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ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਹਿ ਉਪਾਵਣਹਾਰਾ ॥
वे सृजनहार प्रभु के नाम को स्मरण नहीं करते।
ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਫਿਰਿ ਵਾਰੋ ਵਾਰਾ ॥੨॥
इसलिए वह बार-बार जीवन मृत्यु के चक्र में फँसकर जन्म लेते और मरते हैं।॥ २॥
ਅੰਧੇ ਗੁਰੂ ਤੇ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥
आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी गुरु अपने अनुयायी के भटकते मन को शांत नहीं कर सकता।
ਮੂਲੁ ਛੋਡਿ ਲਾਗੇ ਦੂਜੈ ਭਾਈ ॥
संसार के मूल सृष्टिकर्ता को त्याग कर प्राणी द्वैतवाद से जुड़े हुए हैं।
ਬਿਖੁ ਕਾ ਮਾਤਾ ਬਿਖੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਈ ॥੩॥
माया के विष में मग्न हुआ जीव माया के विष में ही समा जाता है॥ ३॥
ਮਾਇਆ ਕਰਿ ਮੂਲੁ ਜੰਤ੍ਰ ਭਰਮਾਏ ॥
माया को मूल सहारा जानकर प्राणी भटकते फिरते हैं।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਵਿਸਰਿਆ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥
माया के मोह में उन्होंने पूज्य परमेश्वर को विस्मृत कर दिया है।
ਜਿਸੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਏ ॥੪॥
ईश्वर जिस प्राणी पर कृपा-दृष्टि करता है, वह परमगति प्राप्त कर लेता है॥ ४ ॥
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਬਾਹਰਿ ਸਾਚੁ ਵਰਤਾਏ ॥
जिसके हृदय में सत्य विद्यमान है, वह बाहर भी सत्य ही बांटता है।
ਸਾਚੁ ਨ ਛਪੈ ਜੇ ਕੋ ਰਖੈ ਛਪਾਏ ॥
सत्य का आनन्द छिपा नहीं रहता चाहे मनुष्य इसको कितना ही छिपा कर ही रखे।
ਗਿਆਨੀ ਬੂਝਹਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥੫॥
ज्ञानी सहज ही सत्य का ज्ञान प्राप्त कर लेता है॥ ५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਿ ਰਹਿਆ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
गुरुमुख सत्य में वृति लगाकर रखता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
ऐसा व्यक्ति अहंकार एवं माया का मोह ईश्वर के नाम से जला देता है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥੬॥
मेरा सत्यस्वरूप परमेश्वर गुरुमुख जीव को अपने साथ जोड़ता है।॥ ६॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥
नाम की देन देने वाला सतगुरु अपना शब्द ही सुनाता है।
ਧਾਵਤੁ ਰਾਖੈ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥
वह माया के पीछे भागते मन पर विराम लगाकर उसे नियंत्रित करता है।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥੭॥
पूर्ण गुरु से प्राणी ज्ञान प्राप्त करता है ॥७॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਿਰਜਿ ਜਿਨਿ ਗੋਈ ॥
सृजनहार प्रभु स्वयं सृष्टि की रचना करता है और स्वयं ही इसका विनाश भी करता है।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
उस प्रभु के बिना दूसरा कोई नहीं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੮॥੬॥
हे नानक ! कोई गुरमुख ही इस तथ्य को समझता है ॥८॥ ६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ॥
परमेश्वर का अमूल्य नाम गुरमुख ही प्राप्त करता है।
ਨਾਮੋ ਸੇਵੇ ਨਾਮਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ॥
वह नाम की सेवा करता रहता है और नाम में सहज ही समा जाता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ਨਿਤ ਗਾਵੈ ॥
वह नित्य ही अपनी जिह्वा से अमृतमयी नाम का जाप करता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੋ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਵੈ ॥੧॥
जिस पर भगवान् अपनी कृपा करते हैं, वही व्यक्ति हरि रस प्राप्त करता है॥१॥
ਅਨਦਿਨੁ ਹਿਰਦੈ ਜਪਉ ਜਗਦੀਸਾ ॥
हे जिज्ञासु ! अपने मन में रात-दिन सृष्टि के स्वामी जगदीश का जाप करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਉ ਪਰਮ ਪਦੁ ਸੂਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से मैंने परम पद प्राप्त किया है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਿਰਦੈ ਸੂਖੁ ਭਇਆ ਪਰਗਾਸੁ ॥
उस गुरमुख के मन में प्रसन्नता प्रकट हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵਹਿ ਸਚੁ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥
जो व्यक्ति गुणों के भण्डार सत्यस्वरूप परमेश्वर का भजन करते है,
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਨਿਤ ਹੋਵਹਿ ਦਾਸੁ ॥
वह सदा अपने ईश्वर के सेवकों के सेवकों का सेवक बना रहता है।
ਗ੍ਰਿਹ ਕੁਟੰਬ ਮਹਿ ਸਦਾ ਉਦਾਸੁ ॥੨॥
वह अपने गृह एवं परिवार में रहते हुए भी हमेशा निर्लिप्त रहते हैं॥ २॥
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋ ਹੋਈ ॥
कोई विरला गुरमुख ही जीवन में मोह-माया के बन्धनों से मुक्त होता है।
ਪਰਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਵੈ ਸੋਈ ॥
केवल ऐसे विरक्त व्यक्ति को ही भगवान् के नाम का परम धन प्राप्त होता है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੇਟੇ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਈ ॥
वह माया के त्रिगुणों को मिटा कर पवित्र हो जाता है।
ਸਹਜੇ ਸਾਚਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥੩॥
वह सहज ही उस सत्यस्वरूप परमेश्वर में लीन हो जाता है॥ ३ ॥
ਮੋਹ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
उसका अपने परिवार से मोह एवं प्रेम नहीं रहता।
ਜਾ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥
जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य का निवास हो जाता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਅਸਥਿਰੁ ਹੋਇ ॥
उस गुरमुख जीव का मन भगवान् की भक्ति में लग जाता है और वह स्थिर रहता है।
ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਬੂਝੈ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੪॥
जो प्रभु की आज्ञा को पहचानता है, वह सत्य को समझ लेता है॥ ४॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
हे प्रभु ! आप स्रष्टा हैं, मैं किसी दूसरे को नहीं जानता।
ਤੁਝੁ ਸੇਵੀ ਤੁਝ ਤੇ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥
हे नाथ ! मैं आपकी ही सेवा करता हूँ और आपके द्वारा ही मैं शोभा पाता हूँ।
ਕਿਰਪਾ ਕਰਹਿ ਗਾਵਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
यदि वह प्रभु दया करे तो मैं उसका यश गायन करता हूँ।
ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਸਭ ਜਗ ਮਹਿ ਲੋਇ ॥੫॥
समूचे जगत् में (प्रभु के) नाम रत्न का ही प्रकाश है॥ ५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਾਣੀ ਮੀਠੀ ਲਾਗੀ ॥
गुरुमुख को वाणी बहुत मीठी लगती है।
ਅੰਤਰੁ ਬਿਗਸੈ ਅਨਦਿਨੁ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
उसका हृदय प्रफुल्लित हो जाता है और रात-दिन उसकी वृति इस पर केन्द्रित हुई रहती है।
ਸਹਜੇ ਸਚੁ ਮਿਲਿਆ ਪਰਸਾਦੀ ॥
गुरु की कृपा से सत्य नाम सहज ही मिल जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਪੂਰੈ ਵਡਭਾਗੀ ॥੬॥
पूर्ण सौभाग्य से प्राणी को सतगुरु मिलता है ॥६॥
ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਦੁਰਮਤਿ ਦੁਖ ਨਾਸੁ ॥
अहंकार, मोह, दुर्बुद्धि एवं दुःख नाश हो जाते हैं,
ਜਬ ਹਿਰਦੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥
जब गुणों के सागर प्रभु का नाम हृदय में बसता है
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਧਿ ਪ੍ਰਗਟੀ ਪ੍ਰਭ ਜਾਸੁ ॥
जब प्रभु के चरण हृदय में बस जाते है,
ਜਬ ਹਿਰਦੈ ਰਵਿਆ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸੁ ॥੭॥
ईश्वर का भजन एवं उसका यश गायन करने से गुरमुख की बुद्धि जागृत हो जाती है।॥७॥
ਜਿਸੁ ਨਾਮੁ ਦੇਇ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥
जिसे प्रभु नाम प्रदान करते हैं, केवल वही पुरुष ही इसको पाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲੇ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥
जो गुरु के माध्यम से अपने अहंकार को त्याग देता है, उनको प्रभु अपने साथ मिला लेते हैं।
ਹਿਰਦੈ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥
अपने हृदय में वह सत्य नाम को बसा लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਏ ॥੮॥੭॥
हे नानक ! वे सहज ही सत्य में समा जाते हैं ॥८॥७॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਮਨ ਹੀ ਮਨੁ ਸਵਾਰਿਆ ਭੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
जिस व्यक्ति ने ईश्वर के भय में सहज स्वभाव ही मन को संवार लिया है,