Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 86

ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥ जिसने सतगुरु की शिक्षाओं का पालन किया है, उसने आंतरिक शांति को प्राप्त किया है। गुणों से भरपूर भगवान् के सत्यनाम का अनुभव किया है।
ਗੁਰਮਤੀ ਆਪੁ ਪਛਾਣਿਆ ਰਾਮ ਨਾਮ ਪਰਗਾਸੁ ॥ गुरु की शिक्षाओं द्वारा जिस मनुष्य ने अपने स्वरूप को पहचान लिया है, उसके हृदय में प्रभु नाम का प्रकाश हो जाता है।
ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵਣਾ ਵਡਿਆਈ ਵਡੇ ਪਾਸਿ ॥ जो व्यक्ति सत्य-नाम का प्रेमपूर्वक सिमरन करते हैं, उन्हें भगवान् के दरबार में बड़ी शोभा मिलती है।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਕਾ ਸਿਫਤਿ ਕਰੇ ਅਰਦਾਸਿ ॥ उस जीव का मानना है कि यह जीवन और शरीर ईश्वर का दिया हुआ उपहार है, इसलिए वह सदैव प्रभु की स्तुति करता है और उसकी कृपा के लिए प्रार्थना करता है।
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਾਲਾਹਣਾ ਸੁਖੇ ਸੁਖਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥ वह गुरु के वचन के माध्यम से शाश्वत भगवान् की स्तुति करता है और हमेशा आध्यात्मिक आनंद में लीन रहता है।
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਾਸੁ ॥ उसके लिए द्वारा भगवान् की सच्ची पूजा करनी, जप, तप एवं संयम ही प्रभु को मन में अधिष्ठित करना है। इनके बिना मानुष का जीवन धिक्कार योग्य है।
ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਉ ਪਾਈਐ ਮਨਮੁਖ ਮੋਹਿ ਵਿਣਾਸੁ ॥ गुरु की शिक्षाओं द्वारा ही प्रभु का सत्य नाम प्राप्त होता है। माया के मोह में फँसकर मनमुख व्यक्ति का विनाश हो जाता है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਤੂੰ ਨਾਨਕੁ ਤੇਰਾ ਦਾਸੁ ॥੨॥ हे जगत् के स्वामी ! जिस तरह तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही मेरी रक्षा करो, नानक तेरा सेवक है ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਸਭਸੁ ਦਾ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਰਾਸਿ ॥ हे प्रभु ! सम्पूर्ण सृष्टि आपकी ही रचना है। आप ही इसके स्वामी है और आप ही इसके पालनकर्ता हैं।
ਸਭਿ ਤੁਧੈ ਪਾਸਹੁ ਮੰਗਦੇ ਨਿਤ ਕਰਿ ਅਰਦਾਸਿ ॥ सभी जीव दिन-प्रतिदिन प्रार्थना करके हमेशा आपसे माँगते रहते हैं।
ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤਿਸੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮਿਲੈ ਇਕਨਾ ਦੂਰਿ ਹੈ ਪਾਸਿ ॥ हे प्रभु ! जिस किसी को भी आप देते हो, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। कई जीवों के लिए आप कहीं दूर ही निवास करते हैं और कई अपने पास ही आपका निवास समझते हैं।
ਤੁਧੁ ਬਾਝਹੁ ਥਾਉ ਕੋ ਨਾਹੀ ਜਿਸੁ ਪਾਸਹੁ ਮੰਗੀਐ ਮਨਿ ਵੇਖਹੁ ਕੋ ਨਿਰਜਾਸਿ ॥ आपके अतिरिक्त कोई नहीं जिससे माँगा जाए। चाहे कोई भी अपने मन में इसका विचार करके देख ले।
ਸਭਿ ਤੁਧੈ ਨੋ ਸਾਲਾਹਦੇ ਦਰਿ ਗੁਰਮੁਖਾ ਨੋ ਪਰਗਾਸਿ ॥੯॥ हे प्रभु! हालाँकि सभी आपकी स्तुति करते हैं, लेकिन आप अपनी उपस्थिति में केवल उन्हीं जीवों को पहचानते और सम्मान देते हैं जो गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं। ॥९॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਪੰਡਿਤੁ ਪੜਿ ਪੜਿ ਉਚਾ ਕੂਕਦਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਿਆਰੁ ॥ पंडित लोग धन-संपदा के प्रेम से ग्रसित बार-बार उच्च स्वर से शास्त्रों का पाठ (भगवान् के प्रेम या श्रोताओं के आध्यात्मिक उत्थान के लिए नहीं) करते हैं ।
ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਚੀਨਈ ਮਨਿ ਮੂਰਖੁ ਗਾਵਾਰੁ ॥ वह मूर्ख एवं गंवार है जो अपने हृदय में विद्यमान परमात्मा को नहीं पहचानता।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਜਗਤੁ ਪਰਬੋਧਦਾ ਨਾ ਬੂਝੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥ अपने द्वैत-प्रेम भाव मोह-माया से अभिभूत होने के कारण वह स्वयं धर्ममय जीवन का अर्थ नहीं समझता, परन्तु संसार को उपदेश देता है।
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥੧॥ उसने अपना जन्म व्यर्थ गंवा दिया है और वह बार-बार जन्मता एवं मरता रहता है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਜਿਨੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨੀ ਨਾਉ ਪਾਇਆ ਬੂਝਹੁ ਕਰਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥ हे बंधु! विचार करके यह बात समझ लो कि जिन्होंने सतगुरु की शिक्षाओं का पालन किया है, उन्होंने ईश्वर के नाम को प्राप्त किया है।
ਸਦਾ ਸਾਂਤਿ ਸੁਖੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਚੂਕੈ ਕੂਕ ਪੁਕਾਰ ॥ उनके चित्त में सदैव सुख-शांति का निवास होता है और उनके दुःख, विलाप-शिकायत नष्ट हो जाते हैं।
ਆਪੈ ਨੋ ਆਪੁ ਖਾਇ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੀਚਾਰੁ ॥ जब मन गुरु के शब्द को विचार कर अपने अहंत्व को स्वयं ही नष्ट कर देता है तो वह निष्कलंक (विकारों से मुक्त) हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸੇ ਮੁਕਤੁ ਹੈ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰੁ ॥੨॥ हे नानक ! जो लोग गुरु वचनों से प्रभावित होते हैं वे विकारों से मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि वे ईश्वर के प्रेम से जुड़ जाते हैं। ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਫਲ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ਥਾਇ ॥ हरि की भक्तिपूर्वक की गई पूजा सभी के लिए फलदायी होती है, किन्तु ईश्वर की स्वीकृति तभी प्राप्त होती है जब गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हुए की जाए।
ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥ जिस पर प्रभु प्रसन्न होते हैं, उसको गुरु जी मिल जाते हैं, केवल वही हरिनाम का ध्यान करता है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਪਾਰਿ ਲਘਾਇ ॥ भगवान मनुष्य को संसार रूपी विकारों के सागर से पार लगाते हैं, लेकिन हमें प्रभु का आभास मात्र गुरु शब्द के माध्यम से होता है।
ਮਨਹਠਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਪੁਛਹੁ ਵੇਦਾ ਜਾਇ ॥ मन के हठ से किसी को भी ईश्वर प्राप्त नहीं हुआ। चाहे वेदों-शास्त्रों का मनन करके देख लो।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਲਏ ਹਰਿ ਲਾਇ ॥੧੦॥ हे नानक ! वही प्राणी ईश्वर की भक्ति करता है, जिसको भगवान् स्वयं गुरु के माध्यम से अपनी सेवा में ले लेते हैं ॥१०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ श्लोक महला ३॥
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੂਰਾ ਵਰੀਆਮੁ ਜਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਦੁਸਟੁ ਅਹੰਕਰਣੁ ਮਾਰਿਆ ॥ हे नानक ! वही व्यक्ति शूरवीर एवं महान योद्धा है, जिसने अपने अन्तर्मन से दुष्ट अहंकार का नाश कर लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਾਲਾਹਿ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥ उसने गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से नाम की महिमा करके अपने जीवन का उद्धार कर लिया है।
ਆਪਿ ਹੋਆ ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਸਭੁ ਕੁਲੁ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥ वह स्वयं सदा के लिए विकारों से मुक्त हो जाता है तथा अपने समूचे वंश को भी भवसागर से बचा लेता है।
ਸੋਹਨਿ ਸਚਿ ਦੁਆਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਿਆ ॥ नाम के ऐसे प्रेमी भगवान् की उपस्थिति में बड़ी शोभा प्राप्त करते हैं और सम्माननीय दिखते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਮਰਹਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਮਰਣੁ ਵਿਗਾੜਿਆ ॥ मनमुख प्राणी पूरा जीवन अहंकार में ग्रसित रहते हैं और अपनी मृत्यु को भी दुःखदायक बना लेते हैंऔर वें मरने को भी तुच्छ समझते हैं।
ਸਭੋ ਵਰਤੈ ਹੁਕਮੁ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਵਿਚਾਰਿਆ ॥ सब ओर ईश्वर का आदेश चलता है। निसहाय प्राणी क्या कर सकते हैं?
ਆਪਹੁ ਦੂਜੈ ਲਗਿ ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥ स्वेच्छाचारी लोगों ने स्वयं ही माया के प्रेम में लगकर प्रभु को विस्मृत कर दिया है।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥੧॥ हे नानक ! नाम से विहीन होने के कारण उन्हें दुःख आकर लग जाते हैं तथा सुख तो उन्हें भूल ही जाता है। ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥ महला ३॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿੜਾਇਆ ਤਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ जिन लोगों के भीतर पूर्ण गुरु ने भगवान् का नाम स्थापित कर दिया है; उनके अन्तर्मन से भ्रम दूर हो गया है।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਗਾਈ ਕਰਿ ਚਾਨਣੁ ਮਗੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ वह राम नाम द्वारा भगवान् की महिमा-स्तुति करते है; भगवान् ने उनके अन्तर्मन में अपनी ज्योति का प्रकाश करके उन्हें भक्ति-मार्ग दिखा दिया है।
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਇਆ ॥ वें अपने अहंकार को नष्ट करके भगवान के प्रति प्रेम विकसित करते हैं और परमेश्वर के नाम को अपने हृदय में स्थापित करते हैं।
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