Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 771

Page 771

ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਹਿ ਸਬਦੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥ हे हरि ! जो जीव तेरे गुण गाते रहते हैं, वे सहज ही समाए रहते हैं और शब्द-गुरु द्वारा तूने साथ मिला लिया है।
ਨਾਨਕ ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਤਿਨ ਕੇਰਾ ਜਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥੨॥ हे नानक ! उनका जीवन सफल हो गया है, जिन्हें सतगुरु ने हरि के मार्ग पर लगा दिया है॥ २॥
ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਮੇਲੁ ਭਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਏ ਰਾਮ ॥ हे भाई ! जिन्हें संतों की संगति मिल गई है, वे हरी नाम में लीन हुए रहते है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਦ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤ ਭਏ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ਰਾਮ ॥ गुरु के शब्द द्वारा वे सदा के लिए जीवनमुक्त हो गए है और हरि के नाम में अपनी लो लगाकर रखते है।
ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਮਨੂਆ ਰਤਾ ਹਰਿ ਨਾਲੇ ॥ गुरु ने जिन्हें सत्संगति में मिलाकर प्रभु से मिला दिया है, वे हमेशा हरि-नाम में ही चित्त लगाकर रखते हैं और उनका मन हरि में ही मग्न रहता हैं।
ਸੁਖਦਾਤਾ ਪਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥ उन्होंने सुखदाता प्रभु को पा लिया है और उनका मोह दूर हो गया है, वे दिन-रात नाम-सिमरन ही करते रहते हैं।
ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਰਾਤਾ ਸਹਜੇ ਮਾਤਾ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਾਏ ॥ गुरु के शब्द द्वारा उनका मन सहज ही मग्न रहता है और वे हरि-नाम को अपने मन में बसा लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਘਰਿ ਸਦ ਹੀ ਸੋਹਿਲਾ ਜਿ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥ हे नानक ! जो व्यक्ति सतगुरु की सेवा करके प्रभु में समाए रहते हैं, उनके हृदय-घर में सदैव हर्षोल्लास बना रहता है॥ ३॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਜਗੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਹਰਿ ਕਾ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਇਆ ਰਾਮ ॥ सतिगुरु के बिना सारा जगत् भ्रम में फँसकर भूला हुआ है और किसी ने हरि का निवास नहीं पाया।
ਗੁਰਮੁਖੇ ਇਕਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਆ ਤਿਨ ਕੇ ਦੂਖ ਗਵਾਇਆ ਰਾਮ ॥ लेकिन परमात्मा ने कुछ जीवों को गुरु से मिलाकर अपने साथ मिला लिया है और उनके दुख दूर हो गए हैं।
ਤਿਨ ਕੇ ਦੂਖ ਗਵਾਇਆ ਜਾ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ਸਦਾ ਗਾਵਹਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ॥ जब परमात्मा के मन को उपयुक्त लगा तो उसने उनके दुख समाप्त कर दिए और अब वे उसके गुणगान एवं रंग में ही मग्न रहते हैं।
ਹਰਿ ਕੇ ਭਗਤ ਸਦਾ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਸਦ ਹੀ ਜਾਤੇ ॥ हरि के भक्तजन सदैव निर्मल बने रहते हैं और वे युग-युग सदा के लिए विख्यात हो जाते हैं।
ਸਾਚੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਰਿ ਜਾਪਹਿ ਘਰਿ ਦਰਿ ਸਚਾ ਸੋਈ ॥ वह सच्ची भक्ति करते हैं और सत्य के दरबार में प्रशंसा के पात्र बनते हैं। फिर सत्यस्वरूप परमात्मा उनके हृदय में ही होता है।
ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਸੋਹਿਲਾ ਸਚੀ ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਸਬਦੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੪॥੪॥੫॥ हे नानक ! परमात्मा का स्तुतिगान सत्य है, वह सदैव सत्य है, उसकी वाणी भी सत्य है और शब्द से ही सुख उपलब्ध होता है ॥ ४ ॥ ४ ॥ ५ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ सूही महला ३ ॥
ਜੇ ਲੋੜਹਿ ਵਰੁ ਬਾਲੜੀਏ ਤਾ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ਰਾਮ ॥ हे कमसिन जीव-स्त्री ! यदि तू अपने हरि रूपी वर को पाना चाहती है तो तुझे गुरु के चरणों में चित्त लगाना चाहिए।
ਸਦਾ ਹੋਵਹਿ ਸੋਹਾਗਣੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮਰੈ ਨ ਜਾਏ ਰਾਮ ॥ तू सदा सुहागिन बनी रहेगी, क्योंकि परमात्मा अनश्वर है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਮਰੈ ਨ ਜਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ਸਾ ਧਨ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ॥ हरि जन्मता-मरता नहीं, वही जीव-स्त्री पति-प्रभु को प्यारी लगती है जो गुरु के प्रेम द्वारा सहज स्वभाव ही लीन रहती है।
ਸਚਿ ਸੰਜਮਿ ਸਦਾ ਹੈ ਨਿਰਮਲ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰੀ ॥ वह सत्य एवं संयम द्वारा सदैव निर्मल बनी रहती है और गुरु के शब्द द्वारा सत्य का ही श्रृंगार करती है।
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਸਦ ਹੀ ਸਾਚਾ ਜਿਨਿ ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇਆ ॥ मेरा प्रभु सत्य है, वह सदैव शाश्वत है, जिसने स्वयं ही खुद को पैदा किया है अर्थात् वह स्वयंभू है।
ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵੇ ਆਪਣਾ ਜਿਨਿ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥੧॥ हे नानक ! जिस जीव-स्त्री ने गुरु के चरणों में चित्त लगाया है, वह सदैव अपने पति-प्रभु के साथ रमण करती है॥ १॥
ਪਿਰੁ ਪਾਇਅੜਾ ਬਾਲੜੀਏ ਅਨਦਿਨੁ ਸਹਜੇ ਮਾਤੀ ਰਾਮ ॥ हे भाई ! कमसिन जीव-स्त्री ने अपना पति-प्रभु पा लिया है और वह सहज ही मग्न हुई रहती है।
ਗੁਰਮਤੀ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਤਿਤੁ ਤਨਿ ਮੈਲੁ ਨ ਰਾਤੀ ਰਾਮ ॥ गुरु की शिक्षा द्वारा उसके मन में आनंद उत्पन्न हो गया है और उसके तन में थोड़ी-सी भी अहंत्व रूपी मेल नहीं रही।
ਤਿਤੁ ਤਨਿ ਮੈਲੁ ਨ ਰਾਤੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਤੀ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥ उसके तन में किंचित मात्र भी मैल नहीं रही और वह प्रभु में ही मग्न रहती है। मेरे प्रभु ने उसे गुरु के सम्पर्क में अपने साथ मिला लिया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਵੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਣਾ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥ वह अपने मन में से अहंत्व को दूर करके रात-दिन प्रभु के साथ रमण करती रहती है।
ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਇਆ ਸਹਜਿ ਮਿਲਾਇਆ ਅਪਣੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਾਤੀ ॥ उसने अपने प्रभु को गुरु की शिक्षा द्वारा पाया है। गुरु ने सहज ही पति-प्रभु से उसे मिलाया है और अब वह प्रियतम में ही मग्न रहती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਵੇ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ॥੨॥ हे नानक ! जिस जीव-स्त्री को नाम रूपी बड़ाई मिल जाती है, वह रंग में मग्न हुई अपने पति-प्रभु से ही रमण करती रहती है।॥ २॥
ਪਿਰੁ ਰਾਵੇ ਰੰਗਿ ਰਾਤੜੀਏ ਪਿਰ ਕਾ ਮਹਲੁ ਤਿਨ ਪਾਇਆ ਰਾਮ ॥ अपने पति-प्रभु का महल उसने ही हासिल किया है, जो जीव-स्त्री प्रेमपूर्वक अपने प्रभु का चिंतन करती रहती है।
ਸੋ ਸਹੋ ਅਤਿ ਨਿਰਮਲੁ ਦਾਤਾ ਜਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਰਾਮ ॥ जिस जीव-स्त्री ने अपने मन में से अपना अहंत्व दूर कर दिया है, उसने अपने पति को पा लिया है जो अत्यंत निर्मल एवं सबका दाता है।
ਵਿਚਹੁ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ਜਾ ਹਰਿ ਭਾਇਆ ਹਰਿ ਕਾਮਣਿ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥ जब प्रभु को भला लगा तो जीव-स्त्री ने अन्तर्मन से अपने मोह को दूर कर दिया। वह जीव-रूपी कामिनी अपने प्रभु के मन को अच्छी लगने लगी।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਸਾਚੇ ਕਥੇ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥ वह रात-दिन सत्य का गुणगान करती रहती है और प्रभु की अकथनीय कहानी कथन करती रहती है।
ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਸਾਚਾ ਏਕੋ ਵਰਤੈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥ सतियुग, त्रैता, द्वापर एवं कलियुग-इन चारों युगों में एक सच्चा प्रभु ही मौजूद है लेकिन गुरु के बिना उसे किसी ने भी प्राप्त नहीं किया।


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