Page 219
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
रागु गउड़ी महला ९ ॥
ਸਾਧੋ ਮਨ ਕਾ ਮਾਨੁ ਤਿਆਗਉ ॥
हे संतजनो ! अपने मन का अभिमान त्याग दो।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਸੰਗਤਿ ਦੁਰਜਨ ਕੀ ਤਾ ਤੇ ਅਹਿਨਿਸਿ ਭਾਗਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
काम, क्रोध एवं दुर्जन लोगों की संगति से दिन-रात दूर रहो ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਦੋਨੋ ਸਮ ਕਰਿ ਜਾਨੈ ਅਉਰੁ ਮਾਨੁ ਅਪਮਾਨਾ ॥
जो इन्सान सुख-दुख एवं मान-सम्मान को एक समान समझता है
ਹਰਖ ਸੋਗ ਤੇ ਰਹੈ ਅਤੀਤਾ ਤਿਨਿ ਜਗਿ ਤਤੁ ਪਛਾਨਾ ॥੧॥
और जो हर्ष एवं शोक से पृथक रहता है, वह जगत् में जीवन के तथ्य को पहचान लेता है॥ १॥
ਉਸਤਤਿ ਨਿੰਦਾ ਦੋਊ ਤਿਆਗੈ ਖੋਜੈ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਨਾ ॥
मनुष्य को किसी की प्रशंसा एवं निन्दा करना दोनों ही त्यागने योग्य हैं और उसके लिए मुक्ति पद को ढूंढना न्यायोचित है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਖੇਲੁ ਕਠਨੁ ਹੈ ਕਿਨਹੂੰ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਨਾ ॥੨॥੧॥
हे दास नानक ! यह खेल कठिन है। गुरु की प्रेरणा से किसी विरले को ही इसका ज्ञान होता है॥ २ ॥ १ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
गउड़ी महला ९ ॥
ਸਾਧੋ ਰਚਨਾ ਰਾਮ ਬਨਾਈ ॥
हे संतजनो ! राम ने (एक अद्भुत) सृष्टि की रचना की है।
ਇਕਿ ਬਿਨਸੈ ਇਕ ਅਸਥਿਰੁ ਮਾਨੈ ਅਚਰਜੁ ਲਖਿਓ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एक व्यक्ति अपने प्राण त्याग देता है और एक अपने आपको अनश्वर समझता है। यह एक अदभुत लीला है जिसका बोध नहीं होता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮੋਹ ਬਸਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਹਰਿ ਮੂਰਤਿ ਬਿਸਰਾਈ ॥
नश्वर प्राणी कामवासना, क्रोध एवं सांसारिक मोह के वश में है और वह प्रभु के व्यक्तित्व को भूल गया है।
ਝੂਠਾ ਤਨੁ ਸਾਚਾ ਕਰਿ ਮਾਨਿਓ ਜਿਉ ਸੁਪਨਾ ਰੈਨਾਈ ॥੧॥
मानव देहि जो रात्रि के स्वप्न की भाँति मिथ्या है, मनुष्य उसे सत्य समझता है॥ १ ॥
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੈ ਜਿਉ ਬਾਦਰ ਕੀ ਛਾਈ ॥
जो कुछ भी दिखाई देता है, वह बादल की छाया की भाँति समस्त लुप्त हो जाएगा।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਜਗੁ ਜਾਨਿਓ ਮਿਥਿਆ ਰਹਿਓ ਰਾਮ ਸਰਨਾਈ ॥੨॥੨॥
हे नानक ! जो व्यक्ति संसार को मिथ्या समझता है, वह राम की शरण में रहता है॥ २ ॥ २॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
गउड़ी महला ९ ॥
ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਉ ਹਰਿ ਜਸੁ ਮਨਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ॥
नश्वर प्राणी भगवान के यश को अपने हृदय में नहीं बसाता।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਮਗਨੁ ਰਹੈ ਮਾਇਆ ਮੈ ਕਹੁ ਕੈਸੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वह दिन-रात माया के मोह में ही मग्न रहता है। बताइए, फिर वह किस तरह प्रभु की महिमा गायन कर सकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੂਤ ਮੀਤ ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਸਿਉ ਇਹ ਬਿਧਿ ਆਪੁ ਬੰਧਾਵੈ ॥
इस विधि से वह अपने आपको बच्चों, मित्र-बन्धुओं, माया एवं अहंत्व के साथ बांध लेता है।
ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਿਉ ਝੂਠੋ ਇਹੁ ਜਗ ਦੇਖਿ ਤਾਸਿ ਉਠਿ ਧਾਵੈ ॥੧॥
मृगतृष्णा की भाँति यह नश्वर संसार मिथ्या है। फिर भी उसको देखकर प्राणी इसके पीछे भागता है॥ १॥
ਭੁਗਤਿ ਮੁਕਤਿ ਕਾ ਕਾਰਨੁ ਸੁਆਮੀ ਮੂੜ ਤਾਹਿ ਬਿਸਰਾਵੈ ॥
परमात्मा भुक्ति (संसार के भोगों) एवं मुक्ति का स्वामी है। लेकिन मूर्ख मनुष्य उस परमात्मा को विस्मृत रखता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੋਟਨ ਮੈ ਕੋਊ ਭਜਨੁ ਰਾਮ ਕੋ ਪਾਵੈ ॥੨॥੩॥
हे नानक ! करोड़ों में से कोई विरला ही व्यक्ति है, जो राम के भजन को प्राप्त करता है॥ २॥ ३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
गउड़ी महला ९ ॥
ਸਾਧੋ ਇਹੁ ਮਨੁ ਗਹਿਓ ਨ ਜਾਈ ॥
हे संतजनो ! यह मन वश में नहीं किया जा सकता।
ਚੰਚਲ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸੰਗਿ ਬਸਤੁ ਹੈ ਯਾ ਤੇ ਥਿਰੁ ਨ ਰਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चूंकि यह चंचल मन तृष्णा के साथ निवास करता है। इसलिए यह स्थिर होकर नहीं रहता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਠਨ ਕਰੋਧ ਘਟ ਹੀ ਕੇ ਭੀਤਰਿ ਜਿਹ ਸੁਧਿ ਸਭ ਬਿਸਰਾਈ ॥
प्रचण्ड क्रोध हृदय के भीतर है, जो समस्त चेतना को विस्मृत कर देता है।
ਰਤਨੁ ਗਿਆਨੁ ਸਭ ਕੋ ਹਿਰਿ ਲੀਨਾ ਤਾ ਸਿਉ ਕਛੁ ਨ ਬਸਾਈ ॥੧॥
इस क्रोध ने प्रत्येक व्यक्ति का ज्ञान-रत्न छीन लिया है। इसके समक्ष किसी का भी वश नहीं चलता ॥ १॥
ਜੋਗੀ ਜਤਨ ਕਰਤ ਸਭਿ ਹਾਰੇ ਗੁਨੀ ਰਹੇ ਗੁਨ ਗਾਈ ॥
बहुत सारे योगी यत्न करते हुए पराजित हो गए हैं। विद्वान पुरुष प्रभु की स्तुति करते हुए थक गए हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ਤਉ ਸਭ ਬਿਧਿ ਬਨਿ ਆਈ ॥੨॥੪॥
हे दास नानक ! जब ईश्वर दयालु हो जाता है तो प्रत्येक कोशिश सफल हो जाती है। ॥२॥ ४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
गउड़ी महला ९ ॥
ਸਾਧੋ ਗੋਬਿੰਦ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥
हे संतजनो ! सृष्टि के स्वामी गोविन्द की गुणस्तुति करते रहो।
ਮਾਨਸ ਜਨਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਪਾਇਓ ਬਿਰਥਾ ਕਾਹਿ ਗਵਾਵਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपको अनमोल मनुष्य जीवन मिला है। इसको व्यर्थ क्यों गंवा रहे हो ॥ १॥ रहाउ॥
ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਦੀਨ ਬੰਧ ਹਰਿ ਸਰਨਿ ਤਾਹਿ ਤੁਮ ਆਵਉ ॥
ईश्वर पापियों को पवित्र करने वाला एवं निर्धनों का संबंधी है। आप लोग उस भगवान की शरण में आओ।
ਗਜ ਕੋ ਤ੍ਰਾਸੁ ਮਿਟਿਓ ਜਿਹ ਸਿਮਰਤ ਤੁਮ ਕਾਹੇ ਬਿਸਰਾਵਉ ॥੧॥
आप लोग उस भगवान को क्यों विस्मृत करते हो, जिसका सिमरन करने से हाथी का भय मिट गया था ॥ १ ॥
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਫੁਨਿ ਭਜਨ ਰਾਮ ਚਿਤੁ ਲਾਵਉ ॥
अभिमान, मोह एवं माया को त्याग दीजिए और राम के भजन को अपने मन के साथ लगाओ।
ਨਾਨਕ ਕਹਤ ਮੁਕਤਿ ਪੰਥ ਇਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਤੁਮ ਪਾਵਉ ॥੨॥੫॥
नानक कहते हैं-मोह-माया से मुक्त होने का यही मार्ग है। लेकिन गुरु का आश्रय लेकर ही तुम यह मार्ग प्राप्त कर सकते हो ॥२॥५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
गउड़ी महला ९ ॥
ਕੋਊ ਮਾਈ ਭੂਲਿਓ ਮਨੁ ਸਮਝਾਵੈ ॥
हे मेरी माता ! मुझे कोई ऐसा महापुरुष मिल जाए जो मेरे भटकते हुए मन को सुमति प्रदान करे।