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ਮੁਖਿ ਅਪਿਆਉ ਬੈਠ ਕਉ ਦੈਨ ॥
बैठे ही मुँह में भोजन डालने के लिए -तेरी सेवा के लिए दिए हैं।
ਇਹੁ ਨਿਰਗੁਨੁ ਗੁਨੁ ਕਛੂ ਨ ਬੂਝੈ ॥
यह गुणविहीन मनुष्य किए हुए उपकारों की कुछ भी परवाह नहीं करता।
ਬਖਸਿ ਲੇਹੁ ਤਉ ਨਾਨਕ ਸੀਝੈ ॥੧॥
नानक का कथन है कि हे ईश्वर ! यदि तू उसको क्षमा कर दे तो ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है॥ १॥
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਧਰ ਊਪਰਿ ਸੁਖਿ ਬਸਹਿ ॥
(हे प्राणी !) जिसकी कृपा से तू धरती पर सुखपूर्वक रहता है
ਸੁਤ ਭ੍ਰਾਤ ਮੀਤ ਬਨਿਤਾ ਸੰਗਿ ਹਸਹਿ ॥
और अपने पुत्र, भाई, मित्र एवं पत्नी के साथ हँसता खेलता है,
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪੀਵਹਿ ਸੀਤਲ ਜਲਾ ॥
जिसकी कृपा से तू शीतल जल पीता है
ਸੁਖਦਾਈ ਪਵਨੁ ਪਾਵਕੁ ਅਮੁਲਾ ॥
और तुझे प्रसन्न करने वाली सुखदायक वायु एवं अमूल्य अग्नि मिली है,
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭੋਗਹਿ ਸਭਿ ਰਸਾ ॥
जिसकी कृपा से तुम समस्त रस भोगते हो
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਸੰਗਿ ਸਾਥਿ ਬਸਾ ॥
और समस्त पदार्थों के साथ तुम रहते हो,
ਦੀਨੇ ਹਸਤ ਪਾਵ ਕਰਨ ਨੇਤ੍ਰ ਰਸਨਾ ॥
जिसने तुझे हाथ, पैर, कान, आंख एवं जिह्वा प्रदान किए हैं,
ਤਿਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਅਵਰ ਸੰਗਿ ਰਚਨਾ ॥
(हे प्राणी !) तुम उस ईश्वर को भुलाकर दूसरों के साथ प्रेम करते हो।
ਐਸੇ ਦੋਖ ਮੂੜ ਅੰਧ ਬਿਆਪੇ ॥
ऐसे दोष ज्ञानहीन मूर्ख के साथ फँसे हुए हैं।
ਨਾਨਕ ਕਾਢਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਆਪੇ ॥੨॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु! इनकी तुम स्वयं ही रक्षा करो ॥ २॥
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਜੋ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ॥
जो परमात्मा आदि से लेकर अंत तक (जन्म से मृत्यु तक) सबका रक्षक है,
ਤਿਸ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਕਰੈ ਗਵਾਰੁ ॥
मूर्ख पुरुष उससे प्रेम नहीं करता।
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਵੈ ॥
जिसकी सेवा से उसको नौ निधियाँ मिलती हैं,
ਤਾ ਸਿਉ ਮੂੜਾ ਮਨੁ ਨਹੀ ਲਾਵੈ ॥
उसे मूर्ख जीव अपने हृदय से नहीं लगाता।
ਜੋ ਠਾਕੁਰੁ ਸਦ ਸਦਾ ਹਜੂਰੇ ॥
जो ठाकुर सदैव ही प्रत्यक्ष है,
ਤਾ ਕਉ ਅੰਧਾ ਜਾਨਤ ਦੂਰੇ ॥
उसको ज्ञानहीन जीव दूर जानता है।
ਜਾ ਕੀ ਟਹਲ ਪਾਵੈ ਦਰਗਹ ਮਾਨੁ ॥
जिसकी सेवा-भक्ति से उसने प्रभु के दरबार में शोभा प्राप्त होती है,
ਤਿਸਹਿ ਬਿਸਾਰੈ ਮੁਗਧੁ ਅਜਾਨੁ ॥
मूर्ख एवं अज्ञानी पुरुष उस ईश्वर को भुला देता है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਇਹੁ ਭੂਲਨਹਾਰੁ ॥
नश्वर प्राणी हमेशा ही भूल करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ਅਪਾਰੁ ॥੩॥
हे नानक ! केवल अनन्त ईश्वर ही रक्षक है॥ ३॥
ਰਤਨੁ ਤਿਆਗਿ ਕਉਡੀ ਸੰਗਿ ਰਚੈ ॥
नाम-रत्न को त्याग कर मनुष्य माया रूपी कौड़ी के संग खुश रहता है।
ਸਾਚੁ ਛੋਡਿ ਝੂਠ ਸੰਗਿ ਮਚੈ ॥
वह सत्य को त्यागकर झूठ के साथ प्रसन्न होता है।
ਜੋ ਛਡਨਾ ਸੁ ਅਸਥਿਰੁ ਕਰਿ ਮਾਨੈ ॥
जिस दुनिया के पदार्थों को उसने त्याग जाना है, उसको वह सदैव स्थिर जानता है।
ਜੋ ਹੋਵਨੁ ਸੋ ਦੂਰਿ ਪਰਾਨੈ ॥
जो कुछ होना है, उसको वह दूर समझता है।
ਛੋਡਿ ਜਾਇ ਤਿਸ ਕਾ ਸ੍ਰਮੁ ਕਰੈ ॥
जिसे उसे छोड़ जाना है, उसके लिए वह कष्ट उठाता है।
ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਤਿਸੁ ਪਰਹਰੈ ॥
वह उस सहायक (प्रभु) को त्यागता है, जो सदैव उसके साथ है।
ਚੰਦਨ ਲੇਪੁ ਉਤਾਰੈ ਧੋਇ ॥ ਗਰਧਬ ਪ੍ਰੀਤਿ ਭਸਮ ਸੰਗਿ ਹੋਇ ॥
वह चन्दन के लेप को धोकर उतार देता है। गधे का केवल भस्म (राख) से ही प्रेम है।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਪਤਿਤ ਬਿਕਰਾਲ ॥
मनुष्य भयंकर अंधेरे कुएँ में गिरा पड़ा है।
ਨਾਨਕ ਕਾਢਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ॥੪॥
नानक की प्रार्थना है कि हे दयालु ईश्वर ! इन्हें तुम अन्धेरे कुएँ से बाहर निकाल लो॥ ४॥
ਕਰਤੂਤਿ ਪਸੂ ਕੀ ਮਾਨਸ ਜਾਤਿ ॥
जाति मनुष्य की है, लेकिन कर्म पशुओं वाले हैं।
ਲੋਕ ਪਚਾਰਾ ਕਰੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
मनुष्य रात-दिन लोगों के लिए आडम्बर करता रहता है।
ਬਾਹਰਿ ਭੇਖ ਅੰਤਰਿ ਮਲੁ ਮਾਇਆ ॥
बाहर (देहि में) वह धार्मिक वेष धारण करता है परन्तु उसके मन में माया की मैल है।
ਛਪਸਿ ਨਾਹਿ ਕਛੁ ਕਰੈ ਛਪਾਇਆ ॥
चाहे जितना दिल करे वह छिपाए परन्तु वह अपने सच को छिपा नहीं सकता।
ਬਾਹਰਿ ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਇਸਨਾਨ ॥
वह ज्ञान, ध्यान एवं स्नान करने का दिखावा करता है।
ਅੰਤਰਿ ਬਿਆਪੈ ਲੋਭੁ ਸੁਆਨੁ ॥
परन्तु उसके मन को लालच रूपी कुत्ता दबाव डाल रहा है।
ਅੰਤਰਿ ਅਗਨਿ ਬਾਹਰਿ ਤਨੁ ਸੁਆਹ ॥
उसके शरीर में तृष्णा की अग्नि विद्यमान है और बाहर शरीर पर वैराग्य की भस्म विद्यमान है।
ਗਲਿ ਪਾਥਰ ਕੈਸੇ ਤਰੈ ਅਥਾਹ ॥
अपनी गर्दन पर वासना रूपी पत्थर के साथ वह अति गहरे सागर से किस तरह पार हो सकता है ?
ਜਾ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਬਸੈ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ॥
हे नानक ! जिसके हृदय में ईश्वर स्वयं निवास करता है
ਨਾਨਕ ਤੇ ਜਨ ਸਹਜਿ ਸਮਾਤਿ ॥੫॥
ऐसा व्यक्ति सहज ही प्रभु में समा जाता है॥ ५॥
ਸੁਨਿ ਅੰਧਾ ਕੈਸੇ ਮਾਰਗੁ ਪਾਵੈ ॥
केवल सुनने से ही अन्धा पुरुष किस तरह मार्ग ढूंढ सकता है ?
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਓੜਿ ਨਿਬਹਾਵੈ ॥
उसका हाथ पकड़ लो (चूंकि यह) अन्त तक प्रेम का निर्वाह कर सके।
ਕਹਾ ਬੁਝਾਰਤਿ ਬੂਝੈ ਡੋਰਾ ॥
बहरा पुरुष बात किस तरह समझ सकता है ?
ਨਿਸਿ ਕਹੀਐ ਤਉ ਸਮਝੈ ਭੋਰਾ ॥
जब हम रात कहते हैं तो वह दिन समझता है।
ਕਹਾ ਬਿਸਨਪਦ ਗਾਵੈ ਗੁੰਗ ॥
गूंगा पुरुष किस तरह भक्ति गीत गा सकता है?
ਜਤਨ ਕਰੈ ਤਉ ਭੀ ਸੁਰ ਭੰਗ ॥
यदि वह कोशिश भी करे तो भी उसका स्वर भंग हो जाता है।
ਕਹ ਪਿੰਗੁਲ ਪਰਬਤ ਪਰ ਭਵਨ ॥
लंगड़ा किस तरह पहाड़ पर चक्कर काट सकता है ?
ਨਹੀ ਹੋਤ ਊਹਾ ਉਸੁ ਗਵਨ ॥
उसका वहाँ जाना संभव नहीं।
ਕਰਤਾਰ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਦੀਨੁ ਬੇਨਤੀ ਕਰੈ ॥
हे नानक ! हे करुणामय ! हे करतार ! (यह) दीन सेवक प्रार्थना करता है कि
ਨਾਨਕ ਤੁਮਰੀ ਕਿਰਪਾ ਤਰੈ ॥੬॥
तेरी कृपा से ही जीव भवसागर से पार हो सकता है॥ ६॥
ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਸੁ ਆਵੈ ਨ ਚੀਤਿ ॥
जो परमात्मा जीव का साथी एवं सहायक है, वह उसे अपने चित्त में याद नहीं करता।
ਜੋ ਬੈਰਾਈ ਤਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
अपितु वह उससे प्रेम करता है, जो उसका शत्रु है।
ਬਲੂਆ ਕੇ ਗ੍ਰਿਹ ਭੀਤਰਿ ਬਸੈ ॥
वह बालू (रेत) के घर में ही रहता है।
ਅਨਦ ਕੇਲ ਮਾਇਆ ਰੰਗਿ ਰਸੈ ॥
वह आनंद के खेल एवं धन के रंग (खुशी) भोगता है।
ਦ੍ਰਿੜੁ ਕਰਿ ਮਾਨੈ ਮਨਹਿ ਪ੍ਰਤੀਤਿ ॥
वह इन रंगरलियों का भरोसा मन में दृढ़ समझता है।
ਕਾਲੁ ਨ ਆਵੈ ਮੂੜੇ ਚੀਤਿ ॥
लेकिन मूर्ख जीव अपने मन में काल (मृत्यु) को स्मरण ही नहीं करता।
ਬੈਰ ਬਿਰੋਧ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮੋਹ ॥
वैर, विरोध, कामवासना, क्रोध, मोह
ਝੂਠ ਬਿਕਾਰ ਮਹਾ ਲੋਭ ਧ੍ਰੋਹ ॥
झूठ, पाप, महालोभ एवं छल-कपट की