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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਗਉੜੀ ਬਾਵਨ ਅਖਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी बावन अखरी महला ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਗੁਰਦੇਵ ਮਾਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਪਿਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਸੁਆਮੀ ਪਰਮੇਸੁਰਾ ॥
गुरु ही माता है, गुरु ही पिता है और गुरु ही जगत् का स्वामी परमेश्वर है।
ਗੁਰਦੇਵ ਸਖਾ ਅਗਿਆਨ ਭੰਜਨੁ ਗੁਰਦੇਵ ਬੰਧਿਪ ਸਹੋਦਰਾ ॥
गुरु अज्ञानता का अन्धकार नाश करने वाला साथी है और गुरु ही संबंधी एवं भाई है।
ਗੁਰਦੇਵ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਪਦੇਸੈ ਗੁਰਦੇਵ ਮੰਤੁ ਨਿਰੋਧਰਾ ॥
गुरु परमात्मा के नाम का दाता और उपदेशक है और गुरु ही अचूक मन्त्र है।
ਗੁਰਦੇਵ ਸਾਂਤਿ ਸਤਿ ਬੁਧਿ ਮੂਰਤਿ ਗੁਰਦੇਵ ਪਾਰਸ ਪਰਸ ਪਰਾ ॥
गुरु सुख-शांति, सत्य एवं बुद्धि की मूरत है। गुरु ऐसा पारस है, जिसको स्पर्श करने से प्राणी का उद्धार हो जाता है।
ਗੁਰਦੇਵ ਤੀਰਥੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਮਜਨੁ ਅਪਰੰਪਰਾ ॥
गुरु ही तीर्थ एवं अमृत का सरोवर है। गुरु के ज्ञान में स्नान करने से मनुष्य अनन्त प्रभु को मिल जाता है।
ਗੁਰਦੇਵ ਕਰਤਾ ਸਭਿ ਪਾਪ ਹਰਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ ਕਰਾ ॥
गुरु ही कर्तार एवं समस्त पापों को नाश करने वाला हैं। गुरु ही पतित को पवित्र पावन करने वाला है।
ਗੁਰਦੇਵ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਗੁਰਦੇਵ ਮੰਤੁ ਹਰਿ ਜਪਿ ਉਧਰਾ ॥
गुरु आदि, युगों के आरम्भ से एवं युग-युग में विद्यमान हैं। गुरु हरि के नाम का मंत्र है, जिसका भजन करने से प्राणी का भवसागर से उद्धार हो जाता है।
ਗੁਰਦੇਵ ਸੰਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਿ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਮ ਮੂੜ ਪਾਪੀ ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰਾ ॥
हे मेरे प्रभु ! कृपा करके मुझ मूर्ख एवं पापी को गुरुदेव की संगति में मिला दो, जिससे मिलकर मैं जीवन के विषम सागर से पार हो जाऊँ।
ਗੁਰਦੇਵ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਗੁਰਦੇਵ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਮਸਕਰਾ ॥੧॥
हे नानक ! गुरु ही सतिगुरु एवं पारब्रह्म परमेश्वर है और उस गुरुदेव हरि को नमस्कार है॥ १॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਆਪਹਿ ਕੀਆ ਕਰਾਇਆ ਆਪਹਿ ਕਰਨੈ ਜੋਗੁ ॥
परमात्मा ने स्वयं ही सृष्टि-रचना की है और वह स्वयं ही इसे करने में समर्थ है।
ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਦੂਸਰ ਹੋਆ ਨ ਹੋਗੁ ॥੧॥
हे नानक ! एक परमेश्वर ही सारी सृष्टि में मौजूद है और उसके सिवाय न कोई है और न ही कोई होगा।॥१॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
ਓਅੰ ਸਾਧ ਸਤਿਗੁਰ ਨਮਸਕਾਰੰ ॥
मैं उस एक ईश्वर संत स्वरूप सतिगुरु को प्रणाम करता हूँ।
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਨਿਰੰਕਾਰੰ ॥
निरंकार प्रभु संसार के प्रारंभ में भी स्वयं ही था, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी स्वयं ही मौजूद रहेगा।
ਆਪਹਿ ਸੁੰਨ ਆਪਹਿ ਸੁਖ ਆਸਨ ॥
प्रभु स्वयं ही शून्य अवस्था में होता है और स्वयं ही सुख आसन (शांत समाधि) में होता है।
ਆਪਹਿ ਸੁਨਤ ਆਪ ਹੀ ਜਾਸਨ ॥
वह स्वयं ही अपना यश सुनता है।
ਆਪਨ ਆਪੁ ਆਪਹਿ ਉਪਾਇਓ ॥
अपना प्रत्यक्ष रूप उसने स्वयं ही उत्पन्न किया है।
ਆਪਹਿ ਬਾਪ ਆਪ ਹੀ ਮਾਇਓ ॥
वह स्वयं ही अपना पिता है और स्वयं ही अपनी माता है।
ਆਪਹਿ ਸੂਖਮ ਆਪਹਿ ਅਸਥੂਲਾ ॥
वह स्वयं ही प्रत्यक्ष है और स्वयं ही अप्रत्यक्ष है।
ਲਖੀ ਨ ਜਾਈ ਨਾਨਕ ਲੀਲਾ ॥੧॥
हे नानक ! उस ईश्वर की लीला कथन नहीं की जा सकती।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
हे दीनदयालु प्रभु ! मुझ पर कृपा करो
ਤੇਰੇ ਸੰਤਨ ਕੀ ਮਨੁ ਹੋਇ ਰਵਾਲਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
चूंकि मेरा मन तेरे संतों की चरण-धूलि बन जाए॥ रहाउ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक।
ਨਿਰੰਕਾਰ ਆਕਾਰ ਆਪਿ ਨਿਰਗੁਨ ਸਰਗੁਨ ਏਕ ॥
निरंकार परमेश्वर स्वयं ही (सृष्टि) आकार की रचना करता है। वह स्वयं ही निर्गुण और सगुण है।
ਏਕਹਿ ਏਕ ਬਖਾਨਨੋ ਨਾਨਕ ਏਕ ਅਨੇਕ ॥੧॥
हे नानक ! यही बखान किया जा सकता है कि निरंकार ईश्वर अकेला स्वयं ही है चूंकि एक ईश्वर अनेक रूप बना लेता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਓਅੰ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੀਓ ਅਕਾਰਾ ॥
एक ईश्वर ने गुरमुख बनने के लिए संसार की रचना की है।
ਏਕਹਿ ਸੂਤਿ ਪਰੋਵਨਹਾਰਾ ॥
इस रचना में समस्त जीव-जन्तुओं को अपने एक ही सूत्र में पिरोया हुआ है।
ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਿਸਥਾਰੰ ॥
माया के तीन लक्षणों का उसने भिन्न-भिन्न प्रसार कर दिया है।
ਨਿਰਗੁਨ ਤੇ ਸਰਗੁਨ ਦ੍ਰਿਸਟਾਰੰ ॥
निर्गुण से वह सगुण दृष्टिमान होता है।
ਸਗਲ ਭਾਤਿ ਕਰਿ ਕਰਹਿ ਉਪਾਇਓ ॥
कर्तार ने अनेक प्रकार की संसार की रचना की है।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਮਨ ਮੋਹੁ ਬਢਾਇਓ ॥
जन्म-मरण का मूल सांसारिक मोह ईश्वर ने प्राणी के मन में खुद ही बढ़ाया हुआ है।
ਦੁਹੂ ਭਾਤਿ ਤੇ ਆਪਿ ਨਿਰਾਰਾ ॥
लेकिन दोनों (जन्म-मरण) प्रकार से वह स्वयं अलग है।
ਨਾਨਕ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥੨॥
हे नानक ! ईश्वर के आर-पार का अन्त नहीं मिल सकता॥ २॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਸੇਈ ਸਾਹ ਭਗਵੰਤ ਸੇ ਸਚੁ ਸੰਪੈ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ॥
वहीं व्यक्ति शाह एवं भाग्यवान है जिनके पास सत्य की संपत्ति एवं प्रभु के नाम की पूंजी है।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸੁਚਿ ਪਾਈਐ ਤਿਹ ਸੰਤਨ ਕੈ ਪਾਸਿ ॥੧॥
हे नानक ! उन संतजनों के पास से ही सत्य (नाम) एवं पवित्रता की प्राप्त होती है।॥ १॥
ਪਵੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਸਸਾ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸੋਊ ॥
स-वह परमात्मा सदैव सत्य, सत्यस्वरूप एवं सत्य का पुंज है।
ਸਤਿ ਪੁਰਖ ਤੇ ਭਿੰਨ ਨ ਕੋਊ ॥
कोई भी सत्यस्वरूप प्रभु से अलग नहीं।
ਸੋਊ ਸਰਨਿ ਪਰੈ ਜਿਹ ਪਾਯੰ ॥
जिस प्राणी को ईश्वर अपनी शरण में लेता है, केवल वही प्राणी उसकी शरण में आता है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ਸੁਨਾਯੰ ॥
ऐसा प्राणी प्रभु की महिमा-स्तुति ही करता रहता है और दूसरों को भी उसकी महिमा सुनाता रहता है।
ਸੰਸੈ ਭਰਮੁ ਨਹੀ ਕਛੁ ਬਿਆਪਤ ॥
ऐसे प्राणी को दुविधा एवं भ्रम कदाचित प्रभाव नहीं डालते।
ਪ੍ਰਗਟ ਪ੍ਰਤਾਪੁ ਤਾਹੂ ਕੋ ਜਾਪਤ ॥
उस प्राणी को प्रभु का प्रताप प्रत्यक्ष ही दिखाई देता है।
ਸੋ ਸਾਧੂ ਇਹ ਪਹੁਚਨਹਾਰਾ ॥
केवल वही संत है, जो इस आत्मिक अवस्था को प्राप्त करता है,
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥੩॥
हे नानक ! मैं उस पर सदैव कुर्बान जाता हूँ ॥३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਧਨੁ ਧਨੁ ਕਹਾ ਪੁਕਾਰਤੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਸਭ ਕੂਰ ॥
(हे जीव !) तू हर वक्त धन की लालसा के लिए क्यों चिल्लाता रहता है। क्योंकि माया का मोह बिल्कुल मिथ्या है।