Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 77

ਇਹੁ ਧਨੁ ਸੰਪੈ ਮਾਇਆ ਝੂਠੀ ਅੰਤਿ ਛੋਡਿ ਚਲਿਆ ਪਛੁਤਾਈ ॥ यह धन-सम्पत्ति और मोह-माया सब झूठे हैं। जिसे अन्तकाल त्याग कर पश्चाताप करते हुए प्राणी चला जाता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥ जिस पर ईश्वर की कृपा होती है, उसका गुरु से मिलन होता है और वह सदा अपने हृदय में ईश्वर के नाम का प्रेमपूर्वक स्मरण करता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤੀਜੈ ਪਹਰੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸੇ ਜਾਇ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਨਾਲਿ ॥੩॥ गुरु नानक जी कहते हैं, जीवन रूपी रात्रि के तृतीय चरण में जो प्राणी हरि-भजन करता है, वह प्रभु में ही विलीन हो जाता है ॥३॥
ਚਉਥੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਹਰਿ ਚਲਣ ਵੇਲਾ ਆਦੀ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! नाम के व्यापारी, जीवन रूपी रात्रि के चतुर्थ चरण (वृद्धावस्था) में भगवान् अंततः प्रकट करते हैं कि इस संसार से जाने का समय आ गया है।
ਕਰਿ ਸੇਵਹੁ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਸਭ ਚਲੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਦੀ ॥ इसलिए हे मेरे नाम के व्यापारी मित्र ! यह जान लो कि सच्चा गुरु पूर्ण है अतः उनकी शिक्षाओं का पूर्णतः पालन करो क्योंकि तुम्हारी जीवन रूपी समूची रात्रि अब व्यतीत होती जा रही है।
ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਢਿਲ ਮੂਲਿ ਨ ਕਰਿਹੁ ਜਿਤੁ ਅਸਥਿਰੁ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਹੋਵਹੁ ॥ प्रतिक्षण परमेश्वर की सेवा करो, इसमें विलम्ब उचित नहीं और सदा के लिए आध्यात्मिक स्थिरता को प्राप्त करो।
ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਸਦ ਮਾਣਹੁ ਰਲੀਆ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖ ਖੋਵਹੁ ॥ हे प्राणी ! ईश्वर के साथ मिलन के आध्यात्मिक आनंद का आनंद मनाओ और जन्म-मरण के दुःख को हमेशा के लिए भुला दो।
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸੁਆਮੀ ਭੇਦੁ ਨ ਜਾਣਹੁ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਸੁਖਾਂਦੀ ॥ सतगुरु एवं भगवान् में कोई अन्तर मत समझो। सतगुरु की शिक्षाओं से भगवान् की भक्ति आनंदमय लगती है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਚਉਥੈ ਪਹਰੈ ਸਫਲਿਓ‍ੁ ਰੈਣਿ ਭਗਤਾ ਦੀ ॥੪॥੧॥੩॥ हे नानक ! जीवन रूपी रात्रि के चतुर्थ चरण में जो प्राणी भगवान् की भक्ति करते हैं, उन भक्तों की जीवन-रात्रि सफल हो जाती है ॥ ४॥१ ॥३ ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਪਹਿਲੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਧਰਿ ਪਾਇਤਾ ਉਦਰੈ ਮਾਹਿ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के प्रथम पहर में ईश्वर प्राणी को माता के गर्भ में डाल देता है।
ਦਸੀ ਮਾਸੀ ਮਾਨਸੁ ਕੀਆ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਕਰਿ ਮੁਹਲਤਿ ਕਰਮ ਕਮਾਹਿ ॥ माता के गर्भ में ही प्रभु दस माह में उसे मनुष्य बना देता है। प्रभु उसका जीवन काल निश्चित कर देते हैं जिसमें प्राणी शुभ-अशुभ कर्म करता है।
ਮੁਹਲਤਿ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਕਰਮ ਕਮਾਣੇ ਜੈਸਾ ਲਿਖਤੁ ਧੁਰਿ ਪਾਇਆ ॥ हाँ, प्रभु प्राणी की जीवन-अवधि निर्धारित कर देते हैं और जीव अपने पिछले कर्मों के अनुसार ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित नियति के अनुसार कर्म करता है।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਤਿਨ ਭੀਤਰਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸੰਜੋਇਆ ॥ परमात्मा प्राणी को माता-पिता, भाई, पुत्र-पत्नी इत्यादि के संबंधों में बांध देता है।
ਕਰਮ ਸੁਕਰਮ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ਇਸੁ ਜੰਤੈ ਵਸਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ॥ हरी स्वयं ही शुभ एवं अशुभ कर्म प्राणी से करवाते हैं तथा प्राणी के अपने वश में कुछ भी नहीं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਪਹਿਲੈ ਪਹਰੈ ਧਰਿ ਪਾਇਤਾ ਉਦਰੈ ਮਾਹਿ ॥੧॥ हे नानक ! जीवन रूपी रात्रि के प्रथम पहर में भगवान् प्राणी को माता के गर्भ में डाल देता है ॥१॥
ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਭਰਿ ਜੁਆਨੀ ਲਹਰੀ ਦੇਇ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय पहर में प्राणी का परिपूर्ण यौवन नदी के समान काम, मोह और तृष्णा की तरंगों में बहता है।
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਨ ਪਛਾਣਈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਮਨੁ ਮਤਾ ਅਹੰਮੇਇ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन की इस अवस्था में व्यक्ति का मन अहंकार में मदमस्त होने के कारण भला-बुरा पहचानने में असमर्थ होता है।
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਨ ਪਛਾਣੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਆਗੈ ਪੰਥੁ ਕਰਾਰਾ ॥ प्राणी अच्छे-बुरे की पहचान नहीं करता और इस लोक से उस लोक तक आगे बढ़ने का मार्ग उसके लिए अविश्वसनीय है।
ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਕਬਹੂੰ ਨ ਸੇਵਿਆ ਸਿਰਿ ਠਾਢੇ ਜਮ ਜੰਦਾਰਾ ॥ अहंकारवश व्यक्ति पूर्ण सच्चे गुरु की शिक्षाओं का अनुसरण नहीं करता और निर्दयी यमदूत उसके सिर पर (मृत्यु रूपी) दण्ड धारण किए खड़ा रहता है।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਬ ਪਕਰਸਿ ਬਵਰੇ ਤਬ ਕਿਆ ਜਬਾਬੁ ਕਰੇਇ ॥ विचारहीन मनुष्य यह विचार नहीं करता कि जब धर्मराज उसे पकड़कर उसके कुकर्मों के विषय में पूछेगा तो वह उसको क्या उत्तर देगा?
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਦੂਜੈ ਪਹਰੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਭਰਿ ਜੋਬਨੁ ਲਹਰੀ ਦੇਇ ॥੨॥ हे नानक ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय पहर में नश्वर जीव के भीतर परिपूर्ण यौवन की तरंगें आरूढ़ होती है॥२॥
ਤੀਜੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਬਿਖੁ ਸੰਚੈ ਅੰਧੁ ਅਗਿਆਨੁ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के तृतीय पहर में आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी व्यक्ति आध्यात्मिक जीवन के लिए केवल माया भाव विषय-वासनाओं का विष संग्रह करता है।
ਪੁਤ੍ਰਿ ਕਲਤ੍ਰਿ ਮੋਹਿ ਲਪਟਿਆ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਅੰਤਰਿ ਲਹਰਿ ਲੋਭਾਨੁ ॥ वह अपने पुत्र एवं पत्नी के मोह में बँधा रहता है और उसके मन में लोभ की लहरें उठती रहती हैं।
ਅੰਤਰਿ ਲਹਰਿ ਲੋਭਾਨੁ ਪਰਾਨੀ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥ जीव के मन में आकर्षक पदार्थों के लोभ की लहरें विद्यमान हैं और ईश्वर की ओर वह अपना चित्त नहीं लगाता और ईश्वर-उपासना नहीं करता।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਸੰਗੁ ਨ ਕੀਆ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥ वह सत्संग के साथ मेल-मिलाप नहीं करता और विभिन्न योनियों में भटकते हुए अन्दर कष्ट सहन करता है।
ਸਿਰਜਨਹਾਰੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਸੁਆਮੀ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਲਗੋ ਧਿਆਨੁ ॥ जगत् के सृजनहार स्वामी को उसने विस्मृत कर दिया है और वह एक क्षण मात्र भी अपनी वृत्ति प्रभु की ओर नहीं लगाता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤੀਜੈ ਪਹਰੈ ਬਿਖੁ ਸੰਚੇ ਅੰਧੁ ਅਗਿਆਨੁ ॥੩॥ हे नानक ! जीवन रूपी रात्रि के तृतीय पहर में अज्ञान में अंधा हुआ प्राणी विषय-वासनाओं का विष संचित करता रहता है।॥३॥
ਚਉਥੈ ਪਹਰੈ ਰੈਣਿ ਕੈ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਦਿਨੁ ਨੇੜੈ ਆਇਆ ਸੋਇ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के चतुर्थ पहर में मृत्यु का दिन इतना निकट आ जाता है कि व्यक्ति को यहाँ से प्रस्थान करना होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਤੂੰ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਤੇਰਾ ਦਰਗਹ ਬੇਲੀ ਹੋਇ ॥ हे मेरे वणजारे मित्र ! तू सतगुरु की शरण लेकर ईश्वर का नाम स्मरण कर, वह परलोक में तेरा एकमात्र सहारा होगा।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਪਰਾਣੀ ਅੰਤੇ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥ हे नश्वर जीव ! गुरु-उपदेशानुसार नाम को स्मरण कर और अंत में यही तेरा सखा होगा।
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