Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 822

Page 822

ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਆਵਹਿ ਅੰਧ ਅਗਿਆਨੀ ਸੋਇ ਰਹਿਓ ਮਦ ਮਾਵਤ ਹੇ ॥੩॥ द्रिसटि न आवहि अंध अगिआनी सोइ रहिओ मद मावत हे ॥३॥ उस आध्यात्मिक रूप से अन्धे-अज्ञानी को कुछ भी नज़र नहीं आ रहा अपितु मोह के नशे में सो रहा है॥ ३॥
ਜਾਲੁ ਪਸਾਰਿ ਚੋਗ ਬਿਸਥਾਰੀ ਪੰਖੀ ਜਿਉ ਫਾਹਾਵਤ ਹੇ ॥ जालु पसारि चोग बिसथारी पंखी जिउ फाहावत हे ॥ जैसे किसी पक्षी को पकड़ने के लिए जाल बिछाकर दाना फैला दिया जाता है, वैसे ही वह सांसारिक धन और सत्ता के आकर्षण में फँसता जा रहा हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬੰਧਨ ਕਾਟਨ ਕਉ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਧਿਆਵਤ ਹੇ ॥੪॥੨॥੮੮॥ कहु नानक बंधन काटन कउ मै सतिगुरु पुरखु धिआवत हे ॥४॥२॥८८॥ नानक कहते हैं कि, “इन बन्धनों को काटने के लिए मैं महापुरुष सतगुरु का ध्यान करता रहता हूँ।’’॥ ४॥ २॥ ८८ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰ ਅਮੋਲੀ ॥ हरि हरि नामु अपार अमोली ॥ हरि का नाम अपार एवं अमूल्य है।
ਪ੍ਰਾਨ ਪਿਆਰੋ ਮਨਹਿ ਅਧਾਰੋ ਚੀਤਿ ਚਿਤਵਉ ਜੈਸੇ ਪਾਨ ਤੰਬੋਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रान पिआरो मनहि अधारो चीति चितवउ जैसे पान त्मबोली ॥१॥ रहाउ ॥ यह हमें प्राणों से भी प्यारा है और मन का आधार है। मैं इसे ऐसे याद करता हूँ जैसे पान बेचने वाला अपने पानों को याद रखता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਓ ਗੁਰਹਿ ਬਤਾਇਓ ਰੰਗਿ ਰੰਗੀ ਮੇਰੇ ਤਨ ਕੀ ਚੋਲੀ ॥ सहजि समाइओ गुरहि बताइओ रंगि रंगी मेरे तन की चोली ॥ जैसे गुरु ने बताया है, वैसे ही मैं सहजावस्था में समाया रहता हूँ और मेरी शरीर रूपी चोली प्रभु रंग में रंग गई है।
ਪ੍ਰਿਅ ਮੁਖਿ ਲਾਗੋ ਜਉ ਵਡਭਾਗੋ ਸੁਹਾਗੁ ਹਮਾਰੋ ਕਤਹੁ ਨ ਡੋਲੀ ॥੧॥ प्रिअ मुखि लागो जउ वडभागो सुहागु हमारो कतहु न डोली ॥१॥ जब मेरा भाग्योदय हुआ तो मुझे अपने प्रिय के दर्शन हो गए। अब मेरा सुहाग अटल हो गया है॥ १॥
ਰੂਪ ਨ ਧੂਪ ਨ ਗੰਧ ਨ ਦੀਪਾ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਅੰਗ ਅੰਗ ਸੰਗਿ ਮਉਲੀ ॥ रूप न धूप न गंध न दीपा ओति पोति अंग अंग संगि मउली ॥ ईश्वर की पूजा करने के लिए मुझे रूप, धूप, सुगन्धि एवं दीपक की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि मैं पूरी तरह से उनमें विलीन हो गया हूं और पूर्णतः प्रसन्न हूं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਿਅ ਰਵੀ ਸੁਹਾਗਨਿ ਅਤਿ ਨੀਕੀ ਮੇਰੀ ਬਨੀ ਖਟੋਲੀ ॥੨॥੩॥੮੯॥ कहु नानक प्रिअ रवी सुहागनि अति नीकी मेरी बनी खटोली ॥२॥३॥८९॥ हे नानक ! मेरे प्रिय-प्रभु ने मुझे सुहागिन बनाकर रमण किया है और मेरी हृदय रूपी सेज सुन्दर बन गई है॥ २॥ ३॥ ८६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦ ਮਈ ॥ गोबिंद गोबिंद गोबिंद मई ॥ ‘गोविंद-गोविंद’ जपकर मैं गोविंदमयी बन गया हूँ।
ਜਬ ਤੇ ਭੇਟੇ ਸਾਧ ਦਇਆਰਾ ਤਬ ਤੇ ਦੁਰਮਤਿ ਦੂਰਿ ਭਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब ते भेटे साध दइआरा तब ते दुरमति दूरि भई ॥१॥ रहाउ ॥ जबसे मुझे दयालु साधु मिल गए हैं और उनके उपदेशों का अनुसरण किया, तबसे मेरी दुर्मति दूर हो गई है॥ १॥ रहाउ ॥
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸੰਪੂਰਨ ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਦਇਆਲ ਦਈ ॥ पूरन पूरि रहिओ स्मपूरन सीतल सांति दइआल दई ॥ जब मनुष्य को यह बोध होता है कि करुणामय, शांत और सभी गुणों से युक्त ईश्वर हर स्थान पर उपस्थित है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਹੰਕਾਰਾ ਤਨ ਤੇ ਹੋਏ ਸਗਲ ਖਈ ॥੧॥ काम क्रोध त्रिसना अहंकारा तन ते होए सगल खई ॥१॥ तब उसके तन में से काम, क्रोध, तृष्णा एवं अहंकार इत्यादि नाश हो गए हैं।॥ १ ॥
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਦਇਆ ਧਰਮੁ ਸੁਚਿ ਸੰਤਨ ਤੇ ਇਹੁ ਮੰਤੁ ਲਈ ॥ सतु संतोखु दइआ धरमु सुचि संतन ते इहु मंतु लई ॥ जीव को संतों से सत्य, संतोष, दया, धर्म एवं पुण्य का मंत्र मिलता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਮਨਹੁ ਪਛਾਨਿਆ ਤਿਨ ਕਉ ਸਗਲੀ ਸੋਝ ਪਈ ॥੨॥੪॥੯੦॥ कहु नानक जिनि मनहु पछानिआ तिन कउ सगली सोझ पई ॥२॥४॥९०॥ हे नानक ! जिन्होंने मन से भगवान् को पहचान लिया है, उन्हें आध्यात्मिक रूप से सारी सूझ प्राप्त हो गई है ॥ २!॥४ ।॥ ६० ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਕਿਆ ਹਮ ਜੀਅ ਜੰਤ ਬੇਚਾਰੇ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਹ ਏਕ ਰੋਮਾਈ ॥ किआ हम जीअ जंत बेचारे बरनि न साकह एक रोमाई ॥ हे ठाकुर जी ! हम जीव बेचारे क्या हैं, हम किंचित भी गुणों का वर्णन नहीं कर सकते।
ਬ੍ਰਹਮ ਮਹੇਸ ਸਿਧ ਮੁਨਿ ਇੰਦ੍ਰਾ ਬੇਅੰਤ ਠਾਕੁਰ ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥੧॥ ब्रहम महेस सिध मुनि इंद्रा बेअंत ठाकुर तेरी गति नही पाई ॥१॥ ब्रह्मा, शिवशंकर, सिद्ध, मुनि एवं इन्द्र भी आपकी गति को नहीं जान सके ॥ १॥
ਕਿਆ ਕਥੀਐ ਕਿਛੁ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥ किआ कथीऐ किछु कथनु न जाई ॥ हम आपकी क्या महिमा करें? आपके बारे में कुछ कथन नहीं किया जा सकता।
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जह जह देखा तह रहिआ समाई ॥१॥ रहाउ ॥ मैं जिधर भी देखता हूँ, आप वहाँ ही समाए हुए हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਜਹ ਮਹਾ ਭਇਆਨ ਦੂਖ ਜਮ ਸੁਨੀਐ ਤਹ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਤੂਹੈ ਸਹਾਈ ॥ जह महा भइआन दूख जम सुनीऐ तह मेरे प्रभ तूहै सहाई ॥ हे मेरे प्रभु ! जहाँ मृत्युरूपी राक्षस द्वारा अत्यंत कठोर यातनाएँ दी जाने की बात कही जाती है, वहाँ आप ही मेरे एकमात्र सहायक और आश्रय हैं।
ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਹਰਿ ਚਰਨ ਗਹੇ ਪ੍ਰਭ ਗੁਰਿ ਨਾਨਕ ਕਉ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੨॥੫॥੯੧॥ सरनि परिओ हरि चरन गहे प्रभ गुरि नानक कउ बूझ बुझाई ॥२॥५॥९१॥ हे प्रभु! सतगुरु द्वारा नानक को यह बोध प्राप्त हुआ है; अतः वह आपकी शरण ग्रहण कर आपके पावन नाम से एकत्व प्राप्त कर चुके हैं। ॥२॥५॥९१॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਅਗਮ ਰੂਪ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕਰਤਾ ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ ਇਕ ਨਿਮਖ ਜਪਾਈਐ ॥ अगम रूप अबिनासी करता पतित पवित इक निमख जपाईऐ ॥ अगम्य रूप, अविनाशी ईश्वर का हर पल नाम लेना चाहिए, जो पतित जीवों को पवित्र कर देता है।
ਅਚਰਜੁ ਸੁਨਿਓ ਪਰਾਪਤਿ ਭੇਟੁਲੇ ਸੰਤ ਚਰਨ ਚਰਨ ਮਨੁ ਲਾਈਐ ॥੧॥ अचरजु सुनिओ परापति भेटुले संत चरन चरन मनु लाईऐ ॥१॥ कहा जाता है कि ईश्वर विलक्षण है, लेकिन उसे केवल गुरु के सान्निध्य और उपदेशों के अनुसरण से ही अनुभव किया जा सकता है। ॥ १॥
ਕਿਤੁ ਬਿਧੀਐ ਕਿਤੁ ਸੰਜਮਿ ਪਾਈਐ ॥ कितु बिधीऐ कितु संजमि पाईऐ ॥ उसे किस विधि एवं संयम द्वारा पाया जाता है ?
ਕਹੁ ਸੁਰਜਨ ਕਿਤੁ ਜੁਗਤੀ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कहु सुरजन कितु जुगती धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥ हे भद्रजनों ! बताओ, किस युक्ति से उसका ध्यान करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਮਾਨੁਖੁ ਮਾਨੁਖ ਕੀ ਸੇਵਾ ਓਹੁ ਤਿਸ ਕੀ ਲਈ ਲਈ ਫੁਨਿ ਜਾਈਐ ॥ जो मानुखु मानुख की सेवा ओहु तिस की लई लई फुनि जाईऐ ॥ जब एक मनुष्य द्वारा की गई सेवा को दूसरा मनुष्य भी नहीं भूलता, तो हे प्रभु, आपकी भक्ति व्यर्थ कैसे हो सकती है?
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਸਰਣਿ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਮੋਹਿ ਟੇਕ ਤੇਰੋ ਇਕ ਨਾਈਐ ॥੨॥੬॥੯੨॥ नानक सरनि सरणि सुख सागर मोहि टेक तेरो इक नाईऐ ॥२॥६॥९२॥ नानक कहते हैं कि हे सुखसागर ! मैंने आपकी शरण ली है तथा मुझे आपके नाम का ही आसरा है॥ २॥ ६॥ ६२॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸੰਤ ਸਰਣਿ ਸੰਤ ਟਹਲ ਕਰੀ ॥ संत सरणि संत टहल करी ॥ मैंने संतों की शरण में आकर उनकी सेवा की है।
ਧੰਧੁ ਬੰਧੁ ਅਰੁ ਸਗਲ ਜੰਜਾਰੋ ਅਵਰ ਕਾਜ ਤੇ ਛੂਟਿ ਪਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ धंधु बंधु अरु सगल जंजारो अवर काज ते छूटि परी ॥१॥ रहाउ ॥ जिसके फलस्वरूप जगत् के धंधों, बंधनों, सारे जंजालों एवं अन्य कार्यों से मुक्त हो गया हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਅਰੁ ਘਨੋ ਅਨੰਦਾ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਓ ਨਾਮੁ ਹਰੀ ॥ सूख सहज अरु घनो अनंदा गुर ते पाइओ नामु हरी ॥ मैंने गुरु से हरि का नाम प्राप्त कर लिया है, जिससे मुझे सहज सुख एवं बड़ा आनंद मिला है।


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