Guru Granth Sahib Translation Project

guru-granth-sahib-hindi-page-97

Page 97

ਮੋਹਿ ਰੈਣਿ ਨ ਵਿਹਾਵੈ ਨੀਦ ਨ ਆਵੈ ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਗੁਰ ਦਰਬਾਰੇ ਜੀਉ ॥੩॥ (जैसे गुरु के बिना ईश्वर से मिलन नहीं हो सकता) वैसे ही मेरे जीवन की रात नहीं कटती और गुरु की पवित्र मण्डली के दर्शन किए बिना शांति प्राप्त नहीं होती।
ਹਉ ਘੋਲੀ ਜੀਉ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਤਿਸੁ ਸਚੇ ਗੁਰ ਦਰਬਾਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं सदा सच्चे गुरु की पवित्र मण्डली के प्रति समर्पित हूँ। ॥१॥ रहाउ॥
ਭਾਗੁ ਹੋਆ ਗੁਰਿ ਸੰਤੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥ यह मेरा सौभाग्य हैं कि सतगुरु ने मुझे प्रभु से मिलवा दिया है।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਘਰ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ॥ (गुरु के आशीर्वाद से)मैंने अनश्वर प्रभु को अपने हृदय-घर में ही प्राप्त कर लिया है।
ਸੇਵ ਕਰੀ ਪਲੁ ਚਸਾ ਨ ਵਿਛੁੜਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ਜੀਉ ॥੪॥ भक्त नानक प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि, “हे प्रभु ! आप मुझ पर कृपा करें कि मैं सदैव विनम्रतापूर्वक आपके भक्तों की सेवा करूँ और एक क्षण के लिए भी उनसे अलग न होऊँ।”
ਹਉ ਘੋਲੀ ਜੀਉ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ਜੀਉ ॥ ਰਹਾਉ ॥੧॥੮॥ भक्त नानक कहते हैं कि, मैं प्रभु के प्रति सेवकों पर तन एवं मन से समर्पित हूँ॥ रहाउ॥१॥८॥
ਰਾਗੁ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग माझ महला, पांचवे गुरु ५ ॥
ਸਾ ਰੁਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਜਿਤੁ ਤੁਧੁ ਸਮਾਲੀ ॥ हे प्रभु ! वहीं ऋतु अति सुन्दर है जब मैं तेरा सिमरन करता हूँ।
ਸੋ ਕੰਮੁ ਸੁਹੇਲਾ ਜੋ ਤੇਰੀ ਘਾਲੀ ॥ हे प्रभु ! मेरे लिए सबसे उत्कृष्ट कार्य आपका श्रद्धापूर्वक स्मरण करना है।
ਸੋ ਰਿਦਾ ਸੁਹੇਲਾ ਜਿਤੁ ਰਿਦੈ ਤੂੰ ਵੁਠਾ ਸਭਨਾ ਕੇ ਦਾਤਾਰਾ ਜੀਉ ॥੧॥ हे समस्त जीवों के दाता ! वही हृदय सुखी और शान्त है, जिस हृदय में आप विद्यमान है।॥१॥
ਤੂੰ ਸਾਝਾ ਸਾਹਿਬੁ ਬਾਪੁ ਹਮਾਰਾ ॥ हे प्रभु ! आप हम सब के सार्वभौमिक पिता हो;
ਨਉ ਨਿਧਿ ਤੇਰੈ ਅਖੁਟ ਭੰਡਾਰਾ ॥ इस संसार की नवनिधियों से आपका अक्षय भण्डार परिपूर्ण है।
ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੁ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਵੈ ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਤੁਮਾਰਾ ਜੀਉ ॥੨॥ हे भगवान्! जिसे आप अपने नाम का उपहार देते हैं वह तृप्त हो जाता है और वह सांसारिक इच्छाओं की परवाह नहीं करता तथा वही आपका सच्चा भक्त माना जाता है। ॥२॥
ਸਭੁ ਕੋ ਆਸੈ ਤੇਰੀ ਬੈਠਾ ॥ हे मेरे मालिक ! सभी प्राणी तेरी आशा में ही बैठे हैं।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਤੂੰਹੈ ਵੁਠਾ ॥ तू घट-घट में वास कर रहा है।
ਸਭੇ ਸਾਝੀਵਾਲ ਸਦਾਇਨਿ ਤੂੰ ਕਿਸੈ ਨ ਦਿਸਹਿ ਬਾਹਰਾ ਜੀਉ ॥੩॥ समस्त प्राणी आपके अनुग्रह में भागीदार कहलाते हैं और किसी भी प्राणी को ऐसा नहीं लगता कि आप उनसे भिन्न हो॥३॥
ਤੂੰ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਇਹਿ ॥ हे भगवान् ! आप स्वयं गुरु उपदेश द्वारा मनुष्यों को माया के बंधनों से मुक्त करते हो।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਮਨਮੁਖਿ ਜਨਮਿ ਭਵਾਇਹਿ ॥ और मनमुख प्राणियों को आप स्वयं जीवन-मृत्यु के बंधन में धकेल देते हो।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੈ ਬਲਿਹਾਰੈ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਦਸਾਹਰਾ ਜੀਉ ॥੪॥੨॥੯॥ भक्त नानक कहते हैं कि, हे प्रभु! मैं आपके प्रति समर्पित हूँ; और यह सम्पूर्ण सृष्टि स्पष्ट रूप से आपकी ही सांसारिक लीला है।॥ ४॥ २॥ ९॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवे गुरु ५ ॥
ਅਨਹਦੁ ਵਾਜੈ ਸਹਜਿ ਸੁਹੇਲਾ ॥ ईश्वर की स्तुति की निरंतर धुन मेरे मन के भीतर अनहद कर रही है और मेरा मन इस आध्यात्मिक स्थिति में शांति का आनंद ले रहा है।
ਸਬਦਿ ਅਨੰਦ ਕਰੇ ਸਦ ਕੇਲਾ ॥ उस अनहद शब्द को सुनकर मेरा मन सदैव आनंदित एवं प्रसन्न रहता है।
ਸਹਜ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਤਾੜੀ ਲਾਈ ਆਸਣੁ ਊਚ ਸਵਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੧॥ आध्यात्मिक संतुलन की स्थिति में, मन ने सहज गुफा में सबसे ऊंचे और अच्छे विचारों पर ध्यान केंद्रित कर समाधि लगा ली है॥१॥
ਫਿਰਿ ਘਿਰਿ ਅਪੁਨੇ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥ बाहर भटकने के पश्चात अब मेरा मन अपनी एकाग्रता को आत्म स्वरूप की ओर मोड़ चुका है।
ਜੋ ਲੋੜੀਦਾ ਸੋਈ ਪਾਇਆ ॥ और मुझे आत्मिक शांति मिल गई है, जिसकी मुझे इच्छा थी।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਰਹਿਆ ਹੈ ਸੰਤਹੁ ਗੁਰਿ ਅਨਭਉ ਪੁਰਖੁ ਦਿਖਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੨॥ हे सन्तजनो ! मेरा मन माया से पूरी तरह तृप्त हो गया है, क्योंकि सतगुरु ने मुझे आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध किया है और मुझे सर्वव्यापी भगवान् के दर्शन करा दिए हैं।॥२॥
ਆਪੇ ਰਾਜਨੁ ਆਪੇ ਲੋਗਾ ॥ प्रभु स्वयं ही राजन् है और स्वयं ही प्रजा है।
ਆਪਿ ਨਿਰਬਾਣੀ ਆਪੇ ਭੋਗਾ ॥ वह स्वयं ही विरक्त है और स्वयं ही पदार्थों को भोगता है।
ਆਪੇ ਤਖਤਿ ਬਹੈ ਸਚੁ ਨਿਆਈ ਸਭ ਚੂਕੀ ਕੂਕ ਪੁਕਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੩॥ सत्य प्रभु स्वयं सिंहासन पर विराजमान होकर सत्य का न्याय करते हैं, इसलिए मेरे अन्तर्मन की सम्पूर्ण व्यथाएँ एवं पुकार दूर हो गई है॥३॥
ਜੇਹਾ ਡਿਠਾ ਮੈ ਤੇਹੋ ਕਹਿਆ ॥ मैंने जैसी ईश्वर का अनुभव किया है, वैसा ही उसका वर्णन भी किया है।
ਤਿਸੁ ਰਸੁ ਆਇਆ ਜਿਨਿ ਭੇਦੁ ਲਹਿਆ ॥ जिसको यह भेद समझ आ गया है, वह उसके साथ मिलन का आनंद उठाता है।
ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਪਸਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੪॥੩॥੧੦॥ हे नानक, उस व्यक्ति की आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है, उसे आंतरिक शांति मिलती है और वह सर्वत्र ईश्वर को व्याप्त देखता है। ४ ॥ ३ ॥ १० ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला,पांचवे गुरु ५ ॥
ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਪਿਰਿ ਸੋਹਾਗੁ ਬਣਾਇਆ ॥ ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਸਖੀਏ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥ वह हृदय जिसे स्वामी-भगवान ने अपनी दिव्य रोशनी से सुशोभित किया है:
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਤਿਤੈ ਘਰਿ ਸੋਹਹਿ ਜੋ ਧਨ ਕੰਤਿ ਸਿਗਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥ हे सखी ! उसके हृदय-घर में स्वामी-भगवान् की स्तुति का आनंदमय गीत गाया जाता है।
ਸਾ ਗੁਣਵੰਤੀ ਸਾ ਵਡਭਾਗਣਿ ॥ जिस जीव-स्त्री को पति-प्रभु ने शुभ गुणों से अलंकृत कर दिया है, उसके हृदय-घर में आनंद एवं उल्लास बना रहता है।॥१॥
ਪੁਤ੍ਰਵੰਤੀ ਸੀਲਵੰਤਿ ਸੋਹਾਗਣਿ ॥ वह जीव परम गुणी एवं भाग्यशालिनी है,
ਰੂਪਵੰਤਿ ਸਾ ਸੁਘੜਿ ਬਿਚਖਣਿ ਜੋ ਧਨ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ਜੀਉ ॥੨॥ और उसे पुत्र (आध्यात्मिक ज्ञान), विनम्र स्वभाव और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद प्राप्त है,
ਅਚਾਰਵੰਤਿ ਸਾਈ ਪਰਧਾਨੇ ॥ और जो गुरु-भगवान् का प्रिय बन जाता है, वह सुंदर (आध्यात्मिक रूप से उन्नत), चतुर और बुद्धिमान है।॥ २॥
ਸਭ ਸਿੰਗਾਰ ਬਣੇ ਤਿਸੁ ਗਿਆਨੇ ॥ वही मनुष्य शुभ आचरण वाला, कुलीन एवं प्रतिष्ठित बनता है।
ਸਾ ਕੁਲਵੰਤੀ ਸਾ ਸਭਰਾਈ ਜੋ ਪਿਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਸਵਾਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥ आध्यात्मिक ज्ञान और सद्गुण उसके जीवन को सुशोभित करते हैं,
ਮਹਿਮਾ ਤਿਸ ਕੀ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਏ ॥ और जो स्वामी भगवान् के प्रेम से सुशोभित है, उसे उच्च वंश से माना जाता है और उसे कई भाइयों (गुरु के अनुयायियों) का आशीर्वाद प्राप्त है। ॥३॥
ਜੋ ਪਿਰਿ ਮੇਲਿ ਲਈ ਅੰਗਿ ਲਾਏ ॥ उसकी महिमा कथन नहीं की जा सकती,
Scroll to Top
slot gacor hari ini slot demo
jp1131 https://login-bobabet. net/ https://sugoi168daftar.com/
http://bpkad.sultengprov.go.id/belibis/original/
slot gacor hari ini slot demo
jp1131 https://login-bobabet. net/ https://sugoi168daftar.com/
http://bpkad.sultengprov.go.id/belibis/original/