Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 67

ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗੁ ਦੁਖੀਆ ਫਿਰੈ ਮਨਮੁਖਾ ਨੋ ਗਈ ਖਾਇ ॥ गुरु के उपदेश के बिना संसार माया के प्रति प्रेम के कारण कष्टों में भटकता रहता है, जिसने स्वेच्छाचारी लोगों को भस्म कर दिया है।
ਸਬਦੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਬਦੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥ शब्द द्वारा मनुष्य नाम-सिमरन करता है और शब्द द्वारा ही वह भगवान् में समा जाता है ॥४॥
ਮਾਇਆ ਭੂਲੇ ਸਿਧ ਫਿਰਹਿ ਸਮਾਧਿ ਨ ਲਗੈ ਸੁਭਾਇ ॥ माया में फँसकर सिद्ध पुरुष भी भटकते रहते हैं और भगवान् के प्रेम में लीन करने वाली उनकी समाधि नहीं लगती।
ਤੀਨੇ ਲੋਅ ਵਿਆਪਤ ਹੈ ਅਧਿਕ ਰਹੀ ਲਪਟਾਇ ॥ माया आकाश, पाताल, धरती तीनों लोकों में जीवों को अपने मोह में फँसा रही है। वह समस्त जीवों को अत्याधिक लिपटी हुई है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈਐ ਨਾ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਇਆ ਜਾਇ ॥੫॥ गुरु के बिना माया से मुक्ति प्राप्त नहीं होती और न ही माया से उत्पन्न द्वंद का समाधान मिलता है। ॥५॥
ਮਾਇਆ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਕਿਆ ਮਾਇਆ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥ माया किसे कहते हैं? माया क्या कार्य करती है?
ਦੁਖਿ ਸੁਖਿ ਏਹੁ ਜੀਉ ਬਧੁ ਹੈ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥ माया के प्रभाव में मनुष्य दुःख व सुख के भीतर बंधा हुआ है और दंभ या अहंकारवश कर्म करता है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਭਰਮੁ ਨ ਚੂਕਈ ਨਾ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥੬॥ गुरु शब्द के बिना भ्रम दूर नहीं होता और न ही अन्तर्मन से अहंकार दूर होता है ॥६॥
ਬਿਨੁ ਪ੍ਰੀਤੀ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਥਾਇ ਨ ਪਾਇ ॥ प्रेम के बिना भगवान् की भक्ति नहीं हो सकती और नाम के अतिरिक्त मनुष्य को प्रभु के दरबार में स्थान नहीं मिलता।
ਸਬਦੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀਐ ਮਾਇਆ ਕਾ ਭ੍ਰਮੁ ਜਾਇ ॥ जब अहंत्च को नाम द्वारा मार दिया जाता है तो माया का पैदा किया भ्रम दूर हो जाता है।
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੭॥ गुरमुख सहज ही हरि-नाम के धन को प्राप्त कर लेता है ॥७॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗੁਣ ਨ ਜਾਪਨੀ ਬਿਨੁ ਗੁਣ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ गुरु के बिना शुभ गुणों का पता नहीं लगता तथा शुभ गुण ग्रहण किए बिना भगवान् की भक्ति नहीं होती।
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਹਜਿ ਮਿਲਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥ भक्तवत्सल श्री हरि मनुष्य के भीतर मन में निवास करते हैं। इसका एहसास तभी होता है जब कोई आध्यात्मिक संतुलन की सहज अवस्था अर्थात् स्थिति को प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਸਬਦੇ ਹਰਿ ਸਾਲਾਹੀਐ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੮॥੪॥੨੧॥ हे नानक ! किस्मत से ही सतगुरु की प्राप्ति होती है और गुरु के शब्द द्वारा ही भगवान् की महिमा-स्तुति करनी चाहिए ॥८॥४॥२१॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ श्रीरागु महला ३ ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨਾ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥ भगवान् ने स्वयं ही माया-मोह की रचना की है। उसने स्वयं ही जीवों को माया के मोह में फंसा कर भुलाया हुआ है।
ਮਨਮੁਖਿ ਕਰਮ ਕਰਹਿ ਨਹੀ ਬੂਝਹਿ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਏ ॥ मनमुख कर्म तो करते हैं परन्तु उन्हें इसकी सूझ नहीं होती। लेकिन वह अपना जीवन व्यर्थ ही खो देते हैं।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਕਰਮਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥੧॥ गुरुवाणी इस संसार में ईश्वरीय प्रकाश है। प्रभु की दया से प्राणी के मन में यह वाणी आकर बसती है ॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ हे मेरे मन ! भगवान् का नाम जपो, इससे ही सुख की उपलब्धि होती है।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਾਲਾਹੀਐ ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पूर्ण गुरु की महिमा करने से परमेश्वर सहज ही प्राणी को मिल जाता है ॥१॥ रहाउ॥
ਭਰਮੁ ਗਇਆ ਭਉ ਭਾਗਿਆ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥ ईश्वर के चरणों में चित्त लगाने से मनुष्य का माया का भ्रम एवं मृत्यु के भय का नाश हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਕਮਾਈਐ ਹਰਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥ जिज्ञासु प्राणी जब गुरु-कृपा से भगवत् नाम की आराधना करता है तो ईश्वर स्वयं उसके हृदय में निवास करता है।
ਘਰਿ ਮਹਲਿ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ਜਮਕਾਲੁ ਨ ਸਕੈ ਖਾਇ ॥੨॥ मनुष्य सत्य प्रभु के आत्म स्वरूप रूपी महल के अन्दर लीन हो जाता है और यमदूत उसे कदापि नहीं निगल सकता ॥२॥
ਨਾਮਾ ਛੀਬਾ ਕਬੀਰੁ ਜੋੁਲਾਹਾ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥ निम्न जाति के नामदेव छींबे और कबीर जुलाहे ने पूर्ण गुरु की कृपा से मोक्ष प्राप्त किया था।
ਬ੍ਰਹਮ ਕੇ ਬੇਤੇ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣਹਿ ਹਉਮੈ ਜਾਤਿ ਗਵਾਈ ॥ वे गुरु-शब्द का ज्ञान पाकर ब्रह्मज्ञानी बने और उन्होंने अपनी निम्न जातिगत स्थिति के गौरव अथवा अहंत्व का पूर्ण त्याग कर दिया।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਤਿਨ ਕੀ ਬਾਣੀ ਗਾਵਹਿ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟੈ ਭਾਈ ॥੩॥ देवते एवं मनुष्य उनकी पावन वाणी का गायन करते है। उनकी शोभा कोई भी मिटा नहीं सकता ॥३॥
ਦੈਤ ਪੁਤੁ ਕਰਮ ਧਰਮ ਕਿਛੁ ਸੰਜਮ ਨ ਪੜੈ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਨ ਜਾਣੈ ॥ दैत्य हिरण्यकशिपु का पुत्र भक्त प्रहलाद कोई धर्म-कर्म नहीं करता था। वह मन को स्थिर करने वाली संयम, ध्यान एवं समाधि रूप विधियों बारे कुछ भी नहीं जानता था। वह माया के मोह को नहीं जानता था।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਐ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਆ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥ सतगुरु से मिलकर वह निर्मल हो गया था वह रात-दिन नाम का जाप करता था
ਏਕੋ ਪੜੈ ਏਕੋ ਨਾਉ ਬੂਝੈ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ॥੪॥ और एक नाम को ही जानता था तथा अन्य किसी दूसरे को नहीं जानता था ॥४॥
ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਜੋਗੀ ਸੰਨਿਆਸੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥ छः शास्त्रों के उपदेशों को मानने वाले योगी, संन्यासी इत्यादि गुरु के बिना संदेह में भूले पड़े हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਤਾ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ यदि वे सतगुरु की सेवा का सौभाग्य प्राप्त करें तो वे मोक्ष एवं ईश्वर को खोजने में समर्थ होते हैं और पूज्य हरि को अपने चित्त में टिका लेते हैं।
ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਗੈ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਰਹਾਏ ॥੫॥ सच्ची गुरुवाणी से उनका मन जुड़ जाता है और उनका आवागमन (जन्म-मरण के चक्र से) मिट जाता है। ॥ ५॥
ਪੰਡਿਤ ਪੜਿ ਪੜਿ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥ गुरु के बिना भ्रम में भूले हुए पण्डित शास्त्र इत्यादि का अध्ययन करके वाद-विवाद करते हैं, किन्तु शब्द के बिना उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होता,
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਫੇਰੁ ਪਇਆ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਏ ॥ वे चौरासी लाख योनियों में भटकते फिरते हैं। जब ईश्वर की अनुकंपा होती है तो सतगुरु से मिलन होता है।
ਜਾ ਨਾਉ ਚੇਤੈ ਤਾ ਗਤਿ ਪਾਏ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥੬॥ और जब सतगुरु के उपदेशानुसार नाम की आराधना करते हैं, तब वह गति प्राप्त करते हैं। ॥ ६॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਉਪਜੈ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੁਭਾਏ ॥ यदि प्राणी का गुरु से मिलन हो जाए तो सत्संग के कारण वह हरि-नाम स्मरण कर पाता है।
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