Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 220

Page 220

ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਾਧ ਮਗ ਸੁਨਿ ਕਰਿ ਨਿਮਖ ਨ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बेद पुरान साध मग सुनि करि निमख न हरि गुन गावै ॥१॥ रहाउ ॥ मनुष्य वेद-पुराण एवं संतों-महापुरुषों के उपदेश को सुनता रहता है, परन्तु फिर भी वह एक क्षण भर के लिए भी प्रभु का गुणानुवाद नहीं करता॥ १॥ रहाउ॥
ਦੁਰਲਭ ਦੇਹ ਪਾਇ ਮਾਨਸ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਸਿਰਾਵੈ ॥ दुरलभ देह पाइ मानस की बिरथा जनमु सिरावै ॥ दुर्लभ मानव देहि प्राप्त करके वह जीवन को व्यर्थ ही गंवा रहा है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਮਹਾ ਸੰਕਟ ਬਨ ਤਾ ਸਿਉ ਰੁਚ ਉਪਜਾਵੈ ॥੧॥ माइआ मोह महा संकट बन ता सिउ रुच उपजावै ॥१॥ यह दुनिया मोह-माया का संकट से भरा हुआ वन है तो भी मनुष्य उससे ही रुचि रखता है॥ १॥
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭੁ ਤਾ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ਨ ਲਾਵੈ ॥ अंतरि बाहरि सदा संगि प्रभु ता सिउ नेहु न लावै ॥ प्रभु हृदय के भीतर व बाहर सदैव ही प्राणी के साथ रहता है। परन्तु प्राणी प्रभु में वृति नहीं लगाता।
ਨਾਨਕ ਮੁਕਤਿ ਤਾਹਿ ਤੁਮ ਮਾਨਹੁ ਜਿਹ ਘਟਿ ਰਾਮੁ ਸਮਾਵੈ ॥੨॥੬॥ नानक मुकति ताहि तुम मानहु जिह घटि रामु समावै ॥२॥६॥ हे नानक ! उस व्यक्ति को ही मुक्ति मिलती है, जिसके हृदय में राम वास करते हैं॥ २ ॥ ६ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥ गउड़ी महला ९ ॥ राग गौड़ी, नौवें गुरु:९ ॥
ਸਾਧੋ ਰਾਮ ਸਰਨਿ ਬਿਸਰਾਮਾ ॥ साधो राम सरनि बिसरामा ॥ हे संतजनो ! राम की शरण में आने से ही सुख प्राप्त होते हैं।
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਪੜੇ ਕੋ ਇਹ ਗੁਨ ਸਿਮਰੇ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बेद पुरान पड़े को इह गुन सिमरे हरि को नामा ॥१॥ रहाउ ॥ वेदों एवं पुराणों के अध्ययन का लाभ यही है कि प्राणी भगवान् के नाम का सिमरन करता रहे॥ १॥ रहाउ॥
ਲੋਭ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਫੁਨਿ ਅਉ ਬਿਖਿਅਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥ लोभ मोह माइआ ममता फुनि अउ बिखिअन की सेवा ॥ लालच, मोह, माया,ममता, विषयो की सेवा एवं
ਹਰਖ ਸੋਗ ਪਰਸੈ ਜਿਹ ਨਾਹਨਿ ਸੋ ਮੂਰਤਿ ਹੈ ਦੇਵਾ ॥੧॥ हरख सोग परसै जिह नाहनि सो मूरति है देवा ॥१॥ हर्ष एवं शोक जिस प्राणी को स्पर्श नहीं करते, वह पुरुष प्रभु का स्वरुप है॥ १॥
ਸੁਰਗ ਨਰਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਿਖੁ ਏ ਸਭ ਤਿਉ ਕੰਚਨ ਅਰੁ ਪੈਸਾ ॥ सुरग नरक अम्रित बिखु ए सभ तिउ कंचन अरु पैसा ॥ ऐसे जीव के लिए जिसे स्वर्ग-नरक, अमृत एवं विष एक जैसे प्रतीत होते हैं और उसे सोना एवं तांबा ये सभी एक समान प्रतीत होते हैं।
ਉਸਤਤਿ ਨਿੰਦਾ ਏ ਸਮ ਜਾ ਕੈ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਫੁਨਿ ਤੈਸਾ ॥੨॥ उसतति निंदा ए सम जा कै लोभु मोहु फुनि तैसा ॥२॥ जिसके हृदय में प्रशंसा व निन्दा एक समान हैं, जिसके हृदय में लोभ तथा मोह कोई प्रभावित नहीं करते॥ २॥
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਏ ਬਾਧੇ ਜਿਹ ਨਾਹਨਿ ਤਿਹ ਤੁਮ ਜਾਨਉ ਗਿਆਨੀ ॥ दुखु सुखु ए बाधे जिह नाहनि तिह तुम जानउ गिआनी ॥ जिसे कोई सुख अथवा दुःख बन्धन में बांध नहीं सकता। आप उसको ज्ञानी समझो।
ਨਾਨਕ ਮੁਕਤਿ ਤਾਹਿ ਤੁਮ ਮਾਨਉ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੩॥੭॥ नानक मुकति ताहि तुम मानउ इह बिधि को जो प्रानी ॥३॥७॥ हे नानक ! जो प्राणी जीवन में ऐसा आचरण अपनाता है, उसे सांसारिक बंधनों और विकारों से मुक्त माना जाता है।॥ ३ ॥ ७ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥ गउड़ी महला ९ ॥ राग गौड़ी, नौवें गुरु: ९ ॥
ਮਨ ਰੇ ਕਹਾ ਭਇਓ ਤੈ ਬਉਰਾ ॥ मन रे कहा भइओ तै बउरा ॥ हे मेरे मन ! तू क्यों बावला हो रहा है?
ਅਹਿਨਿਸਿ ਅਉਧ ਘਟੈ ਨਹੀ ਜਾਨੈ ਭਇਓ ਲੋਭ ਸੰਗਿ ਹਉਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अहिनिसि अउध घटै नही जानै भइओ लोभ संगि हउरा ॥१॥ रहाउ ॥ तू क्यों नहीं समझता कि तेरी जीवन-अवधि दिन-रात कम होती जा रही है। लोभ के वशीभूत तू तुच्छ हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਤਨੁ ਤੈ ਅਪਨੋ ਕਰਿ ਮਾਨਿਓ ਅਰੁ ਸੁੰਦਰ ਗ੍ਰਿਹ ਨਾਰੀ ॥ जो तनु तै अपनो करि मानिओ अरु सुंदर ग्रिह नारी ॥ हे मन ! वह तन एवं सुन्दर नारी जिन्हें तुम अपना समझते हो,
ਇਨ ਮੈਂ ਕਛੁ ਤੇਰੋ ਰੇ ਨਾਹਨਿ ਦੇਖੋ ਸੋਚ ਬਿਚਾਰੀ ॥੧॥ इन मैं कछु तेरो रे नाहनि देखो सोच बिचारी ॥१॥ इनमें तेरा कुछ नहीं, देख और ध्यानपूर्वक सोच-विचार कर ॥ १॥
ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਅਪਨੋ ਤੈ ਹਾਰਿਓ ਗੋਬਿੰਦ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ॥ रतन जनमु अपनो तै हारिओ गोबिंद गति नही जानी ॥ तुम ने अपना अनमोल मनुष्य जीवन गंवा लिया है और सृष्टि के स्वामी गोबिन्द की गति को नहीं जाना।
ਨਿਮਖ ਨ ਲੀਨ ਭਇਓ ਚਰਨਨ ਸਿਂਉ ਬਿਰਥਾ ਅਉਧ ਸਿਰਾਨੀ ॥੨॥ निमख न लीन भइओ चरनन सिंउ बिरथा अउध सिरानी ॥२॥ एक क्षण भर के लिए भी तू प्रभु के चरणों में नहीं समाया। तेरी अवस्था व्यर्थ ही बीत गई है॥ २॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋਈ ਨਰੁ ਸੁਖੀਆ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥ कहु नानक सोई नरु सुखीआ राम नाम गुन गावै ॥ हे नानक ! वही व्यक्ति सुखी है, जो राम नाम का यश गायन करता रहता है।
ਅਉਰ ਸਗਲ ਜਗੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿਆ ਨਿਰਭੈ ਪਦੁ ਨਹੀ ਪਾਵੈ ॥੩॥੮॥ अउर सगल जगु माइआ मोहिआ निरभै पदु नही पावै ॥३॥८॥ दूसरे तमाम लोग माया ने मुग्ध किए हुए हैं और वह निर्भय-पद को प्राप्त नहीं होते॥ ३॥ ८ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥ गउड़ी महला ९ ॥ राग गौड़ी, नौवें गुरु: ९ ॥
ਨਰ ਅਚੇਤ ਪਾਪ ਤੇ ਡਰੁ ਰੇ ॥ नर अचेत पाप ते डरु रे ॥ हे चेतनाहीन प्राणी ! तू पापों से भय कर,
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਗਲ ਭੈ ਭੰਜਨ ਸਰਨਿ ਤਾਹਿ ਤੁਮ ਪਰੁ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दीन दइआल सगल भै भंजन सरनि ताहि तुम परु रे ॥१॥ रहाउ ॥ उस दीनदयाल एवं समस्त भय नाश करने वाले प्रभु की शरण ले॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਜਾਸ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਤਾ ਕੋ ਨਾਮੁ ਹੀਐ ਮੋ ਧਰੁ ਰੇ ॥ बेद पुरान जास गुन गावत ता को नामु हीऐ मो धरु रे ॥ जिसकी महिमा वेद एवं पुराण भी गायन करते हैं, उस प्रभु के नाम को अपने हृदय में बसा कर रख।
ਪਾਵਨ ਨਾਮੁ ਜਗਤਿ ਮੈ ਹਰਿ ਕੋ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਕਸਮਲ ਸਭ ਹਰੁ ਰੇ ॥੧॥ पावन नामु जगति मै हरि को सिमरि सिमरि कसमल सभ हरु रे ॥१॥ ईश्वर का नाम इस संसार में पवित्र-पावन है। इसका भजन सिमरन करने से तू अपने सभी पाप निवृत कर ले॥ १॥
ਮਾਨਸ ਦੇਹ ਬਹੁਰਿ ਨਹ ਪਾਵੈ ਕਛੂ ਉਪਾਉ ਮੁਕਤਿ ਕਾ ਕਰੁ ਰੇ ॥ मानस देह बहुरि नह पावै कछू उपाउ मुकति का करु रे ॥ हे प्राणी ! मानव देहि दोबारा तुझे प्राप्त नहीं होनी। इसलिए अपनी मुक्ति हेतु कुछ उपाय कर ले।
ਨਾਨਕ ਕਹਤ ਗਾਇ ਕਰੁਨਾ ਮੈ ਭਵ ਸਾਗਰ ਕੈ ਪਾਰਿ ਉਤਰੁ ਰੇ ॥੨॥੯॥੨੫੧॥ नानक कहत गाइ करुना मै भव सागर कै पारि उतरु रे ॥२॥९॥२५१॥ नानक कहते हैं, हे जीव ! करुणानिधि परमेश्वर का भजन गायन कर के भवसागर से पार हो जा ॥२॥६॥२५१॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ रागु गउड़ी असटपदीआ महला १ गउड़ी गुआरेरी राग गौड़ी अष्टपदी महला १ गौड़ी गवारेरी
ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिनामु करता पुरखु गुरप्रसादि ॥ ੴ सतनामु करता पुरखु गुर प्रसादि ॥
ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥ निधि सिधि निरमल नामु बीचारु ॥ नवनिधि एवं (अठारह) सिद्धियाँ पवित्र नाम के चिंतन में हैं।
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਬਿਖੁ ਮਾਰਿ ॥ पूरन पूरि रहिआ बिखु मारि ॥ माया के विष का नाश करके मनुष्य परमात्मा को सर्वव्यापक देखता है।
ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਛੂਟੀ ਬਿਮਲ ਮਝਾਰਿ ॥ त्रिकुटी छूटी बिमल मझारि ॥ पवित्र प्रभु में वास करने से मैंने तीनों गुणों से मुक्ति प्राप्त कर ली है।


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