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ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧॥
गूजरी महला ५ चउपदे घरु १
राग गूजरी, पंचम गुरु चौ-पद, प्रथम ताल: १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਾਹੇ ਰੇ ਮਨ ਚਿਤਵਹਿ ਉਦਮੁ ਜਾ ਆਹਰਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਪਰਿਆ ॥
काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥
हे मन ! तू क्यों उस जीविका की चिंता करता है जिसकी देखभाल स्वयं परमेश्वर कर रहा है?
ਸੈਲ ਪਥਰ ਮਹਿ ਜੰਤ ਉਪਾਏ ਤਾ ਕਾ ਰਿਜਕੁ ਆਗੈ ਕਰਿ ਧਰਿਆ ॥੧॥
सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥
चट्टानों एवं पत्थरों में जिन जीवों को निरंकार ने पैदा किया है, उनका भोजन भी उसने पहले ही तैयार करके रखा है॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਾਧਉ ਜੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲੇ ਸਿ ਤਰਿਆ ॥
मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सि तरिआ ॥
हे निरंकार ! जो भी संतों की संगति में जाकर बैठा है वह भव-सागर से पार उतर गया है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸੂਕੇ ਕਾਸਟ ਹਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥
उसने गुरु की कृपा से परमपद (मोक्ष) प्राप्त किया है और उसका हृदय मानो यूं हो गया जैसे कोई सूखी लकड़ी हरी हो जाती है।॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਜਨਨਿ ਪਿਤਾ ਲੋਕ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਕੀ ਧਰਿਆ ॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
जीवन में माता, पिता, पुत्र, पत्नी व अन्य सम्बन्धीजन में से कोई भी किसी जगह आश्रय नहीं होता।
ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹੇ ਠਾਕੁਰੁ ਕਾਹੇ ਮਨ ਭਉ ਕਰਿਆ ॥੨॥
सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥
प्रत्येक जीव को सृष्टि में पैदा करके निरंकार स्वयं भोग पदार्थ पहुँचाता हे, फिर हे मन ! तू किस लिए भय करता है ॥ २॥
ਊਡੈ ਊਡਿ ਆਵੈ ਸੈ ਕੋਸਾ ਤਿਸੁ ਪਾਛੈ ਬਚਰੇ ਛਰਿਆ ॥
ऊडै ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥
कूजों का समूह उड़ कर सैंकड़ों मील दूर चला आता हे और अपने बच्चों को वह पीछे (अपने घोंसले में ही) छोड़ आता है।
ਉਨ ਕਵਨੁ ਖਲਾਵੈ ਕਵਨੁ ਚੁਗਾਵੈ ਮਨ ਮਹਿ ਸਿਮਰਨੁ ਕਰਿਆ ॥੩॥
उन कवनु खलावै कवनु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥
बताओ, माँ की अनुपस्थिति में उन्हें कौन खिलाता है, कौन सिखाता है? राजहंस उन्हें बस स्मरण करता है, और प्रभु की अद्भुत व्यवस्था से वे संतानें जीवित रहती हैं। ॥३॥
ਸਭ ਨਿਧਾਨ ਦਸ ਅਸਟ ਸਿਧਾਨ ਠਾਕੁਰ ਕਰ ਤਲ ਧਰਿਆ ॥
सभ निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥
पदम्-शंखादि समस्त नौ निधियों, (महापुराण श्रीमद्भागवत में अंकित) अठ्ठारह सिद्धियाँ निरंकार ने अपनी हथेली पर रखी हुई हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਰਿਆ ॥੪॥੧॥
जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥१॥
हे नानक ! ऐसे अकाल-पुरुष पर मैं सदा-सर्वदा बलिहार जाता हूँ, असीम निरंकार का कोई पारावार व अंत नहीं है ॥ ४ ॥ १॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੨॥
गूजरी महला ५ चउपदे घरु २
राग गूजरी, पांचवां गुरु, चौ (चार)-पद, दूसरा ताल, २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਿਰਿਆਚਾਰ ਕਰਹਿ ਖਟੁ ਕਰਮਾ ਇਤੁ ਰਾਤੇ ਸੰਸਾਰੀ ॥
किरिआचार करहि खटु करमा इतु राते संसारी ॥
दुनिया के लोग जीवन में कर्मकाण्ड एवं षट्कर्म करते रहते हैं,
ਅੰਤਰਿ ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਹਉਮੈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੧॥
अंतरि मैलु न उतरै हउमै बिनु गुर बाजी हारी ॥१॥
लेकिन उनके अन्तर से अहंकार की मैल दूर नहीं होती। गुरु के बिना वे अपने जीवन की बाजी हार जाते हैं। १॥
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥
मेरे ठाकुर रखि लेवहु किरपा धारी ॥
हे मेरे ठाकुर ! कृपा करके मुझे बचा लो।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਸੇਵਕੁ ਹੋਰਿ ਸਗਲੇ ਬਿਉਹਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोटि मधे को विरला सेवकु होरि सगले बिउहारी ॥१॥ रहाउ ॥
करोड़ों में से कोई विरला पुरुष ही प्रभु का सेवक है, शेष सभी सांसारिक व्यापारी ही हैं।॥ १ ॥ रहाउ॥
ਸਾਸਤ ਬੇਦ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਭਿ ਸੋਧੇ ਸਭ ਏਕਾ ਬਾਤ ਪੁਕਾਰੀ ॥
सासत बेद सिम्रिति सभि सोधे सभ एका बात पुकारी ॥
शास्त्र, वेद, स्मृतियाँ इत्यादि ग्रंथों का विश्लेषण किया है, वे सभी एक ही बात सत्य बताते हैं कि
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਕੋਊ ਪਾਵੈ ਮਨਿ ਵੇਖਹੁ ਕਰਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥੨॥
बिनु गुर मुकति न कोऊ पावै मनि वेखहु करि बीचारी ॥२॥
गुरु के बिना किसी को भी मोक्ष नहीं मिल सकता चाहे अपने मन में विचार करके देख लो ॥ २ ॥
ਅਠਸਠਿ ਮਜਨੁ ਕਰਿ ਇਸਨਾਨਾ ਭ੍ਰਮਿ ਆਏ ਧਰ ਸਾਰੀ ॥
अठसठि मजनु करि इसनाना भ्रमि आए धर सारी ॥
यदि कोई मनुष्य चाहे अड़सठ तीर्थों पर स्नान कर ले, चाहे सारी धरती पर भ्रमण कर ले तथा
ਅਨਿਕ ਸੋਚ ਕਰਹਿ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਅੰਧਿਆਰੀ ॥੩॥
अनिक सोच करहि दिन राती बिनु सतिगुर अंधिआरी ॥३॥
यदि वह दिन-रात अनेक शारीरिक पवित्रता के साधन कर ले परन्तु सच्चे गुरु के बिना मोह-माया का अन्धकार दूर नहीं होगा ॥ ३॥
ਧਾਵਤ ਧਾਵਤ ਸਭੁ ਜਗੁ ਧਾਇਓ ਅਬ ਆਏ ਹਰਿ ਦੁਆਰੀ ॥
धावत धावत सभु जगु धाइओ अब आए हरि दुआरी ॥
समूचे जगत में भटकते-भटकते अब हम हरि के द्वार आए हैं।
ਦੁਰਮਤਿ ਮੇਟਿ ਬੁਧਿ ਪਰਗਾਸੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਾਰੀ ॥੪॥੧॥੨॥
दुरमति मेटि बुधि परगासी जन नानक गुरमुखि तारी ॥४॥१॥२॥
प्रभु ने मेरी दुर्मति मिटाकर बुद्धि को उज्जवल कर दिया है। हे नानक ! गुरु के माध्यम से भगवान् ने मुझे भवसागर से तार दिया है॥ ४॥ १॥ २॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
राग गूजरी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਜਾਪ ਹਰਿ ਧਨੁ ਤਾਪ ਹਰਿ ਧਨੁ ਭੋਜਨੁ ਭਾਇਆ ॥
हरि धनु जाप हरि धनु ताप हरि धनु भोजनु भाइआ ॥
हरि का नाम धन ही मेरा जाप, मेरी तपस्या तथा मेरा मनपसंद भोजन है, यह नाम-धन मुझे बहुत भाया है।
ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਸਰਉ ਮਨ ਤੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ॥੧॥
निमख न बिसरउ मन ते हरि हरि साधसंगति महि पाइआ ॥१॥
एक क्षण भर के लिए भी मैं परमात्मा को अपने मन से विस्मृत नहीं करता, जिसे मैंने साधुओं की संगति में रहकर पाया है॥ १॥
ਮਾਈ ਖਾਟਿ ਆਇਓ ਘਰਿ ਪੂਤਾ ॥
माई खाटि आइओ घरि पूता ॥
हे मेरी माता ! तेरा पुत्र नाम-धन का लाभ कमा कर घर आया है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਚਲਤੇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਬੈਸੇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਜਾਗਤ ਸੂਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि धनु चलते हरि धनु बैसे हरि धनु जागत सूता ॥१॥ रहाउ ॥
अब में चलते, बैठते, जागते एवं सोते समय भी हरि-नाम धन ही कमाता रहता हूँ॥१॥ रहाउ
ਹਰਿ ਧਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਹਰਿ ਧਨੁ ਗਿਆਨੁ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਲਾਇ ਧਿਆਨਾ ॥
हरि धनु इसनानु हरि धनु गिआनु हरि संगि लाइ धिआना ॥
हरि का नाम धन ही मेरा तीर्थ स्नान एवं ज्ञान है और हरि के साथ ही मैंने अपना ध्यान केन्द्रित किया हुआ है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਤੁਲਹਾ ਹਰਿ ਧਨੁ ਬੇੜੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਾਰਿ ਪਰਾਨਾ ॥੨॥
हरि धनु तुलहा हरि धनु बेड़ी हरि हरि तारि पराना ॥२॥
नाम का धन ही मेरी नाव, मेरा बेड़ा और मेरा नाविक है और हरि-प्रभु ही मुझे संसार-सागर से पार करवाने हेतु जहाज है॥ २॥