Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 530

Page 530

ਮਹਾ ਕਿਲਬਿਖ ਕੋਟਿ ਦੋਖ ਰੋਗਾ ਪ੍ਰਭ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤੁਹਾਰੀ ਹਾਤੇ ॥ महा किलबिख कोटि दोख रोगा प्रभ द्रिसटि तुहारी हाते ॥ हे प्रभु ! आपकी करुण-दृष्टि से भारी अपराध, करोड़ों दोष एवं रोग नाश हो जाते हैं।
ਸੋਵਤ ਜਾਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਇਆ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਚਰਨ ਪਰਾਤੇ ॥੨॥੮॥ सोवत जागि हरि हरि हरि गाइआ नानक गुर चरन पराते ॥२॥८॥ हे नानक ! मैं गुरु के चरणों में आकर सोते-जागते सदैव हरि-परमेश्वर का यशोगान करता रहता हूँ॥ २॥ ८॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु; ५ ॥
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਿਓ ਨੈਣੀ ॥ सो प्रभु जत कत पेखिओ नैणी ॥ उस प्रभु को मैंने अपने नयनों से हर जगह देखा है।
ਸੁਖਦਾਈ ਜੀਅਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਜਾ ਕੀ ਬੈਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सुखदाई जीअन को दाता अम्रितु जा की बैणी ॥१॥ रहाउ ॥ वह सुख प्रदान करने वाला जीवों का दाता है तथा उसकी वाणी अमृत समान मधुर है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਗਿਆਨੁ ਅਧੇਰਾ ਸੰਤੀ ਕਾਟਿਆ ਜੀਅ ਦਾਨੁ ਗੁਰ ਦੈਣੀ ॥ अगिआनु अधेरा संती काटिआ जीअ दानु गुर दैणी ॥ संतों ने मेरे अज्ञान का अन्धेरा मिटा दिया है और गुरु ने मुझे जीवनदान दिया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਲੀਨੋ ਅਪੁਨਾ ਜਲਤੇ ਸੀਤਲ ਹੋਣੀ ॥੧॥ करि किरपा करि लीनो अपुना जलते सीतल होणी ॥१॥ ईश्वर ने कृपा करके मुझे अपना बना लिया। पहले मैं भयंकर सांसारिक इच्छाओं की अग्नि में जल रहा था, किंतु अब मैं उनके प्रेम से शांत और शीतल अनुभव करता हूँ।॥ १
ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਕਿਛੁ ਉਪਜਿ ਨ ਆਇਓ ਨਹ ਉਪਜੀ ਨਿਰਮਲ ਕਰਣੀ ॥ करमु धरमु किछु उपजि न आइओ नह उपजी निरमल करणी ॥ मुझ में कुछ भी शुभ कर्म एवं धर्म उत्पन्न नहीं हुए और न ही मुझ में निर्मल आचरण प्रगट हुआ है।
ਛਾਡਿ ਸਿਆਨਪ ਸੰਜਮ ਨਾਨਕ ਲਾਗੋ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ॥੨॥੯॥ छाडि सिआनप संजम नानक लागो गुर की चरणी ॥२॥९॥ हे नानक ! चतुरता एवं संयम को छोड़कर मैं गुरु के चरणों में विराज गया हूँ ॥२॥६॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਲਾਹਾ ॥ हरि राम नामु जपि लाहा ॥ हे मानव ! परमेश्वर के नाम का जाप करो, इसी में तेरी (अमूल्य मानव-जन्म की) उपलब्धि है।
ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ਸੁਖ ਸਹਜ ਅਨੰਦਾ ਕਾਟੇ ਜਮ ਕੇ ਫਾਹਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गति पावहि सुख सहज अनंदा काटे जम के फाहा ॥१॥ रहाउ ॥ इस प्रकार तुझे मोक्ष, सहज सुख एवं आनंद की प्राप्ति हो जाएगी और मृत्यु की फाँसी कट जाएगी ॥१॥ रहाउ॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਖੋਜਿ ਬੀਚਾਰਿਓ ਹਰਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ਪਹਿ ਆਹਾ ॥ खोजत खोजत खोजि बीचारिओ हरि संत जना पहि आहा ॥ खोजते-खोजते एवं विचार करते हुए मुझे ज्ञान हुआ है कि हरि का नाम संतजनों के पास है।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਪਰਾਪਤਿ ਏਹੁ ਨਿਧਾਨਾ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਕਰਮਿ ਲਿਖਾਹਾ ॥੧॥ तिन्हा परापति एहु निधाना जिन्ह कै करमि लिखाहा ॥१॥ लेकिन जिनके भाग्य में लिखा होता है उन्हें ही इस नाम-भण्डार की उपलब्धि होती है॥ १॥
ਸੇ ਬਡਭਾਗੀ ਸੇ ਪਤਿਵੰਤੇ ਸੇਈ ਪੂਰੇ ਸਾਹਾ ॥ से बडभागी से पतिवंते सेई पूरे साहा ॥ हे नानक ! वही भाग्यशाली हैं, प्रतिष्ठित एवं पूर्ण साहूकार हैं और
ਸੁੰਦਰ ਸੁਘੜ ਸਰੂਪ ਤੇ ਨਾਨਕ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹਾ ॥੨॥੧੦॥ सुंदर सुघड़ सरूप ते नानक जिन्ह हरि हरि नामु विसाहा ॥२॥१०॥ वही सुन्दर, बुद्धिमान एवं मनोरम हैं, जिन्होंने परमेश्वर के नाम को खरीदा है ॥२॥१०॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਮਨ ਕਹ ਅਹੰਕਾਰਿ ਅਫਾਰਾ ॥ मन कह अहंकारि अफारा ॥ हे मन ! क्यों अहंकार में अकड़कर फूले हुए हो ?
ਦੁਰਗੰਧ ਅਪਵਿਤ੍ਰ ਅਪਾਵਨ ਭੀਤਰਿ ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਛਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दुरगंध अपवित्र अपावन भीतरि जो दीसै सो छारा ॥१॥ रहाउ ॥ इस शरीर के भीतर केवल दुर्गंध, गंदगी और अशुद्धियाँ भरी हुई हैं। यह शरीर और संसार में जो कुछ भी दिखाई देता है, सब नश्वर है। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਸੁ ਸਿਮਰਿ ਪਰਾਨੀ ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਜਿਨਿ ਧਾਰਾ ॥ जिनि कीआ तिसु सिमरि परानी जीउ प्रान जिनि धारा ॥ हे प्राणी ! तू उस प्रभु की आराधना कर, जिसने तुझे पैदा किया है और जो जीवन एवं प्राणों का सहारा है
ਤਿਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਅਵਰ ਲਪਟਾਵਹਿ ਮਰਿ ਜਨਮਹਿ ਮੁਗਧ ਗਵਾਰਾ ॥੧॥ तिसहि तिआगि अवर लपटावहि मरि जनमहि मुगध गवारा ॥१॥ प्रभु को त्याग कर मूर्ख गंवार प्राणी सांसारिक पदार्थों से लिपटा हुआ है जिसके फलस्वरूप वह जन्मता-मरता रहता है॥ १॥
ਅੰਧ ਗੁੰਗ ਪਿੰਗੁਲ ਮਤਿ ਹੀਨਾ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਨਹਾਰਾ ॥ अंध गुंग पिंगुल मति हीना प्रभ राखहु राखनहारा ॥ हे रखवाले प्रभु ! मैं तो अन्धा, गूंगा, पिंगुला (अपंग) एवं बुद्धिहीन हूँ, कृपा करके मेरी रक्षा कीजिए।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨਹਾਰ ਸਮਰਥਾ ਕਿਆ ਨਾਨਕ ਜੰਤ ਬਿਚਾਰਾ ॥੨॥੧੧॥ करन करावनहार समरथा किआ नानक जंत बिचारा ॥२॥११॥ हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही करने एवं करवाने में समर्थवान है, किन्तु जीव बेचारा कितना विवश है॥ २ ॥ ११॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु:
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਨੇਰੈ ਹੂ ਤੇ ਨੇਰੈ ॥ सो प्रभु नेरै हू ते नेरै ॥ हे प्राणी ! वह प्रभु तेरे निकट और समीप ही है।
ਸਿਮਰਿ ਧਿਆਇ ਗਾਇ ਗੁਨ ਗੋਬਿੰਦ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਸਾਝ ਸਵੇਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सिमरि धिआइ गाइ गुन गोबिंद दिनु रैनि साझ सवेरै ॥१॥ रहाउ ॥ इसलिए दिन-रात, प्रातःकाल-सायंकाल उस गोबिंद का ध्यान-सिमरन कर और उसका गुणानुवाद करता जा॥ १॥ रहाउ॥
ਉਧਰੁ ਦੇਹ ਦੁਲਭ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੇਰੈ ॥ उधरु देह दुलभ साधू संगि हरि हरि नामु जपेरै ॥ हे प्राणी ! साधसंगत में रहकर हरि-नाम का जाप करके अपने दुर्लभ शरीर का उद्धार कर ले।
ਘਰੀ ਨ ਮੁਹਤੁ ਨ ਚਸਾ ਬਿਲੰਬਹੁ ਕਾਲੁ ਨਿਤਹਿ ਨਿਤ ਹੇਰੈ ॥੧॥ घरी न मुहतु न चसा बिल्मबहु कालु नितहि नित हेरै ॥१॥ तू एक घड़ी, मुहूर्त एवं पल भर का भी (सिमरन करने में) विलम्य मत कर, क्योंकि मृत्यु तुझे नित्य ही देख रही है॥ १॥
ਅੰਧ ਬਿਲਾ ਤੇ ਕਾਢਹੁ ਕਰਤੇ ਕਿਆ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਤੇਰੈ ॥ अंध बिला ते काढहु करते किआ नाही घरि तेरै ॥ हे जग के रचयिता ! मुझे दुनिया की अन्धी विल से बाहर निकाल ले, तेरे घर में किसी पदार्थ का अभाव नही।
ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਦੀਜੈ ਨਾਨਕ ਕਉ ਆਨਦ ਸੂਖ ਘਨੇਰੈ ॥੨॥੧੨॥ ਛਕੇ ੨ ॥ नामु अधारु दीजै नानक कउ आनद सूख घनेरै ॥२॥१२॥ छके २ ॥ हे परमात्मा ! नानक को अपने नाम का आधार दीजिए, क्योंकि नाम में परम सुख एवं आनंद विद्यमान है ॥२॥१२॥ छके २॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਮਨ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿਓ ॥ मन गुर मिलि नामु अराधिओ ॥ हे मन ! तूने गुरु से मिलकर परमात्मा के नाम की आराधना की है,
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਮੰਗਲ ਰਸ ਜੀਵਨ ਕਾ ਮੂਲੁ ਬਾਧਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सूख सहज आनंद मंगल रस जीवन का मूलु बाधिओ ॥१॥ रहाउ ॥ इस तरह तूने सहज सुख, आनंद, हर्षोल्लास एवं जीवन की अच्छी नींव रख ली है॥१॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨਾ ਦਾਸੁ ਕੀਨੋ ਕਾਟੇ ਮਾਇਆ ਫਾਧਿਓ ॥ करि किरपा अपुना दासु कीनो काटे माइआ फाधिओ ॥ परमात्मा ने अपनी कृपा करके तुझे अपना दास बना लिया है और तेरे माया के बन्धन समाप्त कर दिए हैं।
ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਗਾਇ ਗੁਣ ਗੋਬਿਦ ਜਮ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਸਾਧਿਓ ॥੧॥ भाउ भगति गाइ गुण गोबिद जम का मारगु साधिओ ॥१॥ तूने गोविन्द के गुण गाकर प्रेम-भक्ति से मृत्यु का मार्ग जीत लिया है ॥१॥
ਭਇਓ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਮਿਟਿਓ ਮੋਰਚਾ ਅਮੋਲ ਪਦਾਰਥੁ ਲਾਧਿਓ ॥ भइओ अनुग्रहु मिटिओ मोरचा अमोल पदारथु लाधिओ ॥ तुझ पर प्रभु की कृपा हो गई है, तेरी अहंकार की मैल उतर गई है और तुझे अमूल्य नाम-पदार्थ मिल गया है।
ਬਲਿਹਾਰੈ ਨਾਨਕ ਲਖ ਬੇਰਾ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿਓ ॥੨॥੧੩॥ बलिहारै नानक लख बेरा मेरे ठाकुर अगम अगाधिओ ॥२॥१३॥ नानक कहते हैं कि हे मेरे अगम्य अपार ठाकुर जी ! मैं तुझ पर लाखों बार बलिहारी जाता हूँ ॥२॥१३॥


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