Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 520

Page 520

ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥ सलोक मः ५ ॥ श्लोक, पांचवें गुरु: ५॥
ਪ੍ਰੇਮ ਪਟੋਲਾ ਤੈ ਸਹਿ ਦਿਤਾ ਢਕਣ ਕੂ ਪਤਿ ਮੇਰੀ ॥ प्रेम पटोला तै सहि दिता ढकण कू पति मेरी ॥ हे मेरे पति-परमेश्वर! आपने मेरे सम्मान की रक्षा अपने प्रेम रूपी रेशमी आशीर्वाद से की है।
ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਸਾਈ ਮੈਡਾ ਨਾਨਕ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਾ ਤੇਰੀ ॥੧॥ दाना बीना साई मैडा नानक सार न जाणा तेरी ॥१॥ नानक कहते हैं कि हे मेरे साँई ! आप बहुत कुश्ल एवं प्रवीण है किन्तु मैं आपकी महिमा नहीं जानता ॥१॥
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ पांचवे गुरु: ५॥
ਤੈਡੈ ਸਿਮਰਣਿ ਹਭੁ ਕਿਛੁ ਲਧਮੁ ਬਿਖਮੁ ਨ ਡਿਠਮੁ ਕੋਈ ॥ तैडै सिमरणि हभु किछु लधमु बिखमु न डिठमु कोई ॥ हे ईश्वर ! आपका नाम-सिमरन करने से मुझे सब कुछ मिल गया है तथा मुझे कोई मुश्किल नहीं आई।
ਜਿਸੁ ਪਤਿ ਰਖੈ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਨਾਨਕ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥੨॥ जिसु पति रखै सचा साहिबु नानक मेटि न सकै कोई ॥२॥ हे नानक ! जिसकी प्रतिष्ठा की रक्षा स्वयं परमात्मा करते हैं, उसे कोई मिटा नहीं सकता ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਹੋਵੈ ਸੁਖੁ ਘਣਾ ਦਯਿ ਧਿਆਇਐ ॥ होवै सुखु घणा दयि धिआइऐ ॥ भगवान् का ध्यान करने से मनुष्य को महासुख मिलता है।
ਵੰਞੈ ਰੋਗਾ ਘਾਣਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਐ ॥ वंञै रोगा घाणि हरि गुण गाइऐ ॥ हरि का गुणगान करने से हर प्रकार के रोग लुप्त हो जाते हैं।
ਅੰਦਰਿ ਵਰਤੈ ਠਾਢਿ ਪ੍ਰਭਿ ਚਿਤਿ ਆਇਐ ॥ अंदरि वरतै ठाढि प्रभि चिति आइऐ ॥ यदि प्रभु चित्त में आ जाए तो अन्तर्मन में ठंडक आ जाती है।
ਪੂਰਨ ਹੋਵੈ ਆਸ ਨਾਇ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਐ ॥ पूरन होवै आस नाइ मंनि वसाइऐ ॥ नाम को मन में बसाने से आशा पूर्ण हो जाती है।
ਕੋਇ ਨ ਲਗੈ ਬਿਘਨੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਐ ॥ कोइ न लगै बिघनु आपु गवाइऐ ॥ यदि जीव अपना अहंकार मिटा दे तो उसे कोई विघ्न नहीं आता।
ਗਿਆਨ ਪਦਾਰਥੁ ਮਤਿ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਐ ॥ गिआन पदारथु मति गुर ते पाइऐ ॥ ज्ञान रूपी पदार्थ एवं बुद्धि गुरु से प्राप्त होते हैं।
ਤਿਨਿ ਪਾਏ ਸਭੇ ਥੋਕ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਦਿਵਾਇਐ ॥ तिनि पाए सभे थोक जिसु आपि दिवाइऐ ॥ जिसे प्रभु स्वयं देते हैं, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है।
ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕਾ ਖਸਮੁ ਸਭ ਤੇਰੀ ਛਾਇਐ ॥੮॥ तूं सभना का खसमु सभ तेरी छाइऐ ॥८॥ हे परमेश्वर ! आप सबके मालिक है और सभी आपकी छत्रछाया में हैं ॥८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥ सलोक मः ५ ॥ श्लोक, पांचवे गुरु:५॥
ਨਦੀ ਤਰੰਦੜੀ ਮੈਡਾ ਖੋਜੁ ਨ ਖੁੰਭੈ ਮੰਝਿ ਮੁਹਬਤਿ ਤੇਰੀ ॥ नदी तरंदड़ी मैडा खोजु न खु्मभै मंझि मुहबति तेरी ॥ हे परमेश्वर ! विकारों की इस सांसारिक नदी को पार करते हुए मेरा पैर मोह के कीचड़ में नहीं फँसता, क्योंकि मेरे भीतर आपके प्रेम का लंगर स्थिर है।
ਤਉ ਸਹ ਚਰਣੀ ਮੈਡਾ ਹੀਅੜਾ ਸੀਤਮੁ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਤੁਲਹਾ ਬੇੜੀ ॥੧॥ तउ सह चरणी मैडा हीअड़ा सीतमु हरि नानक तुलहा बेड़ी ॥१॥ आपके चरणों में मेरा मन सिला हुआ है, जगत् रूपी नदिया पार करने के लिए आप ही नानक के बेड़े एवं नाव है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ पाँचवें गुरु: ५॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਦਿਸੰਦੜਿਆ ਦੁਰਮਤਿ ਵੰਞੈ ਮਿਤ੍ਰ ਅਸਾਡੜੇ ਸੇਈ ॥ जिन्हा दिसंदड़िआ दुरमति वंञै मित्र असाडड़े सेई ॥ जिनके दर्शन करने से दुर्मति नाश हो जाती है, वही हमारे मित्र हैं।
ਹਉ ਢੂਢੇਦੀ ਜਗੁ ਸਬਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ॥੨॥ हउ ढूढेदी जगु सबाइआ जन नानक विरले केई ॥२॥ हे नानक ! मैंने सारा जगत् खोज लिया परन्तु ऐसे विरले ही पुरुष मिलते हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਆਵੈ ਸਾਹਿਬੁ ਚਿਤਿ ਤੇਰਿਆ ਭਗਤਾ ਡਿਠਿਆ ॥ आवै साहिबु चिति तेरिआ भगता डिठिआ ॥ हे मालिक ! आपके भक्तों के दर्शन करने से आप स्वयं ही हमारे मन में आ जाते हो।
ਮਨ ਕੀ ਕਟੀਐ ਮੈਲੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਵੁਠਿਆ ॥ मन की कटीऐ मैलु साधसंगि वुठिआ ॥ साधु संगति में रहने से मन की मैल दूर हो जाती है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭਉ ਕਟੀਐ ਜਨ ਕਾ ਸਬਦੁ ਜਪਿ ॥ जनम मरण भउ कटीऐ जन का सबदु जपि ॥ भक्तजनों के शब्द को जपने से जन्म-मरण का डर दूर हो जाता है।
ਬੰਧਨ ਖੋਲਨ੍ਹ੍ਹਿ ਸੰਤ ਦੂਤ ਸਭਿ ਜਾਹਿ ਛਪਿ ॥ बंधन खोलन्हि संत दूत सभि जाहि छपि ॥ संत माया संबंधी सभी बन्धन खोल देते हैं, जिसके फलस्वरूप माया के दूत-काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादि लुप्त हो जाते हैं।
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਲਾਇਨ੍ਹ੍ਹਿ ਰੰਗੁ ਜਿਸ ਦੀ ਸਭ ਧਾਰੀਆ ॥ तिसु सिउ लाइन्हि रंगु जिस दी सभ धारीआ ॥ संतजन उस ईश्वर के साथ हमारा प्रेम उत्पन्न कर देते हैं, जिसने इस सृष्टि की रचना की है।
ਊਚੀ ਹੂੰ ਊਚਾ ਥਾਨੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰੀਆ ॥ ऊची हूं ऊचा थानु अगम अपारीआ ॥ उस परमात्मा का निवास स्थान सबसे ऊँचा है, जो अगम्य एवं अपार है।
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਕਰ ਜੋੜਿ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਧਿਆਈਐ ॥ रैणि दिनसु कर जोड़ि सासि सासि धिआईऐ ॥ हाथ जोड़कर रात-दिन अपनी प्रत्येक सांस से उसका ध्यान करना चाहिए।
ਜਾ ਆਪੇ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਤਾਂ ਭਗਤ ਸੰਗੁ ਪਾਈਐ ॥੯॥ जा आपे होइ दइआलु तां भगत संगु पाईऐ ॥९॥ जब परमेश्वर स्वयं दयालु होते हैं तो भक्तों की संगति प्राप्त होती है ॥६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥ सलोक मः ५ ॥ श्लोक, पाँचवें गुरु: ५॥
ਬਾਰਿ ਵਿਡਾਨੜੈ ਹੁੰਮਸ ਧੁੰਮਸ ਕੂਕਾ ਪਈਆ ਰਾਹੀ ॥ बारि विडानड़ै हुमस धुमस कूका पईआ राही ॥ इस आश्चर्यजनक जगत् रूपी जंगल में कोलाहल एवं मार्ग में लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।
ਤਉ ਸਹ ਸੇਤੀ ਲਗੜੀ ਡੋਰੀ ਨਾਨਕ ਅਨਦ ਸੇਤੀ ਬਨੁ ਗਾਹੀ ॥੧॥ तउ सह सेती लगड़ी डोरी नानक अनद सेती बनु गाही ॥१॥ हे मेरे पति-परमेश्वर ! मुझ नानक के चित्त की डोर आपसे लगी हुई है, इसलिए मैं आनंद से जगत जंगल को पार कर रहा हूँ ॥१॥
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ पाँचवें गुरु: ५॥
ਸਚੀ ਬੈਸਕ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਸੰਗਿ ਜਿਨ ਸੰਗਿ ਜਪੀਐ ਨਾਉ ॥ सची बैसक तिन्हा संगि जिन संगि जपीऐ नाउ ॥ उनकी संगति सच्ची है, जिनके साथ बैठकर भगवान् का नाम-सिमरन किया जाता है।
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸੰਗਿ ਸੰਗੁ ਨ ਕੀਚਈ ਨਾਨਕ ਜਿਨਾ ਆਪਣਾ ਸੁਆਉ ॥੨॥ तिन्ह संगि संगु न कीचई नानक जिना आपणा सुआउ ॥२॥ हे नानक ! उनके साथ कदापि संगति नहीं करनी चाहिए, जिन्हें अपना ही कोई स्वार्थ होता है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਸਾ ਵੇਲਾ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਤੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ॥ सा वेला परवाणु जितु सतिगुरु भेटिआ ॥ वही समय स्वीकार होता है, जब सच्चे गुरु से भेंट होती है।
ਹੋਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਫਿਰਿ ਦੂਖ ਨ ਤੇਟਿਆ ॥ होआ साधू संगु फिरि दूख न तेटिआ ॥ यदि मनुष्य साधु से संगति कर ले तो उसे दुःख नहीं लगते।
ਪਾਇਆ ਨਿਹਚਲੁ ਥਾਨੁ ਫਿਰਿ ਗਰਭਿ ਨ ਲੇਟਿਆ ॥ पाइआ निहचलु थानु फिरि गरभि न लेटिआ ॥ यदि मनुष्य को निश्चित स्थान मिल जाए तो वह पुनः गर्भयोनि में नहीं आता।
ਨਦਰੀ ਆਇਆ ਇਕੁ ਸਗਲ ਬ੍ਰਹਮੇਟਿਆ ॥ नदरी आइआ इकु सगल ब्रहमेटिआ ॥ उसे एक ब्रह्म ही सर्वत्र दिखाई देते हैं और
ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ਲਾਇ ਧਿਆਨੁ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸਮੇਟਿਆ ॥ ततु गिआनु लाइ धिआनु द्रिसटि समेटिआ ॥ सब ओर से दृष्टि समेटकर वह अपना ध्यान तत्व-ज्ञान से लगाता है।
ਸਭੋ ਜਪੀਐ ਜਾਪੁ ਜਿ ਮੁਖਹੁ ਬੋਲੇਟਿਆ ॥ सभो जपीऐ जापु जि मुखहु बोलेटिआ ॥ जो कुछ भी वह मुँह से बोलता है, वह सब प्रभु का ही जाप जपता है।
ਹੁਕਮੇ ਬੁਝਿ ਨਿਹਾਲੁ ਸੁਖਿ ਸੁਖੇਟਿਆ ॥ हुकमे बुझि निहालु सुखि सुखेटिआ ॥ प्रभु के आदेश को समझ कर मनुष्य आनंदित हो जाता है और सुखपूर्वक रहता है।
ਪਰਖਿ ਖਜਾਨੈ ਪਾਏ ਸੇ ਬਹੁੜਿ ਨ ਖੋਟਿਆ ॥੧੦॥ परखि खजानै पाए से बहुड़ि न खोटिआ ॥१०॥ वे साधु पुरुष, जिन्हें भगवान् परीक्षा लेकर अपने संघ में स्वीकार कर लेते हैं या अपने दिव्य कोष में सुरक्षित रख लेते हैं, वे फिर कभी मिथ्या नहीं होते।
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥ सलोकु मः ५ ॥ श्लोक, पाँचवें गुरु: ५॥
ਵਿਛੋਹੇ ਜੰਬੂਰ ਖਵੇ ਨ ਵੰਞਨਿ ਗਾਖੜੇ ॥ विछोहे ज्मबूर खवे न वंञनि गाखड़े ॥ ईश्वर से वियोग की पीड़ा वैसी ही तीव्र और असहनीय होती है, जैसे किसी की त्वचा को चिमटे से खींचा जा रहा हो।
ਜੇ ਸੋ ਧਣੀ ਮਿਲੰਨਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਸੰਬੂਹ ਸਚੁ ॥੧॥ जे सो धणी मिलंनि नानक सुख स्मबूह सचु ॥१॥ हे नानक ! यदि मालिक-प्रभु मिल जाए तो सारे सच्चे सुख मिल जाते हैं।॥१॥


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