Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 618

Page 618

ਤਿਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਬਾਛੈ ਜਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਪਰੋਈ ॥੨॥੫॥੩੩॥ तिन की धूरि नानकु दासु बाछै जिन हरि नामु रिदै परोई ॥२॥५॥३३॥ दास नानक उनकी चरण-धूलि की अभिलाषा करता है, जिन्होंने हरि का नाम अपने हृदय में पिरोया हुआ है।॥ २॥ ५॥ ३३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰੈ ਸੂਕਾ ਮਨੁ ਸਾਧਾਰੈ ॥ नम जनम के दूख निवारै सूका मनु साधारै ॥ गुरु जन्म-जन्मांतरों के दुःख-क्लेश नष्ट कर देते है और मुरझाए हुए मन को हरा-भरा कर देते है।
ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਤ ਹੋਤ ਨਿਹਾਲਾ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਬੀਚਾਰੈ ॥੧॥ दरसनु भेटत होत निहाला हरि का नामु बीचारै ॥१॥ गुरु के दर्शन करने से मनुष्य निहाल हो जाता है और हरि के नाम का चिंतन करता है॥ १॥
ਮੇਰਾ ਬੈਦੁ ਗੁਰੂ ਗੋਵਿੰਦਾ ॥ मेरा बैदु गुरू गोविंदा ॥ गोविन्द गुरु ही मेरे वैद्य है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਉਖਧੁ ਮੁਖਿ ਦੇਵੈ ਕਾਟੈ ਜਮ ਕੀ ਫੰਧਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि हरि नामु अउखधु मुखि देवै काटै जम की फंधा ॥१॥ रहाउ ॥ वह मेरे मुख में हरि-नाम की अमृत रूपी औषधि डालते हैं और आत्मिक मृत्यु के बंधन को काट देते है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਮਰਥ ਪੁਰਖ ਪੂਰਨ ਬਿਧਾਤੇ ਆਪੇ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ॥ समरथ पुरख पूरन बिधाते आपे करणैहारा ॥ सर्वकला समर्थ पूर्ण पुरुष विधाता स्वयं ही रचयिता है।
ਅਪੁਨਾ ਦਾਸੁ ਹਰਿ ਆਪਿ ਉਬਾਰਿਆ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਅਧਾਰਾ ॥੨॥੬॥੩੪॥ अपुना दासु हरि आपि उबारिआ नानक नाम अधारा ॥२॥६॥३४॥ हे नानक ! भगवान् अपने भक्त को गुरु के माध्यम से नाम का आश्रय देकर आत्मिक मृत्यु के बंधन से मुक्त कर देते हैं।॥ २ ॥ ६ ॥ ३४ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਅੰਤਰ ਕੀ ਗਤਿ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਨੀ ਤੁਝ ਹੀ ਪਾਹਿ ਨਿਬੇਰੋ ॥ अंतर की गति तुम ही जानी तुझ ही पाहि निबेरो ॥ हे ईश्वर ! मेरे अन्तर्मन की गति आप ही जानते हो और आपके पास ही अन्तिम निर्णय है।
ਬਖਸਿ ਲੈਹੁ ਸਾਹਿਬ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੇ ਲਾਖ ਖਤੇ ਕਰਿ ਫੇਰੋ ॥੧॥ बखसि लैहु साहिब प्रभ अपने लाख खते करि फेरो ॥१॥ हे मालिक-प्रभु ! मुझे अपना समझ कर क्षमा कर दो; चाहे मैंने लाखों ही भूलें एवं अपराध किए हैं॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਤੂ ਮੇਰੋ ਠਾਕੁਰੁ ਨੇਰੋ ॥ प्रभ जी तू मेरो ठाकुरु नेरो ॥ हे प्रभु जी ! आप ही मेरे स्वामी है, जो हमेशा मेरे निकट रहते हो।
ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਰਣ ਮੋਹਿ ਚੇਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि चरण सरण मोहि चेरो ॥१॥ रहाउ ॥ हे हरि ! अपने इस शिष्य को अपने चरणों में शरण प्रदान कीजिए॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਸੁਮਾਰ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਊਚੋ ਗੁਨੀ ਗਹੇਰੋ ॥ बेसुमार बेअंत सुआमी ऊचो गुनी गहेरो ॥ हे मेरे अनंत स्वामी, आप सर्वोच्च, सदाचारी और अत्यंत गहन हैं।।
ਕਾਟਿ ਸਿਲਕ ਕੀਨੋ ਅਪੁਨੋ ਦਾਸਰੋ ਤਉ ਨਾਨਕ ਕਹਾ ਨਿਹੋਰੋ ॥੨॥੭॥੩੫॥ काटि सिलक कीनो अपुनो दासरो तउ नानक कहा निहोरो ॥२॥७॥३५॥ जब प्रभु ने बन्धनों की फांसी काटकर नानक को अपना दास बना लिया है तो अब उसे किसी के सहारे की क्या जरूरत है ॥२॥७॥३५॥
ਸੋਰਠਿ ਮਃ ੫ ॥ सोरठि मः ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੁਰੂ ਗੋਵਿੰਦਾ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪਾਏ ॥ भए क्रिपाल गुरू गोविंदा सगल मनोरथ पाए ॥ जब गोविन्द गुरु मुझ पर दयावान हो गए तो मैंने सारे मनोरथ पा लिए।
ਅਸਥਿਰ ਭਏ ਲਾਗਿ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਗੋਵਿੰਦ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥ असथिर भए लागि हरि चरणी गोविंद के गुण गाए ॥१॥ भगवान् के सुन्दर चरणों में लगकर मैं स्थिर हो गया हूँ और गोविन्द के ही गुण गाए हैं।॥ १॥
ਭਲੋ ਸਮੂਰਤੁ ਪੂਰਾ ॥ भलो समूरतु पूरा ॥ वह मुहूर्त पूर्ण एवं शुभ हैं,
ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਵਾਜੇ ਅਨਹਦ ਤੂਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सांति सहज आनंद नामु जपि वाजे अनहद तूरा ॥१॥ रहाउ ॥ जब भगवान् के नाम का भजन करने से मुझे आत्मिक शांति, धैर्य एवं आनंद की प्राप्ति हो गई है और मेरे भीतर अनहद नाद बजते हैं॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਿਲੇ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਪੁਨੇ ਘਰ ਮੰਦਰ ਸੁਖਦਾਈ ॥ मिले सुआमी प्रीतम अपुने घर मंदर सुखदाई ॥ अपने प्रियतम स्वामी से भेंट करके मेरा हृदय-घर सुखदायक हो गया है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਪਾਇਆ ਸਗਲੀ ਇਛ ਪੁਜਾਈ ॥੨॥੮॥੩੬॥ हरि नामु निधानु नानक जन पाइआ सगली इछ पुजाई ॥२॥८॥३६॥ दास नानक को हरि-नाम का खजाना प्राप्त हुआ है और उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूरी हो गई हैं।॥ २॥ ८॥ ३६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਬਸੇ ਰਿਦ ਭੀਤਰਿ ਸੁਭ ਲਖਣ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨੇ ॥ गुर के चरन बसे रिद भीतरि सुभ लखण प्रभि कीने ॥ गुरु के चरण मेरे हृदय में बस गए हैं और प्रभु ने शुभ लक्षण (गुण) पैदा कर दिए हैं।
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸਰ ਨਾਮ ਨਿਧਾਨ ਮਨਿ ਚੀਨੇ ॥੧॥ भए क्रिपाल पूरन परमेसर नाम निधान मनि चीने ॥१॥ जब पूर्ण परमेश्वर मुझ पर कृपालु हुआ तो मैंने नाम के भण्डार को अपने हृदय में ही पहचान लिया ॥ १॥
ਮੇਰੋ ਗੁਰੁ ਰਖਵਾਰੋ ਮੀਤ ॥ मेरो गुरु रखवारो मीत ॥ गुरु मेरे रखवाले एवं मित्र है।
ਦੂਣ ਚਊਣੀ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਸੋਭਾ ਨੀਤਾ ਨੀਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दूण चऊणी दे वडिआई सोभा नीता नीत ॥१॥ रहाउ ॥ वह मुझे नित्य ही दोगुनी-चौगुनी प्रशंसा एवं शोभा देते रहते है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਪ੍ਰਭਿ ਸਗਲ ਉਧਾਰੇ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਣਹਾਰੇ ॥ जीअ जंत प्रभि सगल उधारे दरसनु देखणहारे ॥ प्रभु ने दर्शन-दीदार करने वाले सब जीवों का उद्धार कर दिया है।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਅਚਰਜ ਵਡਿਆਈ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੨॥੯॥੩੭॥ गुर पूरे की अचरज वडिआई नानक सद बलिहारे ॥२॥९॥३७॥ पूर्ण गुरु की महिमा बड़ी अद्भुत है और दास नानक सदा ही उस पर बलिहारी जाता है॥२॥९॥३७॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸੰਚਨਿ ਕਰਉ ਨਾਮ ਧਨੁ ਨਿਰਮਲ ਥਾਤੀ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥ संचनि करउ नाम धनु निरमल थाती अगम अपार ॥ निर्मल हरि-नाम रूपी धन को संचित करो, चूंकि नाम की धरोहर अनन्त एवं अपार है।
ਬਿਲਛਿ ਬਿਨੋਦ ਆਨੰਦ ਸੁਖ ਮਾਣਹੁ ਖਾਇ ਜੀਵਹੁ ਸਿਖ ਪਰਵਾਰ ॥੧॥ बिलछि बिनोद आनंद सुख माणहु खाइ जीवहु सिख परवार ॥१॥ हे गुरु के सिक्खो एवं मेरे परिजनो ! नाम-आहार का सेवन करके जीवित रहो और विलक्षण विनोद एवं आनन्द-सुख भोगो ॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਧਾਰ ॥ हरि के चरन कमल आधार ॥ हरि के सुन्दर चरण-कमल ही हमारा जीवनाधार है।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਾਇਓ ਸਚ ਬੋਹਿਥੁ ਚੜਿ ਲੰਘਉ ਬਿਖੁ ਸੰਸਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ संत प्रसादि पाइओ सच बोहिथु चड़ि लंघउ बिखु संसार ॥१॥ रहाउ ॥ संतों की कृपा से मुझे सत्य का जहाज़ प्राप्त हुआ है, जिस पर सवार होकर मैं विषैले जगत् सागर से पार हो जाऊँगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਆਪਹਿ ਕੀਨੀ ਸਾਰ ॥ भए क्रिपाल पूरन अबिनासी आपहि कीनी सार ॥ पूर्ण अविनाशी प्रभु मुझ पर कृपालु हो गए है और उन्होंने स्वयं ही मेरी देखरेख की है।
ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਨਾਨਕ ਬਿਗਸਾਨੋ ਨਾਨਕ ਨਾਹੀ ਸੁਮਾਰ ॥੨॥੧੦॥੩੮॥ पेखि पेखि नानक बिगसानो नानक नाही सुमार ॥२॥१०॥३८॥ नानक उसे बार-बार देखकर प्रसन्न होते हैं: हे नानक, वह किसी भी अनुमान से परे है। ॥ २॥ १०॥ ३८॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सोरठि महला ५ ॥ राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਅਪਨੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ਸਭ ਘਟ ਉਪਜੀ ਦਇਆ ॥ गुरि पूरै अपनी कल धारी सभ घट उपजी दइआ ॥ पूर्ण गुरु ने अपनी ऐसी कला (शक्ति) प्रगट की है कि समस्त जीवों के मन में दया उत्पन्न हो गई है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਵਡਾਈ ਕੀਨੀ ਕੁਸਲ ਖੇਮ ਸਭ ਭਇਆ ॥੧॥ आपे मेलि वडाई कीनी कुसल खेम सभ भइआ ॥१॥ भगवान् ने मुझे अपने साथ मिलाकर शोभा प्रदान की है और हर तरफ कुशलक्षेम ही है॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮੇਰੈ ਨਾਲਿ ॥ सतिगुरु पूरा मेरै नालि ॥ पूर्ण सतगुरु सदा मेरे साथ है।


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