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ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ
धनासरी महला ५ छंत
राग धनासरि, पंचम गुरु, छंद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਜਿਸੁ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਗਾਵੀਐ ਜੀਉ ॥
सतिगुर दीन दइआल जिसु संगि हरि गावीऐ जीउ ॥
जिसकी संगति में मिलकर भगवान् का गुणगान किया जाता है, वह सतगुरु दीनदयाल है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਰਾਵੀਐ ਜੀਉ ॥
अम्रितु हरि का नामु साधसंगि रावीऐ जीउ ॥
प्रभु का नाम अमृत है, जो साधु-संगति में मिलकर ही गाया जाता है।
ਭਜੁ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂ ਇਕੁ ਅਰਾਧੂ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਨਾਸਏ ॥
भजु संगि साधू इकु अराधू जनम मरन दुख नासए ॥
साधुओं की सभा में मिलकर भगवान् का भजन करो, उसके एक नाम की ही आराधना करो, जिससे जन्म-मरण का दु:ख नाश हो जाता है।
ਧੁਰਿ ਕਰਮੁ ਲਿਖਿਆ ਸਾਚੁ ਸਿਖਿਆ ਕਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਏ ॥
धुरि करमु लिखिआ साचु सिखिआ कटी जम की फासए ॥
जिस मनुष्य के माथे पर जन्म से पूर्व आरम्भ से ही अच्छा भाग्य लिखा हुआ है, उसने गुरु की सच्ची शिक्षा प्राप्त कर ली है और उसकी मृत्यु की फाँसी कट गई है।
ਭੈ ਭਰਮ ਨਾਠੇ ਛੁਟੀ ਗਾਠੇ ਜਮ ਪੰਥਿ ਮੂਲਿ ਨ ਆਵੀਐ ॥
भै भरम नाठे छुटी गाठे जम पंथि मूलि न आवीऐ ॥
उसके भय एवं भ्रम दूर हो गए हैं और माया की त्रिगुणात्मक गांठ खुल गई है। वह मृत्यु के मार्ग पर कदाचित् नहीं पड़ता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਧਾਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੀਐ ॥੧॥
बिनवंति नानक धारि किरपा सदा हरि गुण गावीऐ ॥१॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! मुझ पर अपनी कृपा करो, ताकि मैं सदैव ही आपका स्तुतिगान करता रहूँ ॥१॥
ਨਿਧਰਿਆ ਧਰ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੋ ਜੀਉ ॥
निधरिआ धर एकु नामु निरंजनो जीउ ॥
परमात्मा का एक पवित्र नाम ही निराश्रितों का आश्रय है।
ਤੂ ਦਾਤਾ ਦਾਤਾਰੁ ਸਰਬ ਦੁਖ ਭੰਜਨੋ ਜੀਉ ॥
तू दाता दातारु सरब दुख भंजनो जीउ ॥
हे मेरे दाता ! एक आप ही सबको देने वाले हैं और आप सब जीवों के दुःख नाश करने वाला है।
ਦੁਖ ਹਰਤ ਕਰਤਾ ਸੁਖਹ ਸੁਆਮੀ ਸਰਣਿ ਸਾਧੂ ਆਇਆ ॥
दुख हरत करता सुखह सुआमी सरणि साधू आइआ ॥
हे जगत् के स्वामी ! आप दु:खों का नाश करके सुख प्रदान करने वाले हैं। मैं आपके साधुओं की शरण में आया हूँ।
ਸੰਸਾਰੁ ਸਾਗਰੁ ਮਹਾ ਬਿਖੜਾ ਪਲ ਏਕ ਮਾਹਿ ਤਰਾਇਆ ॥
संसारु सागरु महा बिखड़ा पल एक माहि तराइआ ॥
यह संसार सागर पार करना बहुत ही कठिन है परन्तु आपके साधु ने मुझे एक पल में ही इससे पार करवा दिया है।
ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬ ਥਾਈ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਨੇਤ੍ਰੀ ਅੰਜਨੋ ॥
पूरि रहिआ सरब थाई गुर गिआनु नेत्री अंजनो ॥
जब मैंने गुरु के आध्यात्मिक ज्ञान का सुरमा अपनी आँखों में लगाया तो मैंने देखा कि परमात्मा सर्वव्यापी है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਸਿਮਰੀ ਸਰਬ ਦੁਖ ਭੈ ਭੰਜਨੋ ॥੨॥
बिनवंति नानक सदा सिमरी सरब दुख भै भंजनो ॥२॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि सर्व दुःख एवं भय का नाश करने वाले प्रभु ! मैं सदैव ही आपका नाम-सिमरन करता रहूँ ॥२॥
ਆਪਿ ਲੀਏ ਲੜਿ ਲਾਇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀਆ ਜੀਉ ॥
आपि लीए लड़ि लाइ किरपा धारीआ जीउ ॥
हे प्रभु! अपनी कृपा करके आपने स्वयं ही मुझे अपने आंचल के साथ लगा लिया है।
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਣੁ ਨੀਚੁ ਅਨਾਥੁ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਪਾਰੀਆ ਜੀਉ ॥
मोहि निरगुणु नीचु अनाथु प्रभ अगम अपारीआ जीउ ॥
मैं गुणविहीन, नीच एवं अनाथ हूँ परन्तु हे प्रभु ! आप अगम्य एवं अपरम्पार है।
ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੁਆਮੀ ਨੀਚ ਥਾਪਣਹਾਰਿਆ ॥
दइआल सदा क्रिपाल सुआमी नीच थापणहारिआ ॥
हे मेरे स्वामी ! आप सदैव ही दयालु एवं कृपालु है। आप मुझ जैसे नीच को भी सर्वोच्च बनाने वाले हैं।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਵਸਿ ਤੇਰੈ ਸਗਲ ਤੇਰੀ ਸਾਰਿਆ ॥
जीअ जंत सभि वसि तेरै सगल तेरी सारिआ ॥
समस्त जीव-जन्तु आपके वशीभूत हैं और आप सबकी देखरेख करते हैं।
ਆਪਿ ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਭੁਗਤਾ ਆਪਿ ਸਗਲ ਬੀਚਾਰੀਆ ॥
आपि करता आपि भुगता आपि सगल बीचारीआ ॥
आप स्वयं ही सभी पदार्थ भोगने वाले है, आप स्वयं ही जीवों की आवश्यकता के बारे में विचार करता है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਇ ਜੀਵਾ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਪਉ ਬਨਵਾਰੀਆ ॥੩॥
बिनवंत नानक गुण गाइ जीवा हरि जपु जपउ बनवारीआ ॥३॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! मैं आपका गुणगान करके ही जीता हूँ और आपका ही नाम जपता रहूँ ॥३॥
ਤੇਰਾ ਦਰਸੁ ਅਪਾਰੁ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਈ ਜੀਉ ॥
तेरा दरसु अपारु नामु अमोलई जीउ ॥
हे ईश्वर ! आपके दर्शन अपार फलदायक हैं और आपका नाम अनमोल है।
ਨਿਤਿ ਜਪਹਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਪੁਰਖ ਅਤੋਲਈ ਜੀਉ ॥
निति जपहि तेरे दास पुरख अतोलई जीउ ॥
हे अतुलनीय परमपुरुष ! आपके दास नित्य ही आपके नाम का भजन करते रहते हैं।
ਸੰਤ ਰਸਨ ਵੂਠਾ ਆਪਿ ਤੂਠਾ ਹਰਿ ਰਸਹਿ ਸੇਈ ਮਾਤਿਆ ॥
संत रसन वूठा आपि तूठा हरि रसहि सेई मातिआ ॥
जिन संतजनों पर आप प्रसन्न हो गए हैं, आप उनकी रसना में आकर बस गए हैं और वे हरि-रस में ही मस्त रहते हैं।
ਗੁਰ ਚਰਨ ਲਾਗੇ ਮਹਾ ਭਾਗੇ ਸਦਾ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਿਆ ॥
गुर चरन लागे महा भागे सदा अनदिनु जागिआ ॥
वे बड़े भाग्यशाली हैं, जो गुरु के चरणों में आ लगे हैं और सदा जाग्रत रहते हैं।
ਸਦ ਸਦਾ ਸਿੰਮ੍ਰਤਬ੍ਯ੍ਯ ਸੁਆਮੀ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਗੁਣ ਬੋਲਈ ॥
सद सदा सिम्रतब्य सुआमी सासि सासि गुण बोलई ॥
ये सदैव ही स्मरणीय स्वामी के गुण श्वास-श्वास से बोलते रहते हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਧੂਰਿ ਸਾਧੂ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭੂ ਅਮੋਲਈ ॥੪॥੧॥
बिनवंति नानक धूरि साधू नामु प्रभू अमोलई ॥४॥१॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! मुझे साधु की चरण-धूलि प्रदान करो, आपका नाम बड़ा अनमोल है ॥४॥१॥
ਰਾਗੁ ਧਨਾਸਰੀ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ ਕੀ
रागु धनासरी बाणी भगत कबीर जी की
राग धनासरी भगत कबीर जी की वाणी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਨਕ ਸਨੰਦ ਮਹੇਸ ਸਮਾਨਾਂ ॥ ਸੇਖਨਾਗਿ ਤੇਰੋ ਮਰਮੁ ਨ ਜਾਨਾਂ ॥੧॥
सनक सनंद महेस समानां ॥ सेखनागि तेरो मरमु न जानां ॥१॥
हे ईश्वर ! ब्रह्मा जी के पुत्र सनक, सनन्दन एवं शिव-शंकरऔर शेषनाग ने भी आपका भेद नहीं समझ पाए ॥१॥
ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਬਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संतसंगति रामु रिदै बसाई ॥१॥ रहाउ ॥
संतों की संगत करने से राम हृदय में आकर स्थित होता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਹਨੂਮਾਨ ਸਰਿ ਗਰੁੜ ਸਮਾਨਾਂ ॥ ਸੁਰਪਤਿ ਨਰਪਤਿ ਨਹੀ ਗੁਨ ਜਾਨਾਂ ॥੨॥
हनूमान सरि गरुड़ समानां ॥ सुरपति नरपति नही गुन जानां ॥२॥
हे भगवान्, हनुमान और गरूड़ जैसे प्राणी, देवता और राजा, किसी ने भी आपके गुणों को नहीं समझा। ॥२॥
ਚਾਰਿ ਬੇਦ ਅਰੁ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪੁਰਾਨਾਂ ॥ ਕਮਲਾਪਤਿ ਕਵਲਾ ਨਹੀ ਜਾਨਾਂ ॥੩॥
चारि बेद अरु सिम्रिति पुरानां ॥ कमलापति कवला नही जानां ॥३॥
चार वेद-ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद, सत्ताईस स्मृतियाँ, अठारह पुराण, लक्ष्मीपति विष्णु एवं लक्ष्मी भी आपके रहस्य को नहीं जान सके॥३॥
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਸੋ ਭਰਮੈ ਨਾਹੀ ॥ ਪਗ ਲਗਿ ਰਾਮ ਰਹੈ ਸਰਨਾਂਹੀ ॥੪॥੧॥
कहि कबीर सो भरमै नाही ॥ पग लगि राम रहै सरनांही ॥४॥१॥
कबीर जी कहते हैं कि वह मनुष्य दुविधा में कभी नहीं भटकता, जो संतों के चरणों में लगकर राम की शरण में पड़ा रहता ॥४॥१॥