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ਹਰਿ ਭਰਿਪੁਰੇ ਰਹਿਆ ॥
हरि भरिपुरे रहिआ ॥
ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है।
ਜਲਿ ਥਲੇ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ॥
जलि थले राम नामु ॥
राम का नाम जल एवं पृथ्वी में विद्यमान है।
ਨਿਤ ਗਾਈਐ ਹਰਿ ਦੂਖ ਬਿਸਾਰਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नित गाईऐ हरि दूख बिसारनो ॥१॥ रहाउ ॥
नित्य दुःखों का नाश करने वाले हरि का यश गाना चाहिए॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਕੀਆ ਹੈ ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥
हरि कीआ है सफल जनमु हमारा ॥
प्रभु ने हमारा जन्म सफल कर दिया है
ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਹਰਿ ਦੂਖ ਬਿਸਾਰਨਹਾਰਾ ॥
हरि जपिआ हरि दूख बिसारनहारा ॥
क्योकि हमने दुःखनाशक हरि का जाप किया है
ਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਹੈ ਮੁਕਤਿ ਦਾਤਾ ॥
गुरु भेटिआ है मुकति दाता ॥
हमें मुक्तिदाता गुरु मिल गए है।
ਹਰਿ ਕੀਈ ਹਮਾਰੀ ਸਫਲ ਜਾਤਾ ॥
हरि कीई हमारी सफल जाता ॥
हरि ने हमारी जीवन-यात्रा को फलदायी और लाभप्रद बनाया है।
ਮਿਲਿ ਸੰਗਤੀ ਗੁਨ ਗਾਵਨੋ ॥੧॥
मिलि संगती गुन गावनो ॥१॥
अतः संगत में मिलकर हरि के गुण गाते रहते हैं।॥ १॥
ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮ ਕਰਿ ਆਸਾ ॥
मन राम नाम करि आसा ॥
मेरे मन ! राम-नाम की आशा करो,
ਭਾਉ ਦੂਜਾ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸਾ ॥
भाउ दूजा बिनसि बिनासा ॥
क्योंकि भगवान् के नाम का स्मरण द्वंद्व को हरता है इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के प्रति प्रेम को पूरी तरह से नष्ट कर देता है।
ਵਿਚਿ ਆਸਾ ਹੋਇ ਨਿਰਾਸੀ ॥
विचि आसा होइ निरासी ॥
जो आदमी सांसारिक इच्छाओं के मध्य निर्लिप्त रहता है,
ਸੋ ਜਨੁ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਪਾਸੀ ॥
सो जनु मिलिआ हरि पासी ॥
वह भगवान् को मिल जाता है।
ਕੋਈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵਨੋ ॥
कोई राम नाम गुन गावनो ॥
जो राम नाम का गुणगान करता है
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਿਸੁ ਪਗਿ ਲਾਵਨੋ ॥੨॥੧॥੭॥੪॥੬॥੭॥੧੭॥
जनु नानकु तिसु पगि लावनो ॥२॥१॥७॥४॥६॥७॥१७॥
भक्त नानक विनम्रतापूर्वक उनके चरण स्पर्श करते है ॥ २॥ १॥ ७॥ ४॥ ६॥ ७॥ १७॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧
रागु बिलावलु महला ५ चउपदे घरु १
राग बिलावल, पंचम गुरु, चौकड़ी, प्रथम ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਨਦਰੀ ਆਵੈ ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਮੋਹੁ ॥
नदरी आवै तिसु सिउ मोहु ॥
जो कुछ नज़र आ रहा है, उससे ही मोह लगा हुआ है।
ਕਿਉ ਮਿਲੀਐ ਪ੍ਰਭ ਅਬਿਨਾਸੀ ਤੋਹਿ ॥
किउ मिलीऐ प्रभ अबिनासी तोहि ॥
हे अविनाशी प्रभु ! मैं तुझे कैसे मिलूं ?
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵਹੁ ॥
करि किरपा मोहि मारगि पावहु ॥
कृपा करके मुझे मार्गदर्शन कीजिए और
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਅੰਚਲਿ ਲਾਵਹੁ ॥੧॥
साधसंगति कै अंचलि लावहु ॥१॥
साधु संगति के आंचल से लगा दो॥ १॥
ਕਿਉ ਤਰੀਐ ਬਿਖਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥
किउ तरीऐ बिखिआ संसारु ॥
इस विष रूपी संसार से कैसे पार हुआ जाए ?
ਸਤਿਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਪਾਵੈ ਪਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु बोहिथु पावै पारि ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई ! सतगुरु रूपी जहाज इससे पार करवा देता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪਵਨ ਝੁਲਾਰੇ ਮਾਇਆ ਦੇਇ ॥
पवन झुलारे माइआ देइ ॥
हवा की तरह माया मन को झकझोरती रहती है,
ਹਰਿ ਕੇ ਭਗਤ ਸਦਾ ਥਿਰੁ ਸੇਇ ॥
हरि के भगत सदा थिरु सेइ ॥
लेकिन हरि के भक्त सदैव स्थिर रहते हैं।
ਹਰਖ ਸੋਗ ਤੇ ਰਹਹਿ ਨਿਰਾਰਾ ॥
हरख सोग ते रहहि निरारा ॥
जो आदमी हर्ष एवं शोक से निर्लिप्त रहता है,
ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਆਪਿ ਗੁਰੂ ਰਖਵਾਰਾ ॥੨॥
सिर ऊपरि आपि गुरू रखवारा ॥२॥
क्योंकि उन्हें गुरु का दृढ़ समर्थन प्राप्त है। ॥ २॥
ਪਾਇਆ ਵੇੜੁ ਮਾਇਆ ਸਰਬ ਭੁਇਅੰਗਾ ॥
पाइआ वेड़ु माइआ सरब भुइअंगा ॥
हे भाई ! माया रूपी नागिन ने सब जीवों को लपेटा हुआ है।
ਹਉਮੈ ਪਚੇ ਦੀਪਕ ਦੇਖਿ ਪਤੰਗਾ ॥
हउमै पचे दीपक देखि पतंगा ॥
वे आध्यात्मिक रूप से अपने अहंकार की आग में जलते हैं, जिस तरह दीपक को देखकर पतंगा जल जाता है।
ਸਗਲ ਸੀਗਾਰ ਕਰੇ ਨਹੀ ਪਾਵੈ ॥
सगल सीगार करे नही पावै ॥
चाहे जीव-स्त्री सारे श्रृंगार कर ले किन्तु वह फिर भी अपने पति-प्रभु को नहीं पा सकती।
ਜਾ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਵੈ ॥੩॥
जा होइ क्रिपालु ता गुरू मिलावै ॥३॥
जब प्रभु कृपालु हो जाता है तो वह गुरु से मिला देता है॥ ३॥
ਹਉ ਫਿਰਉ ਉਦਾਸੀ ਮੈ ਇਕੁ ਰਤਨੁ ਦਸਾਇਆ ॥
हउ फिरउ उदासी मै इकु रतनु दसाइआ ॥
मैं भी भगवान् के नाम जैसे रत्न की तलाश में दुःखी होकर इधर-उधर भटक रहा था।
ਨਿਰਮੋਲਕੁ ਹੀਰਾ ਮਿਲੈ ਨ ਉਪਾਇਆ ॥
निरमोलकु हीरा मिलै न उपाइआ ॥
किंतु यह अमूल्य हीरा किसी भी उपाय से नहीं मिलता।
ਹਰਿ ਕਾ ਮੰਦਰੁ ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਲਾਲੁ ॥
हरि का मंदरु तिसु महि लालु ॥
यह काया ही हरि का मन्दिर है, जिसमें रत्न रूपी अमूल्य नाम निवास करता है।
ਗੁਰਿ ਖੋਲਿਆ ਪੜਦਾ ਦੇਖਿ ਭਈ ਨਿਹਾਲੁ ॥੪॥
गुरि खोलिआ पड़दा देखि भई निहालु ॥४॥
जब गुरु ने अहंकार रूपी पर्दा खोल दिया तो मैं अमूल्य नाम रूपी रत्न को देखकर आनंदित हो गई॥ ४॥
ਜਿਨਿ ਚਾਖਿਆ ਤਿਸੁ ਆਇਆ ਸਾਦੁ ॥
जिनि चाखिआ तिसु आइआ सादु ॥
जिसने हरि रस को चखा है, उसे ही स्वाद आया है,
ਜਿਉ ਗੂੰਗਾ ਮਨ ਮਹਿ ਬਿਸਮਾਦੁ ॥
जिउ गूंगा मन महि बिसमादु ॥
जिस तरह मिठाई खाकर गूंगा मन में आश्चर्यचकित हो जाता है।
ਆਨਦ ਰੂਪੁ ਸਭੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥
आनद रूपु सभु नदरी आइआ ॥
आनंद रूपी प्रभु मुझे हर जगह नज़र आया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਣ ਆਖਿ ਸਮਾਇਆ ॥੫॥੧॥
जन नानक हरि गुण आखि समाइआ ॥५॥१॥
हे नानक ! हरि के गुण गाकर उसमें ही समा गया हूँ॥ ५ ॥ १॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
राग बिलावल, पंचम गुरु: ५ ॥
ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਕੀਏ ਗੁਰਦੇਵ ॥
सरब कलिआण कीए गुरदेव ॥
गुरुदेव ने सर्व कल्याण कर दिया है और
ਸੇਵਕੁ ਅਪਨੀ ਲਾਇਓ ਸੇਵ ॥
सेवकु अपनी लाइओ सेव ॥
सेवक को अपनी सेवा में लगा लिया है।
ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਜਪਿ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥੧॥
बिघनु न लागै जपि अलख अभेव ॥१॥
अदृष्ट एवं अभेद परमात्मा का जाप करने से कोई विघ्न नहीं आता ॥ १॥
ਧਰਤਿ ਪੁਨੀਤ ਭਈ ਗੁਨ ਗਾਏ ॥
धरति पुनीत भई गुन गाए ॥
भगवान् का गुणगान करने से सारी धरती पावन हो गई है।
ਦੁਰਤੁ ਗਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुरतु गइआ हरि नामु धिआए ॥१॥ रहाउ ॥
हरि-नाम का ध्यान करने से सारे पाप नष्ट हो गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਭਨੀ ਥਾਂਈ ਰਵਿਆ ਆਪਿ ॥
सभनी थांई रविआ आपि ॥
भगवान् स्वयं ही हर जगह पर विद्यमान है,
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜਾ ਕਾ ਵਡ ਪਰਤਾਪੁ ॥
आदि जुगादि जा का वड परतापु ॥
सृष्टि के आदि एवं युगों के आरम्भ से उसका बड़ा प्रताप है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਨ ਹੋਇ ਸੰਤਾਪੁ ॥੨॥
गुर परसादि न होइ संतापु ॥२॥
गुरु की अनुकंपा से कोई संताप प्रभावित नहीं करता ॥ २॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਲਗੇ ਮਨਿ ਮੀਠੇ ॥
गुर के चरन लगे मनि मीठे ॥
गुरु के चरण मन को बड़े मीठे लगे हैं।
ਨਿਰਬਿਘਨ ਹੋਇ ਸਭ ਥਾਂਈ ਵੂਠੇ ॥
निरबिघन होइ सभ थांई वूठे ॥
वह निर्विघ्न हर जगह बस रहा है।
ਸਭਿ ਸੁਖ ਪਾਏ ਸਤਿਗੁਰ ਤੂਠੇ ॥੩॥
सभि सुख पाए सतिगुर तूठे ॥३॥
सतगुरु की प्रसन्नता से सभी सुख प्राप्त हो गए हैं।॥ ३॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਰਖਵਾਲੇ ॥
पारब्रहम प्रभ भए रखवाले ॥
पारब्रह्म प्रभु मेरे रकक्ष बन गए है,
ਜਿਥੈ ਕਿਥੈ ਦੀਸਹਿ ਨਾਲੇ ॥
जिथै किथै दीसहि नाले ॥
जहाँ कहीं भी देखता हूँ, मुझे साथ ही दिखाई देते है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਖਸਮਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ॥੪॥੨॥
नानक दास खसमि प्रतिपाले ॥४॥२॥
हे नानक ! प्रभु-ईश्वर सदैव अपने भक्तों की रक्षा और पालन-पोषण करते हैं॥ ४॥ २॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
राग बिलावल, पंचम गुरु: ५ ॥
ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥
सुख निधान प्रीतम प्रभ मेरे ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु ! आप सुखों के भण्डार है।