Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 765

Page 765

ਸਗਲੀ ਜੋਤਿ ਜਾਤਾ ਤੂ ਸੋਈ ਮਿਲਿਆ ਭਾਇ ਸੁਭਾਏ ॥ सब जीवों में तेरी ही ज्योति है और मैंने जान लिया है कि वह ज्योति तू ही है। तू मुझे सहज-स्वभाव ही मिला है।
ਨਾਨਕ ਸਾਜਨ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਸਾਚਿ ਮਿਲੇ ਘਰਿ ਆਏ ॥੧॥ हे नानक ! मैं अपने प्रभु पर बलिहारी जाती हूँ और वह सत्य नाम द्वारा मेरे हृदय-घर में आया है॥ १॥
ਘਰਿ ਆਇਅੜੇ ਸਾਜਨਾ ਤਾ ਧਨ ਖਰੀ ਸਰਸੀ ਰਾਮ ॥ जब प्रियतम प्रभु हृदय-घर में आया तो जीव-स्त्री बहुत प्रसून्न हुई।
ਹਰਿ ਮੋਹਿਅੜੀ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਠਾਕੁਰ ਦੇਖਿ ਰਹੰਸੀ ਰਾਮ ॥ सच्चे शब्द द्वारा हरि ने उसे मोह लिया है और अपने ठाकुर जी को देखकर वह फूल की तरह खिल गयी है।
ਗੁਣ ਸੰਗਿ ਰਹੰਸੀ ਖਰੀ ਸਰਸੀ ਜਾ ਰਾਵੀ ਰੰਗਿ ਰਾਤੈ ॥ जब प्रेम में रंगे हुए प्रभु ने रमण किया तो हां उसके गुणों से मुग्ध हो गयी और बहुत प्रसन्न हुई।
ਅਵਗਣ ਮਾਰਿ ਗੁਣੀ ਘਰੁ ਛਾਇਆ ਪੂਰੈ ਪੁਰਖਿ ਬਿਧਾਤੈ ॥ पूर्ण पुरुष विधाता ने उसके अवगुणों को नाश करे उसका हृदय घर गुणों से बसा दिया है।
ਤਸਕਰ ਮਾਰਿ ਵਸੀ ਪੰਚਾਇਣਿ ਅਦਲੁ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰੇ ॥ काम, क्रोध, लोभ, मोह, एवं अहंकार, रूपी चोरों को मारकर वह जीव-स्त्री प्रभु-चरणों में बस गई है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਗੁਰਮਤਿ ਮਿਲਹਿ ਪਿਆਰੇ ॥੨॥ हे नानक ! राम नाम ने उसे भवसागर से पार कर दिया है और गुरु उपदेश द्वारा अपने प्यारे प्रभु को मिल गई है॥ २॥
ਵਰੁ ਪਾਇਅੜਾ ਬਾਲੜੀਏ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਪੂਰੀ ਰਾਮ ॥ हे भाई ! नवयौवना जीव-स्त्री ने अपने पति-प्रभु को पा लिया है और उसकी आशा एवं अभिलाषा पूरी हो गई है।
ਪਿਰਿ ਰਾਵਿਅੜੀ ਸਬਦਿ ਰਲੀ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਨਹ ਦੂਰੀ ਰਾਮ ॥ उसके पति -प्रभु ने उससे रमण किया है और अब वह शब्द में लीन हुई रहती है।
ਪ੍ਰਭੁ ਦੂਰਿ ਨ ਹੋਈ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸੋਈ ਤਿਸ ਕੀ ਨਾਰਿ ਸਬਾਈ ॥ सर्वव्यापक प्रभु उससे दूर नहीं जाता, वह प्रत्येक शरीर में मौजूद है और सब जीव-स्त्रियाँ उसकी पत्नियां हैं।
ਆਪੇ ਰਸੀਆ ਆਪੇ ਰਾਵੇ ਜਿਉ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ॥ वह स्वयं ही रसिया है, स्वयं ही रमण करता है और जैसे ही उसकी बड़ाई है।
ਅਮਰ ਅਡੋਲੁ ਅਮੋਲੁ ਅਪਾਰਾ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ॥ परमात्मा अमर, अटल, अमूल्य एवं अपार है और उस सत्यस्वरूप को पूर्ण गुरु द्वारा ही पाया जाता है।
ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਜੋਗ ਸਜੋਗੀ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਲਿਵ ਲਾਈਐ ॥੩॥ हे नानक ! परमात्मा स्वयं ही अपने साथ जीव-स्त्री के मिलाप का संयोग बनाने वाला है। जब वह अपनी कृपा-दृष्टि करता है तो ही वह प्रभु में अपनी सुरति लगाती है॥ ३॥
ਪਿਰੁ ਉਚੜੀਐ ਮਾੜੜੀਐ ਤਿਹੁ ਲੋਆ ਸਿਰਤਾਜਾ ਰਾਮ ॥ मेरा पति-प्रभु एक ऊँचे महल में रहता है और वह तीनों लोकों का बादशाह है।
ਹਉ ਬਿਸਮ ਭਈ ਦੇਖਿ ਗੁਣਾ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਅਗਾਜਾ ਰਾਮ ॥ मैं उसके गुणों को देखकर चकित हो गई हूँ और मेरे मन में अनहद शब्द गूंज रहा है।
ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੀ ਕਰਣੀ ਸਾਰੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨੀਸਾਣੋ ॥ मैंने यह शुभ-कर्म किया है कि मैंने शब्द का चिंतन किया है और मुझे सत्य के दरबार में जाने के लिए राम नाम रूपी परवाना मिल गया है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਖੋਟੇ ਨਹੀ ਠਾਹਰ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਪਰਵਾਣੋ ॥ खोटे व्यक्तियों को नाम के बिना प्रभु के दरबार में कोई स्थान नहीं मिलता। प्रभु को नाम रूपी रत्न ही स्वीकार होता है।
ਪਤਿ ਮਤਿ ਪੂਰੀ ਪੂਰਾ ਪਰਵਾਨਾ ਨਾ ਆਵੈ ਨਾ ਜਾਸੀ ॥ जिस जीव-स्त्री की मति एवं प्रतिष्ठा पूर्ण है एवं पूर्ण नाम का परवाना है, वह जन्म एवं मृत्यु के चक्र से रहित है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਪ੍ਰਭ ਜੈਸੇ ਅਵਿਨਾਸੀ ॥੪॥੧॥੩॥ हे नानक ! जो जीव-स्त्री गुरुमुख बनकर अपने आत्मस्वरूप को पहचान लेती है, वह अविनाशी प्रभु का रूप ही बन जाती है॥ ४ ॥ १॥ ३ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੪ ॥ रागु सूही छंत महला १ घरु ४ ॥
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਦੇਖਿਆ ਜਗੁ ਧੰਧੜੈ ਲਾਇਆ ॥ जिस परमात्मा ने यह जगत् उत्पन्न किया है, उसने ही इसकी देखभाल की है, और उसने ही सब जीवों को सांसारिक धंधों में लगाया है।
ਦਾਨਿ ਤੇਰੈ ਘਟਿ ਚਾਨਣਾ ਤਨਿ ਚੰਦੁ ਦੀਪਾਇਆ ॥ हे मालिक ! तेरे (नाम रूपी) दान द्वारा मेरे हृदय में प्रकाश हो गया है और मेरे तन में चन्द्रमा रूपी दीपक प्रज्वलित हो गया है।
ਚੰਦੋ ਦੀਪਾਇਆ ਦਾਨਿ ਹਰਿ ਕੈ ਦੁਖੁ ਅੰਧੇਰਾ ਉਠਿ ਗਇਆ ॥ प्रभु की कृपा से चन्द्रमा रूपी दीपक प्रज्वलित होने से अब मेरे हृदय में से दुख एवं अज्ञानता का अंधेरा दूर हो गया है।
ਗੁਣ ਜੰਞ ਲਾੜੇ ਨਾਲਿ ਸੋਹੈ ਪਰਖਿ ਮੋਹਣੀਐ ਲਇਆ ॥ गुणों की बारात दुल्हे के साथ ही सुन्दर लगती है, जिसने मन को मुग्ध करने वाली दुल्हन को परख कर लिया है।
ਵੀਵਾਹੁ ਹੋਆ ਸੋਭ ਸੇਤੀ ਪੰਚ ਸਬਦੀ ਆਇਆ ॥ परमात्मा रूपी दुल्हा जीव-रूपी दुल्हन से विवाह करने के लिए पाँच प्रकार की ध्वनियों वाले बाजों सहित बारात लेकर आया है और बड़ी धूमधाम से विवाह हुआ है।
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਦੇਖਿਆ ਜਗੁ ਧੰਧੜੈ ਲਾਇਆ ॥੧॥ जिस परमात्मा ने यह संसार उत्पन्न किया है, उसने ही इसकी देखभाल की है और सब को सांसारिक धंधों में प्रवृत्त किया है॥ १॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਾਜਨਾ ਮੀਤਾ ਅਵਰੀਤਾ ॥ हे भाई ! मैं अपने उन सज्जनों एवं मित्रों पर बलिहारी जाता हूँ, जिनका जीवन-आचरण संसार से अलग है।
ਇਹੁ ਤਨੁ ਜਿਨ ਸਿਉ ਗਾਡਿਆ ਮਨੁ ਲੀਅੜਾ ਦੀਤਾ ॥ मेरा यह तन जिनसे जुड़ा हुआ है, मैंने उनका मन स्वयं ले लिया है और अपना मन उन्हें दे दिया है।
ਲੀਆ ਤ ਦੀਆ ਮਾਨੁ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਿਉ ਸੇ ਸਜਨ ਕਿਉ ਵੀਸਰਹਿ ॥ वे सज्जन मुझे क्यों विस्मृत हों, जिनसे मैंने आदर लिया है।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਦਿਸਿ ਆਇਆ ਹੋਹਿ ਰਲੀਆ ਜੀਅ ਸੇਤੀ ਗਹਿ ਰਹਹਿ ॥ जिनके दिखाई देने से मेरे मन में हर्षोल्लास उत्पन्न होता है, में उन्हें पकड़कर अपने दिल से लगाकर रखूं।
ਸਗਲ ਗੁਣ ਅਵਗਣੁ ਨ ਕੋਈ ਹੋਹਿ ਨੀਤਾ ਨੀਤਾ ॥ मेरे सज्जनों में कोई भी अवगुण नहीं है, अपितु सदैव सर्वगुण ही रहते हैं।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਾਜਨਾ ਮੀਤਾ ਅਵਰੀਤਾ ॥੨॥ मैं अपने सज्जनों एवं मित्रों पर बलिहारी हूँ जो जगत् की मोह-माया से परे हैं॥ २ ॥
ਗੁਣਾ ਕਾ ਹੋਵੈ ਵਾਸੁਲਾ ਕਢਿ ਵਾਸੁ ਲਈਜੈ ॥ यदि जीव के पास गुण रूपी सुगंधियों का डिब्बा हो तो उसे उसमें से सुगन्धि लेते रहना चाहिए।
ਜੇ ਗੁਣ ਹੋਵਨ੍ਹ੍ਹਿ ਸਾਜਨਾ ਮਿਲਿ ਸਾਝ ਕਰੀਜੈ ॥ यदि उसके सज्जनों के पास गुण हो तो उसे उनसे मिलकर उनके साथ गुणों की भागीदारी करनी चाहिए।


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