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ਮਿਥਿਆ ਨੇਤ੍ਰ ਪੇਖਤ ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਰੂਪਾਦ ॥
वे नेत्र मिथ्या हैं, जो अन्य नारी का सौंदर्य रूप देखते हैं।
ਮਿਥਿਆ ਰਸਨਾ ਭੋਜਨ ਅਨ ਸ੍ਵਾਦ ॥
वह जिह्वा भी मिथ्या है, जो पकवान एवं दूसरे स्वाद भोगती है।
ਮਿਥਿਆ ਚਰਨ ਪਰ ਬਿਕਾਰ ਕਉ ਧਾਵਹਿ ॥
वे चरण झूठे हैं, जो दूसरों का बुरा करने के लिए दौड़ते हैं।
ਮਿਥਿਆ ਮਨ ਪਰ ਲੋਭ ਲੁਭਾਵਹਿ ॥
वह मन भी झूठा है जो पराए धन का लोभ करता है।
ਮਿਥਿਆ ਤਨ ਨਹੀ ਪਰਉਪਕਾਰਾ ॥
वे शरीर मिथ्या है, जो परोपकार नहीं करता।
ਮਿਥਿਆ ਬਾਸੁ ਲੇਤ ਬਿਕਾਰਾ ॥
वह नाक व्यर्थ है, जो विषय-विकारों की गंध सूंघ रही है।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਮਿਥਿਆ ਸਭ ਭਏ ॥
ऐसी समझ के बिना प्रत्येक अंग नश्वर है।
ਸਫਲ ਦੇਹ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਲਏ ॥੫॥
हे नानक ! वह शरीर सफल है, जो हरि-परमेश्वर का नाम जपता रहता है।॥ ५॥
ਬਿਰਥੀ ਸਾਕਤ ਕੀ ਆਰਜਾ ॥
शाक्त इन्सान का जीवन व्यर्थ है।
ਸਾਚ ਬਿਨਾ ਕਹ ਹੋਵਤ ਸੂਚਾ ॥
सत्य के बिना वह कैसे शुद्ध हो सकता है?
ਬਿਰਥਾ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਤਨੁ ਅੰਧ ॥
नाम के बिना अज्ञानी पुरुष का शरीर व्यर्थ है। (क्योंकि)
ਮੁਖਿ ਆਵਤ ਤਾ ਕੈ ਦੁਰਗੰਧ ॥
उसके मुख से दुर्गंध आती है।
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਬ੍ਰਿਥਾ ਬਿਹਾਇ ॥
प्रभु के स्मरण के बिना दिन और रात व्यर्थ गुजर जाते हैं,
ਮੇਘ ਬਿਨਾ ਜਿਉ ਖੇਤੀ ਜਾਇ ॥
जिस तरह वर्षा के बिना फसल नष्ट हो जाती है।
ਗੋਬਿਦ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਬ੍ਰਿਥੇ ਸਭ ਕਾਮ ॥
गोविन्द के भजन बिना सभी कार्य व्यर्थ हैं,
ਜਿਉ ਕਿਰਪਨ ਕੇ ਨਿਰਾਰਥ ਦਾਮ ॥
जैसे कृपण पुरुष की दौलत व्यर्थ है।
ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਤੇ ਜਨ ਜਿਹ ਘਟਿ ਬਸਿਓ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
वह इन्सान बड़ा भाग्यशाली है, जिसके हृदय में भगवान् का नाम वास करता है।
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੬॥
हे नानक ! मैं उन पर न्योछावर जाता हूँ॥ ६॥
ਰਹਤ ਅਵਰ ਕਛੁ ਅਵਰ ਕਮਾਵਤ ॥
मनुष्य कहता कुछ है और करता बिल्कुल ही कुछ और है।
ਮਨਿ ਨਹੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮੁਖਹੁ ਗੰਢ ਲਾਵਤ ॥
उसके हृदय में (प्रभु के प्रति) प्रेम नहीं लेकिन मुख से व्यर्थ बातें करता है।
ਜਾਨਨਹਾਰ ਪ੍ਰਭੂ ਪਰਬੀਨ ॥
सब कुछ जानने वाला प्रभु बड़ा चतुर है,
ਬਾਹਰਿ ਭੇਖ ਨ ਕਾਹੂ ਭੀਨ ॥
(वह कभी) किसी के बाहरी वेष से ख़ुश नहीं होता।
ਅਵਰ ਉਪਦੇਸੈ ਆਪਿ ਨ ਕਰੈ ॥
जो दूसरों को उपदेश देता है और स्वयं उस पर अनुसरण नहीं करता,
ਆਵਤ ਜਾਵਤ ਜਨਮੈ ਮਰੈ ॥
वह (जगत् में) आता-जाता एवं जन्मता-मरता रहता है।
ਜਿਸ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਬਸੈ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
जिस पुरुष के हृदय में निरंकार वास करता है,
ਤਿਸ ਕੀ ਸੀਖ ਤਰੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥
उसके उपदेश से समस्त जगत् (विकारों से) बच जाता है।
ਜੋ ਤੁਮ ਭਾਨੇ ਤਿਨ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ॥
हे प्रभु ! जो तुझे अच्छे लगते हैं, केवल वही तुझे जान सकते हैं।
ਨਾਨਕ ਉਨ ਜਨ ਚਰਨ ਪਰਾਤਾ ॥੭॥
हे नानक ! मैं ऐसे भक्तों के चरण-स्पर्श करता हूँ॥ ७॥
ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸਭੁ ਜਾਨੈ ॥
मैं उस परब्रह्म के समक्ष प्रार्थना करता हूँ, जो सब कुछ जानता है।
ਅਪਨਾ ਕੀਆ ਆਪਹਿ ਮਾਨੈ ॥
अपने उत्पन्न किए प्राणी को वह स्वयं ही सम्मान प्रदान करता है।
ਆਪਹਿ ਆਪ ਆਪਿ ਕਰਤ ਨਿਬੇਰਾ ॥
ईश्वर स्वयं ही (प्राणियों के कर्मों के अनुसार) न्याय करता है।
ਕਿਸੈ ਦੂਰਿ ਜਨਾਵਤ ਕਿਸੈ ਬੁਝਾਵਤ ਨੇਰਾ ॥
किसी को यह सूझ प्रदान करता है कि ईश्वर हमारे समीप है और किसी को लगता है कि ईश्वर कहीं दूर है।
ਉਪਾਵ ਸਿਆਨਪ ਸਗਲ ਤੇ ਰਹਤ ॥
समस्त कोशिशों एवं चतुराईयों से ईश्वर परे है।
ਸਭੁ ਕਛੁ ਜਾਨੈ ਆਤਮ ਕੀ ਰਹਤ ॥
(क्योंकि) वह मनुष्य के मन की अवस्था भलीभाँति समझता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਲਏ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥
वह उसको अपने साथ मिला लेता है, जो उसको भला लगता है।
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
प्रभु समस्त स्थानों एवं स्थानों की दूरी पर सर्वव्यापक हो रहा है।
ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੀ ॥
जिस पर ईश्वर कृपा धारण करता है, वही उसका सेवक है।
ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਹਰੀ ॥੮॥੫॥
हे नानक ! क्षण-क्षण हरि का जाप करते रहो ॥ ८॥ ५॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਰੁ ਲੋਭ ਮੋਹ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਅਹੰਮੇਵ ॥
हे ईश्वर ! मेरा मन काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से निवृत्त हो जाए
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਕਰਿ ਪ੍ਰਸਾਦੁ ਗੁਰਦੇਵ ॥੧॥
मैं तेरी शरण में आया हूँ. हे गुरुदेव ! मुझ पर ऐसी कृपा करें ॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥
अष्टपदी॥
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਛਤੀਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਖਾਹਿ ॥
"(हे जीव !) जिसकी कृपा से तू छत्तीस प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन खाता है,
ਤਿਸੁ ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਰਖੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
उस प्रभु को अपने मन में याद कर।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਗੰਧਤ ਤਨਿ ਲਾਵਹਿ ॥
जिसकी कृपा से तुम अपने शरीर पर सुगंधियाँ लगाते हो,
ਤਿਸ ਕਉ ਸਿਮਰਤ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥
उसका भजन करने से तुझे परमगति मिल जाएगी।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਬਸਹਿ ਸੁਖ ਮੰਦਰਿ ॥
जिसकी कृपा से तुम महलों में सुख से रहते हो,
ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਇ ਸਦਾ ਮਨ ਅੰਦਰਿ ॥
अपने मन में हमेशा उसका ध्यान करो।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਗ੍ਰਿਹ ਸੰਗਿ ਸੁਖ ਬਸਨਾ ॥
जिसकी कृपा से तुम अपने घर में सुखपूर्वक रहते हो,
ਆਠ ਪਹਰ ਸਿਮਰਹੁ ਤਿਸੁ ਰਸਨਾ ॥
अपनी जिह्वा से आठ पहर उसका स्मरण करो।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਰੰਗ ਰਸ ਭੋਗ ॥
हे नानक ! जिस की कृपा से रंग-स्वाँग, स्वादिष्ट व्यंजन एवं पदार्थ प्राप्त होते हैं,
ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ਧਿਆਵਨ ਜੋਗ ॥੧॥
उस याद करने योग्य ईश्वर का सदैव ध्यान करना चाहिए॥ १॥
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਾਟ ਪਟੰਬਰ ਹਢਾਵਹਿ ॥
जिसकी कृपा से तुम रेशमी वस्त्र पहनते हो,
ਤਿਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਕਤ ਅਵਰ ਲੁਭਾਵਹਿ ॥
उसे भुलाकर क्यों दूसरों में मस्त हो रहे हो।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਖਿ ਸੇਜ ਸੋਈਜੈ ॥
जिसकी कृपा से तुम सुखपूर्वक सेज पर सोते हो।
ਮਨ ਆਠ ਪਹਰ ਤਾ ਕਾ ਜਸੁ ਗਾਵੀਜੈ ॥
हे मेरे मन ! उस प्रभु का आठों पहर यशोगान करना चाहिए।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੁਝੁ ਸਭੁ ਕੋਊ ਮਾਨੈ ॥
जिसकी कृपा से प्रत्येक व्यक्ति तेरा आदर-सत्कार करता है,