Page 651
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
श्लोक महला ३॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਇਸੁ ਮਨ ਕਉ ਮਲੁ ਲਾਗੀ ਕਾਲਾ ਹੋਆ ਸਿਆਹੁ ॥
इस मन को तो जन्म-जन्मांतरों की मैल लगी हुई है और यह तो बिल्कुल मैला हो गया है।
ਖੰਨਲੀ ਧੋਤੀ ਉਜਲੀ ਨ ਹੋਵਈ ਜੇ ਸਉ ਧੋਵਣਿ ਪਾਹੁ ॥
किसी तेली की धोती धोने से वह उज्ज्वल नहीं होती चाहे उसे सौ बार ही क्यों न धोया जाए।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਉਲਟੀ ਹੋਵੈ ਮਤਿ ਬਦਲਾਹੁ ॥
गुरु की कृपा से मनुष्य जीवित ही मोह-माया से विरक्त रहता है, उसका स्वभाव बदल कर सांसारिक पदार्थों की ओर से विपरीत हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਮੈਲੁ ਨ ਲਗਈ ਨਾ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਪਾਹੁ ॥੧॥
हे नानक ! तब उसे किसी प्रकार की मैल नहीं लगती और वह फिर से योनियों के चक्र में नहीं पड़ता ॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३॥
ਚਹੁ ਜੁਗੀ ਕਲਿ ਕਾਲੀ ਕਾਂਢੀ ਇਕ ਉਤਮ ਪਦਵੀ ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਾਹਿ ॥
चारों युगों-(सतियुग, त्रैता, द्वापर, कलियुग) में एक कलियुग ही सबसे काला युग कहा जाता है किन्तु इस युग में भी एक उत्तम पदवी प्राप्त हो सकती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਫਲੁ ਪਾਈਐ ਜਿਨ ਕਉ ਹਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਹਿ ॥
जिनकी विधाता ने ऐसी किस्मत लिख दी है, वे गुरु के सान्निध्य में रहकर इस युग में भगवान की कीर्ति का फल प्राप्त कर लेते है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਉਚਰਹਿ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥੨॥
हे नानक ! ऐसे भक्तजन गुरु की अपार कृपा से रात-दिन भगवान की भक्ति का उच्चारण करते हैं और भक्ति में ही विलीन रहते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਸਾਧ ਜਨ ਸੰਗਤਿ ਮੁਖਿ ਬੋਲੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਲੀ ਬਾਣਿ ॥
हे हरि ! मुझे साधुजनों की सभा में मिला दो, चूंकि उनकी सभा में सम्मिलित होकर मैं अपने मुखारविंद से तेरी हरि-नाम रूपी सुन्दर वाणी को बोलूं।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਹਰਿ ਨਿਤ ਚਵਾ ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਸਦਾ ਮਾਣਿ ॥
मैं तो सदा भगवान का गुणगान करता हूँ और उसका ही भजन करता हूँ तथा गुरु-उपदेशानुसार सदैव भगवान के रंग का आनंद प्राप्त करता हूँ।
ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਅਉਖਧ ਖਾਧਿਆ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਤੇ ਦੁਖਾ ਘਾਣਿ ॥
ईश्वर का जाप करके और जप रूपी औषधि को खाने से मेरे समस्त रोग एवं दु:खों का नाश हो गया है।
ਜਿਨਾ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਨ ਵਿਸਰੈ ਸੇ ਹਰਿ ਜਨ ਪੂਰੇ ਸਹੀ ਜਾਣਿ ॥
जो श्वास लेते एवं खाते वक्त भी ईश्वर को नहीं भुलाते, उन भक्तजनों को पूर्ण सच्चे पुरुष समझो।
ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧਦੇ ਤਿਨ ਚੂਕੀ ਜਮ ਕੀ ਜਗਤ ਕਾਣਿ ॥੨੨॥
जो गुरुमुख बनकर भगवान की आराधना करते हैं, उनकी मृत्यु का भय एवं दुनिया की अधीनता मिट जाती है ॥२२॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
श्लोक महला ३॥
ਰੇ ਜਨ ਉਥਾਰੈ ਦਬਿਓਹੁ ਸੁਤਿਆ ਗਈ ਵਿਹਾਇ ॥
हे मानव ! भयानक स्वप्न के दबाव के नीचे तेरा सारा जीवन निद्रा में सोते हुए ही व्यतीत हो गया है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਿ ਨ ਜਾਗਿਓ ਅੰਤਰਿ ਨ ਉਪਜਿਓ ਚਾਉ ॥
तुम तो गुरु का शब्द सुनकर भी जाग्रत नहीं हुए और न ही तुम्हारे मन में चाव पैदा हुआ है।
ਸਰੀਰੁ ਜਲਉ ਗੁਣ ਬਾਹਰਾ ਜੋ ਗੁਰ ਕਾਰ ਨ ਕਮਾਇ ॥
वह शरीर जो गुणों से खाली है और जो गुरु की सेवा भी नहीं करता, उसे जल जाना ही चाहिए।
ਜਗਤੁ ਜਲੰਦਾ ਡਿਠੁ ਮੈ ਹਉਮੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
मैंने तो इस दुनिया को आत्माभिमान एवं द्वैतभाव में जलते हुए ही देखा है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਉਬਰੇ ਸਚੁ ਮਨਿ ਸਬਦਿ ਧਿਆਇ ॥੧॥
हे नानक ! जिन्होंने गुरु की शरण में आकर सच्चे मन से शब्द का चिंतन किया है, उनका कल्याण हो गया है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३ ॥
ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਹਉਮੈ ਗਈ ਸੋਭਾਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ॥
शब्द में मग्न होने से जीव-स्त्री का अहंकार नष्ट हो गया है और अब वह शोभावान हो गई है।
ਪਿਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਸਦਾ ਚਲੈ ਤਾ ਬਨਿਆ ਸੀਗਾਰੁ ॥
यदि जीव-स्त्री सदैव अपने प्रभु की आज्ञा का पालन करे तो ही उसका श्रृंगार उत्तम है।
ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਸਦਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵੈ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਨਾਰਿ ॥
उस नारी की सेज सुहावनी हो जाती है, वह परमात्मा को ही अपने वर के रूप में प्राप्त कर लेती है और हमेशा ही अपने प्रियतम के साथ आनंद करती है।
ਨਾ ਹਰਿ ਮਰੈ ਨ ਕਦੇ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਸਦਾ ਸੁਹਾਗਣਿ ਨਾਰਿ ॥
परमेश्वर तो अनश्वर है, जिसके कारण जीव रूपी नारी को कभी दुःख स्पर्श नहीं करता और वह तो सदा सुहागिन ही रहती है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਿ ਲਈ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥੨॥
हे नानक ! गुरु के स्नेह एवं प्रेम के कारण प्रभु उसे अपने साथ ही मिला लेता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
ਜਿਨਾ ਗੁਰੁ ਗੋਪਿਆ ਆਪਣਾ ਤੇ ਨਰ ਬੁਰਿਆਰੀ ॥
जिन्होंने अपने गुरु का तिरस्कार किया है, वे पुरुष बहुत बुरे हैं।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਨਾ ਕਰਹੁ ਪਾਪਿਸਟ ਹਤਿਆਰੀ ॥
हे ईश्वर ! हमें तो उनके दर्शन मत करवाना, चूंकि वे तो महापापी और हत्यारे हैं।
ਓਹਿ ਘਰਿ ਘਰਿ ਫਿਰਹਿ ਕੁਸੁਧ ਮਨਿ ਜਿਉ ਧਰਕਟ ਨਾਰੀ ॥
वे खोटे मन वाले व्यभिचारिणी नारी की तरह घर-घर फिरते रहते हैं।
ਵਡਭਾਗੀ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਵਾਰੀ ॥
लेकिन अहोभाग्य से ही वे सत्संगति में शामिल होते है और गुरु के सान्निध्य में उनका जीवन संवर जाता है।
ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸਤਿਗੁਰ ਦਇਆ ਕਰਿ ਗੁਰ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨੩॥
हे पूज्य परमेश्वर ! अपनी दया करके सतगुरु से मिला दो, चूंकि मैं तो गुरु पर ही बलिहारी जाता हूँ॥ २३॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
श्लोक महला ३॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਫਿਰਿ ਦੁਖੁ ਨ ਲਗੈ ਆਇ ॥
गुरु की सेवा करने से ही सुख उत्पन्न होता है और फिर कोई दुःख-क्लेश आकर नहीं लगता।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ਕਾਲੈ ਕਾ ਕਿਛੁ ਨ ਬਸਾਇ ॥
गुरु की सेवा के फलस्वरूप मनुष्य का जन्म-मरण ही मिट जाता है और उसके ऊपर मृत्यु का भी कुछ वश नहीं चलता।
ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਚੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
फिर उसका मन भगवान के साथ ही लगा रहता है और अंतः सत्य में ही वह समाया रहता है।
ਨਾਨਕ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿੰਨ ਕਉ ਜੋ ਚਲਨਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ॥੧॥
हे नानक ! मै तो उन पर कुर्बान जाता हूँ जो सतगुरु की आज्ञानुसार चलते हैं।॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३॥
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਸੁਧੁ ਨ ਹੋਵਈ ਜੇ ਅਨੇਕ ਕਰੈ ਸੀਗਾਰ ॥
यदि जीव-स्त्री अनेक श्रृंगार करती रहे, लेकिन फिर भी वह शब्द के बिना शुद्ध नहीं होती।