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ਇਹ ਸ੍ਰਪਨੀ ਤਾ ਕੀ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ॥
यह माया रूपी सर्पिणी तो उस प्रभु की पैदा की हुई है,
ਬਲੁ ਅਬਲੁ ਕਿਆ ਇਸ ਤੇ ਹੋਈ ॥੪॥
अपने आप उसमें कौन-सा बल अथवा अबल है॥ ४॥
ਇਹ ਬਸਤੀ ਤਾ ਬਸਤ ਸਰੀਰਾ ॥
जितनी देर तक माया रूपी सर्पिणी मनुष्य के मन में निवास करती है, तब तक वह जन्म-मरण के चक्र में पड़ा रहता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਹਜਿ ਤਰੇ ਕਬੀਰਾ ॥੫॥੬॥੧੯॥
गुरु की अनुकंपा से कबीर सहज ही पार हो गए हैं॥ ५॥ ६ ॥ १६ ॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਕਹਾ ਸੁਆਨ ਕਉ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸੁਨਾਏ ॥
कुत्ते (अर्थात् लालची आदमी) को स्मृतियाँ पढ़कर सुनाने का क्या अभिप्राय है ?
ਕਹਾ ਸਾਕਤ ਪਹਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਏ ॥੧॥
वैसे ही शाक्त के पास हरि का गुणगान करने का क्या लाभ है ?॥ १॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਮੇ ਰਮਿ ਰਹੀਐ ॥
हे भाई ! राम नाम में पूर्णतया लीन रहना चाहिए तथा
ਸਾਕਤ ਸਿਉ ਭੂਲਿ ਨਹੀ ਕਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भूलकर भी शाक्त मनुष्य को उपदेश नहीं करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਕਊਆ ਕਹਾ ਕਪੂਰ ਚਰਾਏ ॥
कौए को कपूर खिलाने से कोई लाभ नहीं (क्योंकि कौए की विष्ठा-भक्षी चोंच में सुगन्ध नहीं आएगी)
ਕਹ ਬਿਸੀਅਰ ਕਉ ਦੂਧੁ ਪੀਆਏ ॥੨॥
इसी तरह विषधर सांप को दूध पिलाने का भी कोई लाभ नहीं (क्योंकि डंक मारने से वह हटेगा नहीं) ॥ २॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਬਿਬੇਕ ਬੁਧਿ ਹੋਈ ॥
सत्संगति में सम्मिलित होने से विवेक-बुद्धि की प्राप्ति होती है,
ਪਾਰਸੁ ਪਰਸਿ ਲੋਹਾ ਕੰਚਨੁ ਸੋਈ ॥੩॥
जैसे पारस के स्पर्श से लोहा स्वर्ण बन जाता है॥ ३॥
ਸਾਕਤੁ ਸੁਆਨੁ ਸਭੁ ਕਰੇ ਕਰਾਇਆ ॥
शाक्त एवं कुत्ता सब कुछ वही करते हैं, जो प्रभु उनसे करवाते हैं।
ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੁ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ॥੪॥
जो आदि से भाग्य में लिखा दिया जाता है, वह वही कर्म करते हैं।॥ ४॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਲੈ ਲੈ ਨੀਮੁ ਸਿੰਚਾਈ ॥
कबीर जी कहते हैं कि यदि कोई मनुष्य अमृत लेकर भी नीम की सिंचाई करे
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਉਆ ਕੋ ਸਹਜੁ ਨ ਜਾਈ ॥੫॥੭॥੨੦॥
तो भी उसका कड़वा स्वभाव दूर नहीं होता।॥ ५॥ ७॥ २०॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਲੰਕਾ ਸਾ ਕੋਟੁ ਸਮੁੰਦ ਸੀ ਖਾਈ ॥
जिस महाबली रावण का लंका जैसा मजबूत दुर्ग था और समुद्र जैसी दुर्ग की रक्षा हेतु खाई थी,
ਤਿਹ ਰਾਵਨ ਘਰ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥
उस रावण के घर की आज कोई खबर नहीं अर्थात् कोई अस्तित्व नहीं मिलता ॥ १ ॥
ਕਿਆ ਮਾਗਉ ਕਿਛੁ ਥਿਰੁ ਨ ਰਹਾਈ ॥
मैं परमात्मा से क्या माँगूं, क्योंकि कुछ भी स्थिर नहीं रहता अर्थात् सब कुछ नाशवान है।
ਦੇਖਤ ਨੈਨ ਚਲਿਓ ਜਗੁ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे नयनों के देखते-देखते ही समूचा जगत चला जा रहा है अर्थात् नाश हो रहा है॥ १॥ रहाउ ॥
ਇਕੁ ਲਖੁ ਪੂਤ ਸਵਾ ਲਖੁ ਨਾਤੀ ॥
जिस रावण के एक लाख पुत्र एवं सवा लाख नाती-पोते थे,
ਤਿਹ ਰਾਵਨ ਘਰ ਦੀਆ ਨ ਬਾਤੀ ॥੨॥
उस रावण के घर में आज न दीया और न ही बाती है॥ २॥
ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਜਾ ਕੇ ਤਪਤ ਰਸੋਈ ॥
रावण इतना बलशाली था कि चन्द्रमा एवं सूर्य देवता उसकी रसोई तैयार करते थे
ਬੈਸੰਤਰੁ ਜਾ ਕੇ ਕਪਰੇ ਧੋਈ ॥੩॥
और अग्नि देवता उसके वस्त्र धोते थे॥ ३॥
ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮੈ ਨਾਮਿ ਬਸਾਈ ॥
जो गुरु की मति द्वारा राम के नाम को अपने हृदय में बसाता है,
ਅਸਥਿਰੁ ਰਹੈ ਨ ਕਤਹੂੰ ਜਾਈ ॥੪॥
वह स्थिर रहता है और कहीं भी नहीं भटकता ॥ ४ ॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਲੋਈ ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे लोगो ! जरा ध्यान से सुनो,
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੫॥੮॥੨੧॥
राम के नाम बिना जीव की मुक्ति नहीं होती ॥ ५ ॥ ८ ॥ २१॥
ਆਸਾ ॥
रागग, आसा ॥
ਪਹਿਲਾ ਪੂਤੁ ਪਿਛੈਰੀ ਮਾਈ ॥
पहले (भगवान् का अंश जीव) पुत्र था और तदुपरांत उसकी माता बन बैठी माया उत्पन्न हुई।
ਗੁਰੁ ਲਾਗੋ ਚੇਲੇ ਕੀ ਪਾਈ ॥੧॥
वह जीव स्वयं गुरु के सादृश्य था परन्तु मन रूपी चेले की आज्ञा का पालन करने लगा ॥
ਏਕੁ ਅਚੰਭਉ ਸੁਨਹੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! एक अद्भुत बात सुनो
ਦੇਖਤ ਸਿੰਘੁ ਚਰਾਵਤ ਗਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं निडर जीवात्मा रूपी सिंह को अब इन्द्रियों रूपी गायों को चराते देख रहा हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਲ ਕੀ ਮਛੁਲੀ ਤਰਵਰਿ ਬਿਆਈ ॥
भगवान् के अमृत जल में निवसित (आत्मा रूपी) मछली जल त्यागकर विकारों के पेड़ पर प्रसूत हो रही है अर्थात् सांसारिक बन्धनों में उलझ गई है।
ਦੇਖਤ ਕੁਤਰਾ ਲੈ ਗਈ ਬਿਲਾਈ ॥੨॥
तृष्णा रूपी बिल्ली को संतोष रूपी कुत्ते को उठाकर भागते देखा है॥ २ ॥
ਤਲੈ ਰੇ ਬੈਸਾ ਊਪਰਿ ਸੂਲਾ ॥
जीव के गुणों की टहनियाँ नीचे दब गई हैं तथा कांटे ऊपर उठ आए हैं।
ਤਿਸ ਕੈ ਪੇਡਿ ਲਗੇ ਫਲ ਫੂਲਾ ॥੩॥
उस पेड़ के तने को विकारों के फल-फूल लगे हुए हैं। ३॥
ਘੋਰੈ ਚਰਿ ਭੈਸ ਚਰਾਵਨ ਜਾਈ ॥
प्राण रूपी घोड़े पर सवार होकर वासना की भैंस जीवात्मा को चराने (भोग भोगने) हेतु ले जाती है।
ਬਾਹਰਿ ਬੈਲੁ ਗੋਨਿ ਘਰਿ ਆਈ ॥੪॥
धैर्य रूपी बैल अभी बाहर है जबकि वासनाओं का बोझ जीव के घर में आ गया है॥ ४ ॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਜੁ ਇਸ ਪਦ ਬੂਝੈ ॥
कबीर जी कहते हैं कि जो इस पद को समझ लेता है,
ਰਾਮ ਰਮਤ ਤਿਸੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ॥੫॥੯॥੨੨॥
उसे राम नाम का भजन करने से सब कुछ सूझ हो जाती है और वह माया के बन्धनों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है॥ ५ ॥ ६ ॥ २२ ॥
ਬਾਈਸ ਚਉਪਦੇ ਤਥਾ ਪੰਚਪਦੇ ਆਸਾ ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕੇ ਤਿਪਦੇ ੮ ਦੁਤੁਕੇ ੭ ਇਕਤੁਕਾ ੧
बाईस चौ-पदे तथा पंच-पदे आसा श्री कबीर जी के तीन-पदे ८ दु-तुके ७ इक-तुक १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬਿੰਦੁ ਤੇ ਜਿਨਿ ਪਿੰਡੁ ਕੀਆ ਅਗਨਿ ਕੁੰਡ ਰਹਾਇਆ ॥
भगवान् ने पिता के वीर्य-बिन्दु से तेरे शरीर को बना दिया और गर्भ रूपी अंग्निकुण्ड में तेरी रक्षा की।
ਦਸ ਮਾਸ ਮਾਤਾ ਉਦਰਿ ਰਾਖਿਆ ਬਹੁਰਿ ਲਾਗੀ ਮਾਇਆ ॥੧॥
दस महीने उसने माता के उदर में बचाकर रखा और जगत् में जन्म लेकर तुझे माया ने आकर्षित कर लिया।॥ १॥
ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਾਹੇ ਕਉ ਲੋਭਿ ਲਾਗੇ ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਖੋਇਆ ॥
हे प्राणी ! लोभ में फँसकर तूने हीरे जैसा अनमोल जीवन क्यों गंवाया है?
ਪੂਰਬ ਜਨਮਿ ਕਰਮ ਭੂਮਿ ਬੀਜੁ ਨਾਹੀ ਬੋਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूर्व जन्म के शुभ कर्मों के कारण मिली इस शरीर रूपी कर्मभूमि में नाम रूपी बीज को तूने अभी तक बोया ही नहीं है॥ १॥ रहाउ॥
ਬਾਰਿਕ ਤੇ ਬਿਰਧਿ ਭਇਆ ਹੋਨਾ ਸੋ ਹੋਇਆ ॥
अब बालक से तू वृद्ध हो गया है और जो कुछ होना था, वह हो गया है।
ਜਾ ਜਮੁ ਆਇ ਝੋਟ ਪਕਰੈ ਤਬਹਿ ਕਾਹੇ ਰੋਇਆ ॥੨॥
जब यमदूत आकर तुझे बालों से पकड़ता है तो तू क्यों विलाप करता है ?