ॥
वह इहलोक में सुखी एवं परलोक में आनंद-प्रसन्न होता है।