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ਨਾਮ ਬਿਹੂਨੇ ਨਾਨਕਾ ਹੋਤ ਜਾਤ ਸਭੁ ਧੂਰ ॥੧॥
हे नानक ! नामविहीन सभी जीव धूलि होते जा रहे हैं।॥ १॥
ਪਵੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਧਧਾ ਧੂਰਿ ਪੁਨੀਤ ਤੇਰੇ ਜਨੂਆ ॥
हे प्रभु ! आपके सन्तों-भक्तों की चरण-धूलि पवित्र पावन है।
ਧਨਿ ਤੇਊ ਜਿਹ ਰੁਚ ਇਆ ਮਨੂਆ ॥
जिनके हृदय में इस धूलि की इच्छा है, वे भाग्यशाली हैं।
ਧਨੁ ਨਹੀ ਬਾਛਹਿ ਸੁਰਗ ਨ ਆਛਹਿ ॥
ऐसे लोग धन को नहीं चाहते और स्वर्ग की भी चाहत नहीं रखते।
ਅਤਿ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਾਧ ਰਜ ਰਾਚਹਿ ॥
क्योंकि वह प्रिय प्रभु के प्रेम एवं संतों की चरण-धूलि में मग्न रहते हैं।
ਧੰਧੇ ਕਹਾ ਬਿਆਪਹਿ ਤਾਹੂ ॥
सांसारिक माया का बन्धन उन पर प्रभाव नहीं डाल सकता,
ਜੋ ਏਕ ਛਾਡਿ ਅਨ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਹੂ ॥
जो लोग ईश्वर का सहारा त्याग कर कहीं ओर नहीं जाते।
ਜਾ ਕੈ ਹੀਐ ਦੀਓ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮ ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति के हृदय में प्रभु ने अपना नाम स्थापित कर दिया है,
ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨ ॥੪॥
वही व्यक्ति भगवान् के पूर्ण संत हैं॥ ४॥
ਸਲੋਕ ॥
श्लोक॥
ਅਨਿਕ ਭੇਖ ਅਰੁ ਙਿਆਨ ਧਿਆਨ ਮਨਹਠਿ ਮਿਲਿਅਉ ਨ ਕੋਇ ॥
अनेक धार्मिक वेश धारण करने एवं ज्ञान, ध्यान एवं मन के हठ से भगवान् में सुरति लगाने से कोई भी पुरुष ईश्वर से नहीं मिल सकता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਭਗਤੁ ਙਿਆਨੀ ਸੋਇ ॥੧॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा हो जाती है, वही भक्त एवं ज्ञानी है॥ १ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਙੰਙਾ ਙਿਆਨੁ ਨਹੀ ਮੁਖ ਬਾਤਉ ॥
ज्ञान केवल मौखिक बातों से प्राप्त नहीं होता।
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਕਰਿ ਭਾਤਉ ॥
शास्त्रों की बताई हुई अनेकों विधियों की युक्तियों द्वारा भी प्राप्त नहीं होता।
ਙਿਆਨੀ ਸੋਇ ਜਾ ਕੈ ਦ੍ਰਿੜ ਸੋਊ ॥
केवल वही ज्ञानी है, जिसके हृदय में प्रभु स्थापित है।
ਕਹਤ ਸੁਨਤ ਕਛੁ ਜੋਗੁ ਨ ਹੋਊ ॥
कहने एवं सुनने से मनुष्य मूल रूप से ही योग्य नहीं होता।
ਙਿਆਨੀ ਰਹਤ ਆਗਿਆ ਦ੍ਰਿੜੁ ਜਾ ਕੈ ॥
जो मनुष्य प्रभु की आज्ञा मानने में तत्पर रहता है, वही ईश्वर का वास्तविक ज्ञानी है।
ਉਸਨ ਸੀਤ ਸਮਸਰਿ ਸਭ ਤਾ ਕੈ ॥
गर्मी और सर्दी (दुःख-सुख) सभी उसके लिए एक समान हैं।
ਙਿਆਨੀ ਤਤੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥
हे नानक ! ज्ञानी वहीं है, जो गुरु की शरण में प्रभु का भजन करता है
ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੫॥
और जिस पर वह अपनी कृपा करता है॥ ५॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਆਵਨ ਆਏ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਮਹਿ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਪਸੁ ਢੋਰ ॥
मनुष्य इस संसार में आये हैं, आने वाले सृष्टि में आते हैं परन्तु जीवन का सन्मार्ग समझे बिना वे जानवर एवं पशुओं की भाँति ही हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋ ਬੁਝੈ ਜਾ ਕੈ ਭਾਗ ਮਥੋਰ ॥੧॥
हे नानक ! गुरु की शरण में केवल वही प्रभु को समझता है, जिसके मस्तक पर भाग्यरेखाएँ विद्यमान होती हैं।॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਯਾ ਜੁਗ ਮਹਿ ਏਕਹਿ ਕਉ ਆਇਆ ॥
इस जगत् में मनुष्य ने प्रभु का भजन करने के लिए जन्म लिया है
ਜਨਮਤ ਮੋਹਿਓ ਮੋਹਨੀ ਮਾਇਆ ॥
लेकिन जन्म काल से ही मोह लेने वाली माया ने उसको मुग्ध कर लिया है।
ਗਰਭ ਕੁੰਟ ਮਹਿ ਉਰਧ ਤਪ ਕਰਤੇ ॥
माता के गर्भ में विपरीत लटका हुआ प्राणी तपस्या करता था।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰਤ ਪ੍ਰਭੁ ਰਹਤੇ ॥
वहाँ वह अपनी हर सांस से प्रभु की आराधना करता रहता था।
ਉਰਝਿ ਪਰੇ ਜੋ ਛੋਡਿ ਛਡਾਨਾ ॥
वह उस माया से उलझ गया है, जिसे उसने अवश्य छोड़ जाना है।
ਦੇਵਨਹਾਰੁ ਮਨਹਿ ਬਿਸਰਾਨਾ ॥
दाता प्रभु को वह अपने हृदय से विस्मृत कर देता है।
ਧਾਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸਹਿ ਗੁਸਾਈ ॥
हे नानक ! गोसाई जिस व्यक्ति पर कृपा धारण करता है,
ਇਤ ਉਤ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਿਸਰਹੁ ਨਾਹੀ ॥੬॥
वह लोक-परलोक में उसे नहीं भूलते ॥६॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਆਵਤ ਹੁਕਮਿ ਬਿਨਾਸ ਹੁਕਮਿ ਆਗਿਆ ਭਿੰਨ ਨ ਕੋਇ ॥
जीव ईश्वर की आज्ञा से दुनिया में जन्म लेता है, उसके आज्ञा से वह मृत्यु प्राप्त करता है। कोई भी इन्सान ईश्वर के आज्ञा का विरोध नहीं कर सकता।
ਆਵਨ ਜਾਨਾ ਤਿਹ ਮਿਟੈ ਨਾਨਕ ਜਿਹ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥੧॥
हे नानक ! जिस जीव के हृदय में ईश्वर का निवास हो जाता है, उसका जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਏਊ ਜੀਅ ਬਹੁਤੁ ਗ੍ਰਭ ਵਾਸੇ ॥
प्राणी अनेक योनियों में वास करते हैं।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਮੀਠ ਜੋਨਿ ਫਾਸੇ ॥
माया के मोह में मस्त होकर प्राणी योनियों के चक्र में फंस जाते हैं।
ਇਨਿ ਮਾਇਆ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਸਿ ਕੀਨੇ ॥
इस माया के मोह ने प्राणियों को अपने तीन गुणों के वश में किया हुआ है।
ਆਪਨ ਮੋਹ ਘਟੇ ਘਟਿ ਦੀਨੇ ॥
इस माया ने प्रत्येक प्राणी के हृदय में अपना मोह टिका दिया है।
ਏ ਸਾਜਨ ਕਛੁ ਕਹਹੁ ਉਪਾਇਆ ॥
हे मित्र ! मुझे कोई ऐसा उपाय बता,
ਜਾ ਤੇ ਤਰਉ ਬਿਖਮ ਇਹ ਮਾਇਆ ॥
जिससे मैं माया के मोह के विषम सागर से पार हो जाऊँ ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਤਸੰਗਿ ਮਿਲਾਏ ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति पर ईश्वर कृपा दृष्टि करके सत्संग में मिलाते हैं,"
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਮਾਏ ॥੭॥
माया उसके निकट नहीं आती॥ ७ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਕਿਰਤ ਕਮਾਵਨ ਸੁਭ ਅਸੁਭ ਕੀਨੇ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ॥
ईश्वर स्वयं प्राणी में विद्यमान होकर उससे शुभ-अशुभ कर्म कराते हैं।
ਪਸੁ ਆਪਨ ਹਉ ਹਉ ਕਰੈ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਕਹਾ ਕਮਾਤਿ ॥੧॥
हे नानक ! इस बात का मूर्ख मनुष्य अहंकार एवं अभिमान करता है। लेकिन भगवान् के अलावा प्राणी कुछ भी करने में सक्षम नहीं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਏਕਹਿ ਆਪਿ ਕਰਾਵਨਹਾਰਾ ॥
ईश्वर ही प्राणियों से कर्म कराते है।
ਆਪਹਿ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥
वह स्वयं पाप एवं पुण्य का प्रसार कराते हैं।
ਇਆ ਜੁਗ ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਆਪਹਿ ਲਾਇਓ ॥
इस मनुष्य जन्म में प्रभु जिस-जिस ओर स्वयं लगाता है, उधर ही प्राणी लगते हैं।
ਸੋ ਸੋ ਪਾਇਓ ਜੁ ਆਪਿ ਦਿਵਾਇਓ ॥
जो कुछ ईश्वर स्वयं प्रदान करता है, वह वही सब कुछ प्राप्त करते हैं।
ਉਆ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਊ ॥
उस ईश्वर का अन्त कोई भी नहीं जानता।
ਜੋ ਜੋ ਕਰੈ ਸੋਊ ਫੁਨਿ ਹੋਊ ॥
जो कुछ प्रभु (संसार में) करता है, अन्ततः वही होता है।
ਏਕਹਿ ਤੇ ਸਗਲਾ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥
इस जगत् का प्रसार केवल ईश्वर द्वारा ही हुआ है।
ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਸਵਾਰਨਹਾਰਾ ॥੮॥
हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही जीवों का जीवन संवारने वाले हैं ॥८॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਰਾਚਿ ਰਹੇ ਬਨਿਤਾ ਬਿਨੋਦ ਕੁਸਮ ਰੰਗ ਬਿਖ ਸੋਰ ॥
मनुष्य नारियों एवं ऐश्वर्य-विलासों में लीन रहता है। जबकि विषय-विकारों का यह कोलाहल कुसुम-दल की भांति क्षणिक और मृगमरीचिका समान है।
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਸਰਨੀ ਪਰਉ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਮੈ ਮੋਰ ॥੧॥
हे नानक ! मैं तो उस ईश्वर की शरण लेता हूँ, जिसकी कृपा से अहंकार एवं मोह दूर हो जाते हैं।॥१॥