Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 879

Page 879

ਐਸਾ ਗਿਆਨੁ ਬੀਚਾਰੈ ਕੋਈ ॥ कोई विरला ही ऐसा ज्ञान सोचता है,
ਤਿਸ ਤੇ ਮੁਕਤਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिससे उसकी मुक्ति एवं परमगति हो जाती है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਦਿਨ ਮਹਿ ਰੈਣਿ ਰੈਣਿ ਮਹਿ ਦਿਨੀਅਰੁ ਉਸਨ ਸੀਤ ਬਿਧਿ ਸੋਈ ॥ जैसे दिन में रात है और रात में दिन करने वाला सूरज है, वैसे ही गर्मी और सर्दी के लिए वही विधि बनी हुई है।
ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਸਮਝ ਨ ਹੋਈ ॥੨॥ उसकी गति एवं विस्तार को अन्य कोई नहीं जानता और गुरु के बिना किसी को भी इस भेद का ज्ञान नहीं होता ॥ २॥
ਪੁਰਖ ਮਹਿ ਨਾਰਿ ਨਾਰਿ ਮਹਿ ਪੁਰਖਾ ਬੂਝਹੁ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ॥ इस तथ्य को ब्रह्मज्ञानी ही समझता है कि पुरुष में स्त्री और स्त्री में ही पुरुष समाया हुआ है अर्थात् स्त्री का जन्म पुरुष के वीर्य एवं स्त्री की कोख से ही पुरुष पैदा होता है।
ਧੁਨਿ ਮਹਿ ਧਿਆਨੁ ਧਿਆਨ ਮਹਿ ਜਾਨਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਕਥ ਕਹਾਨੀ ॥੩॥ अनहद शब्द की धुन में ध्यान समाया हुआ है और ध्यान में ही अनहद शब्द की धुन को जाना जाता है। इस अकथनीय कहानी को गुरुमुख ही समझ सकता है॥ ३॥
ਮਨ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਮਹਿ ਮਨੂਆ ਪੰਚ ਮਿਲੇ ਗੁਰ ਭਾਈ ॥ मनुष्य की ज्योति उसके मन में समाई हुई है और मन ज्योति में ही समाया हुआ है। मनुष्य की पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ गुरु-भाई बनकर परस्पर रहती हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜਿਨ ਏਕ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੪॥੯॥ हे नानक ! जिन्होंने केवल ब्रह्म-शब्द में ध्यान लगाया है, मैं उन पर सदैव बलिहारी जाता हूँ॥ ४॥९ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ रामकली महला १ ॥
ਜਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥ जब प्रभु की कृपा होती है तो
ਤਾ ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਮਾਰੀ ॥ मन का अहम् मिट जाता है।
ਸੋ ਸੇਵਕਿ ਰਾਮ ਪਿਆਰੀ ॥ वही सेवक राम को प्यारा लगता है,
ਜੋ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਬੀਚਾਰੀ ॥੧॥ जो गुरु के शब्द द्वारा चिंतन करता है॥ १॥
ਸੋ ਹਰਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥ वही भक्त प्रभु को भाता है,
ਅਹਿਨਿਸਿ ਭਗਤਿ ਕਰੇ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਲਾਜ ਛੋਡਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो रात-दिन उसकी भक्ति करता है और लोक-लाज को छोड़कर दिन-रात उसका गुणगान करता रहता है॥१॥ रहाउ॥
ਧੁਨਿ ਵਾਜੇ ਅਨਹਦ ਘੋਰਾ ॥ उसके मन में अनहद शब्द की ध्वनि गूंजती रहती है।
ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਹਰਿ ਰਸਿ ਮੋਰਾ ॥ मेरा मन हरि रस का पान करके तृप्त हो गया है।
ਗੁਰ ਪੂਰੈ ਸਚੁ ਸਮਾਇਆ ॥ पूर्ण गुरु में ही सत्य समाया हुआ है और
ਗੁਰੁ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ॥੨॥ गुरु द्वारा ही आदिपुरुष परमात्मा मिला है॥ २॥
ਸਭਿ ਨਾਦ ਬੇਦ ਗੁਰਬਾਣੀ ॥ गुरुवाणी ही सब नाद एवं वेद है।
ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਸਾਰਿਗਪਾਣੀ ॥ मेरा मन तो ईश्वर में ही लीन है और
ਤਹ ਤੀਰਥ ਵਰਤ ਤਪ ਸਾਰੇ ॥ वही सारे तप, व्रत एवं तीर्थ है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥ जिसे भी गुरु मिला है, भगवान ने उसका उद्धार कर दिया है॥ ३॥
ਜਹ ਆਪੁ ਗਇਆ ਭਉ ਭਾਗਾ ॥ जिसके मन में से अहंत्व दूर हो गया, उसका भय नाश हो गया है।
ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਸੇਵਕੁ ਲਾਗਾ ॥ जो भी सेवक गुरु के चरणों में आकर लग गया है,
ਗੁਰਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ गुरु-सतगुरु ने उसका भ्रम दूर कर दिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੪॥੧੦॥ हे नानक ! वह ब्रह्म-शब्द में ही विलीन हो गया है॥ ४ ॥ १० ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ रामकली महला १ ॥
ਛਾਦਨੁ ਭੋਜਨੁ ਮਾਗਤੁ ਭਾਗੈ ॥ योगी तो केवल वस्त्र-भोजन माँगता हुआ भागा फिरता है।
ਖੁਧਿਆ ਦੁਸਟ ਜਲੈ ਦੁਖੁ ਆਗੈ ॥ वह दुष्ट भूख की आग में जलता रहता है और मरणोपरांत परलोक में भी दुख ही भोगता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਨਹੀ ਲੀਨੀ ਦੁਰਮਤਿ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥ उसने गुरु की मति ग्रहण नहीं की और दुर्मति में ही अपनी इज्जत गंवा ली है।
ਗੁਰਮਤਿ ਭਗਤਿ ਪਾਵੈ ਜਨੁ ਕੋਈ ॥੧॥ कोई विरला ही गुरु मतानुसार भक्ति को प्राप्त करता है॥ १॥
ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਸਹਜ ਘਰਿ ਵਾਸੈ ॥ सच्चे योगी की योग-युक्ति यही है कि वह सहजावस्था के घर में ही रहता है।
ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਏਕੋ ਕਰਿ ਦੇਖਿਆ ਭੀਖਿਆ ਭਾਇ ਸਬਦਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह एक दृष्टि से सब जीवों में एक परमेश्वर को ही देखता है और शब्द की भिक्षा से तृप्त रहता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਪੰਚ ਬੈਲ ਗਡੀਆ ਦੇਹ ਧਾਰੀ ॥ पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ रूपी बैल इस शरीर रूपी गाड़ी को चला रहे हैं।
ਰਾਮ ਕਲਾ ਨਿਬਹੈ ਪਤਿ ਸਾਰੀ ॥ राम की शक्ति से इस शरीर रूपी गाड़ी की प्रतिष्ठा बनी रहती है।
ਧਰ ਤੂਟੀ ਗਾਡੋ ਸਿਰ ਭਾਰਿ ॥ जब इस गाड़ी का धुरा टूट जाता है तो यह शरीर रूपी गाड़ी सिर के भार गिर जाती है।
ਲਕਰੀ ਬਿਖਰਿ ਜਰੀ ਮੰਝ ਭਾਰਿ ॥੨॥ जब इसकी अंग रूपी लकड़ियां भिन्न-भिन्न हो जाती हैं तो इसे जला दिया जाता है॥ २॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਜੋਗੀ ॥ हे योगी ! गुरु के शब्द का चिंतन करो,
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਸਮ ਕਰਣਾ ਸੋਗ ਬਿਓਗੀ ॥ दुख-सुख एवं शोक वियोग को एक समान समझो।
ਭੁਗਤਿ ਨਾਮੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥ शब्द-गुरु के चिंतन द्वारा नाम रूपी भोजन ग्रहण करो।
ਅਸਥਿਰੁ ਕੰਧੁ ਜਪੈ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ॥੩॥ जीवन रूपी दीवार स्थिर हो जाएगी और फिर निरंकार का जाप करते रहोगे ॥ ३॥
ਸਹਜ ਜਗੋਟਾ ਬੰਧਨ ਤੇ ਛੂਟਾ ॥ जिसने सहजावस्था को अपना लंगोटा बना लिया है, वह बन्धनों से छूट गया है।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਲੂਟਾ ॥ उसने गुरु-शब्द द्वारा काम-क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है और
ਮਨ ਮਹਿ ਮੁੰਦ੍ਰਾ ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਰਣਾ ॥ भगवान् की शरण को मन में कानों की मुद्रा धारण कर लिया है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਜਨ ਤਰਣਾ ॥੪॥੧੧॥ हे नानक ! राम की भक्ति से ही दास भवसागर से पार होता है ॥ ४ ॥ ११ ॥


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