Page 201
                    ਮਇਆ ਕਰੀ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        पूर्ण हरि-परमेश्वर ने मुझ पर बड़ी दया धारण की है॥ १॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰੇ ਭਾਗ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु नानक कहते हें कि, “जिस व्यक्ति के मस्तक पर पूर्ण भाग्य उदय होते हैं”,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਸਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੁ ॥੨॥੧੦੬॥
                   
                    
                                              
                        वह सदा प्रभु-परमेश्वर का नाम-स्मरण करता है और सदा स्थिर रहने वाला स्वामी अपना हाथ रखता है॥ २ ॥ १०६ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਧੋਤੀ ਖੋਲਿ ਵਿਛਾਏ ਹੇਠਿ ॥
                   
                    
                                              
                        हे मान्यवर ! ब्राह्मण अपनी धोती खोलकर अपने नीचे बिछा लेता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਰਧਪ ਵਾਂਗੂ ਲਾਹੇ ਪੇਟਿ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        जो कुछ उसके हाथ (खीर-पूरी इत्यादि) आता है, गधे की भाँति अपने पेंट में डालता रहता है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਨੁ ਕਰਤੂਤੀ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈਐ ॥
                   
                    
                                              
                        शुभ कर्मों के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        मुक्ति तो भगवान् के नाम का ध्यान करने से ही मिलती है॥ १॥ रहाउ॥       
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੂਜਾ ਤਿਲਕ ਕਰਤ ਇਸਨਾਨਾਂ ॥
                   
                    
                                              
                        ब्राह्मण पूजा-अर्चना एवं स्नान करता है और अपने माथे पर तिलक लगाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਛੁਰੀ ਕਾਢਿ ਲੇਵੈ ਹਥਿ ਦਾਨਾ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        लेकिन फिर वह नरक और पीड़ा की धमकी देकर लोगों को भिक्षा देने के लिए डराता है। ॥ २ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬੇਦੁ ਪੜੈ ਮੁਖਿ ਮੀਠੀ ਬਾਣੀ ॥
                   
                    
                                              
                        वह अपने मुख से मधुर स्वर में वेदों का पाठ करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੀਆਂ ਕੁਹਤ ਨ ਸੰਗੈ ਪਰਾਣੀ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        नश्वर मनुष्य जीव-जन्तुओं को मारने में संकोच नहीं करता॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੈ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! जिस व्यक्ति पर प्रभु कृपा करते हैं,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਿਰਦਾ ਸੁਧੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੈ ॥੪॥੧੦੭॥
                   
                    
                                              
                        उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और वह प्रभु का चिन्तन करता रहता है ॥ ४॥ १०७ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਥਿਰੁ ਘਰਿ ਬੈਸਹੁ ਹਰਿ ਜਨ ਪਿਆਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्रभु के प्रिय भक्तजनों ! अपने हृदय घर में एकाग्रचित होकर बैठो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਤਿਗੁਰਿ ਤੁਮਰੇ ਕਾਜ ਸਵਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        सतगुरु ने तुम्हारे कार्य संवार दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥       
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦੁਸਟ ਦੂਤ ਪਰਮੇਸਰਿ ਮਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        परमेश्वर ने दुष्ट एवं नीचों का नाश कर दिया है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਨ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖੀ ਕਰਤਾਰੇ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        सृजनहार प्रभु ने स्वयं अपने सेवक की प्रतिष्ठा रखी है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਾਦਿਸਾਹ ਸਾਹ ਸਭ ਵਸਿ ਕਰਿ ਦੀਨੇ ॥
                   
                    
                                              
                        संसार के राजा-महाराजा सब प्रभु ने अपने सेवक के अधीन कर दिए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮ ਮਹਾ ਰਸ ਪੀਨੇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        उसने प्रभु के अमृत नाम का परम रस पान किया है॥ २ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਿਰਭਉ ਹੋਇ ਭਜਹੁ ਭਗਵਾਨ ॥
                   
                    
                                              
                        निडर होकर भगवान् का भजन करो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਕੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        साध संगत में मिलकर प्रभु स्मरण का यह दान (फल) दूसरों को भी प्रदान करो ॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਰਣਿ ਪਰੇ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु नानक कहते है कि हे अन्तर्यामी प्रभु ! मैं आपकी शरण में हूँ
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਓਟ ਪਕਰੀ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ॥੪॥੧੦੮॥
                   
                    
                                              
                        और मैंने जगत् के स्वामी प्रभु का सहारा ले लिया हैं ।॥ ४ ॥१०८ ॥   
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਭਾਹਿ ਨ ਜਲੈ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति भगवान् की भक्ति में मग्न रहता है, वह तृष्णा की अग्नि में नहीं जलता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਮਾਇਆ ਨਹੀ ਛਲੈ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति प्रभु के प्रेम में मग्न रहता है, उससे माया किसी प्रकार का छल नहीं करती।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਨਹੀ ਡੂਬੈ ਜਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति भगवान् की स्मृति में मग्न रहता है, वह भवसागर के जल में नहीं डूबता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸੁਫਲ ਫਲਾ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति प्रभु की प्रीति में मग्न रहता है, उसको जीवन का श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। ॥ १॥!
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭ ਭੈ ਮਿਟਹਿ ਤੁਮਾਰੈ ਨਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्रभु ! आपके नाम से सारे भय नष्ट हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਭੇਟਤ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नश्वर प्राणी ! सत्संग में मिलकर तू हरि प्रभु का यश-गायन करता रह। ॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਮਿਟੈ ਸਭ ਚਿੰਤਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति भगवान की याद में मग्न रहता है, उसकी तमाम चिन्ता मिट जाती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸਿਉ ਸੋ ਰਚੈ ਜਿਸੁ ਸਾਧ ਕਾ ਮੰਤਾ ॥
                   
                    
                                              
                        लेकिन भगवान् की याद में वही व्यक्ति जुड़ता है जिसे साधु का नाम-मंत्र मिल जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਜਮ ਕੀ ਨਹੀ ਤ੍ਰਾਸ ॥
                   
                    
                                              
                        उसे प्रभु की याद में अनुरक्त होने से मृत्यु का भय नहीं सताता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਪੂਰਨ ਆਸ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु की स्मृति में अनुरक्त होने से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। ॥ २ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਦੂਖੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
                   
                    
                                              
                        परमात्मा के चरणों में जुड़े रहने से कोई दुःख स्पर्श नहीं करता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤਾ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के चिंतन में मस्त हुआ व्यक्ति दिन-रात सचेत रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤਾ ਸਹਜ ਘਰਿ ਵਸੈ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के चिंतन में जुड़े रहने से व्यक्ति सहज घर में वास करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਨਸੈ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के स्मरण में रहने से मनुष्य का भ्रम एवं भय दौड़ जाते हैं।॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਮਤਿ ਊਤਮ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के चिन्तन में जुड़े रहने से बुद्धि श्रेष्ठ हो जाती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के स्मरण में जुड़े रहने से जीवन-आचरण निर्मल हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਨ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਬਿਸਰਤ ਨਾਹੀ ॥੪॥੧੦੯॥
                   
                    
                                              
                        जो मेरे प्रभु को विस्मृत नहीं करते॥ ४॥ १०९ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਉਦਮੁ ਕਰਤ ਸੀਤਲ ਮਨ ਭਏ ॥
                   
                    
                                              
                        संतों की पावन सभा में जाने का उद्यम करने से मन शीतल हो जाता है
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਾਰਗਿ ਚਲਤ ਸਗਲ ਦੁਖ ਗਏ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु-मार्ग का अनुसरण करने से सभी दुःख दूर हो गए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨਿ ਭਏ ਅਨੰਦ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के नाम का जाप करने से मन प्रसन्न हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਸਿ ਗਾਏ ਗੁਨ ਪਰਮਾਨੰਦ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        प्रेमपूर्वक प्रभु की महिमा गायन करने से परमानंद प्राप्त हो जाता है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਖੇਮ ਭਇਆ ਕੁਸਲ ਘਰਿ ਆਏ ॥
                   
                    
                                              
                        चारों ओर खुशियाँ हो गई हैं तथा प्रसन्नता घर में आ गई है
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਭੇਟਤ ਸਾਧਸੰਗਿ ਗਈ ਬਲਾਏ ॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        संतों की सभा में रहने से सभी मुसीबतें दूर हो गई हैं। ॥ १॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨੇਤ੍ਰ ਪੁਨੀਤ ਪੇਖਤ ਹੀ ਦਰਸ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु जी के दर्शन करते ही नेत्र पुनीत हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਧਨਿ ਮਸਤਕ ਚਰਨ ਕਮਲ ਹੀ ਪਰਸ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु जी के चरणों को स्पर्श करते ही मस्तक प्रशंसनीय हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੋਬਿੰਦ ਕੀ ਟਹਲ ਸਫਲ ਇਹ ਕਾਂਇਆ ॥
                   
                    
                                              
                        यह शरीर गोविन्द की सेवा करने से फलदायक हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                    
             
				