Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 497

Page 497

ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਮਿਟੇ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥੫॥੬॥ कलि कलेस मिटे खिन भीतरि नानक सहजि समाइआ ॥४॥५॥६॥ हे नानक ! एक क्षण में ही उसके भीतर से दुःख-कलेश मिट गए और वह सहज ही सत्य में समा गया ॥ ४॥ ५ ॥ ६॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गूजरी महला ५ ॥ राग गूजरी, पांचवें गुरु:५ ॥
ਜਿਸੁ ਮਾਨੁਖ ਪਹਿ ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਸੋ ਅਪਨੈ ਦੁਖਿ ਭਰਿਆ ॥ जिसु मानुख पहि करउ बेनती सो अपनै दुखि भरिआ ॥ जिस मनुष्य के पास भी मैं (अपने दुःख की) विनती करता हूँ, वह पहले ही दु:खों से भरा मिलता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਿਨਿ ਰਿਦੈ ਅਰਾਧਿਆ ਤਿਨਿ ਭਉ ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਆ ॥੧॥ पारब्रहमु जिनि रिदै अराधिआ तिनि भउ सागरु तरिआ ॥१॥ जिस मनुष्य ने अपने हृदय में पारब्रह्म की आराधना की है, वही भवसागर से पार हुआ है॥ १॥
ਗੁਰ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕੋ ਨ ਬ੍ਰਿਥਾ ਦੁਖੁ ਕਾਟੈ ॥ गुर हरि बिनु को न ब्रिथा दुखु काटै ॥ गुरु-हरि के बिना दूसरा कोई भी व्यथा एवं दुःख को दूर नहीं कर सकता।
ਪ੍ਰਭੁ ਤਜਿ ਅਵਰ ਸੇਵਕੁ ਜੇ ਹੋਈ ਹੈ ਤਿਤੁ ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ਜਸੁ ਘਾਟੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभु तजि अवर सेवकु जे होई है तितु मानु महतु जसु घाटै ॥१॥ रहाउ ॥ यदि मनुष्य प्रभु को छोड़कर किसी दूसरे का सेवक बन जाए तो उसकी मान-प्रतिष्ठा, महत्ता एवं यश कम हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਾਇਆ ਕੇ ਸਨਬੰਧ ਸੈਨ ਸਾਕ ਕਿਤ ਹੀ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਆ ॥ माइआ के सनबंध सैन साक कित ही कामि न आइआ ॥ सांसारिक संबंधी, रिश्तेदार एवं भाई-बन्धु किसी काम नहीं आते।
ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਨੀਚ ਕੁਲੁ ਊਚਾ ਤਿਸੁ ਸੰਗਿ ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਫਲ ਪਾਇਆ ॥੨॥ हरि का दासु नीच कुलु ऊचा तिसु संगि मन बांछत फल पाइआ ॥२॥ नीच कुल का हरि का दास इन सबसे उत्तम है, उसकी संगति में मनोवांछित फल पाया है॥ २ ॥
ਲਾਖ ਕੋਟਿ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਬਿੰਜਨ ਤਾ ਮਹਿ ਤ੍ਰਿਸਨ ਨ ਬੂਝੀ ॥ लाख कोटि बिखिआ के बिंजन ता महि त्रिसन न बूझी ॥ मनुष्य के पास विषय-विकारों के लाखों-करोड़ों ही व्यंजन हों परन्तु उनमें से उसकी तृष्णा निवृत्त नहीं होती।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਕੋਟਿ ਉਜੀਆਰਾ ਬਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਸੂਝੀ ॥੩॥ सिमरत नामु कोटि उजीआरा बसतु अगोचर सूझी ॥३॥ नाम-सिमरन करने से मेरे मन में प्रभु-ज्योति का इतना उजाला हो गया है जितना करोड़ों सूर्य का उजाला होता है एवं मुझे अगोचर वस्तु की सूझ हो गई है अर्थात् प्रभु-दर्शन हो गए हैं।॥ ३॥
ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੈ ਦੁਆਰਿ ਆਇਆ ਭੈ ਭੰਜਨ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥ फिरत फिरत तुम्हरै दुआरि आइआ भै भंजन हरि राइआ ॥ हे भयभंजन परमेश्वर ! मैं भटकता-भटकता तेरे द्वार पर आया हूँ।
ਸਾਧ ਕੇ ਚਰਨ ਧੂਰਿ ਜਨੁ ਬਾਛੈ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੬॥੭॥ साध के चरन धूरि जनु बाछै सुखु नानक इहु पाइआ ॥४॥६॥७॥ भक्त नानक गुरु की सबसे विनम्र सेवा की याचना करते हैं, इसमें उन्हें आध्यात्मिक शांति मिलती है। ॥ ४॥ ६॥ ७॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਪੰਚਪਦਾ ਘਰੁ ੨॥ गूजरी महला ५ पंचपदा घरु २ राग गूजरी, पाँचवें गुरु, पंच-पद (पाँच पंक्तियाँ), दूसरा ताल: २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਪ੍ਰਥਮੇ ਗਰਭ ਮਾਤਾ ਕੈ ਵਾਸਾ ਊਹਾ ਛੋਡਿ ਧਰਨਿ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥ प्रथमे गरभ माता कै वासा ऊहा छोडि धरनि महि आइआ ॥ सर्वप्रथम जीव ने माता के गर्भ में आकर निवास किया है, तदुपरांत उसे छोड़कर कर वह धरती में आया है।
ਚਿਤ੍ਰ ਸਾਲ ਸੁੰਦਰ ਬਾਗ ਮੰਦਰ ਸੰਗਿ ਨ ਕਛਹੂ ਜਾਇਆ ॥੧॥ चित्र साल सुंदर बाग मंदर संगि न कछहू जाइआ ॥१॥ चित्रशाला, सुन्दर बाग एवं मन्दिर वह अन्तकाल कुछ भी साथ नहीं लेकर जाता॥ १॥
ਅਵਰ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਲੋਭ ਲਬੀ ॥ अवर सभ मिथिआ लोभ लबी ॥ दूसरे सभी लोभ एवं लालच झूठे हैं।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੀਓ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਜੀਅ ਕਉ ਏਹਾ ਵਸਤੁ ਫਬੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरि पूरै दीओ हरि नामा जीअ कउ एहा वसतु फबी ॥१॥ रहाउ ॥ पूर्ण गुरु ने (मुझे) हरि का नाम प्रदान किया है यही एकमात्र वस्तु है जो (मेरी) आत्मा हेतु सुयोग्य है॥ १॥ रहाउ॥
ਇਸਟ ਮੀਤ ਬੰਧਪ ਸੁਤ ਭਾਈ ਸੰਗਿ ਬਨਿਤਾ ਰਚਿ ਹਸਿਆ ॥ इसट मीत बंधप सुत भाई संगि बनिता रचि हसिआ ॥ जीव अपने इष्ट मित्र, संबंधी, पुत्र, भाई एवं पत्नी के साथ प्रेम लगाकर हँसता-खेलता है।
ਜਬ ਅੰਤੀ ਅਉਸਰੁ ਆਇ ਬਨਿਓ ਹੈ ਉਨ੍ਹ੍ਹ ਪੇਖਤ ਹੀ ਕਾਲਿ ਗ੍ਰਸਿਆ ॥੨॥ जब अंती अउसरु आइ बनिओ है उन्ह पेखत ही कालि ग्रसिआ ॥२॥ परन्तु जब अन्तिम समय आता है तो उनके देखते ही देखते मृत्यु उसे निगल लेती है॥ २॥
ਕਰਿ ਕਰਿ ਅਨਰਥ ਬਿਹਾਝੀ ਸੰਪੈ ਸੁਇਨਾ ਰੂਪਾ ਦਾਮਾ ॥ करि करि अनरथ बिहाझी स्मपै सुइना रूपा दामा ॥ जीव निरंतर उत्पीड़न और शोषण से वह धन-संपति, सोना, चांदी एवं रुपए संचित करता है
ਭਾੜੀ ਕਉ ਓਹੁ ਭਾੜਾ ਮਿਲਿਆ ਹੋਰੁ ਸਗਲ ਭਇਓ ਬਿਰਾਨਾ ॥੩॥ भाड़ी कउ ओहु भाड़ा मिलिआ होरु सगल भइओ बिराना ॥३॥ जो कुछ भी वह जीवन में उपयोग करता है, वह अपनी मेहनत की कमाई है; बाकी सब दूसरों की संपत्ति बन जाती है॥३॥
ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਰਥ ਸੰਬਾਹੇ ਗਹੁ ਕਰਿ ਕੀਨੇ ਮੇਰੇ ॥ हैवर गैवर रथ स्मबाहे गहु करि कीने मेरे ॥ वह सुन्दर घोड़े, हाथी एवं रथ संग्रह करता है और पूरे ध्यान से इनको अपना बना लेता है।
ਜਬ ਤੇ ਹੋਈ ਲਾਂਮੀ ਧਾਈ ਚਲਹਿ ਨਾਹੀ ਇਕ ਪੈਰੇ ॥੪॥ जब ते होई लांमी धाई चलहि नाही इक पैरे ॥४॥ परन्तु जब वह लम्बी यात्रा पर चलता है अर्थात् देहांत होता है तो उसके साथ कोई भी एक पैर तक नहीं चलता अर्थात् कोई साथ नहीं जाता॥ ४॥
ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਸੁਖ ਰਾਜਾ ਨਾਮੁ ਕੁਟੰਬ ਸਹਾਈ ॥ नामु धनु नामु सुख राजा नामु कुट्मब सहाई ॥ हरि का नाम जीव का सच्चा धन है, नाम ही सुख का राजा है और हरि का नाम ही कुंटुब एवं साथी है।
ਨਾਮੁ ਸੰਪਤਿ ਗੁਰਿ ਨਾਨਕ ਕਉ ਦੀਈ ਓਹ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥੫॥੧॥੮॥ नामु स्मपति गुरि नानक कउ दीई ओह मरै न आवै जाई ॥५॥१॥८॥ गुरु ने नानक को हरि नाम रूपी संपत्ति प्रदान की है, वह (नाम) न ही नाश होता है और न ही कहाँ आता एवं जाता है। ॥५॥ १ ॥ ८ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਤਿਪਦੇ ਘਰੁ ੨॥ गूजरी महला ५ तिपदे घरु २ राग गूजरी, पाँचवें गुरु, तीन-पद (तीन पंक्तियाँ), दूसरा सर्वश्रेष्ठ:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖ ਕੀਆ ਨਿਵਾਸਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਲਨਿ ਬੁਝਾਈ ॥ दुख बिनसे सुख कीआ निवासा त्रिसना जलनि बुझाई ॥ दु:ख नष्ट हो गए हैं, सर्व सुखों का निवास हो गया है तथा माया की तृष्णा की जलन भी बुझ गई है,
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਬਿਨਸਿ ਨ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥੧॥ नामु निधानु सतिगुरू द्रिड़ाइआ बिनसि न आवै जाई ॥१॥ क्योंकि प्रभु-नाम का खजाना सच्चे गुरु ने दृढ़ कर दिया है, जो न ही नाश होता है और न ही कहीं जाता है॥ १॥
ਹਰਿ ਜਪਿ ਮਾਇਆ ਬੰਧਨ ਤੂਟੇ ॥ हरि जपि माइआ बंधन तूटे ॥ हरि का जाप करने से माया के बन्धन टूट गए हैं।
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਛੂਟੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ भए क्रिपाल दइआल प्रभ मेरे साधसंगति मिलि छूटे ॥१॥ रहाउ ॥ मेरे प्रभु मुझ पर कृपालु एवं दयालु हो गया है एवं साधुओं की संगति में मिलकर बन्धनों से छूट गया हूँ॥ १॥ रहाउ॥


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