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ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਾਸ ਕੋ ਕਰੀਅਹੁ ਮੇਰਾ ਮੂੰਡੁ ਸਾਧ ਪਗਾ ਹੇਠਿ ਰੁਲਸੀ ਰੇ ॥੨॥੪॥੩੭॥
जन नानक दास दास को करीअहु मेरा मूंडु साध पगा हेठि रुलसी रे ॥२॥४॥३७॥
भक्त नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! मुझे अपने भक्तों का सेवक बना लो, और मुझे ऐसी विनम्रता प्रदान करो कि मैं उनका इस भाव से सेवा कर सकूँ, मानो मेरा मस्तक उनके चरणों में झुका हुआ हो।॥ २॥ ४॥ ३७ ॥
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੭॥
रागु देवगंधारी महला ५ घरु ७
राग देवगंधारी, पांचवां गुरु, सातवां ताल: ७
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਭ ਦਿਨ ਕੇ ਸਮਰਥ ਪੰਥ ਬਿਠੁਲੇ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
सभ दिन के समरथ पंथ बिठुले हउ बलि बलि जाउ ॥
हे सभी दिनों के समर्थ एवं पथ-प्रदर्शक प्रभु ! मैं आप पर करोड़ों बार बलिहारी जाता हूँ।
ਗਾਵਨ ਭਾਵਨ ਸੰਤਨ ਤੋਰੈ ਚਰਨ ਉਵਾ ਕੈ ਪਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गावन भावन संतन तोरै चरन उवा कै पाउ ॥१॥ रहाउ ॥
आपके संतजन प्रेमपूर्वक आपकी गुणस्तुति करते हैं, जो आपको बहुत अच्छे लगते हैं और मैं उनके ही चरण स्पर्श करता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾਸਨ ਬਾਸਨ ਸਹਜ ਕੇਲ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਏਕ ਅਨੰਤ ਅਨੂਪੈ ਠਾਉ ॥੧॥
जासन बासन सहज केल करुणा मै एक अनंत अनूपै ठाउ ॥१॥
हे दयास्वरूप ! आपको अपना यश सुनने की कोई लालसा नहीं और आप सहज ही कौतुक करने वाले हैं। हे करुणामय एवं अद्वितीय परमात्मा ! आपका स्थान अनंत एवं अनूप है॥१॥
ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਨਿਧਿ ਕਰ ਤਲ ਜਗਜੀਵਨ ਸ੍ਰਬ ਨਾਥ ਅਨੇਕੈ ਨਾਉ ॥
रिधि सिधि निधि कर तल जगजीवन स्रब नाथ अनेकै नाउ ॥
हे जगजीवन ! ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ एवं निधियाँ सब आपकी हथेली में हैं, हे सबके मालिक ! आपके अनेकों ही नाम हैं।
ਦਇਆ ਮਇਆ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਕਉ ਸੁਨਿ ਸੁਨਿ ਜਸੁ ਜੀਵਾਉ ॥੨॥੧॥੩੮॥੬॥੪੪॥
दइआ मइआ किरपा नानक कउ सुनि सुनि जसु जीवाउ ॥२॥१॥३८॥६॥४४॥
हे दयानिधि ! नानक पर अपनी कृपा करो ताकि आपका यश सुन-सुनकर जीवित रहे ॥२॥१॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
रागु देवगंधारी महला ९ ॥
राग देवगणधारी, नौवें गुरु: ९ ॥
ਯਹ ਮਨੁ ਨੈਕ ਨ ਕਹਿਓ ਕਰੈ ॥
यह मनु नैक न कहिओ करै ॥
यह मन रत्ती भर भी मेरी बात का पालन नहीं करता।
ਸੀਖ ਸਿਖਾਇ ਰਹਿਓ ਅਪਨੀ ਸੀ ਦੁਰਮਤਿ ਤੇ ਨ ਟਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सीख सिखाइ रहिओ अपनी सी दुरमति ते न टरै ॥१॥ रहाउ ॥
अपनी तरफ से मैं इसे बहुत शिक्षा प्रदान कर चुका हूँ किन्तु यह दुर्मति से हटता ही नहीं ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਦਿ ਮਾਇਆ ਕੈ ਭਇਓ ਬਾਵਰੋ ਹਰਿ ਜਸੁ ਨਹਿ ਉਚਰੈ ॥
मदि माइआ कै भइओ बावरो हरि जसु नहि उचरै ॥
यह माया के नशे में बावला हो गया है तथा हरि का यशगान उच्चारित नहीं करता।
ਕਰਿ ਪਰਪੰਚੁ ਜਗਤ ਕਉ ਡਹਕੈ ਅਪਨੋ ਉਦਰੁ ਭਰੈ ॥੧॥
करि परपंचु जगत कउ डहकै अपनो उदरु भरै ॥१॥
यह अनेक छल-कपट (प्रपंच) करके दुनिया को ठगता रहता है तथा अपना पेट भरता है॥ १॥
ਸੁਆਨ ਪੂਛ ਜਿਉ ਹੋਇ ਨ ਸੂਧੋ ਕਹਿਓ ਨ ਕਾਨ ਧਰੈ ॥
सुआन पूछ जिउ होइ न सूधो कहिओ न कान धरै ॥
जैसे कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं होती, वैसे ही यह मन भी किसी की बात नहीं मानता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਿਤ ਜਾ ਤੇ ਕਾਜੁ ਸਰੈ ॥੨॥੧॥
कहु नानक भजु राम नाम नित जा ते काजु सरै ॥२॥१॥
नानक कहते हैं कि हे अज्ञानी मन ! राम नाम का नित्य ही भजन करो, जिससे तेरे सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाएँगे ॥२॥१॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
देवगंधारी महला ९ ॥
राग देवगणधारी, नौवें गुरु: ९ ॥
ਸਭ ਕਿਛੁ ਜੀਵਤ ਕੋ ਬਿਵਹਾਰ ॥
सभ किछु जीवत को बिवहार ॥
जब तक कोई व्यक्ति जीवित रहता है, तभी तक उसके लोगों से सभी संबंध और बातचीत अर्थपूर्ण होती है।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਸੁਤ ਬੰਧਪ ਅਰੁ ਫੁਨਿ ਗ੍ਰਿਹ ਕੀ ਨਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मात पिता भाई सुत बंधप अरु फुनि ग्रिह की नारि ॥१॥ रहाउ ॥
फिर वह चाहे माता-पिता, भाई, पुत्र, रिश्तेदार तथा घर की नारी (पत्नी) के सम्बन्ध हो। ॥१॥ रहाउ॥
ਤਨ ਤੇ ਪ੍ਰਾਨ ਹੋਤ ਜਬ ਨਿਆਰੇ ਟੇਰਤ ਪ੍ਰੇਤਿ ਪੁਕਾਰਿ ॥
तन ते प्रान होत जब निआरे टेरत प्रेति पुकारि ॥
जब शरीर से प्राण निकल जाते हैं तो सभी संबंधी रोते-चिल्लाते हुए मृतक देह को प्रेत कहकर पुकारते हैं।
ਆਧ ਘਰੀ ਕੋਊ ਨਹਿ ਰਾਖੈ ਘਰ ਤੇ ਦੇਤ ਨਿਕਾਰਿ ॥੧॥
आध घरी कोऊ नहि राखै घर ते देत निकारि ॥१॥
आधी घड़ी मात्र भी कोई (मृतक देह को) नहीं रखना चाहता और घर से बाहर निकाल देते हैं ॥१॥
ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਿਉ ਜਗ ਰਚਨਾ ਯਹ ਦੇਖਹੁ ਰਿਦੈ ਬਿਚਾਰਿ ॥
म्रिग त्रिसना जिउ जग रचना यह देखहु रिदै बिचारि ॥
अपने हृदय में सोच-विचार कर देख लो, यह जगत-रचना मृगतृष्णा की भाँति है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਿਤ ਜਾ ਤੇ ਹੋਤ ਉਧਾਰ ॥੨॥੨॥
कहु नानक भजु राम नाम नित जा ते होत उधार ॥२॥२॥
नानक कहते हैं कि हे नश्वर प्राणी ! नित्य ही राम-नाम का भजन करो, ताकि तेरा संसार-सागर से उद्धार हो जाए ॥२॥२॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
देवगंधारी महला ९ ॥
राग देवगणधारी, नौवें गुरु: ९ ॥
ਜਗਤ ਮੈ ਝੂਠੀ ਦੇਖੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
जगत मै झूठी देखी प्रीति ॥
इस जगत् में मैंने झूठा ही प्रेम देखा है।
ਅਪਨੇ ਹੀ ਸੁਖ ਸਿਉ ਸਭ ਲਾਗੇ ਕਿਆ ਦਾਰਾ ਕਿਆ ਮੀਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपने ही सुख सिउ सभ लागे किआ दारा किआ मीत ॥१॥ रहाउ ॥
सभी लोग अपने सुख में ही लगे हुए हैं चाहे वह पत्नी हो अथवा घनिष्ठ मित्र ही क्यों न हो॥ १॥ रहाउ॥
ਮੇਰਉ ਮੇਰਉ ਸਭੈ ਕਹਤ ਹੈ ਹਿਤ ਸਿਉ ਬਾਧਿਓ ਚੀਤ ॥
मेरउ मेरउ सभै कहत है हित सिउ बाधिओ चीत ॥
सभी लोग ‘मेरा-मेरा' ही पुकारते रहते हैं तथा अपने हित के लिए अपना मन जोड़ते हैं।
ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਸੰਗੀ ਨਹ ਕੋਊ ਇਹ ਅਚਰਜ ਹੈ ਰੀਤਿ ॥੧॥
अंति कालि संगी नह कोऊ इह अचरज है रीति ॥१॥
जीवन के अंतिम क्षणों में कोई भी साथी नहीं बनता, यह संसार की आश्चर्यजनक रीति है॥ १॥
ਮਨ ਮੂਰਖ ਅਜਹੂ ਨਹ ਸਮਝਤ ਸਿਖ ਦੈ ਹਾਰਿਓ ਨੀਤ ॥
मन मूरख अजहू नह समझत सिख दै हारिओ नीत ॥
हे मूर्ख मन ! तू अभी भी नहीं समझ रहा, मैं नित्य ही शिक्षा देकर पराजित हो गया हूँ।
ਨਾਨਕ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਪਰੈ ਜਉ ਗਾਵੈ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੀਤ ॥੨॥੩॥੬॥੩੮॥੪੭॥
नानक भउजलु पारि परै जउ गावै प्रभ के गीत ॥२॥३॥६॥३८॥४७॥
हे नानक ! जो जीव प्रभु की महिमा के गीत गाता है, वह भवसागर से पार हो जाता है॥ २॥ ३॥ ६ ॥ ३८॥ ४७ ॥