Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 578

Page 578

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਖੰਨੀਐ ਵੰਞਾ ਜਿਨ ਘਟਿ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਵੂਠਾ ॥੩॥ कहु नानक तिन खंनीऐ वंञा जिन घटि मेरा हरि प्रभु वूठा ॥३॥ नानक कहते हैं, मैं उन संतजनों के प्रति समर्पित हूं, जिनके हृदय में परमात्मा निवास करते हैं।॥ ३॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਜੋ ਲੋੜੀਦੇ ਰਾਮ ਸੇਵਕ ਸੇਈ ਕਾਂਢਿਆ ॥ जो लोड़ीदे राम सेवक सेई कांढिआ ॥ जिन्हें राम को पाने की तीव्र लालसा लगी हुई है, वही उसके सच्चे सेवक कहलाते हैं।
ਨਾਨਕ ਜਾਣੇ ਸਤਿ ਸਾਂਈ ਸੰਤ ਨ ਬਾਹਰਾ ॥੧॥ नानक जाणे सति सांई संत न बाहरा ॥१॥ नानक इस सत्य को भली भांति जानते हैं कि जगत् के स्वामी अपने संतों से अलग नहीं है।॥१॥
ਛੰਤੁ ॥ छंतु ॥ छंद ॥
ਮਿਲਿ ਜਲੁ ਜਲਹਿ ਖਟਾਨਾ ਰਾਮ ॥ मिलि जलु जलहि खटाना राम ॥ जैसे जल, जल से मिलकर अभेद हो जाता है,
ਸੰਗਿ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਨਾ ਰਾਮ ॥ संगि जोती जोति मिलाना राम ॥ वैसे ही संतों की ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है।
ਸੰਮਾਇ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਕਰਤੇ ਆਪਿ ਆਪਹਿ ਜਾਣੀਐ ॥ समाइ पूरन पुरख करते आपि आपहि जाणीऐ ॥ सर्वशक्तिमान जगत् के रचयिता परमात्मा में विलीन होकर जीव अपने आत्म स्वरूप को समझ लेता है।
ਤਹ ਸੁੰਨਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਲਾਗੀ ਏਕੁ ਏਕੁ ਵਖਾਣੀਐ ॥ तह सुंनि सहजि समाधि लागी एकु एकु वखाणीऐ ॥ तब उसकी सहज ही शून्य समाधि लग जाती है और वह एक ईश्वर का ही ध्यान करता है।
ਆਪਿ ਗੁਪਤਾ ਆਪਿ ਮੁਕਤਾ ਆਪਿ ਆਪੁ ਵਖਾਨਾ ॥ आपि गुपता आपि मुकता आपि आपु वखाना ॥ ईश्वर स्वयं अव्यक्त है, वह समस्त भौतिक वस्तुओं से परे होते हुए भी सबमें व्यापत है, और स्वयं ही स्वयं का वर्णन कर रहा है।
ਨਾਨਕ ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਗੁਣ ਬਿਨਾਸੇ ਮਿਲਿ ਜਲੁ ਜਲਹਿ ਖਟਾਨਾ ॥੪॥੨॥ नानक भ्रम भै गुण बिनासे मिलि जलु जलहि खटाना ॥४॥२॥ हे नानक ! ऐसे गुरुमुख व्यक्ति का भ्रम, भय एवं तीनों गुण-रजो, तमो एवं सतो गुण नाश हो जाते हैं और जैसे जल, जल में ही मिल जाता है वैसे ही वह परमात्मा में विलीन हो जाता है।॥४॥२॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ वडहंसु महला ५ ॥ राग वदाहंस, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥਾ ਰਾਮ ॥ प्रभ करण कारण समरथा राम ॥ हे प्रभु ! आप सब कुछ करने-कराने में समर्थवान् है,
ਰਖੁ ਜਗਤੁ ਸਗਲ ਦੇ ਹਥਾ ਰਾਮ ॥ रखु जगतु सगल दे हथा राम ॥ अपना हाथ देकर सारी दुनिया की रक्षा करो।
ਸਮਰਥ ਸਰਣਾ ਜੋਗੁ ਸੁਆਮੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥ समरथ सरणा जोगु सुआमी क्रिपा निधि सुखदाता ॥ आप ही समर्थ, शरण प्रदान करने योग्य, सबके स्वामी, कृपानिधि एवं सुखों के दाता है।
ਹੰਉ ਕੁਰਬਾਣੀ ਦਾਸ ਤੇਰੇ ਜਿਨੀ ਏਕੁ ਪਛਾਤਾ ॥ हंउ कुरबाणी दास तेरे जिनी एकु पछाता ॥ मैं आपके उन सेवकों पर बलिहारी जाता हूँ, जो केवल एक ईश्वर को ही पहचानते हैं।
ਵਰਨੁ ਚਿਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ਲਖਿਆ ਕਥਨ ਤੇ ਅਕਥਾ ॥ वरनु चिहनु न जाइ लखिआ कथन ते अकथा ॥ उस परमात्मा का कोई रंग एवं चिन्ह वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका कथन अकथनीय है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸੁਣਹੁ ਬਿਨਤੀ ਪ੍ਰਭ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥਾ ॥੧॥ बिनवंति नानक सुणहु बिनती प्रभ करण कारण समरथा ॥१॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे सब कुछ करने-कराने में सर्वशक्तिमान प्रभु ! मेरी एक वंदना सुनो॥ १॥
ਏਹਿ ਜੀਅ ਤੇਰੇ ਤੂ ਕਰਤਾ ਰਾਮ ॥ एहि जीअ तेरे तू करता राम ॥ ये जीव आपके उत्पन्न किए हुए हैं और आप इनके रचयिता है।
ਪ੍ਰਭ ਦੂਖ ਦਰਦ ਭ੍ਰਮ ਹਰਤਾ ਰਾਮ ॥ प्रभ दूख दरद भ्रम हरता राम ॥ हे प्रभु ! आप दुःख-दर्द एवं भ्रम का नाश करने वाला है।
ਭ੍ਰਮ ਦੂਖ ਦਰਦ ਨਿਵਾਰਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਰਖਿ ਲੇਹੁ ਦੀਨ ਦੈਆਲਾ ॥ भ्रम दूख दरद निवारि खिन महि रखि लेहु दीन दैआला ॥ हे दीनदयाल ! दुविधा, दुःख-दर्द का नाश करके एक क्षण में मेरी रक्षा करो।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਆਮਿ ਸਜਣੁ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਬਾਲ ਗੋਪਾਲਾ ॥ मात पिता सुआमि सजणु सभु जगतु बाल गोपाला ॥ आप ही माता-पिता, स्वामी एवं मित्र है और यह सारा जगत् आपकी संतान है।
ਜੋ ਸਰਣਿ ਆਵੈ ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਪਾਵੈ ਸੋ ਬਹੁੜਿ ਜਨਮਿ ਨ ਮਰਤਾ ॥ जो सरणि आवै गुण निधान पावै सो बहुड़ि जनमि न मरता ॥ जो आपकी शरण में आता है, उसे गुणों का भण्डार प्राप्त हो जाता है और वह दुबारा न जन्म लेता है और न ही मृत्यु को प्राप्त होता है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤੇਰਾ ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੇਰੇ ਤੂ ਕਰਤਾ ॥੨॥ बिनवंति नानक दासु तेरा सभि जीअ तेरे तू करता ॥२॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे पूज्य परमेश्वर ! यह सभी जीव आपके हैं और आप सबके रचयिता है ॥२॥
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਰਾਮ ॥ आठ पहर हरि धिआईऐ राम ॥ दिन-रात परमात्मा का ध्यान करना चाहिए,
ਮਨ ਇਛਿਅੜਾ ਫਲੁ ਪਾਈਐ ਰਾਮ ॥ मन इछिअड़ा फलु पाईऐ राम ॥ इसके फलस्वरूप मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं।
ਮਨ ਇਛ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਈਐ ਮਿਟਹਿ ਜਮ ਕੇ ਤ੍ਰਾਸਾ ॥ मन इछ पाईऐ प्रभु धिआईऐ मिटहि जम के त्रासा ॥ परमात्मा का ध्यान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं और मृत्यु का भय मिट जाता है।
ਗੋਬਿਦੁ ਗਾਇਆ ਸਾਧ ਸੰਗਾਇਆ ਭਈ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ॥ गोबिदु गाइआ साध संगाइआ भई पूरन आसा ॥ संतों की सभा में सम्मिलित होकर जगत् के पालक गोविंद का गुणगान करने से सभी आशाएं पूरी हो गई हैं।
ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਵਿਕਾਰ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਈਐ ॥ तजि मानु मोहु विकार सगले प्रभू कै मनि भाईऐ ॥ अपना अहंकार, मोह एवं सभी विकार त्याग कर हम प्रभु के मन को अच्छे लगने लग गए हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣੀ ਸਦਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੩॥ बिनवंति नानक दिनसु रैणी सदा हरि हरि धिआईऐ ॥३॥ नानक प्रार्थना करते हैंं कि हमें दिन-रात सदा-सर्वदा भगवान् का ध्यान करते रहना चाहिए॥ ३॥
ਦਰਿ ਵਾਜਹਿ ਅਨਹਤ ਵਾਜੇ ਰਾਮ ॥ दरि वाजहि अनहत वाजे राम ॥ परमात्मा के दरबार में हमेशा ही अनहद कीर्तन गूंज रहा है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਹਰਿ ਗੋਬਿੰਦੁ ਗਾਜੇ ਰਾਮ ॥ घटि घटि हरि गोबिंदु गाजे राम ॥ प्रत्येक हृदय में ईश्वर वास करते हैं, यह अनुभूति होती है।
ਗੋਵਿਦ ਗਾਜੇ ਸਦਾ ਬਿਰਾਜੇ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਊਚਾ ॥ गोविद गाजे सदा बिराजे अगम अगोचरु ऊचा ॥ वह सर्वदा ही बोलता एवं सभी के भीतर विराजमान है, वह अगम्य, मन-वाणी से परे एवं सर्वोपरि है।
ਗੁਣ ਬੇਅੰਤ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਕੋਇ ਨ ਸਕੈ ਪਹੂਚਾ ॥ गुण बेअंत किछु कहणु न जाई कोइ न सकै पहूचा ॥ उस प्रभु के अनन्त गुण है, मनुष्य उसके गुणों का तिल मात्र भी वर्णन नहीं कर सकता और कोई भी उसके पास पहुँच नहीं सकता।
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਸਾਜੇ ॥ आपि उपाए आपि प्रतिपाले जीअ जंत सभि साजे ॥ वह स्वयं ही पैदा करते हैं, स्वयं ही पालन-पोषण करते हैं और सभी जीव-जन्तु उसकी ही रचना है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਨਾਮਿ ਭਗਤੀ ਦਰਿ ਵਜਹਿ ਅਨਹਦ ਵਾਜੇ ॥੪॥੩॥ बिनवंति नानक सुखु नामि भगती दरि वजहि अनहद वाजे ॥४॥३॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि जीवन के सभी सुख परमात्मा के नाम एवं भक्ति में हैं, जिसके द्वार पर अनहद नाद बजते रहते हैं॥४॥३॥
ਰਾਗੁ ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੫ ਅਲਾਹਣੀਆ रागु वडहंसु महला १ घरु ५ अलाहणीआ राग वदाहंस, प्रथम गुरु, पाँचवाँ ताल, अलौहनिया (स्तुति)
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਧੰਨੁ ਸਿਰੰਦਾ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਜਿਨਿ ਜਗੁ ਧੰਧੈ ਲਾਇਆ ॥ धंनु सिरंदा सचा पातिसाहु जिनि जगु धंधै लाइआ ॥ वह जगत का रचयिता सच्चा पातशाह, प्रभु धन्य है, जिसने सारी दुनिया को धन्धे में लगाया है।
ਮੁਹਲਤਿ ਪੁਨੀ ਪਾਈ ਭਰੀ ਜਾਨੀਅੜਾ ਘਤਿ ਚਲਾਇਆ ॥ मुहलति पुनी पाई भरी जानीअड़ा घति चलाइआ ॥ जब अन्तिम समय पूरा हो जाता है और जीवन प्याला भर जाता है तो यह प्यारी आत्मा पकड़ कर आगे यमलोक में धकेल दी जाती है।


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