Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 920

Page 920

ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਹੁ ਸੰਤਹੁ ਸੋ ਸਿਖੁ ਸਨਮੁਖੁ ਹੋਏ ॥੨੧॥ कहै नानकु सुणहु संतहु सो सिखु सनमुखु होए ॥२१॥ नानक कहते हैं कि हे संतो ! ध्यानपूर्वक सुनो; वही शिष्य गुरु के सन्मुख होता है॥ २१॥
ਜੇ ਕੋ ਗੁਰ ਤੇ ਵੇਮੁਖੁ ਹੋਵੈ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਵੈ ॥ जे को गुर ते वेमुखु होवै बिनु सतिगुर मुकति न पावै ॥ यदि कोई शिष्य गुरु से विमुख हो जाए तो सतगुरु के बिना उसे मुक्ति नहीं मिलती।
ਪਾਵੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਰ ਥੈ ਕੋਈ ਪੁਛਹੁ ਬਿਬੇਕੀਆ ਜਾਏ ॥ पावै मुकति न होर थै कोई पुछहु बिबेकीआ जाए ॥ उसे किसी अन्य स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती, चाहे इस संदर्भ में कोई जाकर विवेकवान महापुरुषों से पूछ लो।
ਅਨੇਕ ਜੂਨੀ ਭਰਮਿ ਆਵੈ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਏ ॥ अनेक जूनी भरमि आवै विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥ चाहे वह अनेक योनियों में भटक कर पुनः मानव योनि में आ जाए, तो भी गुरु के बिना मुक्ति नहीं पा सकता।
ਫਿਰਿ ਮੁਕਤਿ ਪਾਏ ਲਾਗਿ ਚਰਣੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥ फिरि मुकति पाए लागि चरणी सतिगुरू सबदु सुणाए ॥ वह दोबारा गुरु-चरणों में लगकर तभी मुक्ति पाता है, जब सतगुरु उसे शब्द (उपदेश) सुनाता है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਵੀਚਾਰਿ ਦੇਖਹੁ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਏ ॥੨੨॥ कहै नानकु वीचारि देखहु विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥२२॥ नानक कहते हैं कि विचार करके देख लो, विमुख जीव सतगुरु के बिना मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता ॥ २२॥
ਆਵਹੁ ਸਿਖ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੇ ਪਿਆਰਿਹੋ ਗਾਵਹੁ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥ आवहु सिख सतिगुरू के पिआरिहो गावहु सची बाणी ॥ हे गुरु के प्यारे शिष्यो ! आओ, सच्ची वाणी गाओ।
ਬਾਣੀ ਤ ਗਾਵਹੁ ਗੁਰੂ ਕੇਰੀ ਬਾਣੀਆ ਸਿਰਿ ਬਾਣੀ ॥ बाणी त गावहु गुरू केरी बाणीआ सिरि बाणी ॥ वाणी केवल गुरु की ही गान करो, जो सब वाणियों में सर्वोत्तम वाणी है।
ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਹਿਰਦੈ ਤਿਨਾ ਸਮਾਣੀ ॥ जिन कउ नदरि करमु होवै हिरदै तिना समाणी ॥ जिन पर परमात्मा की कृपा-दृष्टि हो जाती है, यह वाणी उनके हृदय में समा जाती है।
ਪੀਵਹੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਦਾ ਰਹਹੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਜਪਿਹੁ ਸਾਰਿਗਪਾਣੀ ॥ पीवहु अम्रितु सदा रहहु हरि रंगि जपिहु सारिगपाणी ॥ नामामृत का पान करो; सदा परमात्मा के रंग में लीन रहो और सदैव प्रभु का नाम जपते रहो।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਦਾ ਗਾਵਹੁ ਏਹ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥੨੩॥ कहै नानकु सदा गावहु एह सची बाणी ॥२३॥ नानक कहते हैं केि सदेव यह सच्ची वाणी गाते रहो॥ २३॥
ਸਤਿਗੁਰੂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕਚੀ ਹੈ ਬਾਣੀ ॥ सतिगुरू बिना होर कची है बाणी ॥ सतगुरु के बिना अन्य वाणी कच्ची है, गुरु के मुखारविंद से उच्चरित वाणी ही सत्य है।
ਬਾਣੀ ਤ ਕਚੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਬਾਝਹੁ ਹੋਰ ਕਚੀ ਬਾਣੀ ॥ बाणी त कची सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥ गुरु के अलावा अन्य सब वाणी झूठी है।
ਕਹਦੇ ਕਚੇ ਸੁਣਦੇ ਕਚੇ ਕਚੀ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥ कहदे कचे सुणदे कचे कचीं आखि वखाणी ॥ कच्ची वाणी को मुंह से जपने एवं सुनने वाले भी कच्चे अर्थात् झूठे हैं और झूठे मनुष्यों ने कहकर कच्ची वाणी ही उच्चारण की है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਿਤ ਕਰਹਿ ਰਸਨਾ ਕਹਿਆ ਕਛੂ ਨ ਜਾਣੀ ॥ हरि हरि नित करहि रसना कहिआ कछू न जाणी ॥ ऐसे व्यक्ति अपनी रसना से नित्य हरि नाम बोलते रहते हैं लेकिन उस बारे कुछ भी ज्ञान नहीं जानते।
ਚਿਤੁ ਜਿਨ ਕਾ ਹਿਰਿ ਲਇਆ ਮਾਇਆ ਬੋਲਨਿ ਪਏ ਰਵਾਣੀ ॥ चितु जिन का हिरि लइआ माइआ बोलनि पए रवाणी ॥ जिनका चित माया ने चुरा लिया है, वे व्यर्थ ही बोल रहे हैं।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਬਾਝਹੁ ਹੋਰ ਕਚੀ ਬਾਣੀ ॥੨੪॥ कहै नानकु सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥२४॥ नानक कहते हैं कि सतगुरु के मुखारविंद से उच्चरित वाणी ही सत्य है, अन्य सब वाणी कच्ची अर्थात् मिथ्या है॥ २४॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਰਤੰਨੁ ਹੈ ਹੀਰੇ ਜਿਤੁ ਜੜਾਉ ॥ गुर का सबदु रतंनु है हीरे जितु जड़ाउ ॥ गुरु का शब्द अमूल्य रत्न है, जिसमें गुण रूपी बहुमूल्य हीरे जड़ित हैं।
ਸਬਦੁ ਰਤਨੁ ਜਿਤੁ ਮੰਨੁ ਲਾਗਾ ਏਹੁ ਹੋਆ ਸਮਾਉ ॥ सबदु रतनु जितु मंनु लागा एहु होआ समाउ ॥ शब्द रूपी अमूल्य रत्न में जिसका मन लग गया है, वह उसी में लीन हो गया है।
ਸਬਦ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਮਿਲਿਆ ਸਚੈ ਲਾਇਆ ਭਾਉ ॥ सबद सेती मनु मिलिआ सचै लाइआ भाउ ॥ जिसका मन शब्द से मिल गया है, उसने सत्य से प्रेम लगा लिया है।
ਆਪੇ ਹੀਰਾ ਰਤਨੁ ਆਪੇ ਜਿਸ ਨੋ ਦੇਇ ਬੁਝਾਇ ॥ आपे हीरा रतनु आपे जिस नो देइ बुझाइ ॥ परमात्मा स्वयं ही शब्द रूपी रत्न एवं स्वयं ही गुरु रूपी हीरा है, वह जिसे यह शब्द रूपी रत्न देता है, वही इस तथ्य को समझता है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਬਦੁ ਰਤਨੁ ਹੈ ਹੀਰਾ ਜਿਤੁ ਜੜਾਉ ॥੨੫॥ कहै नानकु सबदु रतनु है हीरा जितु जड़ाउ ॥२५॥ नानक कहते हैं कि गुरु-शब्द एक बहुमूल्य रत्न है, जिसमें गुण रूपी कीमती हीरे जड़ित हैं।॥ २५ ॥
ਸਿਵ ਸਕਤਿ ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਕੈ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤਾਏ ॥ सिव सकति आपि उपाइ कै करता आपे हुकमु वरताए ॥ शिव शक्ति (चेतन एवं माया) को उत्पन्न करके ईश्वर स्वयं ही अपना हुक्म चला रहा है।
ਹੁਕਮੁ ਵਰਤਾਏ ਆਪਿ ਵੇਖੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਸੈ ਬੁਝਾਏ ॥ हुकमु वरताए आपि वेखै गुरमुखि किसै बुझाए ॥ वह हुक्म चलाकर स्वयं ही अपनी लीला को देखता रहता है, परन्तु किसी गुरुमुख को ही इस रहस्य की सूझ देता है
ਤੋੜੇ ਬੰਧਨ ਹੋਵੈ ਮੁਕਤੁ ਸਬਦੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ तोड़े बंधन होवै मुकतु सबदु मंनि वसाए ॥ जिसके मन में शब्द का निवास हो जाता है, वह सब बन्धनों को तोड़कर मुक्त हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਵੈ ਏਕਸ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥ गुरमुखि जिस नो आपि करे सु होवै एकस सिउ लिव लाए ॥ परमात्मा जिसे स्वयं बनाता है, वही गुरुमुख बनता है और वह एक परमेश्वर में ध्यान लगा लेता है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਆਪਿ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਹੁਕਮੁ ਬੁਝਾਏ ॥੨੬॥ कहै नानकु आपि करता आपे हुकमु बुझाए ॥२६॥ नानक कहते हैं कि स्रष्टा स्वयं ही अपने हुक्म की सूझ प्रदान करता है॥ २६॥
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਪੁੰਨ ਪਾਪ ਬੀਚਾਰਦੇ ਤਤੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥ सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी ॥ स्मृतियों एवं शास्त्र पाप-पुण्य का विचार करते हैं परन्तु वे भी सार तत्व को नहीं जानते।
ਤਤੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ਗੁਰੂ ਬਾਝਹੁ ਤਤੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥ ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी ॥ गुरु के बिना सार तत्व को नहीं जाना जाता, तत्व ज्ञान नहीं मिलता।
ਤਿਹੀ ਗੁਣੀ ਸੰਸਾਰੁ ਭ੍ਰਮਿ ਸੁਤਾ ਸੁਤਿਆ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥ तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी ॥ त्रिगुणात्मक संसार अज्ञान की निद्रा में सोया हुआ है और अज्ञान की निद्रा में ही जीवन रूपी रात्रेि व्यतीत हो जाती है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੇ ਜਨ ਜਾਗੇ ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥ गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अम्रित बाणी ॥ गुरु की कृपा से वही जीव अज्ञान की निद्रा से जागे हैं, जिनके मन में परमात्मा आ बसा है और वे अमृत-वाणी जपते रहते हैं।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੋ ਤਤੁ ਪਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ਜਾਗਤ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੨੭॥ कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥२७॥ नानक कहते हैं कि उसे ही तत्व ज्ञान प्राप्त होता है, जिसकी दिन रात परमात्मा में लगन लगी रहती है और उसकी जीवन-रात्रि जाग्रत रहते ही बीत जाती है। २७ ॥
ਮਾਤਾ ਕੇ ਉਦਰ ਮਹਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਕਰੇ ਸੋ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥ माता के उदर महि प्रतिपाल करे सो किउ मनहु विसारीऐ ॥ जो माता के उदर में भी पालन-पोषण करता है, उसे मन से क्यों भुलाएँ ?
ਮਨਹੁ ਕਿਉ ਵਿਸਾਰੀਐ ਏਵਡੁ ਦਾਤਾ ਜਿ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਆਹਾਰੁ ਪਹੁਚਾਵਏ ॥ मनहु किउ विसारीऐ एवडु दाता जि अगनि महि आहारु पहुचावए ॥ वह इतना बड़ा दाता है, उसे मन से कैसे भुलाया जा सकता है, जो गर्भाग्नि में हमें भोजन पहुँचाता है।
ਓਸ ਨੋ ਕਿਹੁ ਪੋਹਿ ਨ ਸਕੀ ਜਿਸ ਨਉ ਆਪਣੀ ਲਿਵ ਲਾਵਏ ॥ ओस नो किहु पोहि न सकी जिस नउ आपणी लिव लावए ॥ वह जिसे अपनी लगन में लगा लेता है, उसे कोई दुख-दर्द स्पर्श नहीं कर सकता।


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