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ਰਾਮ ਰਸਾਇਨ ਪੀਓ ਰੇ ਦਗਰਾ ॥੩॥੪॥
हे पत्थर दिल ! राम-नाम रूपी अमृत का पान कर॥ ३॥ ४॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਿ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਸੀ ਆਸਾ ਤੇ ਨ ਭਾਵਸੀ ॥
जो आदमी पारब्रह्म को पहचान लेता है, उसे अन्य आशाएँ अच्छी नहीं लगती।
ਰਾਮਾ ਭਗਤਹ ਚੇਤੀਅਲੇ ਅਚਿੰਤ ਮਨੁ ਰਾਖਸੀ ॥੧॥
जो भक्त राम की भक्ति को मन में याद करता है, राम उसे चिंता से बचाकर रखते हैं॥ १॥
ਕੈਸੇ ਮਨ ਤਰਹਿਗਾ ਰੇ ਸੰਸਾਰੁ ਸਾਗਰੁ ਬਿਖੈ ਕੋ ਬਨਾ ॥
हे मेरे मन ! तुम विषय-विकारों के जल से भरे हुए संसार-सागर को कैसे पार करोगे ?
ਝੂਠੀ ਮਾਇਆ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭੂਲਾ ਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे मन ! मिथ्या सांसारिक पदार्थों को देख कर तुम कुमार्गगामी हो गए हो।॥ १॥ रहाउ॥
ਛੀਪੇ ਕੇ ਘਰਿ ਜਨਮੁ ਦੈਲਾ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਭੈਲਾ ॥
हे प्रभु ! यद्यपि मेरा जन्म केलिको मुद्रक (छपाई का कार्य करने वाले) के परिवार में हुआ, परंतु प्रभु की कृपा से मुझे सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
ਸੰਤਹ ਕੈ ਪਰਸਾਦਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਭੇਟੁਲਾ ॥੨॥੫॥
संतजनों की कृपा से नामदेव को हरि मिल गए हैं॥ २ ॥ ५ ॥
ਆਸਾ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ ਕੀ
राग आसा, बाणी श्री रविदास जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮ੍ਰਿਗ ਮੀਨ ਭ੍ਰਿੰਗ ਪਤੰਗ ਕੁੰਚਰ ਏਕ ਦੋਖ ਬਿਨਾਸ ॥
मृग, मछली, भँवरा, पतंगा एवं हाथी सभी का एक दोष के फलस्वरुप विनाश हो जाता है।
ਪੰਚ ਦੋਖ ਅਸਾਧ ਜਾ ਮਹਿ ਤਾ ਕੀ ਕੇਤਕ ਆਸ ॥੧॥
जिस व्यक्ति के भीतर पाँच असाध्य दोष विद्यमान हैं, उसकी क्या आशा की जा सकती है? ॥ १॥
ਮਾਧੋ ਅਬਿਦਿਆ ਹਿਤ ਕੀਨ ॥
हे माधो ! मनुष्य का प्रेम अविद्या से है।
ਬਿਬੇਕ ਦੀਪ ਮਲੀਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसके विवेक का दीपक मैला हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤ੍ਰਿਗਦ ਜੋਨਿ ਅਚੇਤ ਸੰਭਵ ਪੁੰਨ ਪਾਪ ਅਸੋਚ ॥
तिर्यग्योनि तो अचेत (विचारहीन) है तथा पुण्य एवं पाप के बारे में सोचना उनके लिए संभव नहीं।
ਮਾਨੁਖਾ ਅਵਤਾਰ ਦੁਲਭ ਤਿਹੀ ਸੰਗਤਿ ਪੋਚ ॥੨॥
मानव जन्म बहुत दुर्लभ है परन्तु इसकी संगति भी नीच है अर्थात् वह कामादिक विकारों से संलग्न रहता है॥ २॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਜਹਾ ਜਹਾ ਲਗੁ ਕਰਮ ਕੇ ਬਸਿ ਜਾਇ ॥
जीव-जन्तु जहाँ कहीं भी हैं, वे अपने पूर्व जन्म के कर्मों अनुसार जन्म लेते हैं।
ਕਾਲ ਫਾਸ ਅਬਧ ਲਾਗੇ ਕਛੁ ਨ ਚਲੈ ਉਪਾਇ ॥੩॥
काल की फाँसी अचूक है, उससे बचने का कोई उपाय नहीं ॥ ३॥
ਰਵਿਦਾਸ ਦਾਸ ਉਦਾਸ ਤਜੁ ਭ੍ਰਮੁ ਤਪਨ ਤਪੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ॥
हे दास रविदास ! तू विरक्त होकर अपना भ्रम त्याग दे और गुरु के ज्ञान की तपस्या कर।
ਭਗਤ ਜਨ ਭੈ ਹਰਨ ਪਰਮਾਨੰਦ ਕਰਹੁ ਨਿਦਾਨ ॥੪॥੧॥
हे भक्तजनों के भय नाश करने वाले परमानंद प्रभु ! आप ही कुछ निदान कीजिए॥ ४॥ १॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਸੰਤ ਤੁਝੀ ਤਨੁ ਸੰਗਤਿ ਪ੍ਰਾਨ ॥
हे देवाधिदेव ! संतजन तेरा तन है और उनकी संगति प्राण है।
ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨ ਜਾਨੈ ਸੰਤ ਦੇਵਾ ਦੇਵ ॥੧॥
सतगुरु के ज्ञान द्वारा मैंने उन संतजनों को जान लिया है॥ १॥
ਸੰਤ ਚੀ ਸੰਗਤਿ ਸੰਤ ਕਥਾ ਰਸੁ ॥ ਸੰਤ ਪ੍ਰੇਮ ਮਾਝੈ ਦੀਜੈ ਦੇਵਾ ਦੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे देवों के देव ! संतजनों की संगति, संतजनों की कथा का रस एवं संतजनों का प्रेम प्रदान कीजिए। ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤ ਆਚਰਣ ਸੰਤ ਚੋ ਮਾਰਗੁ ਸੰਤ ਚ ਓਲ੍ਹਗ ਓਲ੍ਹਗਣੀ ॥੨॥
हे देवाधिदेव ! संतजनों का आचरण, संतजनों का मार्ग एवं संतजनों के सेवकों की सेवा मुझे प्रदान कीजिए॥ २॥
ਅਉਰ ਇਕ ਮਾਗਉ ਭਗਤਿ ਚਿੰਤਾਮਣਿ ॥
हे प्रभु ! मैं आपसे एक अन्य दान मांगता हूँ। दया करके मुझे भक्ति की चिंतामणि प्रदान करें।
ਜਣੀ ਲਖਾਵਹੁ ਅਸੰਤ ਪਾਪੀ ਸਣਿ ॥੩॥
मुझे दुष्ट एवं पापी लोगों के दर्शन मत करवाना॥ ३॥
ਰਵਿਦਾਸੁ ਭਣੈ ਜੋ ਜਾਣੈ ਸੋ ਜਾਣੁ ॥
रविदास कहते हैं कि वास्तव में बुद्धिमान-ज्ञानी वही है जो जानता है कि
ਸੰਤ ਅਨੰਤਹਿ ਅੰਤਰੁ ਨਾਹੀ ॥੪॥੨॥
संत एवं भगवान् में कोई अन्तर नहीं ॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਤੁਮ ਚੰਦਨ ਹਮ ਇਰੰਡ ਬਾਪੁਰੇ ਸੰਗਿ ਤੁਮਾਰੇ ਬਾਸਾ ॥
हे परमात्मा ! आप तो चंदन के सुगंधित वृक्ष के समान हैंऔर मैं उस पेड़ से लिपटा हुआ एक साधारण नीचे स्तर का अरंडी का पौधा।
ਨੀਚ ਰੂਖ ਤੇ ਊਚ ਭਏ ਹੈ ਗੰਧ ਸੁਗੰਧ ਨਿਵਾਸਾ ॥੧॥
जिससे एक नीच पेड़ से ऊँचे (श्रेष्ठ) हो गए हैं। आपकी मीठी सुगन्ध हमारे भीतर निवास करती है॥ १॥
ਮਾਧਉ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਰਨਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥
हे माधव ! हमने आपकी सत्संगति की शरण ली है।
ਹਮ ਅਉਗਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਉਪਕਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम अवगुणी हैं और आप परोपकारी हो॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ ਮਖਤੂਲ ਸੁਪੇਦ ਸਪੀਅਲ ਹਮ ਬਪੁਰੇ ਜਸ ਕੀਰਾ ॥
आप सफेद एवं पीले रेशम का धागा हो और हम बेचारे कीड़े की भाँति हैं।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ਮਾਧਉ ਜੈਸੇ ਮਧੁਪ ਮਖੀਰਾ ॥੨॥
हे माधव ! हम सत्संगति में ऐसे मिले रहें जैसे मधुमक्खियाँ शहद के छते से मिली रहती हैं।॥ २॥
ਜਾਤੀ ਓਛਾ ਪਾਤੀ ਓਛਾ ਓਛਾ ਜਨਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥
हमारी जाति-पाति ओछी (नीच) है और जन्म भी ओछा (नीच) है।
ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਕੀਨੀ ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਚਮਾਰਾ ॥੩॥੩॥
संत रविदास कहते हैं कि सब कुछ ओछा (नीच) होने के साथ ही हमने राजा राम की सेवा-भक्ति भी नहीं की॥ ३॥ ३॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਕਹਾ ਭਇਓ ਜਉ ਤਨੁ ਭਇਓ ਛਿਨੁ ਛਿਨੁ ॥
हे प्रभु ! तो क्या हुआ ? यदि मेरे तन के टुकड़े-टुकड़े भी हो जाएँ, मुझे कोई भय नहीं।
ਪ੍ਰੇਮੁ ਜਾਇ ਤਉ ਡਰਪੈ ਤੇਰੋ ਜਨੁ ॥੧॥
आपके सेवक को तो यही भय है कि कहीं आपका प्रेम दूर न हो जाए॥ १॥
ਤੁਝਹਿ ਚਰਨ ਅਰਬਿੰਦ ਭਵਨ ਮਨੁ ॥
हे भगवान् ! मेरा मन सदा आपके प्रेम में लीन है, मानो आपके चरण-कमल ही उसका विश्राम-स्थल हों।
ਪਾਨ ਕਰਤ ਪਾਇਓ ਪਾਇਓ ਰਾਮਈਆ ਧਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपके नामामृत का पान करने से मुझे राम-धन प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਪਤਿ ਬਿਪਤਿ ਪਟਲ ਮਾਇਆ ਧਨੁ ॥
संपति, विपत्ति, माया एवं धन इत्यादि सभी छल-कपट ही हैं।