Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 679

Page 679

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੭ धनासरी महला ५ घरु ७ राग धनश्री, पाँचवें गुरु, सातवीं ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਏਕੁ ਸਿਮਰਿ ਏਕੁ ਸਿਮਰਿ ਏਕੁ ਸਿਮਰਿ ਪਿਆਰੇ ॥ हरि एकु सिमरि एकु सिमरि एकु सिमरि पिआरे ॥ हे प्यारे ! एक ईश्वर का सिमरन करो।
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਲੋਭ ਮੋਹ ਮਹਾ ਭਉਜਲੁ ਤਾਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ कलि कलेस लोभ मोह महा भउजलु तारे ॥ रहाउ ॥ वह तुझे कलह-क्लेश लोभ एवं मोह से बचाएगा और तुझे महा भयानक संसार-सागर से पार करवा देगा।॥ रहाउ ॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਦਿਨਸੁ ਰੈਨਿ ਚਿਤਾਰੇ ॥ सासि सासि निमख निमख दिनसु रैनि चितारे ॥ श्वास-श्वास, क्षण-क्षण एवं दिन-रात भगवान् को मन में याद करते रहो।
ਸਾਧਸੰਗ ਜਪਿ ਨਿਸੰਗ ਮਨਿ ਨਿਧਾਨੁ ਧਾਰੇ ॥੧॥ साधसंग जपि निसंग मनि निधानु धारे ॥१॥ निश्चित होकर साध-संगति में भजन करके नाम रूपी खजाने को अपने हृदय में बसाकर रखो ॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਮਸਕਾਰ ਗੁਨ ਗੋਬਿਦ ਬੀਚਾਰੇ ॥ चरन कमल नमसकार गुन गोबिद बीचारे ॥ परमात्मा के सुन्दर चरण-कमलों को नमन करो और उसके गुणों का चिन्तन करो।
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੀ ਰੇਨ ਨਾਨਕ ਮੰਗਲ ਸੂਖ ਸਧਾਰੇ ॥੨॥੧॥੩੧॥ साध जना की रेन नानक मंगल सूख सधारे ॥२॥१॥३१॥ हे नानक ! संतजनों की चरण-धूलि बड़ी खुशी एवं सुख प्रदान करती है॥ २॥ १॥ ३१ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੮ ਦੁਪਦੇ धनासरी महला ५ घरु ८ दुपदे राग धनश्री, पाँचवें गुरु, आठवीं ताल, दो-पद :
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਿਮਰਉ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਖ ਪਾਵਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮਾਲੇ ॥ सिमरउ सिमरि सिमरि सुख पावउ सासि सासि समाले ॥ मैं परमात्मा का नाम-स्मरण करता हूँ और नाम-स्मरण करके सुखी होता हूँ। श्वास-श्वास से उसे ही स्मरण करता हूँ।
ਇਹ ਲੋਕਿ ਪਰਲੋਕਿ ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਜਤ ਕਤ ਮੋਹਿ ਰਖਵਾਲੇ ॥੧॥ इह लोकि परलोकि संगि सहाई जत कत मोहि रखवाले ॥१॥ परमात्मा का नाम ही इहलोक एवं आगे परलोक में मेरे साथ मेरा सहायक है और हर जगह मेरी रक्षा करता है ॥१॥
ਗੁਰ ਕਾ ਬਚਨੁ ਬਸੈ ਜੀਅ ਨਾਲੇ ॥ गुर का बचनु बसै जीअ नाले ॥ गुरु की वाणी मेरे प्राणों के साथ रहती है।
ਜਲਿ ਨਹੀ ਡੂਬੈ ਤਸਕਰੁ ਨਹੀ ਲੇਵੈ ਭਾਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਜਾਲੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जलि नही डूबै तसकरु नही लेवै भाहि न साकै जाले ॥१॥ रहाउ ॥ यह जल में नहीं डूबती, चोर इसे चुरा कर नहीं ले जा सकता और अग्नि इसे जला नहीं सकती ॥१॥ रहाउ ॥
ਨਿਰਧਨ ਕਉ ਧਨੁ ਅੰਧੁਲੇ ਕਉ ਟਿਕ ਮਾਤ ਦੂਧੁ ਜੈਸੇ ਬਾਲੇ ॥ निरधन कउ धनु अंधुले कउ टिक मात दूधु जैसे बाले ॥ जैसे निर्धन का सहारा धन है, अन्धे का सहारा छड़ी है और बालक का सहारा माता का दूध है, वैसे ही मुझे गुरु की वाणी का सहारा है।
ਸਾਗਰ ਮਹਿ ਬੋਹਿਥੁ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਕਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਿਰਪਾਲੇ ॥੨॥੧॥੩੨॥ सागर महि बोहिथु पाइओ हरि नानक करी क्रिपा किरपाले ॥२॥१॥३२॥ हे नानक ! कृपा के घर परमात्मा ने मुझ पर अपनी कृपा की है और मुझे भवसागर में से पार निकलने के लिए हरि-नाम रूपी जहाज मिल गया है॥ २॥ १॥ ३२॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पाँचवें गुरु ॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਗੋਬਿੰਦਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਰਿਦੈ ਸਿੰਚਾਈ ॥ भए क्रिपाल दइआल गोबिंदा अम्रितु रिदै सिंचाई ॥ जब दयालु परमात्मा कृपालु हो गया तो नामामृत को हृदय में ही संचित कर लिया।
ਨਵ ਨਿਧਿ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਹਰਿ ਲਾਗਿ ਰਹੀ ਜਨ ਪਾਈ ॥੧॥ नव निधि रिधि सिधि हरि लागि रही जन पाई ॥१॥ नवनिधियाँ एवं ऋद्धियाँ-सिद्धियों हरि के सेवक के चरणों में रहती हैं।॥ १॥
ਸੰਤਨ ਕਉ ਅਨਦੁ ਸਗਲ ਹੀ ਜਾਈ ॥ संतन कउ अनदु सगल ही जाई ॥ संतजनों को तो हर जगह पर आनंद ही आनंद बना रहता है।
ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਾਹਰਿ ਠਾਕੁਰੁ ਭਗਤਨ ਕਾ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸ੍ਰਬ ਠਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ग्रिहि बाहरि ठाकुरु भगतन का रवि रहिआ स्रब ठाई ॥१॥ रहाउ ॥ भक्तों के ठाकुर प्रभु उनके हृदय-घर एवं जगत् में सर्वव्यापी है॥ १॥ रहाउ॥
ਤਾ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਪਹੁਚਨਹਾਰਾ ਜਾ ਕੈ ਅੰਗਿ ਗੁਸਾਈ ॥ ता कउ कोइ न पहुचनहारा जा कै अंगि गुसाई ॥ कोई भी उस व्यक्ति की बराबरी नहीं कर सकता जिसके पक्ष में स्वयं भगवान् हैं।
ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਮਿਟੈ ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥੨॥੨॥੩੩॥ जम की त्रास मिटै जिसु सिमरत नानक नामु धिआई ॥२॥२॥३३॥ हे नानक ! जिसका सिमरन करने से मृत्यु का भय मिट जाता है, उसके नाम का ही ध्यान-मनन करते रहो ॥ २ ॥ २॥ ३३ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु ५ ॥
ਦਰਬਵੰਤੁ ਦਰਬੁ ਦੇਖਿ ਗਰਬੈ ਭੂਮਵੰਤੁ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥ दरबवंतु दरबु देखि गरबै भूमवंतु अभिमानी ॥ जैसे कोई धनवान व्यक्ति अपने धन को देख-देख कर बड़ा घमण्ड करता है, भूमिपति अपनी भूमि के कारण अभिमानी बन जाता है और
ਰਾਜਾ ਜਾਨੈ ਸਗਲ ਰਾਜੁ ਹਮਰਾ ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨ ਟੇਕ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥ राजा जानै सगल राजु हमरा तिउ हरि जन टेक सुआमी ॥१॥ जैसे कोई राजा समझता है कि सारा राज्य मेरा अपना ही है, वैसे ही भक्तजनों को अपने स्वामी का सहारा है॥ १॥
ਜੇ ਕੋਊ ਅਪੁਨੀ ਓਟ ਸਮਾਰੈ ॥ जे कोऊ अपुनी ओट समारै ॥ यदि कोई प्राणी अपने सहारे भगवान् को हृदय में स्मरण करता है, और
ਜੈਸਾ ਬਿਤੁ ਤੈਸਾ ਹੋਇ ਵਰਤੈ ਅਪੁਨਾ ਬਲੁ ਨਹੀ ਹਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जैसा बितु तैसा होइ वरतै अपुना बलु नही हारै ॥१॥ रहाउ ॥ अपनी समर्था अनुसार कार्य करता है, तो वह अपना नाम रूपी बल नहीं हारता ॥१॥ रहाउ॥
ਆਨ ਤਿਆਗਿ ਭਏ ਇਕ ਆਸਰ ਸਰਣਿ ਸਰਣਿ ਕਰਿ ਆਏ ॥ आन तिआगि भए इक आसर सरणि सरणि करि आए ॥ हे प्रभु ! मुझे अपनी शरण में लो, अपनी शरण में लो, यह पुकारता हुआ मैं तेरे द्वार पर आया हूँ। मैंने अन्य सहारे छोड़कर एक प्रभु का ही सहारा लिया है।
ਸੰਤ ਅਨੁਗ੍ਰਹ ਭਏ ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਏ ॥੨॥੩॥੩੪॥ संत अनुग्रह भए मन निरमल नानक हरि गुन गाए ॥२॥३॥३४॥ हे नानक ! संतों के अनुग्रह से मेरा मन निर्मल हो गया है और अब मैं भगवान् का ही गुणगान करता रहता हूँ ॥ २॥ ३॥ ३४ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਗੋ ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਸੋ ਕਹੀਅਤ ਹੈ ਸੂਰਾ ॥ जा कउ हरि रंगु लागो इसु जुग महि सो कहीअत है सूरा ॥ जिस मनुष्य को इस युग में भगवान् का प्रेम-रंग लग गया है, वास्तव में वही शूरवीर कहा जाता है।
ਆਤਮ ਜਿਣੈ ਸਗਲ ਵਸਿ ਤਾ ਕੈ ਜਾ ਕਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥੧॥ आतम जिणै सगल वसि ता कै जा का सतिगुरु पूरा ॥१॥ जिसका सतगुरु पूर्ण है, वह अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है और समूचा जगत् उसके वश में हो जाता है ॥१॥


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