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ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥
गुरमुख के मन से अहंकार निकल जाता है ।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥
गुरमुख के मन को विकारों की मैल नहीं लगती।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੨॥
गुरमुख के मन में भगवान का नाम आकर बस जाता है॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਚਿ ਹੋਈ ॥
गुरमुख का प्रत्येक कर्म-धर्म सत्य ही होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਹੰਕਾਰੁ ਜਲਾਏ ਦੋਈ ॥
गुरमुख अहंकार एवं द्वेष को जला देता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੩॥
गुरमुख भगवान के नाम में मग्न रहकर ही सुखी होता है॥ ३॥
ਆਪਣਾ ਮਨੁ ਪਰਬੋਧਹੁ ਬੂਝਹੁ ਸੋਈ ॥
अपने मन को जागृत कर और परमेश्वर का बोध कर।
ਲੋਕ ਸਮਝਾਵਹੁ ਸੁਣੇ ਨ ਕੋਈ ॥
अन्यथा जितना भी चाहे तू लोगों को उपदेश देता रह, कोई भी तेरी बात नहीं सुनेगा।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਮਝਹੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੪॥
गुरु के माध्यम से जीवन-मार्ग को समझो जिससे तुझे सदैव सुख प्राप्त होगा ॥ ४॥
ਮਨਮੁਖਿ ਡੰਫੁ ਬਹੁਤੁ ਚਤੁਰਾਈ ॥
स्वेच्छाचारी जीव बड़ा पाखंडी और चतुर होता है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਥਾਇ ਨ ਪਾਈ ॥
जो कुछ भी कर्म वह करता है, वह (प्रभु के दरबार में) स्वीकार नहीं होता।
ਆਵੈ ਜਾਵੈ ਠਉਰ ਨ ਕਾਈ ॥੫॥
वह जीवन-मृत्यु के बन्धन में पड़कर संसार में जन्मता-मरता रहता है और उसे सुख का कोई भी स्थान नहीं मिलता ॥ ५॥
ਮਨਮੁਖ ਕਰਮ ਕਰੇ ਬਹੁਤੁ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥
स्वेच्छाचारी अपना प्रत्येक कर्म बड़े अहंकार में करता है।
ਬਗ ਜਿਉ ਲਾਇ ਬਹੈ ਨਿਤ ਧਿਆਨਾ ॥
बगले की भाँति वह सदैव ही ध्यान लगाकर बैठता है।
ਜਮਿ ਪਕੜਿਆ ਤਬ ਹੀ ਪਛੁਤਾਨਾ ॥੬॥
जब यमदूत उसे पकड़ता है तो वह बड़ा पश्चाताप करता है॥ ६॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥
इसलिए (संसार में) सतिगुरु की सेवा बिना मुक्ति नहीं मिलती।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥
गुरु की दया से वह प्रभु को मिल जाता है।
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਹੋਈ ॥੭॥
चारों ही युगों (सतियुग, त्रैता, द्वापर, कलियुग) में गुरु नाम देने वाले दाता हैं।॥ ७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਿ ਪਤਿ ਨਾਮੇ ਵਡਿਆਈ ॥
ईश्वर का नाम गुरमुख की जाति, सम्मान एवं शोभा है।
ਸਾਇਰ ਕੀ ਪੁਤ੍ਰੀ ਬਿਦਾਰਿ ਗਵਾਈ ॥
समुद्र की कन्या माया को उन्होंने पीट-पीट कर मार दिया है।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਝੂਠੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥੮॥੨॥
हे नानक ! नाम के बिना समस्त चतुराई झूठी है॥ ८ ॥ २॥
ਗਉੜੀ ਮਃ ੩ ॥
गउड़ी मः ३ ॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਕਾ ਧਰਮੁ ਪੜਹੁ ਤੁਮ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! आप लोग इस युग के धर्म (परमेश्वर नाम) का चिन्तन करो।
ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥
क्योंकि पूर्ण गुरु ने मुझे सारी सूझ बता दी है।
ਐਥੈ ਅਗੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ॥੧॥
इस लोक एवं परलोक में ईश्वर का नाम ही प्राणी का सहारा है॥ १॥
ਰਾਮ ਪੜਹੁ ਮਨਿ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
(हे भाई !) राम के नाम का भजन करो और अपने हृदय में उसके गुणों का विचार करो।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮੈਲੁ ਉਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की कृपा से अपनी विकारों की मैल को साफ कर लो ॥१॥ रहाउ॥
ਵਾਦਿ ਵਿਰੋਧਿ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
वाद-विवाद एवं विरोध से प्रभु प्राप्त नहीं होता।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਫੀਕਾ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
मोह-माया की लगन से मन-तन फीके हो जाते हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੨॥
इसलिए गुरु के शब्द द्वारा सत्य परमेश्वर में वृत्ति लगा ॥ २॥
ਹਉਮੈ ਮੈਲਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥
अहंकार के कारण सारा जगत् मैला हो गया है।
ਨਿਤ ਤੀਰਥਿ ਨਾਵੈ ਨ ਜਾਇ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
प्रतिदिन तीर्थों का स्नान करने से अहंकार दूर नहीं होता।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਜਮੁ ਕਰੇ ਖੁਆਰਾ ॥੩॥
गुरु के मिलन बिना काल (मृत्यु) मनुष्य को बड़ा तंग करता है॥ ३॥
ਸੋ ਜਨੁ ਸਾਚਾ ਜਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੈ ॥
वही मनुष्य सत्यवादी है जो अपने अहंकार को मिटा देता है
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪੰਚ ਸੰਘਾਰੈ ॥
और गुरु के शब्द द्वारा पाँच विकारों का संहार कर देता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਤਾਰੈ ॥੪॥
ऐसा मनुष्य स्वयं भी बच जाता है और अपने समूचे वंश का भी उद्धार कर लेता है॥ ४॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਨਟਿ ਬਾਜੀ ਪਾਈ ॥
कलाकार (प्रभु) ने माया का मोह प्राणियों हेतु एक खेल रचा है।
ਮਨਮੁਖ ਅੰਧ ਰਹੇ ਲਪਟਾਈ ॥
ज्ञानहीन स्वेच्छाचारी जीव मोह-माया से लिपटे रहते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਲਿਪਤ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੫॥
लेकिन गुरमुख इससे निर्लिप्त रहकर ईश्वर से वृति लगाते हैं॥ ५॥
ਬਹੁਤੇ ਭੇਖ ਕਰੈ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥
कपटी इन्सान अनेकों वेष धारण करता है।
ਅੰਤਰਿ ਤਿਸਨਾ ਫਿਰੈ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥
उसके भीतर तृष्णा विद्यमान है और वह अभिमानी होकर विचरता है।
ਆਪੁ ਨ ਚੀਨੈ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੬॥
कपटी इन्सान अपने आपको समझता नहीं और जीवन की बाजी हार जाता है॥ ६॥
ਕਾਪੜ ਪਹਿਰਿ ਕਰੇ ਚਤੁਰਾਈ ॥
धार्मिक वेष धारण करके कई लोग चतुरता करते हैं।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਅਤਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈ ॥
माया के मोह एवं दुविधा ने उनको बहुत कुमार्गगामी किया हुआ है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੇਵੇ ਬਹੁਤੁ ਦੁਖੁ ਪਾਈ ॥੭॥
गुरु की सेवा-भक्ति के बिना वह बहुत कष्ट सहन करते हैं।॥ ७ ॥
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਬੈਰਾਗੀ ॥
जो व्यक्ति ईश्वर के नाम में मग्न रहते हैं, वे सदैव ही (मोह माया से) निर्लिप्त रहते हैं।
ਗ੍ਰਿਹੀ ਅੰਤਰਿ ਸਾਚਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
जो व्यक्ति ईश्वर के नाम में मग्न रहते हैं, वे सदैव ही (मोह माया से) निर्लिप्त रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥੮॥੩॥
हे नानक ! वे व्यक्ति बड़े भाग्यशाली हैं, जो सतिगुरु की सेवा करते हैं। ॥८॥ ३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी महला ३ ॥
ਬ੍ਰਹਮਾ ਮੂਲੁ ਵੇਦ ਅਭਿਆਸਾ ॥
ब्रह्मा वेदों के अध्ययन का रचयिता है।
ਤਿਸ ਤੇ ਉਪਜੇ ਦੇਵ ਮੋਹ ਪਿਆਸਾ ॥
सांसारिक मोह एवं तृष्णा में फँसे हुए देवते उसी से उत्पन्न हुए है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭਰਮੇ ਨਾਹੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥੧॥
वे तीन गुणों में भटकते रहे और उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान न मिला ॥ १॥
ਹਮ ਹਰਿ ਰਾਖੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ ॥
हमें ईश्वर ने (मोह-माया से) बचा लिया है और सतिगुरु जी से मिला दिया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रात-दिन भगवान की भक्ति एवं ईश्वर का नाम गुरु जी ने सुदृढ़ कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਾਣੀ ਬ੍ਰਹਮ ਜੰਜਾਲਾ ॥
ब्रह्मा की रचित वाणी लोगों को (माया के) तीन गुणों के जंजाल में फँसा देती है।
ਪੜਿ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਸਿਰਿ ਮਾਰੇ ਜਮਕਾਲਾ ॥
उसका अध्ययन करके पण्डित वाद-विवाद करते हैं और यमदूत उनके सिर पर प्रहार करता है।