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ਰਾਜਨ ਕਿਉ ਸੋਇਆ ਤੂ ਨੀਦ ਭਰੇ ਜਾਗਤ ਕਤ ਨਾਹੀ ਰਾਮ ॥
राजन किउ सोइआ तू नीद भरे जागत कत नाही राम ॥
हे राजन! क्यों गहरी निद्रा में सोया हुआ है और ज्ञान द्वारा क्यों जाग्रत नहीं हो रहा ?
ਮਾਇਆ ਝੂਠੁ ਰੁਦਨੁ ਕੇਤੇ ਬਿਲਲਾਹੀ ਰਾਮ ॥
माइआ झूठु रुदनु केते बिललाही राम ॥
धन-दौलत हेतु रुदन करना झूठ ही है और कितने ही जीव धन-हेतु बिलखते रहते हैं।
ਬਿਲਲਾਹਿ ਕੇਤੇ ਮਹਾ ਮੋਹਨ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਸੁਖੁ ਨਹੀ ॥
बिललाहि केते महा मोहन बिनु नाम हरि के सुखु नही ॥
कितने ही जीव महामोहिनी माया हेतु विलाप करते रहते हैं किन्तु हरि के अमूल्य नाम के अतिरिक्त कोई सुख नहीं।
ਸਹਸ ਸਿਆਣਪ ਉਪਾਵ ਥਾਕੇ ਜਹ ਭਾਵਤ ਤਹ ਜਾਹੀ ॥
सहस सिआणप उपाव थाके जह भावत तह जाही ॥
मानव जीव हजारों ही चतुराइयों तथा उपाय करके थक जाता है किन्तु जहाँ ईश्वर को भाता है, वह उधर ही जाता है।
ਆਦਿ ਅੰਤੇ ਮਧਿ ਪੂਰਨ ਸਰਬਤ੍ਰ ਘਟਿ ਘਟਿ ਆਹੀ ॥
आदि अंते मधि पूरन सरबत्र घटि घटि आही ॥
एक परमात्मा ही आदि, मध्य एवं अन्त में सर्वव्यापक है और समस्त जीवों के हृदय में यही समाया हुआ है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਜਿਨ ਸਾਧਸੰਗਮੁ ਸੇ ਪਤਿ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਹੀ ॥੨॥
बिनवंत नानक जिन साधसंगमु से पति सेती घरि जाही ॥२॥
नानक प्रार्थना करते हैं जो जीव संतों की सभा में सम्मिलित होता है वह अपने शाश्वत घर प्रभु के पास आदर सहित जाता है।॥२॥
ਨਰਪਤਿ ਜਾਣਿ ਗ੍ਰਹਿਓ ਸੇਵਕ ਸਿਆਣੇ ਰਾਮ ॥
नरपति जाणि ग्रहिओ सेवक सिआणे राम ॥
हे नरेश ! तू अपने घर के सेवकों को चतुर समझकर उनके मोह में फँस गया है।
ਸਰਪਰ ਵੀਛੁੜਣਾ ਮੋਹੇ ਪਛੁਤਾਣੇ ਰਾਮ ॥
सरपर वीछुड़णा मोहे पछुताणे राम ॥
लेकिन तेरा उनसे जुदा होना अटल है, उनसे मोह में तुझे पछताना पड़ेगा।
ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਦੇਖਿ ਭੂਲਾ ਕਹਾ ਅਸਥਿਤਿ ਪਾਈਐ ॥
हरिचंदउरी देखि भूला कहा असथिति पाईऐ ॥
काल्पनिक हरिचंद राजा की नगरी को देख कर तुम कुमार्गगामी हो चुके हों और उस में तुझे स्थिरता कैसे प्राप्त हो सकती है ?
ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਆਨ ਰਚਨਾ ਅਹਿਲਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਈਐ ॥
बिनु नाम हरि के आन रचना अहिला जनमु गवाईऐ ॥
परमेश्वर के नाम के बिना सृष्टि रचना के अन्य पदार्थों में आकर्षित होने से अनमोल मानव-जन्म व्यर्थ ही जाता है।
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਨ ਤ੍ਰਿਸਨ ਬੂਝੈ ਨਹ ਕਾਂਮ ਪੂਰਨ ਗਿਆਨੇ ॥
हउ हउ करत न त्रिसन बूझै नह कांम पूरन गिआने ॥
अहंकार करने से जीव की तृष्णा नहीं बुझती, न ही उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती है और न ही उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਕੇਤਿਆ ਪਛੁਤਾਨੇ ॥੩॥
बिनवंति नानक बिनु नाम हरि के केतिआ पछुताने ॥३॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि इस तरह परमात्मा के नाम से वंचित होकर कितने ही जीव पछताते हुए दुनिया से चले गए हैं ॥३॥
ਧਾਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੋ ਅਪਨਾ ਕਰਿ ਲੀਨਾ ਰਾਮ ॥
धारि अनुग्रहो अपना करि लीना राम ॥
परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझे अपना बना लिया है।
ਭੁਜਾ ਗਹਿ ਕਾਢਿ ਲੀਓ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਦੀਨਾ ਰਾਮ ॥
भुजा गहि काढि लीओ साधू संगु दीना राम ॥
उसने बाँह से पकड़कर मुझे मोह-माया के कीचड़ से निकाल लिया है और साधु पुरुषों की संगति की देन प्रदान की है।
ਸਾਧਸੰਗਮਿ ਹਰਿ ਅਰਾਧੇ ਸਗਲ ਕਲਮਲ ਦੁਖ ਜਲੇ ॥
साधसंगमि हरि अराधे सगल कलमल दुख जले ॥
साधुओं की सभा में ईश्वर की आराधना करने से मेरे सभी पाप एवं दुख-संताप जल गए हैं।
ਮਹਾ ਧਰਮ ਸੁਦਾਨ ਕਿਰਿਆ ਸੰਗਿ ਤੇਰੈ ਸੇ ਚਲੇ ॥
महा धरम सुदान किरिआ संगि तेरै से चले ॥
प्रभु की भक्ति ही महाधर्म एवं नाम-दान ही शुभ कर्म है, जो परलोक में तेरे साथ जाएँगे।
ਰਸਨਾ ਅਰਾਧੈ ਏਕੁ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਭੀਨਾ ॥
रसना अराधै एकु सुआमी हरि नामि मनु तनु भीना ॥
मेरी रसना एक परमेश्वर के नाम की आराधना करती है और नाम से मेरा मन एवं तन भीग गया है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸ ਨੋ ਹਰਿ ਮਿਲਾਏ ਸੋ ਸਰਬ ਗੁਣ ਪਰਬੀਨਾ ॥੪॥੬॥੯॥
नानक जिस नो हरि मिलाए सो सरब गुण परबीना ॥४॥६॥९॥
हे नानक ! जिस जीव को हरि अपने साथ मिला लेते हैं, यह सर्वगुणों में प्रवीण हो जाता है।॥४॥६॥९॥
ਬਿਹਾਗੜੇ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੪॥
बिहागड़े की वार महला ४
बिहाग्र के वार, चौथे गुरु: ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਹੋਰ ਥੈ ਸੁਖੁ ਨ ਭਾਲਿ ॥
गुर सेवा ते सुखु पाईऐ होर थै सुखु न भालि ॥
हे मानव जीव! गुरु की सेवा करने से ही सुख उपलब्ध होता है, इसलिए किसी अन्य स्थान पर सुख की तलाश मत कर।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਭੇਦੀਐ ਸਦਾ ਵਸੈ ਹਰਿ ਨਾਲਿ ॥
गुर कै सबदि मनु भेदीऐ सदा वसै हरि नालि ॥
यदि गुरु के शब्द द्वारा मन विंध जाए तो ईश्वर सर्वदा जीव के साथ रहता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਤਿਨਾ ਕਉ ਮਿਲੈ ਜਿਨ ਹਰਿ ਵੇਖੈ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੧॥
नानक नामु तिना कउ मिलै जिन हरि वेखै नदरि निहालि ॥१॥
हे नानक ! नाम उन जीव को ही मिलता है, जिन्हे परमेशर दया-दृष्टि से देखता है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
तृतीय गुरु: ३ ॥
ਸਿਫਤਿ ਖਜਾਨਾ ਬਖਸ ਹੈ ਜਿਸੁ ਬਖਸੈ ਸੋ ਖਰਚੈ ਖਾਇ ॥
सिफति खजाना बखस है जिसु बखसै सो खरचै खाइ ॥
परमेश्वर का स्तुतिगान का भण्डार उसकी एक दात (देन) है, जिस जीव को वह दया करके प्रदान करता है, वही इसे खर्चता एवं खाता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਿਨੁ ਹਥਿ ਨ ਆਵਈ ਸਭ ਥਕੇ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
सतिगुर बिनु हथि न आवई सभ थके करम कमाइ ॥
किन्तु यह भण्डार सच्चे गुरु के बिना जीव को उपलब्ध नहीं होता और सभी इसकी उपलब्धि हेतु कर्म करते हुए हार-थक गए हैं।
ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖੁ ਜਗਤੁ ਧਨਹੀਣੁ ਹੈ ਅਗੈ ਭੁਖਾ ਕਿ ਖਾਇ ॥੨॥
नानक मनमुखु जगतु धनहीणु है अगै भुखा कि खाइ ॥२॥
हे नानक ! स्वेच्छाचारी जगत् के भगवान् के नाम रूपी धन से वंचित है, आगे जब परलोक
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
में भूख लगेगी तो यह क्या खा सकेगा ? ॥ २॥
ਸਭ ਤੇਰੀ ਤੂ ਸਭਸ ਦਾ ਸਭ ਤੁਧੁ ਉਪਾਇਆ ॥
सभ तेरी तू सभस दा सभ तुधु उपाइआ ॥
पौड़ी ॥
ਸਭਨਾ ਵਿਚਿ ਤੂ ਵਰਤਦਾ ਤੂ ਸਭਨੀ ਧਿਆਇਆ ॥
सभना विचि तू वरतदा तू सभनी धिआइआ ॥
हे ईश्वर ! यह सम्पूर्ण सृष्टि रचना आपकी ही है और आप सबके मालिक है सभी जीवो को आपने ही उत्पन्न किया है।
ਤਿਸ ਦੀ ਤੂ ਭਗਤਿ ਥਾਇ ਪਾਇਹਿ ਜੋ ਤੁਧੁ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
तिस दी तू भगति थाइ पाइहि जो तुधु मनि भाइआ ॥
सभी प्राणियों में आप बसे हुए है और सभी आपकी ही आराधना में क्रियाशील हैं।
ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ਸਭਿ ਕਰਨਿ ਤੇਰਾ ਕਰਾਇਆ ॥
जो हरि प्रभ भावै सो थीऐ सभि करनि तेरा कराइआ ॥
हे परमेश्वर ! जो प्राणी आपके मन को लुभाता है, उसकी भक्ति को आप स्वीकार कर लेते है।
ਸਲਾਹਿਹੁ ਹਰਿ ਸਭਨਾ ਤੇ ਵਡਾ ਜੋ ਸੰਤ ਜਨਾਂ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖਦਾ ਆਇਆ ॥੧॥
सलाहिहु हरि सभना ते वडा जो संत जनां की पैज रखदा आइआ ॥१॥
जो कुछ भगवान् को अच्छा लगता है, वही होता है, हे हरि ! जीव वही करते हैं जो आप उन से करवाते हो अर्थात् सृष्टि में परमेश्वर ही करन-कारण है।
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
हे मानव जीव ! उस सर्वेश्वर एवं महान् प्रभु की स्तुति करो, जो युगों-युगांतरों से ही संतजनों की लाज-प्रतिष्ठा रखता आया है ॥१॥
ਨਾਨਕ ਗਿਆਨੀ ਜਗੁ ਜੀਤਾ ਜਗਿ ਜੀਤਾ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
नानक गिआनी जगु जीता जगि जीता सभु कोइ ॥
श्लोक, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਨਾਮੇ ਕਾਰਜ ਸਿਧਿ ਹੈ ਸਹਜੇ ਹੋਇ ਸੁ ਹੋਇ ॥
नामे कारज सिधि है सहजे होइ सु होइ ॥
हे नानक ! जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया है, उसने संसार के सभी आकर्षणों पर विजय पा ली है; लेकिन यही आकर्षण शेष सभी पर हावी हो गए हैं।
ਗੁਰਮਤਿ ਮਤਿ ਅਚਲੁ ਹੈ ਚਲਾਇ ਨ ਸਕੈ ਕੋਇ ॥
गुरमति मति अचलु है चलाइ न सकै कोइ ॥
परमात्मा के नाम द्वारा सभी कार्य सिद्ध सफल हो जाते हैं, जो कुछ भी होता है, वह सहज ही ईश्वर की इच्छानुसार होता है।
ਭਗਤਾ ਕਾ ਹਰਿ ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕਰੇ ਕਾਰਜੁ ਸੁਹਾਵਾ ਹੋਇ ॥
भगता का हरि अंगीकारु करे कारजु सुहावा होइ ॥
गुरु की मति पर चलने से प्राणी की बुद्धि निश्चल हो जाती है और कोई भी उसे व्यर्थ नहीं कर सकता।