Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 858

Page 858

ਦੁਖ ਬਿਸਾਰਿ ਸੁਖ ਅੰਤਰਿ ਲੀਨਾ ॥੧॥ अब मैं दुखों को भुलाकर सुख में लीन रहता हूँ॥ १॥
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਮੋ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨਾ ॥ गुरु ने मुझे ज्ञान का अंजन (आँखों में डालने की दवा) दिया है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਜੀਵਨੁ ਮਨ ਹੀਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ राम नाम के बिना मेरा जीवन हीन था ॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਾਮਦੇਇ ਸਿਮਰਨੁ ਕਰਿ ਜਾਨਾਂ ॥ नामदेव ने सिमरन करके जान लिया है और
ਜਗਜੀਵਨ ਸਿਉ ਜੀਉ ਸਮਾਨਾਂ ॥੨॥੧॥ उसकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई है॥ २ ॥ १ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਬਾਣੀ ਰਵਿਦਾਸ ਭਗਤ ਕੀ बिलावलु बाणी रविदास भगत की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਦਾਰਿਦੁ ਦੇਖਿ ਸਭ ਕੋ ਹਸੈ ਐਸੀ ਦਸਾ ਹਮਾਰੀ ॥ हे ईश्वर ! हमारी दशा ऐसी थी कि दरिद्र देखकर हर कोई हँसता था।
ਅਸਟ ਦਸਾ ਸਿਧਿ ਕਰ ਤਲੈ ਸਭ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੁਮਾਰੀ ॥੧॥ अब अठारह सिद्धियाँ मेरे हाथों की हथेली में हैं, यह सब तेरी ही कृपा है॥ १॥
ਤੂ ਜਾਨਤ ਮੈ ਕਿਛੁ ਨਹੀ ਭਵ ਖੰਡਨ ਰਾਮ ॥ हे मुक्तिदाता ! तू जानता ही है कि मैं कुछ भी नहीं।
ਸਗਲ ਜੀਅ ਸਰਨਾਗਤੀ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! तू सबकी कामना पूर्ण करने वाला है, अतः सब जीव तेरी शरण लेते हैं ॥१॥ रहाउ ॥
ਜੋ ਤੇਰੀ ਸਰਨਾਗਤਾ ਤਿਨ ਨਾਹੀ ਭਾਰੁ ॥ जो तेरी शरण में आ जाते हैं, उनके पापों का भार नहीं रहता।
ਊਚ ਨੀਚ ਤੁਮ ਤੇ ਤਰੇ ਆਲਜੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥ ऊँच-नीच वाले सब जीव तेरी कृपा से इस झंझटों वाले संसार से पार हो गए हैं।॥ २॥
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਅਕਥ ਕਥਾ ਬਹੁ ਕਾਇ ਕਰੀਜੈ ॥ रविदास जी कहते हैं कि प्रभु की कथा अकथनीय है, इस बारे और कथन किस लिए किया जाए।
ਜੈਸਾ ਤੂ ਤੈਸਾ ਤੁਹੀ ਕਿਆ ਉਪਮਾ ਦੀਜੈ ॥੩॥੧॥ जैसा तू है, वैसा केवल तू स्वयं ही है, फिर तुझे क्या उपमा दी जा सकती है॥ ३॥ १॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ॥ बिलावलु ॥
ਜਿਹ ਕੁਲ ਸਾਧੁ ਬੈਸਨੌ ਹੋਇ ॥ जिस कुल में वैष्णव साधु पैदा हो जाता है,
ਬਰਨ ਅਬਰਨ ਰੰਕੁ ਨਹੀ ਈਸੁਰੁ ਬਿਮਲ ਬਾਸੁ ਜਾਨੀਐ ਜਗਿ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चाहे वह ऊँची जाति का है अथवा नीच जाति का है, यह धनवान है अथवा निर्धन है, उसकी सुगन्धि एवं शोभा सारे जग में फैल जाती है।॥१॥ रहाउ ॥
ਬ੍ਰਹਮਨ ਬੈਸ ਸੂਦ ਅਰੁ ਖ੍ਯ੍ਯਤ੍ਰੀ ਡੋਮ ਚੰਡਾਰ ਮਲੇਛ ਮਨ ਸੋਇ ॥ चाहे कोई ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, क्षत्रिय, डोम, चाण्डाल अथवा मलिन मन वाला मलेच्छ हो, वह भगवंत के भजन से पवित्र हो जाता है।
ਹੋਇ ਪੁਨੀਤ ਭਗਵੰਤ ਭਜਨ ਤੇ ਆਪੁ ਤਾਰਿ ਤਾਰੇ ਕੁਲ ਦੋਇ ॥੧॥ वह स्वयं पार होकर पितृ एवं मातृ दोनों कुलों को भी पार करवा देता है॥ १॥
ਧੰਨਿ ਸੁ ਗਾਉ ਧੰਨਿ ਸੋ ਠਾਉ ਧੰਨਿ ਪੁਨੀਤ ਕੁਟੰਬ ਸਭ ਲੋਇ ॥ वह गाँव धन्य है, जहां उसने जन्म लिया है और वह ठिकाना भी धन्य है, जहाँ वह रहता है। उसका पवित्र परिवार भी धन्य है जिसमें मिलकर वह रहता है और ये सब लोग धन्य हैं जो उसकी संगत करते हैं।
ਜਿਨਿ ਪੀਆ ਸਾਰ ਰਸੁ ਤਜੇ ਆਨ ਰਸ ਹੋਇ ਰਸ ਮਗਨ ਡਾਰੇ ਬਿਖੁ ਖੋਇ ॥੨॥ जिसने हरि-नाम रूपी श्रेष्ठ रस पान किया है तथा अन्य रस त्याग दिए हैं, उसने हरि रस में लीन होकर विष रूपो रसों को नाश कर दिया है॥ २॥
ਪੰਡਿਤ ਸੂਰ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਰਾਜਾ ਭਗਤ ਬਰਾਬਰਿ ਅਉਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ पण्डित, शूरवीर, छत्रपति राजा इत्यादि अन्य कोई भी भक्त के बराबर नहीं है,
ਜੈਸੇ ਪੁਰੈਨ ਪਾਤ ਰਹੈ ਜਲ ਸਮੀਪ ਭਨਿ ਰਵਿਦਾਸ ਜਨਮੇ ਜਗਿ ਓਇ ॥੩॥੨॥ जैसे पुरिन के पत्ते जल के निकट रहकर हरे भरे रहते हैं, वैसे ही हरि के भक्त हरि के सहारे खिले रहते हैं, रविदास जी कहते हैं कि उन भक्तजनों का ही जन्म सफल है ॥३॥२॥
ਬਾਣੀ ਸਧਨੇ ਕੀ ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ बाणी सधने की रागु बिलावलु
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਨ੍ਰਿਪ ਕੰਨਿਆ ਕੇ ਕਾਰਨੈ ਇਕੁ ਭਇਆ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥ राजा की पुत्री से विवाह करवाने के लिए एक ढोंगी आदमी ने विष्णु का रूप धारण कर लिया था।
ਕਾਮਾਰਥੀ ਸੁਆਰਥੀ ਵਾ ਕੀ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥੧॥ वह कामुक एवं स्वार्थी था, हे हरि ! पर तूने उसकी भी लाज रखी थी ॥ १॥
ਤਵ ਗੁਨ ਕਹਾ ਜਗਤ ਗੁਰਾ ਜਉ ਕਰਮੁ ਨ ਨਾਸੈ ॥ हे जगतगुरु ! यदि मेरा किया कर्म नाश न हो तो तेरी महिमा का क्या अभिप्राय है।
ਸਿੰਘ ਸਰਨ ਕਤ ਜਾਈਐ ਜਉ ਜੰਬੁਕੁ ਗ੍ਰਾਸੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ शेर की शरण क्यों जाए यदि फिर गीदड़ ही ग्रास बना ले ॥१॥ रहाउ ॥
ਏਕ ਬੂੰਦ ਜਲ ਕਾਰਨੇ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥ स्वाति जल की एक बूंद के लिए पपीहा दुख प्राप्त करता है।
ਪ੍ਰਾਨ ਗਏ ਸਾਗਰੁ ਮਿਲੈ ਫੁਨਿ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ॥੨॥ इस लालसा में यदि प्राण निकलने के पश्चात् उसे समुद्र भी मिल जाए तो फिर वह उसके काम नहीं आता॥ २i।
ਪ੍ਰਾਨ ਜੁ ਥਾਕੇ ਥਿਰੁ ਨਹੀ ਕੈਸੇ ਬਿਰਮਾਵਉ ॥ मेरे प्राण जो थक गए हैं, अब वह स्थिर नहीं होते, फिर मैं कैसे धीरज करूं ?
ਬੂਡਿ ਮੂਏ ਨਉਕਾ ਮਿਲੈ ਕਹੁ ਕਾਹਿ ਚਢਾਵਉ ॥੩॥ मेरे डूबकर मरने के पश्चात् यदि नौका मिल जाए तो बताओ, उसमें मुझे किसलिए चढ़ाया जाएगा ? ॥ ३॥
ਮੈ ਨਾਹੀ ਕਛੁ ਹਉ ਨਹੀ ਕਿਛੁ ਆਹਿ ਨ ਮੋਰਾ ॥ मैं कुछ भी नहीं था, न अब मैं कुछ हूँ और न ही मेरा कुछ है।
ਅਉਸਰ ਲਜਾ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਸਧਨਾ ਜਨੁ ਤੋਰਾ ॥੪॥੧॥ हे मालिक ! सधना तेरा दास है, अब मेरी लाज रखने का समय है, लाज रखो ॥ ४ ॥ १ ॥


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