Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 562

Page 562

ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਆਸ ਪੁਜਾਏ ॥੪॥ धनु धंनु गुरू गुर सतिगुरु पूरा नानक मनि आस पुजाए ॥४॥ हे नानक ! मेरे पूर्ण गुरु-सतगुरु धन्य-धन्य है, जो मेरे मन की आशा पूरी करते हैं ॥४॥
ਗੁਰੁ ਸਜਣੁ ਮੇਰਾ ਮੇਲਿ ਹਰੇ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਾ ॥ गुरु सजणु मेरा मेलि हरे जितु मिलि हरि नामु धिआवा ॥
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਹੁ ਹਰਿ ਗੋਸਟਿ ਪੂਛਾਂ ਕਰਿ ਸਾਂਝੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾਂ ॥ गुर सतिगुर पासहु हरि गोसटि पूछां करि सांझी हरि गुण गावां ॥ हे हरि ! मुझे मेरे सज्जन गुरु मिला दो, जिनसे मिलकर मैं हरि-नाम का ध्यान करता रहूँ।
ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਸਦ ਹਰਿ ਕੇ ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਨਾਮੁ ਸੁਣਿ ਤੇਰਾ ॥ गुण गावा नित नित सद हरि के मनु जीवै नामु सुणि तेरा ॥ मैं सच्चे गुरु से ईश्वर-मिलन की बात करता रहूँ और उनकी संगति में रहकर ईश्वर का गुणगान करता रहूँ।
ਨਾਨਕ ਜਿਤੁ ਵੇਲਾ ਵਿਸਰੈ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਤੁ ਵੇਲੈ ਮਰਿ ਜਾਇ ਜੀਉ ਮੇਰਾ ॥੫॥ नानक जितु वेला विसरै मेरा सुआमी तितु वेलै मरि जाइ जीउ मेरा ॥५॥ हे हरि ! मैं नित्य-नित्य सर्वदा ही आपका गुणगान करता रहूँ और आपका नाम सुनकर मेरा मन आध्यात्मिक रूप से जीवित है।
ਹਰਿ ਵੇਖਣ ਕਉ ਸਭੁ ਕੋਈ ਲੋਚੈ ਸੋ ਵੇਖੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਵਿਖਾਲੇ ॥ हरि वेखण कउ सभु कोई लोचै सो वेखै जिसु आपि विखाले ॥ हे नानक ! जिस समय मुझे मेरे स्वामी प्रभु विस्मृत हो जाता है, उस समय मेरी आत्मा मर जाती है।॥५॥
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਪਿਆਰਾ ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ॥ जिस नो नदरि करे मेरा पिआरा सो हरि हरि सदा समाले ॥ हर कोई हरि-दर्शन की तीव्र लालसा करता है लेकिन हरि उसे ही अपने दर्शन देते हैं, जिसे वह अपने दर्शन स्वयं प्रदान करते हैं।
ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ਜਿਸੁ ਸਤਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮੇਰਾ ਮਿਲਿਆ ॥ सो हरि हरि नामु सदा सदा समाले जिसु सतगुरु पूरा मेरा मिलिआ ॥ मेरे प्रियतम जिस पर कृपा-दृष्टि करते हैं, वह सर्वदा ही परमेश्वर का सिमरन करता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਇਕੇ ਹੋਏ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰਲਿਆ ॥੬॥੧॥੩॥ नानक हरि जन हरि इके होए हरि जपि हरि सेती रलिआ ॥६॥१॥३॥ जिसे मेरा पूर्ण सतगुरु मिल जाता है, वह सर्वदा ही हरि-नाम की आराधना करता रहता है।
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧॥ वडहंसु महला ५ घरु १ हे नानक ! हरि का सेवक एवं हरि एक ही रूप हो गए हैं। चूंकि हरि का जाप करने से हरि-सेवक भी हरि में ही समा गया है॥ ६ ॥ १॥ ३ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ राग वदाहंस, प्रथम ताल, पाँचवाँ गुरु:
ਅਤਿ ਊਚਾ ਤਾ ਕਾ ਦਰਬਾਰਾ ॥ अति ऊचा ता का दरबारा ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਅੰਤੁ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥ अंतु नाही किछु पारावारा ॥ उस भगवान् का दरबार अत्यंत ऊँचा है तथा
ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਲਖ ਧਾਵੈ ॥ कोटि कोटि कोटि लख धावै ॥ उसका कोई अन्त अथवा कोई ओर-छोर नहीं।
ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਤਾ ਕਾ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥੧॥ इकु तिलु ता का महलु न पावै ॥१॥ करोड़ों, करोड़ों, करोड़ों-लाखों ही जीव भागदौड़ करते हैं किन्तु
ਸੁਹਾਵੀ ਕਉਣੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सुहावी कउणु सु वेला जितु प्रभ मेला ॥१॥ रहाउ ॥ उसके यथार्थ निवास का भेद एक तिल मात्र भी नहीं पा सकते ॥१॥
ਲਾਖ ਭਗਤ ਜਾ ਕਉ ਆਰਾਧਹਿ ॥ लाख भगत जा कउ आराधहि ॥ वह कौन-सा समय शुभ सुहावना है, जब प्रभु से मिलन होता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਲਾਖ ਤਪੀਸਰ ਤਪੁ ਹੀ ਸਾਧਹਿ ॥ लाख तपीसर तपु ही साधहि ॥ जिस परमात्मा की लाखों ही भक्त आराधना करते हैं।
ਲਾਖ ਜੋਗੀਸਰ ਕਰਤੇ ਜੋਗਾ ॥ लाख जोगीसर करते जोगा ॥ लाखों ही तपस्वी उसकी तपस्या करते हैं।
ਲਾਖ ਭੋਗੀਸਰ ਭੋਗਹਿ ਭੋਗਾ ॥੨॥ लाख भोगीसर भोगहि भोगा ॥२॥ लाखों ही योगेश्वर योग-साधना करते हैं।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਸਹਿ ਜਾਣਹਿ ਥੋਰਾ ॥ घटि घटि वसहि जाणहि थोरा ॥ लाखों ही भोगी उसके भोगों को भोगते रहते हैं।॥ २॥
ਹੈ ਕੋਈ ਸਾਜਣੁ ਪਰਦਾ ਤੋਰਾ ॥ है कोई साजणु परदा तोरा ॥ वह प्रत्येक हृदय में निवास करते हैं परन्तु इसका एहसास बहुत कम लोगों को होता है।
ਕਰਉ ਜਤਨ ਜੇ ਹੋਇ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥ करउ जतन जे होइ मिहरवाना ॥ कोई विरला ही ऐसा गुरु-भक्त होता है जो अपने और ईश्वर के बीच की दूरी को मिटा पाता है।
ਤਾ ਕਉ ਦੇਈ ਜੀਉ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੩॥ ता कउ देई जीउ कुरबाना ॥३॥ मैं पूरे मन से प्रयास करता हूँ कि गुरु के अनुयायी मुझ पर कृपा करें और मुझे मार्ग दिखाएँ।
ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਸੰਤਨ ਪਹਿ ਆਇਆ ॥ फिरत फिरत संतन पहि आइआ ॥ मैं उस पर अपना जीवन भी न्यौछावर करने को तैयार हूँं॥ ३ ॥
ਦੂਖ ਭ੍ਰਮੁ ਹਮਾਰਾ ਸਗਲ ਮਿਟਾਇਆ ॥ दूख भ्रमु हमारा सगल मिटाइआ ॥ प्रभु-खोज में भटकता-भटकता मैं संतों के पास आया हूँ और
ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਇਆ ਪ੍ਰਭ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਭੂੰਚਾ ॥ महलि बुलाइआ प्रभ अम्रितु भूंचा ॥ उन्होंने मेरे सभी दुःख एवं भ्रम मिटा दिए हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਊਚਾ ॥੪॥੧॥ कहु नानक प्रभु मेरा ऊचा ॥४॥१॥ नामामृत का पान करने के लिए प्रभु ने मुझे अपने चरणाश्रय में बुलाया है।
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ वडहंसु महला ५ ॥ हे नानक ! मेरे प्रभु सबसे बड़ा एवं सर्वोपरि है॥ ४॥ १॥
ਧਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਦਰਸਨੁ ਕਰਣਾ ॥ धनु सु वेला जितु दरसनु करणा ॥ राग वदाहंस, पांचवें गुरु: ५॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣਾ ॥੧॥ हउ बलिहारी सतिगुर चरणा ॥१॥ वह समय बड़ा शुभ एवं धन्य है, जब परमात्मा के दर्शन प्राप्त होते हैं।
ਜੀਅ ਕੇ ਦਾਤੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥ जीअ के दाते प्रीतम प्रभ मेरे ॥ मैं अपने सतगुरु के चरणों पर बलिहारी जाता हूँ॥ १॥
ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ਚਿਤੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मनु जीवै प्रभ नामु चितेरे ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे प्रियतम प्रभु ! आप हम सभी के प्राणदाता हो।
ਸਚੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਤੁਮਾਰਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥ सचु मंत्रु तुमारा अम्रित बाणी ॥ मेरा मन तो प्रभु का नाम-स्मरण करने से ही जीवित है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੀਤਲ ਪੁਰਖ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸੁਜਾਣੀ ॥੨॥ सीतल पुरख द्रिसटि सुजाणी ॥२॥ हे सर्वेश्वर ! आपका नाम-मंत्र ही सत्य है और आपकी वाणी अमृत है।
ਸਚੁ ਹੁਕਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ਤਖਤਿ ਨਿਵਾਸੀ ॥ सचु हुकमु तुमारा तखति निवासी ॥ आप शीतल शान्ति देने वाले हैं और आपकी दृष्टि त्रिकालदर्शी है ॥२॥
ਆਇ ਨ ਜਾਵੈ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥੩॥ आइ न जावै मेरा प्रभु अबिनासी ॥३॥ आपका आदेश सत्य है और आप ही सिंहासन पर विराजमान होने वाले हो।
ਤੁਮ ਮਿਹਰਵਾਨ ਦਾਸ ਹਮ ਦੀਨਾ ॥ तुम मिहरवान दास हम दीना ॥ मेरे प्रभु अमर है और वह जन्म-मरण के चक्र में नहीं आते ॥३॥
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਭਰਪੁਰਿ ਲੀਣਾ ॥੪॥੨॥ नानक साहिबु भरपुरि लीणा ॥४॥२॥ आप हमारे परोपकारी स्वामी हैं और हम आपके विनम्र भक्त हैं।
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ वडहंसु महला ५ ॥ हे नानक ! सबके स्वामी सर्वव्यापक प्रभु हैंं॥ ४॥ २॥
ਤੂ ਬੇਅੰਤੁ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਜਾਣੈ ॥ तू बेअंतु को विरला जाणै ॥ राग वदाहंस, पांचवें गुरु: ५॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ॥੧॥ गुर प्रसादि को सबदि पछाणै ॥१॥ हे हरि ! आप बेअंत है और कोई विरला ही इस रहस्य को जानता है।
ਸੇਵਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਪਿਆਰੇ ॥ सेवक की अरदासि पिआरे ॥ गुरु की कृपा से कोई विरला ही शब्द की पहचान करता है॥ १॥


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