Guru Granth Sahib Translation Project

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ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ श्रीरागु महला ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਫੇਰੁ ਨ ਪਵੈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥ यदि सतगुरु मिल जाए तो प्राणी जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उसकी जन्म एवं मृत्यु की पीड़ा निवृत्त हो जाती है।
ਪੂਰੈ ਸਬਦਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੧॥ पूर्ण गुरु के उपदेश द्वारा सारी समझ आ जाती है और मनुष्य परमात्मा के नाम में लीन रहता है।॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥ हे मेरे मन ! अपना चित्त गुरु के साथ लगाओं।
ਨਿਰਮਲੁ ਨਾਮੁ ਸਦ ਨਵਤਨੋ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि का नित्य नवीन और पवित्र नाम स्वतः साधु के मन में बस जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਰਾਖਹੁ ਅਪੁਨੀ ਸਰਣਾਈ ਜਿਉ ਰਾਖਹਿ ਤਿਉ ਰਹਣਾ ॥ हे मेरे परमेश्वर ! मुझे अपने शरणाश्रय में रखो; आप मुझे जैसे रखोगे, मुझे उसी अवस्था में रहना है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਵਜਲੁ ਤਰਣਾ ॥੨॥ गुरु के द्वारा भवसागर से पार तभी हुआ जा सकता है, यदि गुरु के शब्द द्वारा अहंत्व को मार कर जीवन व्यतीत किया जाए॥२॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਨਾਉ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮਤਿ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਈ ॥ भगवान् का नाम बड़े सोभाग्य से मिलता है, और गुरु के दिव्य वचनों के माध्यम से उनके ज्ञान का पालन करने से जीवन श्रेष्ठ हो जाता है।
ਆਪੇ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰਤਾ ਸਹਜੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੩॥ जगत् का कर्ता प्रभु स्वयं ही मनुष्य के हृदय में आकर बसता है। फिर मनुष्य सहज ही भगवान् में लीन रहता है॥३॥
ਇਕਨਾ ਮਨਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਨ ਭਾਵੈ ਬੰਧਨਿ ਬੰਧਿ ਭਵਾਇਆ ॥ कई मनमुखी प्राणियों को प्रभु का नाम अच्छा नहीं लगता। ऐसे मनमुखी प्राणी अज्ञान-बंधन में बंधे चौरासी लाख योनियों में भटकते फिरते हैं।
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੪॥ वे चौरासी लाख योनियों के अंदर बारंबार भटकते हैं और अपना अनमोल जीवन व्यर्थ ही खो देते हैं। ॥४॥
ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਹੈ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ॥ भगवान् के भक्तों के मन में आध्यात्मिक आनंद बना रहता है। वें सर्वदा ईश्वर के प्रेम और उसकी स्तुति के दिव्य शब्दों से ओत-प्रोत रहते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਦ ਨਿਰਮਲ ਸਹਜੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਤੇ ॥੫॥ वें सदैव ही रात-दिन भगवान् के निर्मल नाम की महिमा गाते हैं और सहज ही नाम में लीन रहते हैं।॥५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਬੋਲਹਿ ਸਭ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਣੀ ॥ गुरमुख सदैव अमृत समान मधुर वाणी बोलते हैं, क्योंकि वे समस्त प्राणियों के भीतर प्रभु के अंश आत्मा की समानता को पहचानते हैं।
ਏਕੋ ਸੇਵਨਿ ਏਕੁ ਅਰਾਧਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੬॥ गुरमुखों की कथा अकथनीय है। वे एक प्रभु की सेवा एवं आराधना करते हैं।॥६॥
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸੇਵੀਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥ गुरमुख सच्चे प्रभु की आराधना करते हैं और प्रभु गुरमुख के मन में आकर बसता है।
ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸਚ ਸਿਉ ਅਪੁਨੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਮਿਲਾਇ ॥੭॥ जो सदैव ही भगवान् के प्रेम में मग्न रहते हैं, उन्हें भगवान् अपनी कृपा करके अपने साथ मिला लेता है ॥७॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ਇਕਨਾ ਸੁਤਿਆ ਦੇਇ ਜਗਾਇ ॥ प्रभु स्वयं ही करता है और स्वयं ही करवाता है। वह माया की निद्रा से भी प्राणियों को जगा देता है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇ ॥੮॥੭॥੨੪॥ हे नानक ! भगवान् स्वयं ही भक्तों को गुरु के शब्द में मिलाकर अपने में मिला लेता है ॥८ ॥७ ॥२४ ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ श्रीरागु महला ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੇਵਿਐ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲਾ ਭਏ ਪਵਿਤੁ ਸਰੀਰ ॥ सतगुरु की सेवा करने से मनुष्य का मन निर्मल और शरीर पवित्र हो जाता है।
ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਭੇਟਿਆ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ॥ समुद्र जैसे गहरे एवं गंभीर प्रभु को पाकर मन आनन्दित हो जाता है और परमसुख प्राप्त करता है।
ਸਚੀ ਸੰਗਤਿ ਬੈਸਣਾ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਧੀਰ ॥੧॥ सत्संग में बैठने वाला जिज्ञासु सत्यनाम के रहस्य को जानकर मन में धैर्य प्राप्त करता है॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਨਿਸੰਗੁ ॥ हे मेरे मन ! तू बिना किसी हिचकिचाहट के सच्चे गुरु की सेवा करो और उनकी शिक्षाओं का पालन करो।।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਲਗੈ ਨ ਮੈਲੁ ਪਤੰਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सतगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करने से मन में प्रभु का वास होता है और तुझे मोह-माया रूपी मलिनता नहीं लगती अपितु चित्त पूर्णतः पावन हो जाता है॥१॥ रहाउ॥
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਪਤਿ ਊਪਜੈ ਸਚੇ ਸਚਾ ਨਾਉ ॥ सत्य नाम द्वारा मनुष्य को लोक-परलोक में बड़ी शोभा प्राप्त होती है। सत्य स्वरूप स्वामी का नाम सत्य है।
ਜਿਨੀ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਪਛਾਣਿਆ ਹਉ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥ मैं उन प्राणियों पर बलिहारी जाता हूँ, जिन्होंने अपनी अहंकार-भावना का नाश करके सत्य को पहचान लिया है।
ਮਨਮੁਖ ਸਚੁ ਨ ਜਾਣਨੀ ਤਿਨ ਠਉਰ ਨ ਕਤਹੂ ਥਾਉ ॥੨॥ स्वेच्छाचारी प्राणी उस सत्य को नहीं पा सकते, उनको कहीं भी आश्रय अथवा ठिकाना प्राप्त नहीं होता॥२॥
ਸਚੁ ਖਾਣਾ ਸਚੁ ਪੈਨਣਾ ਸਚੇ ਹੀ ਵਿਚਿ ਵਾਸੁ ॥ गुरमुखों का खाना, पहनना एवं रहना सब सत्य ही है।
ਸਦਾ ਸਚਾ ਸਾਲਾਹਣਾ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥ वह सदैव सच्चे स्वामी की प्रशंसा करते हैं और सत्य नाम के अन्दर उनका निवास है।
ਸਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਗੁਰਮਤੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ॥੩॥ उन्होंने सर्वत्र व्याप्त ईश्वर को पहचान लिया है; गुरु की शिक्षाओं का पालन करने से उनका मन अपने भीतर ही केंद्रित रहता है। ॥३ ॥
ਸਚੁ ਵੇਖਣੁ ਸਚੁ ਬੋਲਣਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਚਾ ਹੋਇ ॥ वह सत्य देखते हैं और सत्य ही बोलते हैं और उनके तन व मन के भीतर वह सत्य ही होता है।
ਸਚੀ ਸਾਖੀ ਉਪਦੇਸੁ ਸਚੁ ਸਚੇ ਸਚੀ ਸੋਇ ॥ वह शाश्वत ईश्वर की स्मृति के विषय में शिक्षाओं और मार्गदर्शन का अनुसरण करता है; शाश्वत उस व्यक्ति की महिमा बन जाती है जो शाश्वत ईश्वर के समान बन गया है।
ਜਿੰਨੀ ਸਚੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਸੇ ਦੁਖੀਏ ਚਲੇ ਰੋਇ ॥੪॥ जिन्होंने सत्य को विस्मृत कर दिया है, वह सदा दुःखी रहते हैं और विलाप करते हुए असफल जीवन के कारण चले जाते हैं ॥४॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਨ ਸੇਵਿਓ ਸੇ ਕਿਤੁ ਆਏ ਸੰਸਾਰਿ ॥ जिन्होंने सतगुरु की सेवा नहीं की, वह संसार में क्यों आए हैं?
ਜਮ ਦਰਿ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਹਿ ਕੂਕ ਨ ਸੁਣੈ ਪੂਕਾਰ ॥ काल का भय उन्हें सताता है और उनकी चीख-पुकार कोई नहीं सुनता,मानो जैसे उन्हें मृत्यु के द्वार पर बांधकर पीटा जा रहा हो।
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥੫॥ उन्होंने अपना जीवन व्यर्थ ही खो दिया है और वें पुनः पुनः मरते और जन्म लेते रहते हैं अर्थात् उन्हें मुक्ति नहीं मिलती ॥५॥
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