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ਪਿੰਧੀ ਉਭਕਲੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥
जगत के जीव कुएँ की रहटों की भांति भवसागर में डुबकियाँ लगाते रहते हैं अर्थात् जन्म-मरण के चक्र में भटकते रहते हैं।
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਆਏ ਤੁਮ ਚੇ ਦੁਆਰਾ ॥
हे प्रभु! अनेक योनियों में भटक-भटक कर अब मैं तेरे द्वार पर तेरी शरण में आया हूँ।
ਤੂ ਕੁਨੁ ਰੇ ॥
प्रभु पूछता है कि हे प्राणी ! तू कौन है?
ਮੈ ਜੀ ॥ ਨਾਮਾ ॥ ਹੋ ਜੀ ॥
भक्त जी उत्तर देते हैं कि मैं नामदेव हूँ। हे प्रभु जी !
ਆਲਾ ਤੇ ਨਿਵਾਰਣਾ ਜਮ ਕਾਰਣਾ ॥੩॥੪॥
मुझे जगत के जंजाल में से निकाल दीजिए, जो यमों के भय का कारण है॥ ३॥ ४॥
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਮਾਧਉ ਬਿਰਦੁ ਤੇਰਾ ॥
हे माधव ! तेरा विरद् पापियों को पावन करना है।
ਧੰਨਿ ਤੇ ਵੈ ਮੁਨਿ ਜਨ ਜਿਨ ਧਿਆਇਓ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥੧॥
वे मुनिजन धन्य हैं, जिन्होंने मेरे हरि-प्रभु का ध्यान किया है।॥१॥
ਮੇਰੈ ਮਾਥੈ ਲਾਗੀ ਲੇ ਧੂਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਚਰਨਨ ਕੀ ॥
मेरे माथे पर गोविंद की चरण-धूलि लग चुकी है।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਤਿਨਹੂ ਤੇ ਦੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देवते, मनुष्य एवं मुनिजन उसकी चरण-धूलि से दूर ही रहते रहे हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਦੀਨ ਕਾ ਦਇਆਲੁ ਮਾਧੌ ਗਰਬ ਪਰਹਾਰੀ ॥
हे माधव ! तू दीनों पर दया करने वाला है और अहंकारियों का अहंकार नाश करने वाला है।
ਚਰਨ ਸਰਨ ਨਾਮਾ ਬਲਿ ਤਿਹਾਰੀ ॥੨॥੫॥
नामदेव प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! मैंने तेरे चरणों की शरण ली है और मैं तुझ पर ही कुर्बान जाता हूँ॥ २॥ ५॥
ਧਨਾਸਰੀ ਭਗਤ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ ਕੀ
धनासरी भगत रविदास जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਮ ਸਰਿ ਦੀਨੁ ਦਇਆਲੁ ਨ ਤੁਮ ਸਰਿ ਅਬ ਪਤੀਆਰੁ ਕਿਆ ਕੀਜੈ ॥
हे मेरे परमेश्वर ! मुझ जैसा कोई दीन नहीं है और तुझ जैसा अन्य कोई दयालु नहीं है। अब भला और अजमायश क्या करनी है ?
ਬਚਨੀ ਤੋਰ ਮੋਰ ਮਨੁ ਮਾਨੈ ਜਨ ਕਉ ਪੂਰਨੁ ਦੀਜੈ ॥੧॥
अपने सेवक को यह पूर्णतया प्रदान कीजिए कि मेरा मन तेरे वचनों पर आस्था धारण करे॥१॥
ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ਰਮਈਆ ਕਾਰਨੇ ॥
हे मेरे राम ! मैं तुझ पर तन एवं मन से कुर्बान जाता हूँ।
ਕਾਰਨ ਕਵਨ ਅਬੋਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥
फिर किस कारण तुम मुझसे बोल क्यों नहीं रहे॥ रहाउ॥
ਬਹੁਤ ਜਨਮ ਬਿਛੁਰੇ ਥੇ ਮਾਧਉ ਇਹੁ ਜਨਮੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਲੇਖੇ ॥
हे माधव ! मैं अनेक जन्मों से तुझसे बिछुड़ा हुआ हूँ और अपना यह जन्म मैं तुझ पर अर्पण करता हूँ।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਆਸ ਲਗਿ ਜੀਵਉ ਚਿਰ ਭਇਓ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖੇ ॥੨॥੧॥
रविदास जी का कथन है कि हे प्रभु ! तेरे दर्शन किए चिरकाल हो गया है, अब तो मैं तेरे दर्शन करने की आशा में ही जीवित हूँ॥ २॥ १ ॥
ਚਿਤ ਸਿਮਰਨੁ ਕਰਉ ਨੈਨ ਅਵਿਲੋਕਨੋ ਸ੍ਰਵਨ ਬਾਨੀ ਸੁਜਸੁ ਪੂਰਿ ਰਾਖਉ ॥
मेरी तो यही अभिलाषा है कि मैं अपने चित से भगवान का सिमरन करता रहूँ और अपने नयनों से उसके दर्शन करता रहूँ। मैं वाणी श्रवण करूँ और भगवान का सुयश अपने कानों में सुनता रहूँ।
ਮਨੁ ਸੁ ਮਧੁਕਰੁ ਕਰਉ ਚਰਨ ਹਿਰਦੇ ਧਰਉ ਰਸਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਾਮ ਨਾਮ ਭਾਖਉ ॥੧॥
मैं अपने मन को सुन्दर भैवरा बनाऊँ और प्रभु के चरण-कमलों को अपने हृदय में बसाकर रखूं। मैं अपनी रसना से राम का अमृत नाम उच्चारण करता रहूँ॥१॥
ਮੇਰੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿਉ ਜਿਨਿ ਘਟੈ ॥
मेरा प्रेम गोविन्द के साथ कभी कम न हो।
ਮੈ ਤਉ ਮੋਲਿ ਮਹਗੀ ਲਈ ਜੀਅ ਸਟੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चूंकि यह प्रेम अपने प्राण देकर मूल्य चुका कर बहुत महंगा लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਬਿਨਾ ਭਾਉ ਨਹੀ ਊਪਜੈ ਭਾਵ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਨਹੀ ਹੋਇ ਤੇਰੀ ॥
हे प्रभु ! संतों की संगति के बिना तेरे साथ प्रेम उत्पन्न नहीं होता और प्रेम के बिना तेरी भक्ति नहीं हो सकती।
ਕਹੈ ਰਵਿਦਾਸੁ ਇਕ ਬੇਨਤੀ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪੈਜ ਰਾਖਹੁ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਮੇਰੀ ॥੨॥੨॥
रविदास ईश्वर के समक्ष एक विनती करता है कि हे राजा राम ! मेरी लाज-प्रतिष्ठा बचाओ॥२॥ २॥
ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਆਰਤੀ ਮਜਨੁ ਮੁਰਾਰੇ ॥
हे परमात्मा ! तेरा नाम ही आरती है और यही पावन तीर्थ-स्नान है।
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਝੂਠੇ ਸਗਲ ਪਾਸਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भगवान के नाम-सिमरन के बिना अन्य सभी आडम्बर झूठे हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਆਸਨੋ ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਉਰਸਾ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਕੇਸਰੋ ਲੇ ਛਿਟਕਾਰੇ ॥
हे ईश्वर ! तेरा नाम ही सुन्दर आसन है, तेरा नाम ही चन्दन धिसने वाला पत्थर है और तेरा नाम ही केसर है, जिसे जप कर तुझ पर छिड़का जाता है।
ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਅੰਭੁਲਾ ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਚੰਦਨੋ ਘਸਿ ਜਪੇ ਨਾਮੁ ਲੇ ਤੁਝਹਿ ਕਉ ਚਾਰੇ ॥੧॥
तेरा नाम ही जल है और तेरा नाम ही चन्दन है। मैं इस चन्दन को धिस कर अर्थात् तेरे नाम को जप कर तेरे समक्ष भेंट करता हूँ॥ १ ॥
ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਦੀਵਾ ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਬਾਤੀ ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਤੇਲੁ ਲੇ ਮਾਹਿ ਪਸਾਰੇ ॥
तेरा नाम ही दीपक है और तेरा नाम ही बाती है। तेरा नाम ही तेल है, जिसे लेकर मैं दीपक में डालता हूँ।
ਨਾਮ ਤੇਰੇ ਕੀ ਜੋਤਿ ਲਗਾਈ ਭਇਓ ਉਜਿਆਰੋ ਭਵਨ ਸਗਲਾਰੇ ॥੨॥
मैंने तेरे नाम की ही ज्योति प्रज्वलित की है, जिससे समस्त लोकों में उजाला हो गया है॥ २ ॥
ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਤਾਗਾ ਨਾਮੁ ਫੂਲ ਮਾਲਾ ਭਾਰ ਅਠਾਰਹ ਸਗਲ ਜੂਠਾਰੇ ॥
तेरा नाम ही धागा है और तेरा नाम ही फूलों की माला है। अन्य अठारह भार वाली सारी वनस्पति जूठी है।
ਤੇਰੋ ਕੀਆ ਤੁਝਹਿ ਕਿਆ ਅਰਪਉ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਤੁਹੀ ਚਵਰ ਢੋਲਾਰੇ ॥੩॥
हे प्रभु ! तेरा उत्पन्न किया हुआ कौन-सा पदार्थ तुझे भेंट करूँ ? तेरा नाम ही चंवर है परन्तु यह चंवर भी तू स्वयं ही मुझ से झुलाता है ॥३॥
ਦਸ ਅਠਾ ਅਠਸਠੇ ਚਾਰੇ ਖਾਣੀ ਇਹੈ ਵਰਤਣਿ ਹੈ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰੇ ॥
समूचे संसार में यही व्यवहार हो रहा है कि लोग अठारह पुराणों की कथाएँ सुनते रहते हैं, अड़सठ तीर्थों पर स्नान करते रहते हैं।
ਕਹੈ ਰਵਿਦਾਸੁ ਨਾਮੁ ਤੇਰੋ ਆਰਤੀ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਰਿ ਭੋਗ ਤੁਹਾਰੇ ॥੪॥੩॥
रविदास जी का कथन है कि हे परमेश्वर ! तेरा नाम ही आरती है और तेरा सत्य-नाम ही तेरा भोग-प्रसाद है ॥४॥३॥