Guru Granth Sahib Translation Project

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ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਸਬਦਿ ਰਤੀ ਸੋਹਾਗਣੀ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰਿ ॥ जो जीव गुरु के वचनों से ओत-प्रोत है और प्रभु से प्रेम करता है, वह सुखी विवाहित सौभाग्यशाली स्त्री के समान है।
ਸਦਾ ਰਾਵੇ ਪਿਰੁ ਆਪਣਾ ਸਚੈ ਪ੍ਰੇਮਿ ਪਿਆਰਿ ॥ वह सत्य-प्रेम एवं भक्ति से अपने पति-प्रभु के साथ सदैव ही रमण करती है।
ਅਤਿ ਸੁਆਲਿਉ ਸੁੰਦਰੀ ਸੋਭਾਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ॥ वह मनुष्य उस अत्यन्त सुन्दर एवं शोभावान नारी के समान है, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸੋਹਾਗਣੀ ਮੇਲੀ ਮੇਲਣਹਾਰਿ ॥੨॥ हे नानक ! प्रभु ने नाम में मग्न हुई सुहागिन स्त्री को अपने साथ मिला लिया है ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਤੇਰੀ ਸਭ ਕਰਹਿ ਉਸਤਤਿ ਜਿਨਿ ਫਾਥੇ ਕਾਢਿਆ ॥ हे प्रभु ! मोह-माया के जाल में से जिन जीवों को आपने मुक्त किया है, वें सभी आपकी महिमा-स्तुति गाते हैं।
ਹਰਿ ਤੁਧਨੋ ਕਰਹਿ ਸਭ ਨਮਸਕਾਰੁ ਜਿਨਿ ਪਾਪੈ ਤੇ ਰਾਖਿਆ ॥ जिन जीवों की आपने पापों से रक्षा की है, वे सभी आपको नमन करते हैं।
ਹਰਿ ਨਿਮਾਣਿਆ ਤੂੰ ਮਾਣੁ ਹਰਿ ਡਾਢੀ ਹੂੰ ਤੂੰ ਡਾਢਿਆ ॥ हे हरि ! तुम मान-हीनों के मान हो, तुम बलशालियों में बलशाली हो।
ਹਰਿ ਅਹੰਕਾਰੀਆ ਮਾਰਿ ਨਿਵਾਏ ਮਨਮੁਖ ਮੂੜ ਸਾਧਿਆ ॥ हे प्रभु ! आपने अहंकारियों को दण्डित करके झुका दिया है, मनमुख विमूढ़ जीवों का आपने ही सुधार किया है।
ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਦੇਇ ਵਡਿਆਈ ਗਰੀਬ ਅਨਾਥਿਆ ॥੧੭॥ हे भगवान् ! आप सर्वदा अपने भक्तों, निर्धनों एवं अनाथों को मान-प्रतिष्ठा प्रदान करते हो ॥१७॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਜੋ ਚਲੈ ਤਿਸੁ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੋਇ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु की रजा अनुसार चलता है, वह बड़ा यश प्राप्त करता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਉਤਮੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਇ ॥ हरि का उत्तम नाम उसके हृदय में स्थिर हो जाता है और इस नाम को उसके हृदय में से कोई भी मिटा नहीं सकता।
ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਆਪਣੀ ਤਿਸੁ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ जिस पर ईश्वर अपनी कृपा करते हैं, उसे उस कृपा के कारण प्रभु का उत्तम नाम प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਕਾਰਣੁ ਕਰਤੇ ਵਸਿ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥੧॥ हे नानक ! कोई गुरमुख व्यक्ति ही इस भेद को समझता है कि भगवान् की कृपा और उत्तम नाम प्राप्त करने का कारण केवल निर्माता-ईश्वर के नियंत्रण में है। ॥ १ ॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨੀ ਆਰਾਧਿਆ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਤਾਰ ॥ हे नानक ! जो व्यक्ति प्रत्येक क्षण अपना मन हरि में स्थिर कर उनके नाम का सिमरन करते हैं,
ਮਾਇਆ ਬੰਦੀ ਖਸਮ ਕੀ ਤਿਨ ਅਗੈ ਕਮਾਵੈ ਕਾਰ ॥ भगवान् की दासी माया एक दासी की भांति उनकी सेवा करती है,
ਪੂਰੈ ਪੂਰਾ ਕਰਿ ਛੋਡਿਆ ਹੁਕਮਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰ ॥ क्योंकि भगवान् की आज्ञा से, पूर्ण गुरु ने उन्हें सभी गुणों से परिपूर्ण कर दिया है (और वे माया के पीछे नहीं भागते हैं)।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨਿ ਬੁਝਿਆ ਤਿਨਿ ਪਾਇਆ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥ गुरु की कृपा से जिन्होंने भगवान् को पहचान लिया है, उन्हें ही मोक्ष द्वार प्राप्त हुआ है।
ਮਨਮੁਖ ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਣਨੀ ਤਿਨ ਮਾਰੇ ਜਮ ਜੰਦਾਰੁ ॥ मनमुख व्यक्ति परमात्मा की आज्ञा को नहीं जानते, इसलिए वे सदैव क्रूर मृत्यु के भय में रहते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੀ ਅਰਾਧਿਆ ਤਿਨੀ ਤਰਿਆ ਭਉਜਲੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥ जो गुरमुख व्यक्ति ईश्वर की आराधना करते हैं तथा गुरु के आदेशों का पालन करतें हैं, वह विकारों से परिपूर्ण इस संसार सागर से पार हो जाते हैं।
ਸਭਿ ਅਉਗਣ ਗੁਣੀ ਮਿਟਾਇਆ ਗੁਰੁ ਆਪੇ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ॥੨॥ गुरु जी स्वयं ही क्षमावान हैं, वह जीवों को गुण प्रदान करके उनके समस्त अवगुण मिटा देते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਾ ਪਰਤੀਤਿ ਹਰਿ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ॥ भगवान् के भक्तों की भगवान् पर पूर्ण आस्था है, हरि-प्रभु सब कुछ जानता है।
ਹਰਿ ਜੇਵਡੁ ਨਾਹੀ ਕੋਈ ਜਾਣੁ ਹਰਿ ਧਰਮੁ ਬੀਚਾਰਦਾ ॥ वें किसी को भी परमेश्वर जैसा महान नहीं मानते, और वे जानते हैं कि हरि पूर्ण न्याय करते हैं।
ਕਾੜਾ ਅੰਦੇਸਾ ਕਿਉ ਕੀਜੈ ਜਾ ਨਾਹੀ ਅਧਰਮਿ ਮਾਰਦਾ ॥ जब परमात्मा अन्याय करके किसी को भी मारता नहीं तो फिर हम क्यों चिंता एवं भय करें ?
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਨਿਆਉ ਪਾਪੀ ਨਰੁ ਹਾਰਦਾ ॥ वह परमात्मा सत्य है और उसका न्याय भी सत्य है, उसके दरबार में पापी व्यक्ति ही पराजित होते हैं।
ਸਾਲਾਹਿਹੁ ਭਗਤਹੁ ਕਰ ਜੋੜਿ ਹਰਿ ਭਗਤ ਜਨ ਤਾਰਦਾ ॥੧੮॥ हे भक्तजनों ! दोनों हाथ जोड़कर भगवान् की महिमा-स्तुति करो क्योंकि भगवान् अपने भक्तजनों का विकारों से उद्धार करते हैं॥ १८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਆਪਣੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਿਲਿ ਰਹਾ ਅੰਤਰਿ ਰਖਾ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥ मेरी यही कामना है कि मैं अपने प्रियतम-प्रभु से मिली रहूँ और उसे अपने हृदय में हमेशा स्थिर रखूं।
ਸਾਲਾਹੀ ਸੋ ਪ੍ਰਭ ਸਦਾ ਸਦਾ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥ गुरु के स्नेह एवं अनुराग द्वारा मैं हमेशा प्रभु की स्तुति करती रहूँ ।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਮੇਲਿ ਲਏ ਸਾਈ ਸੁਹਾਗਣਿ ਨਾਰਿ ॥੧॥ हे नानक ! जिस जीव-स्त्री पर प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसे वह अपने साथ मिला लेता है और वही जीव-स्त्री सुहागिन है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥ जिस पर भगवान् अपनी कृपा दृष्टि डालते हैं, वह गुरु की शिक्षाओं का पालन करके उन्हें प्राप्त कर लेता है।
ਮਾਣਸ ਤੇ ਦੇਵਤੇ ਭਏ ਧਿਆਇਆ ਨਾਮੁ ਹਰੇ ॥ जो लोग हरिनाम की आराधना करते हैं, उन मनुष्यों में देवताओं के समान गुण आ जाते हैं।
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਇਅਨੁ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਤਰੇ ॥ प्रभु उनने अहंकार को नष्ट करके उन्हें अपने साथ जोड़ लेते हैं और वे गुरु के वचन द्वारा विकारों से बच जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਅਨੁ ਹਰਿ ਆਪਣੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ॥੨॥ हे नानक ! जिन पर ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करता है, वह सहज ही उसमें लीन हो जाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਆਪਣੀ ਭਗਤਿ ਕਰਾਇ ਵਡਿਆਈ ਵੇਖਾਲੀਅਨੁ ॥ भगवान् ने स्वयं ही भक्तजनों से अपनी भक्ति करवा कर उन्हें अपनी महिमा दिखाई है।
ਆਪਣੀ ਆਪਿ ਕਰੇ ਪਰਤੀਤਿ ਆਪੇ ਸੇਵ ਘਾਲੀਅਨੁ ॥ भगवान् स्वयं ही भक्तों के हृदय में अपनी आस्था उत्पन्न करते हैं, और उन्हें प्रेम से अपना नाम स्मरण कराते हैं।
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