Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 820

Page 820

ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਬੇਨਤੀ ਸੁਣੀ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ॥ भगत जना की बेनती सुणी प्रभि आपि ॥ प्रभु ने स्वयं ही अपने भक्तजनों की विनती सुनी है।
ਰੋਗ ਮਿਟਾਇ ਜੀਵਾਲਿਅਨੁ ਜਾ ਕਾ ਵਡ ਪਰਤਾਪੁ ॥੧॥ रोग मिटाइ जीवालिअनु जा का वड परतापु ॥१॥ जिसका सारे जगत् में बड़ा प्रताप है, उस प्रभु ने समस्त रोग मिटाकर आध्यात्मिक रूप से जीवनदान दिया है॥ १॥
ਦੋਖ ਹਮਾਰੇ ਬਖਸਿਅਨੁ ਅਪਣੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥ दोख हमारे बखसिअनु अपणी कल धारी ॥ ईश्वर ने हमारे दोषों को क्षमा किया तथा अपनी आध्यात्मिक शक्ति हमारे हृदय में स्थापित की।
ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਫਲ ਦਿਤਿਅਨੁ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨॥੧੬॥੮੦॥ मन बांछत फल दितिअनु नानक बलिहारी ॥२॥१६॥८०॥ हे नानक उसने मुझे मनोवांछित फल प्रदान किया है, मैं उस पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ। ॥२॥१६॥८०॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਦੁਪਦੇ ਘਰੁ ੬ रागु बिलावलु महला ५ चउपदे दुपदे घरु ६ राग बिलावल, पाँचवें गुरु, चार छंद और दो छंद, छठी ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਮੇਰੇ ਮੋਹਨ ਸ੍ਰਵਨੀ ਇਹ ਨ ਸੁਨਾਏ ॥ मेरे मोहन स्रवनी इह न सुनाए ॥ हे मेरे मोहन ! मेरे कान वे कभी न सुने
ਸਾਕਤ ਗੀਤ ਨਾਦ ਧੁਨਿ ਗਾਵਤ ਬੋਲਤ ਬੋਲ ਅਜਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साकत गीत नाद धुनि गावत बोलत बोल अजाए ॥१॥ रहाउ ॥ जो व्यक्ति बिना श्रद्धा के बेसुरे गीत और धुनें गा रहा है, और निरर्थक शब्द बोल रहा है। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੇਵਤ ਸੇਵਿ ਸੇਵਿ ਸਾਧ ਸੇਵਉ ਸਦਾ ਕਰਉ ਕਿਰਤਾਏ ॥ सेवत सेवि सेवि साध सेवउ सदा करउ किरताए ॥ जीवन में सदैव यही कार्य करूँ कि एकाग्रचित होकर साधुओं की सेवा करता रहूँ।
ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਪਾਵਉ ਪੁਰਖ ਦਾਤੇ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥ अभै दानु पावउ पुरख दाते मिलि संगति हरि गुण गाए ॥१॥ हे दाता ! मैं आपसे अभयदान प्राप्त करूँ और सत्संगति में मिलकर आपका ही गुणगान करता रहूँ॥ १॥
ਰਸਨਾ ਅਗਹ ਅਗਹ ਗੁਨ ਰਾਤੀ ਨੈਨ ਦਰਸ ਰੰਗੁ ਲਾਏ ॥ रसना अगह अगह गुन राती नैन दरस रंगु लाए ॥ हे प्रभो ! मेरी जीभ आपके अनंत गुणों में लीन रहे और नयन आपके दर्शनों के प्रेम में लगे रहें।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਮੋਹਿ ਚਰਣ ਰਿਦੈ ਵਸਾਏ ॥੨॥ होहु क्रिपाल दीन दुख भंजन मोहि चरण रिदै वसाए ॥२॥ हे दीनों के दुःखनाशक ! कृपा करो और अपना निष्कलंक नाम मेरे हृदय में बसाओ ॥ २॥
ਸਭਹੂ ਤਲੈ ਤਲੈ ਸਭ ਊਪਰਿ ਏਹ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਦ੍ਰਿਸਟਾਏ ॥ सभहू तलै तलै सभ ऊपरि एह द्रिसटि द्रिसटाए ॥ हे प्रभो ! मुझे वह विनम्रता प्रदान करें जिससे मैं अपने अहंकार को त्याग कर सभी को मुझसे श्रेष्ठ मान सकूँ।
ਅਭਿਮਾਨੁ ਖੋਇ ਖੋਇ ਖੋਇ ਖੋਈ ਹਉ ਮੋ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥੩॥ अभिमानु खोइ खोइ खोइ खोई हउ मो कउ सतिगुर मंत्रु द्रिड़ाए ॥३॥ हे प्रभो ! मेरे अंतःकरण में सच्चे गुरु के उपदेशों को स्थिर करो ताकि मैं अहंकार से मुक्त हो जाऊँ।॥ ३॥
ਅਤੁਲੁ ਅਤੁਲੁ ਅਤੁਲੁ ਨਹ ਤੁਲੀਐ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਕਿਰਪਾਏ ॥ अतुलु अतुलु अतुलु नह तुलीऐ भगति वछलु किरपाए ॥ हे भक्तवत्सल, हे कृपानिधि ! आप अतुलनीय है और आपके गुणों को तोला नहीं जा सकता।
ਜੋ ਜੋ ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥੪॥੧॥੮੧॥ जो जो सरणि परिओ गुर नानक अभै दानु सुख पाए ॥४॥१॥८१॥ नानक कहते हैं कि जो जो गुरु की शरण में आया है, उसने अभयदान एवं सुख पा लिया है।४॥ १॥ ८१॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਤੂ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੈ ॥ प्रभ जी तू मेरे प्रान अधारै ॥ हे प्रभु ! आप मेरे प्राणों का आधार है,
ਨਮਸਕਾਰ ਡੰਡਉਤਿ ਬੰਦਨਾ ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਜਾਉ ਬਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ नमसकार डंडउति बंदना अनिक बार जाउ बारै ॥१॥ रहाउ ॥ इसलिए मैं आपको दण्डवत प्रणाम एवं वंदना करता हूँ और आप पर अनेक बार बलिहारी जाता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਇਹੁ ਮਨੁ ਤੁਝਹਿ ਚਿਤਾਰੈ ॥ ऊठत बैठत सोवत जागत इहु मनु तुझहि चितारै ॥ उठते-बैठते, सोते-जागते मेरा यह मन आपको ही याद करता रहे।
ਸੂਖ ਦੂਖ ਇਸੁ ਮਨ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਤੁਝ ਹੀ ਆਗੈ ਸਾਰੈ ॥੧॥ सूख दूख इसु मन की बिरथा तुझ ही आगै सारै ॥१॥ मैं अपने सुख-दुःख और इस मन की व्यथा आपके समक्ष ही वर्णन करता हूँ॥ १॥
ਤੂ ਮੇਰੀ ਓਟ ਬਲ ਬੁਧਿ ਧਨੁ ਤੁਮ ਹੀ ਤੁਮਹਿ ਮੇਰੈ ਪਰਵਾਰੈ ॥ तू मेरी ओट बल बुधि धनु तुम ही तुमहि मेरै परवारै ॥ आप मेरी ओट, बल, बुद्धि, धन इत्यादि सबकुछ है, और आप ही मेरा परिवार हो।
ਜੋ ਤੁਮ ਕਰਹੁ ਸੋਈ ਭਲ ਹਮਰੈ ਪੇਖਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਚਰਨਾਰੈ ॥੨॥੨॥੮੨॥ जो तुम करहु सोई भल हमरै पेखि नानक सुख चरनारै ॥२॥२॥८२॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु, आप जो भी करते हो, वही मेरे लिए भला है तथा आपके निष्कलंक नाम का ध्यान मुझे आत्मिक शांति और आनंद प्रदान करता है।॥ २ ॥ २॥ ८२ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਸੁਨੀਅਤ ਪ੍ਰਭ ਤਉ ਸਗਲ ਉਧਾਰਨ ॥ सुनीअत प्रभ तउ सगल उधारन ॥ हे प्रभु ! सुना है कि आप सब जीवों का उद्धार करने वाले हैं।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਪਤਿਤ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਐਸੇ ਮਨਹਿ ਬਿਸਾਰਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मोह मगन पतित संगि प्रानी ऐसे मनहि बिसारन ॥१॥ रहाउ ॥ मोह में मग्न होकर पतित प्राणियों के संग रहकर हमने मन से उस परमेश्वर को भुला दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਚਿ ਬਿਖਿਆ ਲੇ ਗ੍ਰਾਹਜੁ ਕੀਨੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮਨ ਤੇ ਡਾਰਨ ॥ संचि बिखिआ ले ग्राहजु कीनी अम्रितु मन ते डारन ॥ हमने माया रूपी विष को संचित करके जकड़ कर पकड़ रखा है किन्तु नामामृत को मन से हटा दिया है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਰਤੁ ਨਿੰਦਾ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਬਿਦਾਰਨ ॥੧॥ काम क्रोध लोभ रतु निंदा सतु संतोखु बिदारन ॥१॥ हम काम, क्रोध एवं निंदा में लीन रहते हैं लेकिन सत्य एवं संतोष को त्याग चुके हैं।॥ १॥
ਇਨ ਤੇ ਕਾਢਿ ਲੇਹੁ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਹਾਰਿ ਪਰੇ ਤੁਮ੍ਹ੍ ਸਾਰਨ ॥ इन ते काढि लेहु मेरे सुआमी हारि परे तुम्ह सारन ॥ हे मेरे स्वामी ! मुझे इन विकारों से बाहर निकाल लो, मैं हार कर आपकी शरण में आ गया हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਪ੍ਰਭ ਪਹਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਰੰਕ ਤਾਰਨ ॥੨॥੩॥੮੩॥ नानक की बेनंती प्रभ पहि साधसंगि रंक तारन ॥२॥३॥८३॥ नानक की प्रभु से विनती है कि, ‘हमें गुरु की संगति का आशीर्वाद दें और जो आध्यात्मिक रूप से दरिद्र हैं, उन्हें विकारों के इस संसार-सागर से पार उतारें।’ ॥ २॥ ३ ॥ ८३ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु ५ ॥
ਸੰਤਨ ਕੈ ਸੁਨੀਅਤ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਬਾਤ ॥ संतन कै सुनीअत प्रभ की बात ॥ संतजनों के सान्निध्य में प्रभु की कथा ही सुनी जाती है।
ਕਥਾ ਕੀਰਤਨੁ ਆਨੰਦ ਮੰਗਲ ਧੁਨਿ ਪੂਰਿ ਰਹੀ ਦਿਨਸੁ ਅਰੁ ਰਾਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कथा कीरतनु आनंद मंगल धुनि पूरि रही दिनसु अरु राति ॥१॥ रहाउ ॥ वहाँ दिन-रात कथा-कीर्तन, आनंद एवं मंगल ध्वनि होती रहती है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੇ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨੇ ਨਾਮ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥ करि किरपा अपने प्रभि कीने नाम अपुने की कीनी दाति ॥ भगवान् ने करुणा करके संतों को अपने भक्त रूप में स्वीकार किया और उन्हें अपना पवित्र नाम प्रदान किया।
ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਇਸੁ ਤਨ ਤੇ ਜਾਤ ॥੧॥ आठ पहर गुन गावत प्रभ के काम क्रोध इसु तन ते जात ॥१॥ अब आठ प्रहर प्रभु का गुणानुवाद करने से काम, क्रोध इस तन से दूर हो गए हैं।॥ १॥


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