Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 251

Page 251

ਨਾਮ ਬਿਹੂਨੇ ਨਾਨਕਾ ਹੋਤ ਜਾਤ ਸਭੁ ਧੂਰ ॥੧॥ नाम बिहूने नानका होत जात सभु धूर ॥१॥ हे नानक ! नामविहीन सभी जीव धूलि होते जा रहे हैं।॥ १॥
ਪਵੜੀ ॥ पवड़ी ॥ पौड़ी॥
ਧਧਾ ਧੂਰਿ ਪੁਨੀਤ ਤੇਰੇ ਜਨੂਆ ॥ धधा धूरि पुनीत आपके जनूआ ॥ हे प्रभु ! आपके सन्तों-भक्तों की चरण-धूलि पवित्र पावन है।
ਧਨਿ ਤੇਊ ਜਿਹ ਰੁਚ ਇਆ ਮਨੂਆ ॥ धनि तेऊ जिह रुच इआ मनूआ ॥ जिनके हृदय में इस धूलि की इच्छा है, वे भाग्यशाली हैं।
ਧਨੁ ਨਹੀ ਬਾਛਹਿ ਸੁਰਗ ਨ ਆਛਹਿ ॥ धनु नही बाछहि सुरग न आछहि ॥ ऐसे लोग धन को नहीं चाहते और स्वर्ग की भी चाहत नहीं रखते।
ਅਤਿ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਾਧ ਰਜ ਰਾਚਹਿ ॥ अति प्रिअ प्रीति साध रज राचहि ॥ क्योंकि वह प्रिय प्रभु के प्रेम एवं संतों की चरण-धूलि में मग्न रहते हैं।
ਧੰਧੇ ਕਹਾ ਬਿਆਪਹਿ ਤਾਹੂ ॥ धंधे कहा बिआपहि ताहू ॥ सांसारिक माया का बन्धन उन पर प्रभाव नहीं डाल सकता,
ਜੋ ਏਕ ਛਾਡਿ ਅਨ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਹੂ ॥ जो एक छाडि अन कतहि न जाहू ॥ जो लोग ईश्वर का सहारा त्याग कर कहीं ओर नहीं जाते।
ਜਾ ਕੈ ਹੀਐ ਦੀਓ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮ ॥ जा कै हीऐ दीओ प्रभ नाम ॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति के हृदय में प्रभु ने अपना नाम स्थापित कर दिया है,
ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨ ॥੪॥ नानक साध पूरन भगवान ॥४॥ वही व्यक्ति भगवान् के पूर्ण संत हैं॥ ४॥
ਸਲੋਕ ॥ सलोक ॥ श्लोक॥
ਅਨਿਕ ਭੇਖ ਅਰੁ ਙਿਆਨ ਧਿਆਨ ਮਨਹਠਿ ਮਿਲਿਅਉ ਨ ਕੋਇ ॥ अनिक भेख अरु ङिआन धिआन मनहठि मिलिअउ न कोइ ॥ अनेक धार्मिक वेश धारण करने एवं ज्ञान, ध्यान एवं मन के हठ से भगवान् में सुरति लगाने से कोई भी पुरुष ईश्वर से नहीं मिल सकता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਭਗਤੁ ਙਿਆਨੀ ਸੋਇ ॥੧॥ कहु नानक किरपा भई भगतु ङिआनी सोइ ॥१॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा हो जाती है, वही भक्त एवं ज्ञानी है॥ १ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਙੰਙਾ ਙਿਆਨੁ ਨਹੀ ਮੁਖ ਬਾਤਉ ॥ ङंङा ङिआनु नही मुख बातउ ॥ ज्ञान केवल मौखिक बातों से प्राप्त नहीं होता।
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਕਰਿ ਭਾਤਉ ॥ अनिक जुगति सासत्र करि भातउ ॥ शास्त्रों की बताई हुई अनेकों विधियों की युक्तियों द्वारा भी प्राप्त नहीं होता।
ਙਿਆਨੀ ਸੋਇ ਜਾ ਕੈ ਦ੍ਰਿੜ ਸੋਊ ॥ ङिआनी सोइ जा कै द्रिड़ सोऊ ॥ केवल वही ज्ञानी है, जिसके हृदय में प्रभु स्थापित है।
ਕਹਤ ਸੁਨਤ ਕਛੁ ਜੋਗੁ ਨ ਹੋਊ ॥ कहत सुनत कछु जोगु न होऊ ॥ कहने एवं सुनने से मनुष्य मूल रूप से ही योग्य नहीं होता।
ਙਿਆਨੀ ਰਹਤ ਆਗਿਆ ਦ੍ਰਿੜੁ ਜਾ ਕੈ ॥ ङिआनी रहत आगिआ द्रिड़ु जा कै ॥ जो मनुष्य प्रभु की आज्ञा मानने में तत्पर रहता है, वही ईश्वर का वास्तविक ज्ञानी है।
ਉਸਨ ਸੀਤ ਸਮਸਰਿ ਸਭ ਤਾ ਕੈ ॥ उसन सीत समसरि सभ ता कै ॥ गर्मी और सर्दी (दुःख-सुख) सभी उसके लिए एक समान हैं।
ਙਿਆਨੀ ਤਤੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥ ङिआनी ततु गुरमुखि बीचारी ॥ हे नानक ! ज्ञानी वहीं है, जो गुरु की शरण में प्रभु का भजन करता है
ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੫॥ नानक जा कउ किरपा धारी ॥५॥ और जिस पर वह अपनी कृपा करता है॥ ५॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਆਵਨ ਆਏ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਮਹਿ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਪਸੁ ਢੋਰ ॥ आवन आए स्रिसटि महि बिनु बूझे पसु ढोर ॥ मनुष्य इस संसार में आये हैं, आने वाले सृष्टि में आते हैं परन्तु जीवन का सन्मार्ग समझे बिना वे जानवर एवं पशुओं की भाँति ही हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋ ਬੁਝੈ ਜਾ ਕੈ ਭਾਗ ਮਥੋਰ ॥੧॥ नानक गुरमुखि सो बुझै जा कै भाग मथोर ॥१॥ हे नानक ! गुरु की शरण में केवल वही प्रभु को समझता है, जिसके मस्तक पर भाग्यरेखाएँ विद्यमान होती हैं।॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਯਾ ਜੁਗ ਮਹਿ ਏਕਹਿ ਕਉ ਆਇਆ ॥ या जुग महि एकहि कउ आइआ ॥ इस जगत् में मनुष्य ने प्रभु का भजन करने के लिए जन्म लिया है
ਜਨਮਤ ਮੋਹਿਓ ਮੋਹਨੀ ਮਾਇਆ ॥ जनमत मोहिओ मोहनी माइआ ॥ लेकिन जन्म काल से ही मोह लेने वाली माया ने उसको मुग्ध कर लिया है।
ਗਰਭ ਕੁੰਟ ਮਹਿ ਉਰਧ ਤਪ ਕਰਤੇ ॥ गरभ कुंट महि उरध तप करते ॥ माता के गर्भ में विपरीत लटका हुआ प्राणी तपस्या करता था।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰਤ ਪ੍ਰਭੁ ਰਹਤੇ ॥ सासि सासि सिमरत प्रभु रहते ॥ वहाँ वह अपनी हर सांस से प्रभु की आराधना करता रहता था।
ਉਰਝਿ ਪਰੇ ਜੋ ਛੋਡਿ ਛਡਾਨਾ ॥ उरझि परे जो छोडि छडाना ॥ वह उस माया से उलझ गया है, जिसे उसने अवश्य छोड़ जाना है।
ਦੇਵਨਹਾਰੁ ਮਨਹਿ ਬਿਸਰਾਨਾ ॥ देवनहारु मनहि बिसराना ॥ दाता प्रभु को वह अपने हृदय से विस्मृत कर देता है।
ਧਾਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸਹਿ ਗੁਸਾਈ ॥ धारहु किरपा जिसहि गुसाई ॥ हे नानक ! गोसाई जिस व्यक्ति पर कृपा धारण करता है,
ਇਤ ਉਤ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਿਸਰਹੁ ਨਾਹੀ ॥੬॥ इत उत नानक तिसु बिसरहु नाही ॥६॥ वह लोक-परलोक में उसे नहीं भूलते ॥६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਆਵਤ ਹੁਕਮਿ ਬਿਨਾਸ ਹੁਕਮਿ ਆਗਿਆ ਭਿੰਨ ਨ ਕੋਇ ॥ आवत हुकमि बिनास हुकमि आगिआ भिंन न कोइ ॥ जीव ईश्वर की आज्ञा से दुनिया में जन्म लेता है, उसके आज्ञा से वह मृत्यु प्राप्त करता है। कोई भी इन्सान ईश्वर के आज्ञा का विरोध नहीं कर सकता।
ਆਵਨ ਜਾਨਾ ਤਿਹ ਮਿਟੈ ਨਾਨਕ ਜਿਹ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥੧॥ आवन जाना तिह मिटै नानक जिह मनि सोइ ॥१॥ हे नानक ! जिस जीव के हृदय में ईश्वर का निवास हो जाता है, उसका जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਏਊ ਜੀਅ ਬਹੁਤੁ ਗ੍ਰਭ ਵਾਸੇ ॥ एऊ जीअ बहुतु ग्रभ वासे ॥ प्राणी अनेक योनियों में वास करते हैं।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਮੀਠ ਜੋਨਿ ਫਾਸੇ ॥ मोह मगन मीठ जोनि फासे ॥ माया के मोह में मस्त होकर प्राणी योनियों के चक्र में फंस जाते हैं।
ਇਨਿ ਮਾਇਆ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਸਿ ਕੀਨੇ ॥ इनि माइआ त्रै गुण बसि कीने ॥ इस माया के मोह ने प्राणियों को अपने तीन गुणों के वश में किया हुआ है।
ਆਪਨ ਮੋਹ ਘਟੇ ਘਟਿ ਦੀਨੇ ॥ आपन मोह घटे घटि दीने ॥ इस माया ने प्रत्येक प्राणी के हृदय में अपना मोह टिका दिया है।
ਏ ਸਾਜਨ ਕਛੁ ਕਹਹੁ ਉਪਾਇਆ ॥ ए साजन कछु कहहु उपाइआ ॥ हे मित्र ! मुझे कोई ऐसा उपाय बता,
ਜਾ ਤੇ ਤਰਉ ਬਿਖਮ ਇਹ ਮਾਇਆ ॥ जा ते तरउ बिखम इह माइआ ॥ जिससे मैं माया के मोह के विषम सागर से पार हो जाऊँ ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਤਸੰਗਿ ਮਿਲਾਏ ॥ करि किरपा सतसंगि मिलाए ॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति पर ईश्वर कृपा दृष्टि करके सत्संग में मिलाते हैं,"
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਮਾਏ ॥੭॥ नानक ता कै निकटि न माए ॥७॥ माया उसके निकट नहीं आती॥ ७ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਕਿਰਤ ਕਮਾਵਨ ਸੁਭ ਅਸੁਭ ਕੀਨੇ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ॥ किरत कमावन सुभ असुभ कीने तिनि प्रभि आपि ॥ ईश्वर स्वयं प्राणी में विद्यमान होकर उससे शुभ-अशुभ कर्म कराते हैं।
ਪਸੁ ਆਪਨ ਹਉ ਹਉ ਕਰੈ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਕਹਾ ਕਮਾਤਿ ॥੧॥ पसु आपन हउ हउ करै नानक बिनु हरि कहा कमाति ॥१॥ हे नानक ! इस बात का मूर्ख मनुष्य अहंकार एवं अभिमान करता है। लेकिन भगवान् के अलावा प्राणी कुछ भी करने में सक्षम नहीं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਏਕਹਿ ਆਪਿ ਕਰਾਵਨਹਾਰਾ ॥ एकहि आपि करावनहारा ॥ ईश्वर ही प्राणियों से कर्म कराते है।
ਆਪਹਿ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥ आपहि पाप पुंन बिसथारा ॥ वह स्वयं पाप एवं पुण्य का प्रसार कराते हैं।
ਇਆ ਜੁਗ ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਆਪਹਿ ਲਾਇਓ ॥ इआ जुग जितु जितु आपहि लाइओ ॥ इस मनुष्य जन्म में प्रभु जिस-जिस ओर स्वयं लगाता है, उधर ही प्राणी लगते हैं।
ਸੋ ਸੋ ਪਾਇਓ ਜੁ ਆਪਿ ਦਿਵਾਇਓ ॥ सो सो पाइओ जु आपि दिवाइओ ॥ जो कुछ ईश्वर स्वयं प्रदान करता है, वह वही सब कुछ प्राप्त करते हैं।
ਉਆ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਊ ॥ उआ का अंतु न जानै कोऊ ॥ उस ईश्वर का अन्त कोई भी नहीं जानता।
ਜੋ ਜੋ ਕਰੈ ਸੋਊ ਫੁਨਿ ਹੋਊ ॥ जो जो करै सोऊ फुनि होऊ ॥ जो कुछ प्रभु (संसार में) करता है, अन्ततः वही होता है।
ਏਕਹਿ ਤੇ ਸਗਲਾ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥ एकहि ते सगला बिसथारा ॥ इस जगत् का प्रसार केवल ईश्वर द्वारा ही हुआ है।
ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਸਵਾਰਨਹਾਰਾ ॥੮॥ नानक आपि सवारनहारा ॥८॥ हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही जीवों का जीवन संवारने वाले हैं ॥८॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਰਾਚਿ ਰਹੇ ਬਨਿਤਾ ਬਿਨੋਦ ਕੁਸਮ ਰੰਗ ਬਿਖ ਸੋਰ ॥ राचि रहे बनिता बिनोद कुसम रंग बिख सोर ॥ मनुष्य नारियों एवं ऐश्वर्य-विलासों में लीन रहता है। जबकि विषय-विकारों का यह कोलाहल कुसुम-दल की भांति क्षणिक और मृगमरीचिका समान है।
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਸਰਨੀ ਪਰਉ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਮੈ ਮੋਰ ॥੧॥ नानक तिह सरनी परउ बिनसि जाइ मै मोर ॥१॥ हे नानक ! मैं तो उस ईश्वर की शरण लेता हूँ, जिसकी कृपा से अहंकार एवं मोह दूर हो जाते हैं।॥१॥


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