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ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
वह परब्रह्म परमेश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टि की रचना करने वाला सर्वशक्तिमान है, उसका किसी से वैर नहीं, वह निर्वैर है, वस्तुतः सब जीवों पर उसकी समान दृष्टि है, वह कालातीत है, वह जन्म-मरण से रहित है, वह स्वयं ही प्रकट हुआ है, जिसकी प्राप्ति गुरु की कृपा से होती है।
ਰਾਗੁ ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧ ॥
राग गूजरी, प्रथम गुरु, चौ-पद, प्रथम ताल: १ ॥
ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਕਰੀ ਚਨਣਾਠੀਆ ਜੇ ਮਨੁ ਉਰਸਾ ਹੋਇ ॥
हे परमात्मा ! यदि मेरा मन शिला बन जाए तो मैं तेरे नाम को चन्दन बनाकर उस पर घिसूं ।
ਕਰਣੀ ਕੁੰਗੂ ਜੇ ਰਲੈ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪੂਜਾ ਹੋਇ ॥੧॥
यदि शुभ कर्मों का केसर उससे मिला दिया जाए तभी मेरे हृदय के भीतर तेरी सच्ची पूजा होती रहेगी॥ १॥
ਪੂਜਾ ਕੀਚੈ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਪੂਜ ਨ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
परमात्मा का नाम-सिमरन करने से ही सच्ची पूजा होती है क्योंकि नाम के बिना कोई पूजा नहीं ॥ १॥ रहाउ॥
ਬਾਹਰਿ ਦੇਵ ਪਖਾਲੀਅਹਿ ਜੇ ਮਨੁ ਧੋਵੈ ਕੋਇ ॥
बाहर से लोग देव-मूर्तियों को धोते हैं, यदि इसी तरह अपने मन को धो लें तो
ਜੂਠਿ ਲਹੈ ਜੀਉ ਮਾਜੀਐ ਮੋਖ ਪਇਆਣਾ ਹੋਇ ॥੨॥
उनकी विकारों की जूठन दूर हो जाएगी, उनकी आत्मा पवित्र हो जाएगी तथा मोक्ष को प्रस्थान करेगी॥ २ ॥
ਪਸੂ ਮਿਲਹਿ ਚੰਗਿਆਈਆ ਖੜੁ ਖਾਵਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਦੇਹਿ ॥
पशुओं के पास भी गुण मिलते हैं जो घास चरते हैं और अमृत-समान दूध देते हैं लेकिन
ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੇ ਆਦਮੀ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣ ਕਰਮ ਕਰੇਹਿ ॥੩॥
नाम-विहीन आदमी का जीवन एवं कर्म दोनों ही धिक्कार योग्य हैं चूंकि वह नाम को छोड़कर व्यर्थ कार्य करता रहता है॥ ३॥
ਨੇੜਾ ਹੈ ਦੂਰਿ ਨ ਜਾਣਿਅਹੁ ਨਿਤ ਸਾਰੇ ਸੰਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥
हे प्राणी ! परमात्मा निकट ही है, उसे दूर मत समझो। वह प्रतिदिन दुनिया का भरण-पोषण कर रहे हैं।
ਜੋ ਦੇਵੈ ਸੋ ਖਾਵਣਾ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਾਚਾ ਹੇ ॥੪॥੧॥
गुरु नानक का कथन है कि जो कुछ प्रभु देते हैं, वही हम खाते हैं केवल वही सत्य है॥ ४॥ १॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग गूजरी, प्रथम गुरु, १ ॥
ਨਾਭਿ ਕਮਲ ਤੇ ਬ੍ਰਹਮਾ ਉਪਜੇ ਬੇਦ ਪੜਹਿ ਮੁਖਿ ਕੰਠਿ ਸਵਾਰਿ ॥
पौराणिक मान्यता अनुसार, ब्रह्मा भगवान् विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से प्रकट हुए और उन्होंने मधुर स्वर में वेदों का उच्चारण किया।
ਤਾ ਕੋ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਈ ਲਖਣਾ ਆਵਤ ਜਾਤ ਰਹੈ ਗੁਬਾਰਿ ॥੧॥
लेकिन ब्रह्मा भी ईश्वर का अन्त नहीं जान सका तथा आवागमन के अन्धेरे में पड़े रहे ॥ १॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਿਉ ਬਿਸਰਹਿ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰ ॥
मैं अपने प्रियतम-प्रभु को क्यों विस्मृत करूँ ? जो कि मेरे प्राणों का आधार है।
ਜਾ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਜਨ ਪੂਰੇ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੇਵਹਿ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसकी भक्ति पूर्ण पुरुष भी करते हैं और मुनिजन भी गुरु के उपदेशानुसार सेवा-भक्ति करते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਰਵਿ ਸਸਿ ਦੀਪਕ ਜਾ ਕੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਏਕਾ ਜੋਤਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥
दुनिया में रोशनी करने के लिए सूर्य एवं चन्द्रमा उसके दीपक हैं, तीनों लोकों में एक उसी मुरारी की ज्योति प्रज्वलित हो रही है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਸੁ ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿਰਮਲੁ ਮਨਮੁਖਿ ਰੈਣਿ ਅੰਧਾਰਿ ॥੨॥
गुरुमुख मनुष्य रात-दिन मन में निर्मल रहता है तथा मनमुख लोग रात के अन्धेरे में भटकते रहते हैं।॥ २॥
ਸਿਧ ਸਮਾਧਿ ਕਰਹਿ ਨਿਤ ਝਗਰਾ ਦੁਹੁ ਲੋਚਨ ਕਿਆ ਹੇਰੈ ॥
सिद्ध पुरुष अपनी समाधि में सदैव अपने साथ ही झगड़ा करता हुआ प्रभु की खोज करते रहते हैं। परन्तु अपने दोनों नयनों से वह क्या देख सकते हैं।
ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਸਬਦੁ ਧੁਨਿ ਜਾਗੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਝਗਰੁ ਨਿਬੇਰੈ ॥੩॥
जिसके हृदय में प्रभु ज्योति विद्यमान है। वह शब्द की ध्वनि से जाग जाता है और सतगुरु उसके विवाद निपटा देता है॥ ३॥
ਸੁਰਿ ਨਰ ਨਾਥ ਬੇਅੰਤ ਅਜੋਨੀ ਸਾਚੈ ਮਹਲਿ ਅਪਾਰਾ ॥
हे अनंत, अयोनि प्रभु ! आप देवताओं एवं मनुष्यों के नाथ हो, आपका सच्चा मन्दिर अपार है।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਮਿਲੇ ਜਗਜੀਵਨ ਨਦਰਿ ਕਰਹੁ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੪॥੨॥
हे जगजीवन प्रभु ! दास नानक को सहजता प्रदान करें तथा अपनी दया-दृष्टि से उसका उद्धार कर दो ॥ ४॥ २॥