Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 88

ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਆਪਣਾ ਸੋ ਸਿਰੁ ਲੇਖੈ ਲਾਇ ॥ जो लोग सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं, वे मानव जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं।
ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਕੈ ਰਹਨਿ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ ऐसा मनुष्य अपने अहंकार का नाश करके सत्यस्यरूप ईश्वर की प्रीति में लीन रहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਨ ਸੇਵਿਓ ਤਿਨਾ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇ ॥ जिन लोगों ने सतगुरु की शिक्षाओं का पालन नहीं किया, वह मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ गंवा देते हैं।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਕਰੇ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥੧॥ हे नानक ! किसी भी प्रकार से कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि परमात्मा वहीं कुछ करता है, जो कुछ उसे अच्छा लगता है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਮਨੁ ਵੇਕਾਰੀ ਵੇੜਿਆ ਵੇਕਾਰਾ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥ जिसका मन विकार सहित है, वह बुरे कर्मों में लगा रहता है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਅਗਿਆਨੀ ਪੂਜਦੇ ਦਰਗਹ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥ ज्ञानहीन मनुष्य माया के मोह में फँसकर माया की पूजा करते हैं। आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी व्यक्ति जो द्वैत प्रेम में लीन होकर ईश्वर की पूजा करते हैं, उन्हें ईश्वर की उपस्थिति में दंड (बार-बार जन्म और मृत्यु) मिलता है।
ਆਤਮ ਦੇਉ ਪੂਜੀਐ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬੂਝ ਨ ਪਾਇ ॥ अत: हमें केवल भगवान् की ही भक्ति करनी चाहिए, परंतु यह ज्ञान मनुष्य को सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन किए बिना प्राप्त नहीं होता।
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਭਾਣਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕਾ ਕਰਮੀ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥ सतगुरु की शिक्षाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करना ही असली पूजा, तपस्या और सादगी है, लेकिन ऐसा करने की क्षमता तभी प्राप्त होती है जब भगवान् मनुष्य पर दया करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਕਮਾਵਣੀ ਜੋ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥਾਇ ਪਾਇ ॥੨॥ हे नानक ! गुरु की सेवा उनकी शिक्षाओं का पूरे ध्यान से पालन करना है, लेकिन केवल वही सेवा स्वीकृत है जो भगवानू को प्रसन्न करती है। ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜਿਤੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ॥ हे मेरे मन ! उस हरि-परमेश्वर के नाम का हमेशा भजन करो, जिससे तुझे दिन-रात सदैव सुख उपलब्ध होता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜਿਤੁ ਸਿਮਰਤ ਸਭਿ ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਲਹਾਤੀ ॥ हे मेरे मन ! तू हरिनाम का भजन कर, जिसका सिमरन करने से तेरे पाप और अंदर के बुरे विचार सब मिट जाते हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜਿਤੁ ਦਾਲਦੁ ਦੁਖ ਭੁਖ ਸਭ ਲਹਿ ਜਾਤੀ ॥ हे मेरे मन ! हमेशा प्रेमपूर्ण भक्ति के साथ उस हरि-परमेश्वर के नाम का जाप करो, जिससे सांसारिक इच्छाओं के प्रति सब प्रकार की दरिद्रता, दुःख एवं भूख सब दूर हो जाएं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਤੀ ॥ हे मेरे मन ! सदैव भगवान को श्रद्धापूर्वक याद करो, ताकि गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से आपके भीतर प्रभु के प्रति प्रीति उत्पन्न हो सके।
ਜਿਤੁ ਮੁਖਿ ਭਾਗੁ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਸਾਚੈ ਹਰਿ ਤਿਤੁ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਤੀ ॥੧੩॥ जिसकी नियति ऐसी पूर्वनिर्धारित होती है, भगवान् उसे ही प्रेमपूर्वक भक्तिपूर्वक स्मरण करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।॥१३॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥: श्लोक महला ३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਨ ਸੇਵਿਓ ਸਬਦਿ ਨ ਕੀਤੋ ਵੀਚਾਰੁ ॥ जो प्राणी सतगुरु की सेवा नहीं करते और न ही गुरु-शब्द के माध्यम से प्रभु के नाम का चिन्तन करते हैं,
ਅੰਤਰਿ ਗਿਆਨੁ ਨ ਆਇਓ ਮਿਰਤਕੁ ਹੈ ਸੰਸਾਰਿ ॥ उनके अन्तर्मन में दिव्य ज्ञान का प्रकाश नहीं होता और वह इस जगत् में आध्यात्मिक रूप से मृतक के ही समान हैं।
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਫੇਰੁ ਪਇਆ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥ ऐसे प्राणी चौरासी लाख योनियों में चक्र काटते हैं और जीवन-मृत्यु के चक्र में पड़कर नष्ट होते हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਸੋਇ ॥ सतगुरु की सेवा वही करता है, जिससे प्रभु स्वयं करवाता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ सतगुरु के पास ही नाम रूपी खजाना है, जो प्रभु की दया से उपलब्ध होता है।
ਸਚਿ ਰਤੇ ਗੁਰ ਸਬਦ ਸਿਉ ਤਿਨ ਸਚੀ ਸਦਾ ਲਿਵ ਹੋਇ ॥ जो व्यक्ति गुरु की वाणी द्वारा सत्य प्रभु के नाम से में मग्न रहते हैं, उनका ध्यान हमेशा ही प्रभु पर केंद्रित रहता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸ ਨੋ ਮੇਲੇ ਨ ਵਿਛੁੜੈ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਇ ॥੧॥ हे नानक ! जिसे परमात्मा अपने साथ मिला लेता है, वह मनुष्य प्रभु से कभी भी विरक्त नहीं होता और सदा आध्यात्मिक रूप से संतुलित रहता है।॥ १ ॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਸੋ ਭਗਉਤੀ ਜੋੁ ਭਗਵੰਤੈ ਜਾਣੈ ॥ भगवद् भक्त का पद उसी को दिया जा सकता है, जो भगवान को जानता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ॥ गुरु की कृपा से वह अपने स्वरूप को पहचान लेता है।
ਧਾਵਤੁ ਰਾਖੈ ਇਕਤੁ ਘਰਿ ਆਣੈ ॥ वह अपने भटकते हुए मन को संयमित करके उसे स्वयं में स्थिर कर देता है।
ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥ वह सांसारिक विषयों में निर्लिप्त रहते हुए स्वयं को जीवित रहते हुए भी मृतक के समान समझते हुए सदैव हरिनाम का जाप करता है।
ਐਸਾ ਭਗਉਤੀ ਉਤਮੁ ਹੋਇ ॥ ऐसा भगवत् भक्त ही उत्तम होता है;
ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਇ ॥੨॥ हे नानक ! वह सत्य (परमात्मा) में ही समा जाता है ॥ २॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਅੰਤਰਿ ਕਪਟੁ ਭਗਉਤੀ ਕਹਾਏ ॥ जिस व्यक्ति के हृदय में छल-कपट है और वह अपने आपको सच्चा भक्त कहलवाता है।
ਪਾਖੰਡਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਕਦੇ ਨ ਪਾਏ ॥ ऐसा पाखंडी व्यक्ति पाखंड द्वारा कभी भी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता।
ਪਰ ਨਿੰਦਾ ਕਰੇ ਅੰਤਰਿ ਮਲੁ ਲਾਏ ॥ जो व्यक्ति पराई निंदा करता है, वह अपने हृदय को दूषित कर लेता है।
ਬਾਹਰਿ ਮਲੁ ਧੋਵੈ ਮਨ ਕੀ ਜੂਠਿ ਨ ਜਾਏ ॥ वह स्नान करके बाहर से शरीर की मैल को ही स्वच्छ करता है परन्तु उसके मन की अपवित्रता दूर नहीं होती।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਬਾਦੁ ਰਚਾਏ ॥ जो साधु-संतों से वाद-विवाद करता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਦੁਖੀਆ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਰਚਾਏ ॥ वह द्वैत-भाव में लीन हुआ दिन-रात दु:खी रहता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤੈ ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਏ ॥ वह हरि नाम का चिन्तन नहीं करता और अन्य सभी प्रकार के कर्मकाण्ड करता रहता है।
ਪੂਰਬ ਲਿਖਿਆ ਸੁ ਮੇਟਣਾ ਨ ਜਾਏ ॥ जो कुछ उसकी किस्मत में पूर्व-जन्म के कर्मों द्वारा लिखा हुआ है, वह मिटाया नहीं जा सकता।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਮੋਖੁ ਨ ਪਾਏ ॥੩॥ हे नानक ! वह मनुष्य सतगुरु की शिक्षाओं के चिंतन के बिना वह माया के प्रेम से मुक्त नहीं हो सकता ॥३॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ਸੇ ਕੜਿ ਨ ਸਵਾਹੀ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु को स्मरण करते हैं, वह जलकर राख नहीं होते।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ਸੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਹੀ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु का चिन्तन करते हैं, वह संतुष्ट और तृप्त हो जाते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਜਮ ਡਰੁ ਨਾਹੀ ॥ जो व्यक्ति सतगुरु का ध्यान करते हैं, उनको मृत्यु का कोई भय नहीं होता।
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