Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 517

Page 517

ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਪਣਾ ਸੇਵਿ ਸਭ ਫਲ ਪਾਇਆ ॥ सतिगुरु अपणा सेवि सभ फल पाइआ ॥ अपने सतिगुरु की सेवा करके मैंने सभी फल प्राप्त कर लिए हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ਸਦਾ ਧਿਆਇਆ ॥ अम्रित हरि का नाउ सदा धिआइआ ॥ मैं सदा ही हरि के नामामृत का ध्यान करता हूँ।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਦੁਖੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥ संत जना कै संगि दुखु मिटाइआ ॥ संतजनों की संगति में रहकर मैंने अपने दुःख मिटा लिए हैं।
ਨਾਨਕ ਭਏ ਅਚਿੰਤੁ ਹਰਿ ਧਨੁ ਨਿਹਚਲਾਇਆ ॥੨੦॥ नानक भए अचिंतु हरि धनु निहचलाइआ ॥२०॥ हे नानक ! हरि का निश्चल धन प्राप्त करके मैं निश्चिंत हो गया हूँ ॥२०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ सलोक मः ३ ॥ श्लोक, तीसरे गुरु: ३॥
ਖੇਤਿ ਮਿਆਲਾ ਉਚੀਆ ਘਰੁ ਉਚਾ ਨਿਰਣਉ ॥ खेति मिआला उचीआ घरु उचा निरणउ ॥ जिस तरह किसान ऊँचे बादल देखकर खेत की मेंढ ऊँची कर देता है,
ਮਹਲ ਭਗਤੀ ਘਰਿ ਸਰੈ ਸਜਣ ਪਾਹੁਣਿਅਉ ॥ महल भगती घरि सरै सजण पाहुणिअउ ॥ वैसे ही जीव-स्त्री के हृदय में निवास करते हैं, जिसके मन में उनके प्रति सच्चा और तीव्र प्रेम एवं भक्ति होती है।
ਬਰਸਨਾ ਤ ਬਰਸੁ ਘਨਾ ਬਹੁੜਿ ਬਰਸਹਿ ਕਾਹਿ ॥ बरसना त बरसु घना बहुड़ि बरसहि काहि ॥ हे मेध रूपी गुरुदेव ! यद्यपि हरि-नाम की वर्षा करनी है तो करो क्योंकि आयु बीतने पर फिर बरसने का क्या अभिप्राय ?
ਨਾਨਕ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੧॥ नानक तिन्ह बलिहारणै जिन्ह गुरमुखि पाइआ मन माहि ॥१॥ हे नानक ! जिन्होंने गुरुमुख बनकर परमात्मा को मन में प्राप्त कर लिया है, मैं उनसे बलिहारी जाता हूँ ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥ मः ३ ॥ तीसरे गुरु: ३॥
ਮਿਠਾ ਸੋ ਜੋ ਭਾਵਦਾ ਸਜਣੁ ਸੋ ਜਿ ਰਾਸਿ ॥ मिठा सो जो भावदा सजणु सो जि रासि ॥ मीठा वही होता है, जो अच्छा लगता है और सच्चा मित्र वही है जो दुःख-सुख में साथ निभाने वाला हो।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਕਉ ਆਪਿ ਕਰੇ ਪਰਗਾਸੁ ॥੨॥ नानक गुरमुखि जाणीऐ जा कउ आपि करे परगासु ॥२॥ हे नानक ! जिसके मन में भगवान् स्वयं प्रकाश करते हैं, वही गुरुमुख जाना जाता है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਪ੍ਰਭ ਪਾਸਿ ਜਨ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਤੂ ਸਚਾ ਸਾਂਈ ॥ प्रभ पासि जन की अरदासि तू सचा सांई ॥ प्रभु के पास सेवक की प्रार्थना है, हे प्रभु ! आप ही मेरा सच्चा साँई है।
ਤੂ ਰਖਵਾਲਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਉ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ॥ तू रखवाला सदा सदा हउ तुधु धिआई ॥ आप सदा ही मेरे रखवाला हैं, मैं आपकी ही आराधना करता हूँ।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੇਰਿਆ ਤੂ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥ जीअ जंत सभि तेरिआ तू रहिआ समाई ॥ सारे जीव-जन्तु आपके ही पैदा किए हुए हैं, आप सबमें समा रहे हैं।
ਜੋ ਦਾਸ ਤੇਰੇ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਮਾਰਿ ਪਚਾਈ ॥ जो दास तेरे की निंदा करे तिसु मारि पचाई ॥ जो आपके दास की निन्दा करता है, उसे आप कुचल कर नष्ट कर देते हो।
ਚਿੰਤਾ ਛਡਿ ਅਚਿੰਤੁ ਰਹੁ ਨਾਨਕ ਲਗਿ ਪਾਈ ॥੨੧॥ चिंता छडि अचिंतु रहु नानक लगि पाई ॥२१॥ हे नानक ! प्रभु के चरण-स्पर्श कर तथा चिन्ता छोड़कर अचिंत रह ॥२१॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥ सलोक मः ३ ॥ श्लोक, तीसरे गुरु: ३॥
ਆਸਾ ਕਰਤਾ ਜਗੁ ਮੁਆ ਆਸਾ ਮਰੈ ਨ ਜਾਇ ॥ आसा करता जगु मुआ आसा मरै न जाइ ॥ सारा जगत् आशा करता हुआ मर मिट जाता है परन्तु आशा नहीं मरती।
ਨਾਨਕ ਆਸਾ ਪੂਰੀਆ ਸਚੇ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੧॥ नानक आसा पूरीआ सचे सिउ चितु लाइ ॥१॥ हे नानक ! सत्यस्वरूप परमात्मा के साथ चित्त लगाने से सब आशाएँ पूरी हो जाती हैं।॥१॥
ਮਃ ੩ ॥ मः ३ ॥ तीसरे गुरु: ३ ॥
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਮਰਿ ਜਾਇਸੀ ਜਿਨਿ ਕੀਤੀ ਸੋ ਲੈ ਜਾਇ ॥ आसा मनसा मरि जाइसी जिनि कीती सो लै जाइ ॥ आशा-अभिलाषा तब मिट जाएँगी, जब इन्हें पैदा करने वाले भगवान् इनका विनाश कर देंगे।
ਨਾਨਕ ਨਿਹਚਲੁ ਕੋ ਨਹੀ ਬਾਝਹੁ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ॥੨॥ नानक निहचलु को नही बाझहु हरि कै नाइ ॥२॥ हे नानक ! हरि के नाम के अतिरिक्त कोई भी वस्तु अनश्वर नहीं ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਆਪੇ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਓਨੁ ਕਰਿ ਪੂਰਾ ਥਾਟੁ ॥ आपे जगतु उपाइओनु करि पूरा थाटु ॥ भगवान् ने स्वयं ही पूर्ण ढांचा बनाकर जगत् की रचना की है।
ਆਪੇ ਸਾਹੁ ਆਪੇ ਵਣਜਾਰਾ ਆਪੇ ਹੀ ਹਰਿ ਹਾਟੁ ॥ आपे साहु आपे वणजारा आपे ही हरि हाटु ॥ वह स्वयं ही साहूकार है, स्वयं ही व्यापारी एवं स्वयं ही हाट बाजार है।
ਆਪੇ ਸਾਗਰੁ ਆਪੇ ਬੋਹਿਥਾ ਆਪੇ ਹੀ ਖੇਵਾਟੁ ॥ आपे सागरु आपे बोहिथा आपे ही खेवाटु ॥ वह आप ही सागर, आप ही जहाज और आप ही खेवट है।
ਆਪੇ ਗੁਰੁ ਚੇਲਾ ਹੈ ਆਪੇ ਆਪੇ ਦਸੇ ਘਾਟੁ ॥ आपे गुरु चेला है आपे आपे दसे घाटु ॥ वह आप ही गुरु एवं आप ही चेला है और आप ही घाट दिखाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੂ ਸਭਿ ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟੁ ॥੨੨॥੧॥ ਸੁਧੁ जन नानक नामु धिआइ तू सभि किलविख काटु ॥२२॥१॥ सुधु हे नानक ! तू उस परमात्मा का नाम-स्मरण कर और अपने सारे पाप दूर कर ले ॥२२॥१॥ शुद्ध।
ਰਾਗੁ ਗੂਜਰੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੫ रागु गूजरी वार महला ५ राग गूजरी, वार, पंचम गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥ सलोकु मः ५ ॥ श्लोक, पंचम गुरु: ५॥
ਅੰਤਰਿ ਗੁਰੁ ਆਰਾਧਣਾ ਜਿਹਵਾ ਜਪਿ ਗੁਰ ਨਾਉ ॥ अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥ अपने अन्तर्मन में गुरु की आराधना करो और जिह्वा से गुरु के नाम का जाप करो।
ਨੇਤ੍ਰੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੇਖਣਾ ਸ੍ਰਵਣੀ ਸੁਨਣਾ ਗੁਰ ਨਾਉ ॥ नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥ अपने नेत्रों से सच्चे गुरु के दर्शन करो तथा कानों से गुरु का नाम सुनो।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ਦਰਗਹ ਪਾਈਐ ਠਾਉ ॥ सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥ सतगुरु के प्रेम में रंग जाने से तुझे प्रभु के दरबार में आश्रय मिल जाएगा।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਜਿਸ ਨੋ ਏਹ ਵਥੁ ਦੇਇ ॥ कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथु देइ ॥ हे नानक ! जिस पर प्रभु-कृपा करते हैं, उसे ही यह अमूल्य वस्तु देता है।
ਜਗ ਮਹਿ ਉਤਮ ਕਾਢੀਅਹਿ ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ਕੇਇ ॥੧॥ जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥ कुछ विरले ही व्यक्ति होते हैं जो इस जगत् में उत्तम कहलाते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ पंचम गुरु: ५॥
ਰਖੇ ਰਖਣਹਾਰਿ ਆਪਿ ਉਬਾਰਿਅਨੁ ॥ रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥ रक्षक प्रभु ने मेरी रक्षा की है और उसने स्वयं ही बचाकर मेरा कल्याण कर दिया है।
ਗੁਰ ਕੀ ਪੈਰੀ ਪਾਇ ਕਾਜ ਸਵਾਰਿਅਨੁ ॥ गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥ गुरु के चरणों में लगने से मेरे कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।
ਹੋਆ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਮਨਹੁ ਨ ਵਿਸਾਰਿਅਨੁ ॥ होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥ जब प्रभु स्वयं दयालु हो गए हैं तो में अपने मन से उसे विस्मृत नहीं करता।
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਭਵਜਲੁ ਤਾਰਿਅਨੁ ॥ साध जना कै संगि भवजलु तारिअनु ॥ संतजनों की संगति में रहकर भवसागर से पार हो गया हूँ।
ਸਾਕਤ ਨਿੰਦਕ ਦੁਸਟ ਖਿਨ ਮਾਹਿ ਬਿਦਾਰਿਅਨੁ ॥ साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥ शाक्त, निन्दकों एवं दुष्टों का प्रभु ने क्षण में ही नाश कर दिया है।
ਤਿਸੁ ਸਾਹਿਬ ਕੀ ਟੇਕ ਨਾਨਕ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ॥ तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥ हे नानक, अपने हृदय में उस स्वामी-भगवान् की शरण और समर्थन प्रार्थना करो।


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